Sunita Malhan

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Dr. Sunita Malhan

Dr Sunita Malhan (डॉ सुनीता मल्हान) is Rani Laxmi Bai President’s Award Recipient for 2009. She works as a warden of a girls' hostel in M D University Rohtak, Haryana. Sunita lost both her hands in an accident a couple of years ago. But she didn’t lose her courage and the will within her to live life to the fullest. She uses her legs instead and does everything her hands used to. Today she is leading a normal and a happy life.

Sunita Malhan, President’s Award Recipient

Sunita Malhan is Rani Laxmi Bai President’s Award Recipient for 2009. While fate did force Sunita Malhan to adopt an alternative way of life, her determination and creativity are truly commendable. After getting Honored by President of India Specially Abled Achievers, she said,[1]


"I don't agree with the term disabled. I don't consider myself disabled. In fact I am differently abled because I can do all the work anyone else can, the difference being you do it with your hands and I do it with my legs. That's why I am differently abled and not disabled. Disabled are those who with a fully functional body aren't able to make anything of their lives."

डॉ सुनीता मल्हान: एक परिचय

नई दिल्ली के विज्ञान भवन में महिला दिवस पर आयोजित 'स्त्री शक्ति पुरस्कार २००९' समारोह के दौरान भारत की राष्ट्रपति ने हरयाणा के रोहतक के महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय के गर्ल्स होस्टल -३ की वार्डन डॉ सुनीता मल्हान को 'रानी लक्ष्मीबाई पुरस्कार' से सम्मानित किया. अवार्ड के लिए चयनित होने के बाद डा. सुनीता मल्हान खासी खुश नजर आई. उन्होंने बताया कि वह अवार्ड के लिए खासी उत्साहित है. उसने अवार्ड व अपने जीवन में यहां तक पहुंचने का श्रेय अपने माता-पिता धनवंती व महेद्र सिंह को दिया. हरयाणा सरकार ने भी महिला दिवस पर उन्हें सम्मानित किया. इससे पहले ३ दिसंबर २००९ को राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने डॉ सुनीता मल्हान को श्रेष्ठ विकलांग कर्मचारी होने का अवार्ड भी दिया था.

डॉ सुनीता मल्हान झज्जर जिले के सुबाना गाँव की रहने वाली हैं.उनका संघर्ष काफी प्रेरणा दायक है. डॉ सुनीता मल्हान की शादी जनवरी १९८७ में ही हो गयी थी जब उन्होंने स्नातक की डिग्री ली ही थी. शादी के चार माह बाद ८ मई १९८७ को दोपहर रेलवे फाटक पार करते समय उनकी चुन्नी सायकिल के पहिये में उलझ गई और ट्रेन हादसे में वे अपने दोनों हाथ गवां बैठी. हादसे के बाद पति ने तलाक दे दिया. डॉ सुनीता मल्हान का यह सबसे कठिन दौर था. डा. सुनीता मल्हान की यह दर्द भरी कहानी है. उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. सुनीता की हालात से हार न मानने की जिजीविषा के जिक्र के बगैर यह कहानी अधूरी है। वह हालात से लड़ीं, सिर्फ और सिर्फ अपने बूते पर। हाथ गंवाने के बाद उसने पैर से कलम थामी और पढ़ाई पूरी कीं। सुनीता ने हर इम्तिहान पास किया, पढ़ाई का भी और जिंदगी का भी। कठिन परिस्थितियों में आगे बढ़ने की सुनीता की जिजीविषा को अब पूरा राष्ट्र सलाम कर रहा है।

इलाज के दौरान सुनीता ने एक नर्स के माध्यम से पैर के अंगूठे से लिखना सीखा. नर्स ने स्वयं ही कापी पैन लाकर दिए और पाँव से पैन पकड़ना सिखाया. पैर से लिखने में शुरू में बहुत कष्ट हुआ पर लगातार अभ्यास से वह लिखने में सफल रही. पैर से लिखने के अभ्यास के साथ ही परीक्षा की तैयारी भी की और ऍम.ए. प्रथम वर्ष की परीक्षा दी. कड़ी मेहनत और हौसले का मीठा फल सुनीता को मिला. सुनीता ने ऍम.ए. की पढाई पूरी करली. वह यहीं नहीं रुकी और पी एच ड़ी भी करली और डॉ सुनीता मल्हान कहलाने लगी.

एमडी यूनिवर्सिटी हास्टल वार्डन डा. सुनीता मल्हान को स्त्री शक्ति के लिए देश के प्रतिष्ठित रानी लक्ष्मीबाई अवार्ड के लिए चुना गया है। उन्हे राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने आठ मार्च २००९ को राष्ट्रीय महिला दिवस पर विज्ञान भवन में होने वाले समारोह में सम्मानित किया. एमडी यूनिवर्सिटी के सरस्वती हास्टल (ग‌र्ल्ज हास्टल नंबर तीन) की वार्डन डा. सुनीता देवी को यह पुरस्कार उन्हे कठिन परिस्थितियों में आगे बढ़ने के लिए दिया गया है. हर वर्ष यह पुरस्कार उस महिला को दिया जाता है जो कठिन परिस्थितियों में संभल कर अपने जीवन को आगे बढ़ाती है, अपने परिवार का सहारा बन समाज के लिए प्रेरणास्त्रोत बनती हैं.

एथलेटिक में राष्ट्रीय स्तर पर पदक

सुनीता मल्हान खेलों में भी काफी शौक रखती है तथा एथलेटिक में राष्ट्रीय स्तर पर पदक विजेता है.

सुनीता मल्हान ने राष्ट्र पैरालम्पिक खेलों में दो पदक हासिल कर कौम का नाम रौशन किया है। हाल ही में बंगलौर में आयोजित वरिष्ठ पैरालम्पिक राष्ट्रीय खेलों में चार गुणा सौ मीटर रिले रेस में स्वर्ण व चार सौ मीटर रेस में रजत पदक हासिल किया। [2]

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References


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