Takha Kumher
![](/w/thumb.php?f=Bharatpur_district_-2.jpg&width=300)
Takha (ताखा) is a village in tehsil Kumher of Bharatpur district in Rajasthan. There is a grand statue of Taxaka here. Its ancient name was Taxakapuri (तक्षकपुरी).
Location
It is situated 18km away from tahsil headquarters (Kumher) and 21km away from district headquarters (Bharatpur) near the eastern border.
Jat Gotras
- Kuntal (350)
History
ताखा गांव का इतिहास
लेख का स्त्रोत:- रविन्द्र सिंह कुन्तल पूर्व कुम्हेर तहसील जाट महासभा अध्यक्ष
![](/w/thumb.php?f=Taxak_Raj_Mandir_Takha.jpg&width=300)
ताखा गाँव का अस्तित्व महाभारत काल से माना गया है। ताखा गांव का प्राचीन नाम तक्षकपुरी था। मुगल काल मे जब जाटों ने तख्त सिंह कुन्तल (खुटेला तोमर) के नेतृव में यहां अधिकार किया तब से यह ताखा नाम से प्रसिद्ध हुआ
पांडव अर्जुन के पौत्र महाराजा परीक्षित (अभिमन्यु के पुत्र) जब इंद्रप्रस्थ के शासक थे। राजा परीक्षित एक बार वन्य में आखेट करते हुए जब पानी से व्याकुल होकर पानी की तलाश में शमीक ऋषि (श्रृंगी ऋषि के पिता) के आश्रम पहुचे तब वो अंतर्ध्यान में लीन होने के राजा परीक्षित की बातों का जबाब नही दे पाए। क्रोधित राजा परीक्षित ने शमीक ऋषि के गले में मृत सांप डाल दिया यह दृश्य देखकर उनके पुत्र श्रृंगी ऋषि ने राजा को श्राप दिया कि सात दिनों के अंदर नागराज तक्षक के कारण राजन तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी।
- डारि नाग ऋषि कंठ में, नृप परीक्षित ने कीन्हों पाप।
- होनहार हो कर हुतो, ऋंगी दीन्हों शाप॥
ऐसा ही हुआ नागराज तक्षक के कारण महाराजा परीक्षित की मृत्यु हो गई। जब उनका पुत्र जनमेजय जवान हुआ और उसको यह जानकारी हुई कि पिता की मृत्यु का कारण नागराज तक्षक है तो नागवंशी जाटों के महाराजा तक्षक व पांडववंशी जाटों के मध्य दुश्मनी इस हद तक बढ़ गई कि पाण्डववंशी महाराजा जनमेजय ने सम्पूर्ण नागवंश के विनाश करने की प्रतिज्ञा कर ली थी । महाराजा जनमेजय ने अपने कुल गुरु शौणिक ऋषि के सानिध्य में सर्प यज्ञ का आयोजन किया था। ऐसे प्रमाण है कि नागों व पाण्डववंशी में हुए युद्ध को ही यज्ञ की संज्ञा दी गई थी। भारत भूमि से युद्ध के दौरान नागवंशी जाटों का विनाश किया जाने लगा लेकिन आस्तीक द्वारा समझाने पर जनमजेय ने सर्प यज्ञ को समाप्त किया था। तब जाकर नागवंशी जाटों व पाण्डववंशी जाटों के मध्य मित्रता स्थापित हुई थी। नागवंशी जाटों व पाण्डववंशी जनमेजय के मध्य पंचमी के दिन समझौता हुआ था तब से ही नागवंशी जाट इस दिन को नाग पंचमी के उत्सव के रूप में मनाते हैं। यह आस्तीक नागराज वासुकी की बहिन का लड़का था।
लोकमान्यताओं के अनुसार नागवंशी राजा तक्षक ने तक्षकपुरी में शरण ले रखी थी यह तक्षकपुरी ही वर्तमान का ताखा है। तब नागराज तक्षक ने तक्षकपुरी में निवास करते हुए पाण्डववंशी (तोमर, कुन्तल) जाटों को यह वरदान दिया कि आपके (जनमेजय) के पाण्डववंश के किसी व्यक्ति पर कुछ पीढ़ी तक सर्प दंश का असर नही होगा। इसके बाद यदि किसी भी व्यक्ति को सांप काट ले तो वो व्यक्ति तक्षकपुरी की सीमा मे आ जाय तो उस व्यक्ति पर सर्प दंश बेअसर हो जाएगा।
ताखा (तक्षकपुरी) में महाभारत कालीन तक्षक मंदिर है। इस मंदिर का पुनः निर्माण जाटों ने ही करवाया है।ऐसी लोकमान्यता है कि यदि ताखा गांव में मंदिर की परिक्रमा कर ले तो सर्प विष उतर जाता हैं। तक्षकों के यहां से अज्ञात कारणवश उजड़ने के बाद यहां किराड जाति ने अधिकार कर लिया था। यह किराड गरुवा (गरूआ) ठाकुर भी कहलाते थे। ब्रज में ठाकुर मूल रूप से जाटों की पदवी है। लेकिन कुछ अन्य जातियों द्वारा कभी कभी यह पदवी काम मे ले ली जाती है।
मुगलकाल में जब इन किराडो ने उत्पाद मचाया व गोवर्धन आने वाले तीर्थ यात्रीयों को यह लोग लूटने लगे थे।उस समय ब्रज में जाटों की चार मुख्य डुंग (खुटेला-तोमर, सिनसिनवार, सोगरवार, चाहर) इस सम्पूर्ण भूभाग पर अधिकार किए हुए थी। हिन्दू तीर्थ यात्रियों ने जाटों से शिकायत की उस समय यह तक्षकपुरी सौंखगढ़ खुटेलपट्टी व सिनसिनवारी राज्य की सीमा पर स्थित थी। तब इनसे गुंसारा व आजल से पाण्डववंशी खुटेला तोमर जाट व सिनसिनी से यदुवंशी सिनसिनवार जाटों की सयुक्त सेना तख्त सिंह खुटेला के नेतृत्व में तक्षकपुरी आई व यहां के किरारो को युद्ध में हराकर गढ़ पर कब्ज़ा कर लिया था।इस युद्ध मे अधिकांश गरुवा युद्ध मे जाटों के हाथों मारे गए थे। इस गढ़ के अवशेष आज भी खेरे के रूप में विद्यमान है। यह गढ़ महाराजा तक्षक कालीन था।
तख्तसिंह के नाम से यह तक्षकपुरी से ताखा हो गया है। इस गांव में कुन्तल (खुटेला तोमर) जाटों के खुटेला ,घेर व आजल नामक तीन थोक (पट्टी/मोहल्ला) , सिनसिनवार जाटों के भील व नगरा नामक दो थोक व सोगरिया नामक एक थोक सोगरवाल जाटों का है।
आजल थोक के खुटेला आजल से आये व बाकी खुटेला गुंसारा से आये थे। आजल भी मूल रूप से गुंसारा से ही बसा।
गैंदा सिंह अलाउदीन ख़िलजी के समय गुंसारा का गढ़पति होने के साथ साथ सोंख के राजा नाहरदेव कुन्तल तोमर का सेनापति था। जब अलाउदीन ख़िलजी ने सन 1304 ईस्वी में सोंख पर आक्रमण किया था उस समय राजा नाहरदेव अपने कुल पुरोहित बोधदत्त चतुर्वेदी ब्राह्मण व सेनापति गैंदा सिंह सहित युद्ध मे वीरगति को प्राप्त हुए उनकी मृत्यु के कुछ वर्ष बाद जब उनके पुत्र प्रहलाद सिंह ने जब सौंखगढ़ पर अधिकार किया तब गैंदा सिंह की वीरता को सम्मान देने के लिए उनके बडे पुत्र सुरद सिंह को गुंसारा का गढ़पति व छोटे पुत्र आजलदेव को गोद लेकर आजल का क्षेत्र दे दिया।
प्रहलाद सिंह के चार पुत्र थे। 1. सहजना (बड़ा पुत्र जो बाद में राजा बना), 2. तसिगा (सिंगा), 3. आशा (नैनू ) 4. पुन्ना (महता), 5. आजल (गैंदा सिंह का गोद लिया पुत्र) तरह पांच पुत्र प्रहलाद सिंह के हुए
ताखा के खुटेला की वंशावली
पाण्डु पुत्र अर्जुन-अभिमन्यु-परीक्षित - जन्मेजय - अश्वमेघ - धर्मदेव - मनजीत – चित्ररथ - दीपपाल - उग्रसेन - सुरसेन - भूवनपति - रणजीत – रक्षकदेव - भीमसेन - नरहरिदेव – सुचरित्र - सुरसेन – पर्वतसेन – मधुक – सोनचीर - भीष्मदेव - नृहरदेव - पूर्णसेल - सारंगदेव – रुपदेव - उदयपाल - अभिमन्यु - धनपाल – भीमपाल - लक्ष्मीदेव – विश्रवा मुरसेन – वीरसेन – आनगशायी – हरजीतदेव -सुलोचन देव –कृप - सज्ज -अमर –अभिपाल – दशरथ – वीरसाल - केशोराव – विरमाहा – अजित – सर्वदत्त – भुवनपति – वीरसेन – महिपाल - शत्रुपाल – सेंधराज --जीतपाल --रणपाल - कामसेन – शत्रुमर्दन -जीवन – हरी – वीरसेन – आदित्यकेतु – थिमोधर – महर्षि –समरच्ची - महायुद्ध – वीरनाथ – जीवनराज - रुद्रसेन - अरिलक वसु - राजपाल - समुन्द्रपाल - गोमिल - महेश्वर - देवपाल (स्कन्ददेव) - नरसिंहदेव - अच्युत - हरदत्त - किरण पाल अजदेव - सुमित्र - कुलज - नरदेव - सामपाल(मतिल ) – रघुपाल -गोविन्दपाल - अमृतपाल - महित(महिपाल) - कर्मपाल - विक्रम पाल - जीतराम जाट - चंद्रपाल - ब्रह्देश्वर (खंदक ) - हरिपाल (वक्तपाल) - सुखपाल (सुनपाल) - कीरतपाल (तिहुनपाल) -- अनंगपाल प्रथम – वासुदेव – गगदेव – पृथ्वीमल – जयदेव -- नरपाल देव -- उदय राज – आपृच्छदेव -- पीपलराजदेव – रघुपालदेव -- तिल्हण पालदेव – गोपालदेव – सलकपाल/सुलक्षणपाल – जयपाल – कुँवरपाल (महिपाल प्रथम ) – अनंगपाल तोमर द्वितीय - सोहनपाल – जुरारदेव – ज्ञानपाल (गन्नेशा)- गैंदासिंह
Notable persons
Population
4470 persons (2011 statistics)[1]
External links
References
Back to Jat Villages