Brahmagiri

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(Redirected from Talakaveri)
Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Karnataka Map

Brahmagiri (ब्रह्मगिरि) is an archaeological site located in the Chitradurga district of the state of Karnataka, India.[1]

Legend has it that this is the site where age Gautama Maharishi and his wife Ahalya lived. He was one among seven noted Hindu saints (Saptharshi mandalam).

Variants

  • Talakaveri (तालकावेरी) (कुर्ग, मैसूर) (AS, p.398)

History

This site was first explored by Benjamin L. Rice in 1891, who discovered rock edicts of Emperor Ashoka here. These rock edicts indicated that the locality was termed as Isila and denoted the southernmost extent of the Mauryan empire.[2] [3] The Brahmagiri site is a granite outcrop elevated about 180 m. above the surrounding plains and measures around 500 m east-west and 100 m north-south.[4] It is well known for the large number of megalithic monuments that have been found here.[5] The earliest settlement found here has been dated to at least the 2nd millennium BC.[6]

Excavation history

In 1947, Mortimer Wheeler further excavated the site on behalf of the Archaeological Survey of India.[7] The region was excavated again in 1956 by Seshadri and by Amalananda Ghosh in 1965 and 1978.[8]

Findings

Excavation has revealed medieval stone temples, pottery, terracota beads and figurines, semiprecious stones and megalithic structures.[9] there have been traces of cultures: Microlithic, Neolithic, Iron Age, Maurya and Chalukya-Hoysala. He named the microlithic culture as Roppa culture after the Roppa village within which the microlithic trench was located.[10] He also found out that the neoliths found in this region were evidence of the occupation of this region by farming-herding communities in the pre-megalithic period.[11]

In 1947, Mortimer Wheeler did further excavations at Brahmagiri, found ten domestic structures and classified them as belonging to a sequence of three cultural periods: Period I - Neolithic or Neolithic-Chalcolithic, Period II - Megalithic and Period III - an early historical culture.[12] Brahmagiri was identified to contain a mortuary of 300 tombs with burials made in rectangular cists, cist-circles (stones surrounding granite cists) and pit-circles. The cists also included artefacts like vessels with graffiti, stone beads and iron and copper tools.[13]

Period I (Neolithic)

Wheeler dated this period to belong within the range 1st millennium B.C. to 2nd century B.C. The objects found in this period included a large number of polished stone axes made of dolerite, microliths like crescents, gravers and blades made of jasper, agate carnelian and opal, and ornaments worn by humans like bronze rings and beads of magnesite, agate and shell.[2] Handmade vessels made of coarse grey fabric and with shapes like globular vase, shallow bowl and spouted bowl were also found. The infants who died in this period, had their body folded and were buried in urns while the adults were buried in pits in an extended way.[14]

Period II (Megalithic)

Wheeler dated this period to belong within the range 2nd century B.C. to the middle of 1st century A. D. It was found that the humans who inhabited Brahmagiri during this period used iron for agricultural tools like sickles and for weapons like spears, swords and arrowheads.[2] Pottery of this period were made in shapes like hemi-spherical deep bowl, funnel shaped lid, shallow dish and three-legged pots among others. The vessels appear in three kinds of fabrics: polished black and red ware, all-black ware, and bright and coarse dull-red ware.[2] The burials in this period were done in stone cists or excavated pits which were surrounded by boulders arranged in the shape of a circle or concentric circles. The cists also contained funeral pots and objects like iron implements and beads.[15]

Period III

Wheeler dated this period to belong within the range 2nd century B.C. to the middle of 1st century A. D. In this period, sophisticated pottery was made using fast wheels. The vessels were made in shapes like shallow dish, cups and vases, coated in a russet colour and painted with geometrical designs in white colour. Ornaments found included bangles of shell, clay, bones, glass and gold, and beads of magnesite, agate, carnelian and terracotta.

ब्रह्मगिरि

विजयेन्द्र कुमार माथुर[16] ने लेख किया है ...

1. ब्रह्मगिरि = वेदगिरि

2. ब्रह्मगिरि = महाराष्ट्र में पश्चिमी घाट की गिरिमाला में स्थित त्र्यंबक पर्वत का एक भाग ब्रह्मगिरि कहलाता है. गोदावरी नदी यहीं से उद्भूत होती है. स्रोत के निकट पहुंचने के लिए 750 सीढ़ियाँ हैं. गोदावरी का जल पहले कुशावर्त कुंड में गिरकर पृथ्वी के भीतर बहता हुआ 6 मील दूर चक्रतीर्थ में प्रकट होता है. ब्रह्मगिरि में एक प्राचीन दुर्ग अवस्थित है.

3. ब्रह्मगिरि = जिला चीतलदुर्ग मैसूर. अशोक का अमुख्य शिलालेख संख्या एक इस स्थान पर एक चट्टान पर उत्कीर्ण है. यह स्थान मासकी के साथ ही अशोक के साम्राज्य की दक्षिणी सीमा रेखा पर स्थित था.

4. ब्रह्मगिरि = कुर्ग के दक्षिण में स्थित पर्वतमाला

5. ब्रह्मगिरि = जिला पुरी, उड़ीसा. चोड़ गंगदेव (12 वीं सदी ई.) के बनवाए अलारनाथ के मंदिर के लिए प्रसिद्ध है. यह विष्णु, लक्ष्मी, रुक्मणी और सरस्वती का मंदिर है.

ब्रह्मगिरि शिखर

ब्रह्मगिरि शिखर पश्चिमी घाट का एक उच्चतम शिखर है। यह भारत के कर्नाटक में स्थित है। कावेरी नदी इसी शिखर से निकलती है। इस शिखर के निचले भाग में आग्नेय तथा ऊपरी भाग में अवसादी चट्टानें पाई जाती हैं।[17]

ब्रह्मगिरि मैसूर

ब्रह्मगिरि मैसूर राज्य के चितलदुर्ग जनपद में स्थित है। इसी क्षेत्र में सिद्धपुर नामक ग्राम है। जहाँ अशोक का एक शिलालेख मिला है। यह अभिलेख उसके साम्राज्य की दक्षिणी सीमा निर्धारित करता सन 1947 ई. में ब्रह्मगिरि के कई स्थलों पर उत्खनन किया गया। परंतु बस्ती के प्रमुख सांस्कृतिक कालों का परिज्ञान, उत्तर-पूर्व की ओर किये गये उत्खनन से ही हुआ। ब्रह्मगिरि में सर्वप्रथम दक्षिण भारत में पाषाण युग के अवसान से ऐतिहासिक काल के आरम्भ तक की मानव संस्कृति के विभिन्न चरणों के अवशेष प्राप्त हुए हैं- ब्रह्मगिरि पाषाण- कुठार संस्कृति, महाश्म संस्कृति, आन्ध्र संस्कृति.

ब्रह्मगिरि पाषाण- कुठार संस्कृति से ज्ञात होता है कि इस काल के लोग पशुपालन कृषि कर्म जैसी क्रियाओं से परिचित हो चुके थे। आवास निर्माण में काष्ठ का उपयोग किया जाता था। इस संस्कृति में शिशुओं और वयस्कों के शवों को गाड़ने की भिन्न विधियाँ प्रचलित थीं। मृत शिशु को चौड़े मुँह के पात्र में मोड़कर रख दिया जाता था। और पात्रों का मुँह कटोरे या भग्न-पात्र के पैंदे से ढँक दिया जाता था। वयस्कों के शव भूमि में दफ़ना दिये जाते थे। आन्ध्र संस्कृति ब्रह्मगिरि की अंतिम संस्कृति है। इसके अधिकांश भांड तीव्र गति वाले चक्र पर निर्मित हैं। इस काल के विशिष्ट भाण्ड पर श्वेत रंग के रेखाचित्र अंकित हैं, जिन पर कत्थई रंग चढ़ाया गया है। यह सातवाहनों के समय की संस्कृति है।

लोहे के विभिन्न उपकरण: महाश्मक संस्कृति में लोहे का प्रयोग आरम्भ हुआ। लोहे के उपकरणों में हँसिया, चाकू, तलवार, भाला, तीर-फलक तथा शंकु प्राप्त हुए हैं। इस काल के विशिष्ट भांड सामान्यतः अन्दर की ओर तथा मुँह के पास काले हैं और उनका शेष बाह्य भाग लाल है। इन्हें मेगेलिथिक या कृष्ण एवं रक्त भांड की संज्ञा दी गई है। ये चमकदार हैं। इनका निर्माण मंद गतिवान चक्र पर किया गया।

मृद्भाण्ड: ब्रह्मगिरि के उत्खनन में प्राप्त मृद्भाण्डों के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि यहाँ कुम्भ कला का विकास एक क्रमित गति से हुआ था। प्रस्तर-कुल्हाड़ी युगीन सभ्यता के मृद्भाण्ड हाथ से बनाये गये थे और अत्यंत भद्दी आकृति के हैं। महाश्मयुगीन सभ्यता के मृद्भाण्ड पॉलिस युक्त, सुन्दर काले और भूरे रंग वाले और कुछ मुड़ी हुई आकृति के हैं। आंध्रयुगीन सभ्यता के मृद्भाण्ड अधिक विकसित मिलते हैं। इस प्रकार यहाँ की मृद्भाण्ड कला में क्रमिक विकास उल्लेखनीय है। इस क्रमिक विकास का ऐसा उदाहरण अन्यत्र दुर्लभ है।

संदर्भ: भारतकोश-ब्रह्मगिरि

चक्रतीर्थ

विजयेन्द्र कुमार माथुर[18] ने लेख किया है ...1. चक्रतीर्थ (AS, p.324): नासिक (महाराष्ट्र) के पास गोदावरी का तीर्थ. गोदावरी के स्रोत, ब्रह्मगिरि के पश्चात इस स्थान पर नदी का जल पहली बार प्रकट होता है. यह ब्रह्मगिरि से 6 मील दूर है.

तालकावेरी

विजयेन्द्र कुमार माथुर[19] ने लेख किया है ...Talakaveri (तालकावेरी) (कुर्ग, मैसूर) (AS, p.398) कावेरी जो दक्षिण भारत की प्रसिद्ध नदी है, का उद्गम कुर्ग में तालकावेरी या ब्रह्मगिरि नामक स्थान है. कुर्ग के मुख्य नगर मरकरा से यह स्थान 25 मील है. हरे भरे जंगलों और सुहावनी पहाड़ियों की गोदी में बसा हुआ यह रमणीक स्थान दक्षिण भारतीयों का एक प्राचीन तीर्थ भी है.

References

  1. Excavations - Important - Karnataka". Archaeological survey of India.
  2. Excavations - Important - Karnataka". Archaeological survey of India.
  3. Ghosh, Amalananda (1990) [1990]. An Encyclopaedia of Indian Archaeology. BRILL. ISBN 90-04-09262-5,p.82
  4. Peter N. Peregrine, Melvin Ember, Human Relations Area Files Inc. (2001), p367
  5. Kenneth A. R. Kennedy (2000), p267
  6. Kipfer, Barbara Ann (2000) [2000]. Encyclopedic Dictionary of Archaeology. Springer. ISBN 0-306-46158-7. p.78
  7. Ghosh, Amalananda (1990) [1990]. An Encyclopaedia of Indian Archaeology. BRILL. ISBN 90-04-09262-5,p.82
  8. Ghosh, Amalananda (1990) [1990]. An Encyclopaedia of Indian Archaeology. BRILL. ISBN 90-04-09262-5,p.82
  9. Amalananda Ghosh (1990), p82
  10. Amalananda Ghosh (1990), p82
  11. Kenneth A. R. Kennedy (2000), p267
  12. Ian Shaw; Robert Jameson (1999) [1999]. A Dictionary of Archaeology. Blackwell Publishing. ISBN 0-631-23583-3. p.122
  13. Ian Shaw; Robert Jameson (1999) [1999]. A Dictionary of Archaeology. Blackwell Publishing. ISBN 0-631-23583-3. p.122
  14. Ghosh, Amalananda (1990) [1990]. An Encyclopaedia of Indian Archaeology. BRILL. ISBN 90-04-09262-5,p.82
  15. Ghosh, Amalananda (1990) [1990]. An Encyclopaedia of Indian Archaeology. BRILL. ISBN 90-04-09262-5,p.82
  16. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.649
  17. भारतकोश-ब्रह्मगिरि शिखर
  18. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.324-325
  19. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.398