Surdas
Author:Laxman Burdak, IFS (R) |
Surdas (सूरदास) was a 16th-century blind Hindu devotional poet and singer, who was known for his works written in praise of Krishna, the supreme lord. He was a Vaishnava devotee of Lord Krishna, and he was also a revered poet and singer. His compositions glorified and captured his devotion towards lord Krishna. Most of his poems were written in the Braj language, while some were also written in other dialects of medieval Hindi, like Awadhi.[1]
Birthplace of Surdas
There is some disagreement regarding the birthplace of Surdas too, as some scholars say he was born in the village Runkata or Renuka which lies on the road passing through Agra to Mathura, while some say he was born in a village called Sihi, near Delhi.[2]
Theories about Surdas
There are many theories about Surdas, but most popularly, he is said to have been blind from birth. During his time, lived another saint by the name of Vallabhacharya. Vallabhacharya was the founder of the Pushti Marg Sampraday, and his successor, Vithalnath, had selected eight poets who would help him to further spread the glory of lord Krishna, by composing works of music. These eight poets were known as the "Astachap", and Surdas is believed to be the foremost among them due to his outstanding devotion and poetic talent.[3]
The book Sur Sagar (Sur's Ocean) is traditionally attributed to Surdas. However, many of the poems in the book seem to be written by later poets in Sur's name. The Sur Sagar in its present form focuses on descriptions of Krishna as the lovely child of Gokul and Vraj, written from the gopis' perspective.
Biography
There is disagreement regarding the exact birth date of Surdas, with the general consensus among scholars holding it to be in the year 1478. The birthday of Surdas is celebrated as Surdas Jayanti in the Vaishnav calendar, on the 5th day of the Hindu month of Vaishakh.[4] We are uncertain of his exact date of death, but it is considered to be somewhere between 1561 and 1584. (Age 101 years).[5]
According to one theory, Surdas was blind from birth and neglected by his poor family, forcing him to leave his home at the age of six. Later, he met Vallabha Acharya and became his disciple. Under Vallabha Acharya's guidance and training, Surdas memorized the Shrimad Bhagvata, studied the Hindu scriptures, and gave lectures on philosophical and religious subjects. He remained celibate throughout his life[7][8]
Poetic works
Surdas is best known for his composition the Sur Sagar. Most of the poems in the composition, although attributed to him, seem to be composed by later poets in his name. Sursagar in its 16th century form contain descriptions of Krishna and Radha as lovers; the longing of Radha and the gopis for Krishna when he is absent and vice versa. In addition, poems of Sur's own personal bhakti are prominent, and episodes from the Ramayana and Mahabharata also appear. The Sursagar's modern reputation focuses on descriptions of Krishna as a lovable child, usually drawn from the perspective of one of the cowherding gopis of Braj.
Surdas also composed the Sur Saravali and Sahitya Lahari. In contemporary writings, it is said to contain one lakh verses, out of which many were lost due to obscurity and uncertainty of the times. It is analogical to the festival of (Holi), where the Lord is the Great Player, who, in his playful mood, creates the universe and the Primerial man out of himself, who has the three gunas, namely Sattva, Rajas and Tamas. He describes 24 incarnations of the Lord interspersed with the legends of Dhruva and Prahlada. He then narrates the story of the incarnation of Krishna. This is followed by a description of the Vasant (Spring) and Holi festivals. Sahitya Lahari consists of 118 verses and emphasises on Bhakti (devotion).
Sur's compositions are also found in the Guru Granth Sahib, the holy book of the Sikhs.
रुनुकता
रुनुकता (AS, p.797): रुनकता आगरा, उत्तर प्रदेश का एक छोटा-सा ग्राम, जो मथुरा-आगरा मार्ग पर मथुरा से 10 मील की दूरी पर स्थित है। इस ग्राम का प्राचीन नाम रेणुका क्षेत्र कहा जाता है। किंवदंती है कि यहाँ महर्षि [p.798]: जमदग्नि का आश्रम स्थित था। रुनकता ग्राम में एक ऊंचे टीले पर जमदग्नि और उनकी पत्नी रेणुका का मंदिर है। नीचे उनके पुत्र परशुराम के नाम पर प्रसिद्ध दूसरा मंदिर है। (रेणुका के नाम से संबद्ध अन्य स्थान के लिए देखें चंद्रवट) जनश्रुति है कि महाकवि सूरदास का जन्म रुनकता ग्राम में ही हुआ था। ये मुग़ल बादशाह अकबर के समकालीन थे। सीही नामक ग्राम को भी सूरदास का जन्मस्थान माना जाता है। पारसौली नाम के ग्राम में सूरदास का निवास-स्थान बताया जाता है। रूनकता में यमुना नदी पूर्व दिशा की ओर बहते-बहते एकाएक घूमकर कुछ दूर तक पश्चिम की ओर बहती है। [6]
सूरदास तेवतिया गोत्रीय जाट थे
संत शिरोमणि कृष्णभक्ति के मूर्धन्य भक्तकवि सूरदास जाट थे! यह बात/तथ्य स्वयं सिद्ध है,क्योंकि संत सूरदास जी ने इस बात को स्वयं अपनी प्रसिद्ध रचना " सूरसागर " में अपने को जाट बतलाया! वे सीही ( बल्लभगढ़ के पास) गाँव के रहने वाले थे,और वहीं उनका जन्म भी हुआ! संत सूरदास जी जन्मान्ध नहीं थे,और नहीं निर्धन/गरीब थे, धनाड्य जमींदार परिवार से थे,यह निष्कर्ष विद्वानों ने "सूरसागर" ग्रन्थ से निकाला है! संत सूरदास की जाट समाज के तेवतिया गोत्रीय होने की पूरी पूरी संभावना है,क्योंकि मैंने उनके जन्म स्थान सीही गाँव से परिचित लोगों से मालूम किया है कि उस गाँव में लगभग पूर्णरूपेण तेवतिया गोत्रीय जाट हैं,यह इस बात/तथ्य के लिए मेरी स्वयं की परिकल्पना (हाईपोथिसिस)है!ऐतिहासिक हाईपोथिसिस को जब तक उससे बहतर साक्ष्य से न काटा जाय तव तक उसे उस तथ्य की ऐतिहासिकता के लिए साक्ष्य के समतुल्य मानने की इतिहासकारों/इतिहासविदों में प्रथा है,ऐसा बतलाया गया है!
Source - Vinod Chaudhary, Mob: 91 98733 32759
संत शिरोमणि सूरदास
संत शिरोमणि सूरदास का जन्म जी का जन्म 1478 ई.सन में हरियाणा प्रान्त के फरीदाबाद जनपद में बल्लभगढ़ के नजदीक सिही/सीही (श्रीपत) गांव में एक सम्पन्न/धनाढ्य जाट जमींदार/किसान के घर में हुआ था! आप जन्मान्ध भी नहीं थे,जैसा सामान्यतः माना जाता है! आपने 18 वर्ष की किशोरावस्था में ही घरवार छोड़ दिया और मथुरा-आगरा के मध्य यमुना किनारे " गऊघाट" पर रहकर ईश्वरभक्ति में ही लीन रहने लगे! तदन्तर ही आपने श्रीकृष्णभक्ति के प्रकाश स्तम्भ स्वरूप गुरू बल्लभाचार्य जी से गुरू दीक्षा ली और श्रीकृष्णभक्ति पुष्टिमार्ग (श्रीकृष्ण ही परमब्रह्म हैं) में श्रीकृष्ण के साथ सखाभाव से श्रीकृष्णभक्ति सागर में लीन हो गये!आपने श्रीकृष्णभक्ति माधुर्यरस के सागर " सूरसागर " की बृजभाषा में रचना की,जिससे आपको बृजभाषा का आदिकवि माना गया! श्रंगार एवं वात्सल्य रस से ओतप्रोत आपकी रचना " सूरसागर " ने ही आपको हिन्दी साहित्य का सूर्य बनाया! तभी तो कहा भी है कि, " सूर सूर तुलसी शशि,उडगन केशवदास! और कवि खद्योत सम, जंह तह करत प्रकाश!!"
100 वर्ष से भी अधिक आयु पूर्ण कर 1584 ई.सन में उस महान तपस्वी संत ने गाँव पारसौली ( वर्तमान में नाम मुहम्मदपुर)नजदीक गोवर्धन,जनपद मथुरा(उत्तर प्रदेश)में अपना शरीर छोड़ दिया,और श्रीकृष्ण के लोक गौलोक/गौधाम पधार गये! पारसौली ( मुहम्मदपुर) गाँव में आपकी समाधि है तथा आपके श्रीगुरु बल्लभाचार्य जी का मन्दिर भी है! और जन्मस्थान गाँव सिही/सीही (श्रीपत)में एक बार भूतपूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरणसिंह व हरियाणा के भूतपूर्व मुख्यमंत्री चौधरी देवीलाल सीही पधारे थे,तव वहाँ पर "संत सूरदास स्मृति स्मारक" की नींव डाली गयी और तदनुसार " संत सूरदास स्मृति स्मारक टृष्ट सीही " जनपद फरीदाबाद(हरियाणा)भी बनाया गया! विशेष -- उक्त गांव सीही तेवतिया गोत्रीय जाटों की आबादी है,अतः संत सूरदास जी का गोत्र तेवतिया ही होने की प्रबल संभावना बनती है!
- चौधरी विनोद कुमार नौहवार,दिल्ली!
श्रोत-- "भारत के अनमोल रत्न " लेखक- तेजपाल सिंह " देव" दिल्ली!
External links
References
- ↑ "Surdas Biography - Surdas Poems - Life History in English". India the Destiny. 17 June 2018.
- ↑ [1]
- ↑ Surdas Saint-singer and Poet". Free Press Journal.
- ↑ "Surdas Jayanti 2022: Date, Celebration, Katha & Significance".
- ↑ "Surdas Biography - Surdas Poems - Life History in English". India the Destiny. 17 June 2018.
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.797-798
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