Surahti

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Surheti or Surahti (सुरैहती) is a village of Deswal देशवाल gotra in district Jhajjar (Haryana). [1]

Jat gotras

History

दलीप सिंह अहलावत लिखते हैं -

...फर्रूखनगर का नवाब मुसावी खान बलूच बड़ा बदचलन व्यक्ति था। एक दिन वह अपने कुछ साथियों को लेकर शिकार खेलता हुआ सुरहती (तहसील झज्जर, जि० रोहतक) के गांव के खेतों में जा पहुंचा। वहां उस गांव की कुछ स्त्रियां खेतों में काम कर रही थीं। उनमें सुरहती गांव के देशवाल गोत्र के जाट महाराम नम्बरदार की अविवाहित पुत्री हंसकौर भी थी। वह अति सुन्दर, युवती एवं शक्तिशाली लड़की थी। उस दुष्ट मुसावी खान की दृष्टि जब उस युवती पर पड़ी तो वह उस पर मोहित हो गया। हंसकौर के निकट जाकर उसने उस लड़की का नाम पूछना चाहा तो हंसकौर ने उसे डांटकर लताड़ दिया।

मुसावी खान नवाब ने हंसकौर के पिता महाराम नम्बरदार को बुलाकर कहा कि तुम अपनी इस लड़की का विवाह मेरे साथ कर दो। चौ० महाराम ने उत्तर दिया कि मैं इस बारे में अपनी जाट बिरादरी से सलाह ले लूं। नवाब ने इसके लिए स्वीकृति देते हुए कहा कि मुझे शीघ्र ही उत्तर देना, नहीं तो मैं बलपूर्वक आपकी लड़की को ले जाऊंगा। चौ० महाराम ने यह बात गांव के निवासियों को बताई। उस पर विचार करने हेतु हरयाणा की कई जाट खापों की पंचायत का सम्मेलन सुरहती गांव में हुआ। जब इस उपर्युक्त घटना का ब्यौरा इस पंचायत को दिया गया, तब जाटों ने सर्वसम्मति से एक स्वर में कहा कि हम मुसलमान नवाब को अपनी लड़की का डोला कभी नहीं देंगे, भले ही हमें अत्याचार तथा कष्ट सहने पड़ें। हम डटकर उसका मुकाबिला करेंगे और अपने जातीय धर्म रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान दे देंगे1

इसी प्रकार का निर्णय जाटों की 35 खापों ने लिया था, जिसमें सम्राट् अकबर के उस आदेश को ठुकरा दिया गया था, जो कि उसने धारीवाल जाट गोत्र के चौ० मीरमत्ता को उसकी सुन्दर एवं


जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-697


बलवती पुत्री धर्मकौर का विवाह अपने साथ करने को कहा था। (देखो जाटवीरों का इतिहास, तृतीय अध्याय, सिन्धु गोत्र प्रकरण)।

उपर्युक्त पंचायत ने, मुसावी खान के विरुद्ध सहायतार्थ अपने पंच महाराजा सूरजमल के पास भेजे। सूरजमल किसी विशेष कार्य में लीन थे, अतः उन्होंने अपने पुत्र जवाहरसिंह को इन पंचों की बात सुनने का आदेश दिया। सारी जानकारी मिलने पर कुंवर जवाहरसिंह ने पंचों को बताया कि “आप हंसकौर के बनावटी विवाह का पत्र लम्बी तिथि देकर मुसावी खान को भेज दो और उस तिथि की सूचना मेरे को भी भेज देना।” ऐसा ही किया गया।

इस तिथि का अनुमान लगता है कि यह संवत् वि० 1820 के कार्तिक शुदी एकादशी और पूर्णिमा के बीच (अक्तूबर 1763 ई०) की थी। बनावटी विवाह की निश्चित तिथि को कुंवर जवाहरसिंह ने फर्रूखनगर पर आक्रमण कर दिया2

मुसावी खान भी एक शक्तिशाली नवाब था। उसने अनेक बलूच सैनिक सरदार ताज मोहम्मद खान के नेतृत्व में जवाहरसिंह का सामना करने भेजे। प्रथम मुठभेड़ में बलूच सैनिक जाटों के प्रहार का सामना नहीं कर पाये और भाग खड़े हुए। इस मुठभेड़ में बलूचों का साथी राजा जयसिंह राव मारा गया। (नूरुद्दीन, पृ० 62 अ)।

नवाब की शक्तिशाली सेना ने दुर्ग पर जाटों के आक्रमण को निष्फल कर दिया। जवाहरसिंह ने अपने पिता महाराजा सूरजमल को संदेश भेजकर अपनी सहायता के लिए बुलाया। नवम्बर 1763 ई० में सूरजमल के नेतृत्व में एक शक्तिशाली जाट सेना जिसमें 20,000 घुड़सवार, तोपें और बड़ी संख्या में पैदल सैनिक शामिल थे, ने फर्रूखनगर के दुर्ग को घेर लिया। उधर नजीब खान को जब यह सूचना मिली तो उसने सूरजमल को पत्र लिखा, “आपके और मेरे बीच शान्ति और एकता की मैत्री सन्धि है। बलूच भी मेरे आश्रित हैं। आप अकारण उन्हें निष्कासित कर रहे हैं। यह अपनी मित्रता के विरुद्ध होगा।” सूरजमल ने उसे जवाब भेजा कि, “यह संघर्ष मेरे नियन्त्रण से परे हैं। मेरा पुत्र जवाहरसिंह इस कार्य के लिए दृढ़ निश्चयी है और बलूच भी दण्ड के योग्य हैं क्योंकि वे राजमार्गीय डकैतों को अपने घरों में शरण दे रहे हैं।” (नूरुद्दीन, पृ० 62 ब)।

नजीब खान, जो इस समय नजीबाबाद में बीमार था, अपनी सेना के साथ नजीबाबाद से चलकर युद्ध स्थल के लिए रवाना हो गया। वह डेढ़ दिन में लगभग 150 मील की दूरी तय करके 14 दिसम्बर को दिल्ली पहुंचा (फर्रूखनगर के पतन के दो दिन बाद)।

अब पाठकों का ध्यान फर्रूखनगर के दुर्ग की ओर दिलाया जाता है। जाटों ने अपने मोर्चे से दुर्ग पर गोलाबारी शुरु कर दी। मुसावी खान के नेतृत्व में सभी बलूच सरदारों ने किले के अन्दर एवं बाहर से जाट सेना का साहसपूर्वक मुकाबला किया। परन्तु जाटों की तोपें दुर्ग की दीवारें तोड़ने में सफल हो गईं। मुसावी खान ने भयभीत होकर सूरजमल को समर्पण का प्रस्ताव किया और जाट राजा द्वारा सुरक्षा के आश्वासन पर वह किले से बाहर निकल आया। इस प्रकार दो महीने के घेरे


1, 2. जाट इतिहास, इंगलिश पृ० 165-166, रामसरूप जून; सुरहती गांव के लोगों की जबानी एवं हरयाणा में प्रचलित दन्तकथा।


जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-698


(जवाहरसिंह से शुरु करके) के बाद फर्रूखनगर के किले पर जाट सेना का अधिकार, 12 दिसम्बर, 1763 ई० को, हो गया। जवाहरसिंह ने दुर्ग में प्रवेश करके वहां की सारी सम्पत्ति, तोपखाना और कोष पर अधिकार कर लिया। सूरजमल ने मुसावी खान को बन्दी बनाकर भरतपुर के दुर्ग में भेज दिया1

इस तरह से नवाब मुसावी खान को, एक जाट लड़की से अपना विवाह करने के बजाय, जाटों का कैदखाना अवश्य मिल गया। साथ ही मेवाती तथा अन्य डाकुओं का भी सफाया हो गया।....[3]


कप्तान सिंह देशवाल लिखते हैं

Deshwal Gotra ka Itihas.jpg

कप्तान सिंह देशवाल लिखते हैं -

यह गाँव दुल्हेड़ा से आया था। वैसे तो देशवाल गौत्र के सभी गाँव किसी न किसी ऐतिहासिक घटना से जुड़े हुए हैं। देशवाल गौत्र प्राचीन है। इस गौत्र की कहानी गौरवशाली है। परन्तु इस गाँव की कहानी कुछ अलग से बहादुरी का प्रमाण देती है। इतिहास के अनुसार कहानी सुनने से और पढ़ने से हमें पता चलता है कि हमारी (मातृशक्ति) माता, दादी, बुआ, बहनें भी न्यायप्रिय, चरित्रवान, धार्मिक, सामाजिक राजनीति और बहादुरी में अग्रणी रही हैं। इन महिलाओं की कथा सुनकर हर कोई आदमी गदगद होने से नहीं चूकता। हमारी मातृशक्ति से हमें प्रेरणा मिलती है कि किसी भी समय पर किसी क्षेत्र में आदमियों से पीछे नहीं रहीं।

गाँव में दादा माहराम नम्बरदार का एक सम्पन्न परिवार था। इस परिवार में एक लड़की अति सुन्दर, लम्बी व होनहार थी। इस लड़की का नाम हंसकौर था। एक दिन जब वह अपने खेत में बाजरे की रखवाली कर रही थी तो उस दिन फर्रुखनगर का नवाब मुसाबी खान पठान अपने सैनिकों के साथ शिकार खेलता हुआ गाँव सुरहेती के माहराम नम्बरदार के खेत की तरफ दौड़ता हुआ आ रहा था। लड़की हंसकौर ने खेत में घुसने से मना कर दिया। सिपाहियों ने अपने आखेट के बारे में कहा कि आपके खेत में हमारा शिकार (जंगली सूअर) घुस गया है। लड़की ने उस शिकार को खेत से निकाल दिया। नवाब मुशाबी खाँ ने इस लड़की का डोला लेने के लिए और बदले में 17 गाँव देने की बात कही। गाँव वालों ने विरोध करते हुए मना कर दिया। गाँव की पंचायत हुई। महाराजा जवाहर सिंह से मिलकर सारा समाचार बताया। जवाहर सिंह ने गाँव वालों को कहा कि नवाब को समय दे दो। मैं इधर से आ रहा हूँ। 1763 में (मंगसर अमावस) अक्तूबर में ढाई महीने तक लड़ाई हुई। नवाब को कैद करके डिंग की जेल में डाल दिया। इस लड़ाई में देशवाल गौत्र के जाटों के अतिरिक्त अन्य गौत्रों के लोगों ने पूरा सहयोग दिया था। सन् 1774 में डिंग में किसी खुशी के कारण सब कैदी छोड़ दिए गये। मुशाबी खान पठान भी कैद से बाहर आया। समय पाकर मुशाबी खाँ ने माहराम नम्बरदार के सारे परिवार को खत्म कर दिया। इस लड़ाई में एक महिला अपने मायके गई थी, वह बच गई थी जो खेड़ी आसरा में जा बसी। उसका नाम जीवणी था। यह लड़ाई 1775 में हुई थी।

नोट - फर्रुखनगर की लड़ाई और हंसकौर के बारे में विस्तार से प्रमाण सहित देशवाल गौत्र की उत्पत्ति भाग नं. 1 में आपको पढ़ने को मिलेगा।

चौ. ओमप्रकाश देशवाल (वकील) एडवोकेट कोर्ट झज्जर ने बताया कि सुरेहती गाँव पहले से आबाद था। गाँव पहले मिर्ज जाति का था। यह गाँव बार-बार उजड़ा। इस क्षेत्र में पहले साहिबी (साबी) नदी बहती थी। नदी को पार करवाने के लिए इस गाँव पर मल्लाह जाति का कब्जा हो गया और चमार इस गाँव को छोड़कर चले गए। प्राकृतिक हेर-फेर से इस क्षेत्र में बहने वाली साबी नदी भी खत्म हो गई। मल्लाह जाति के लोग भी इस गाँव को छोड़कर चले गए। यह गाँव साबी नदी के किनारे पर बसा हुआ था। दुल्हेड़ा वासी दादा चौ. सालर सिंह की शादी गाँव ढ़ाकला में हुई थी। दादा जी अपनी ससुराल आते-जाते समय इस उपजाऊ जमीन को देखते थे और उनका मन पहले से बना हुआ था कि इस जमीन पर कब्जा किया जाए। साबी नदी होने के कारण यहाँ पानी का प्रबन्ध भी उचित है। इस बस्ती को खाली देखकर उपजाऊ जमीन पर कब्जा कर लिया। यह परिवार धीरे-धीरे आज पूरा गाँव का रूप बन गया है।

विशेषताऐं -

  1. यह गाँव दुल्हेड़ा से आकर सन् 1560 में दादा सालर सिंह देशवाल ने बसाया था।
  2. इस गाँव का क्षेत्रफल 9000 पक्का बीघा है।
  3. हनमत, होशियार सिंह, सहराम, चौ. भगवान सिंह, चौ. हट्ठीराम स्वतंत्रता सेनानी रहे थे।
  4. चौ. सालर सिंह के तीन पुत्रों के नाम हैं - लालूराम के नाम पर लालूवाण पान्ना, जागसी से जगस्याण पान्ना और गंगला से गंगलाण पान्ने के नाम से गाँव में तीन पान्ने हैं।
  5. चौधरी बसाऊ सिंह देशवाल अपने समय का सामाजिक, पंचायती चौधरी व्यक्ति था। बसाऊ सिंह अपने समय में चर्चित पहलवान भी रहा है।
  6. यह गाँव झज्जर से रेवाड़ी और झज्जर से कोसली रोड के बीच में दोनों सड़कों पर 12 किलोमीटर की दूरी से कोसली रोड से पूर्व दिशा में 2 किलोमीटर और रेवाड़ी रोड से पश्चिम दिशा में 3 किलोमीटर पर दोनों सड़कों के बीच में आबाद है।
  7. मास्टर राजेश कुमार और ठेकेदार चौ० रमेश देशवाल दोनों भाईयों ने अपने पिता जी मास्टर सूरजभान के सहयोग व आशीर्वाद से अपनी दादी जी श्रीमती भरतो देवी पत्नी स्वर्गीय चौ. धर्मपाल देशवाल का 18-10-2015 को देशोरी काज किया था। इस काज में पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान आदि की समस्त देशवाल खाप के अतिरिक्त 360 खापों के कई हजार व्यक्तियों ने भाग लिया था। दादी जी की लम्बी आयु (107 वर्ष) होने के कारण 23-9-2015 को अचानक हृदय गति रुकने से स्वर्गवास हो गया। वह एक आदर्श गृहिणी महिला थी।[4]

News in Daily Bhaskar dated 14 April 2017

http://www.bhaskar.com/news/HAR-OTH-MAT-latest-jhajjar-news-020005-2393836-NOR.html

गुमनाम शहीदों को पहचान देने के लिए आगे आएं इतिहासकार, पैसे की नहीं आने देंगे कमी : धनखड़

सुरहेती गांव में शहीद अमित देशवाल की प्रतिमा का अनावरण करते कृषि मंत्री ओ.पी. धनखड़

राज्य में हर गांव के गौरव पट्ट पर संबंधित गांव के रणबांकुरों का उल्लेख किया जाएगा। इससे नई पीढ़ी को प्रेरणा ही नहीं मिलेगी, बल्कि गांव का मान भी बढ़ेगा। यह बात कृषि एवं किसान कल्याण तथा पंचायत विकास मंत्री ओ.पी. धनखड़ ने कही। वे गुरुवार को सुरहेती गांव में शहीद मेजर अमित देशवाल की प्रतिमा के अनावरण के उपरांत उपस्थित जनसमूह से रू-ब-रू हो रहे थे। उन्होंने कहा जिन्होंने देश की रक्षा के लिए अपनी जान न्यौछावर की उन वीरों का नाम और वीरगाथा सभी को पता होनी चाहिए। उन्होंने कहा मुझे इस बात का भी दु:ख है कि स्वतंत्रता की लड़ाई के दौरान देश के लिए मर-मिटने वाले हजारों शहीदों का कहीं नाम भी नहीं है, वीर माटी के ऐसे अज्ञात शहीदों को भी हम शत-शत नमन करते हैं। उन्होंने कहा मुझे भी इस बात पर नाज है कि मैंने झज्जर जिले में जन्म लिया, यह वीरों की भूमि है जहां दो-दो विक्टोरिया क्रॉस से लेकर अदम्य साहस के साथ देश की रक्षा करने का जज्बा यहां के हर नौजवान में है।

शहीद अमित देशवाल का जीवन बहादुरी की मिसाल है। 2005 को भारतीय सेना अकादमी में कदम रखने के साथ ही उन्हें प्रशिक्षण के दौरान सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी चुना गया,स्पेशल फोर्टिज़ में जाने के उपरांत अक्टूबर 2014 में संयुक्त राष्ट्र की शांति सेना का भाग बने। बीते वर्ष आज ही के दिन आतंकियों से लोहा लेते हुए बहादुरी के साथ असाधारण शौर्य एवं वीरता का परिचय देते हुए अपना जीवन राष्ट्र के नाम समर्पित कर दिया। वाइपर टापू का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि वीर सावरकर जैसे वीरों के नाम को कुछ राजनीतिक लोगों ने दबाने का प्रयास किया। मगर ये ऐसी सरकार है जो गुमनाम वीरों को भी प्रकाश में लाने का काम करें। इसके लिए जो इतिहासकार इस पर काम करना चाहते है उन्हें पैसे की कोई कमी नहीं होने दी जायेगी। इस अवसर पर शहीद अमित के पिता ऋषि देशवाल, एस.डी.एम. प्रदीप कौशिक, जि.प. अध्यक्ष परमजीत, उपाध्यक्ष योगेश सिलानी,पूर्व विधायक नरेश शर्मा, आनंद सागर सतबीर सिंह उपस्थित थे।

Notable persons

External links

References


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