Todgarh
Todgarh (टोडगढ़) (Tatgarh) is a village in Beawar tahsil in Ajmer district of Rajasthan. Due to language difference it is locally called as Tatgarh.
Origin
It gets name fort a constructed by James Tod in Boraswara in Merwara area of Ajmer District.
Location
It is located in a small patch of land belonging to Ajmer district but embedded between Pali and Rajsamand districts.
History
टॉडगढ़
टॉडगढ़ - कर्नल टाड ने मेरवाडा क्षेत्र में उपद्रवियों की गतिविधियों को कुचलने के लिए बोरासवाडा में एक दुर्ग का निर्माण करवाया था जिसे टोडगढ़ कहते हैं. यहाँ महादेव का एक प्राचीन मंदिर तथा पीपलाज का मंदिर भी है.[1] देखें इसकी स्थित यहाँ
टॉडगढ़ वह गांव है जहां रह कर कर्नल टॉड ने 'एनल्स एंड एंटीक्विटीज आफ राजस्थान' नामक पुस्तक लिखी थी. उन्होंने ही सबसे पहले राजस्थान नाम दिया था. यह शब्द उनकी पुस्तक 'द सेंट्रल एंड वेस्टर्न राजपूत स्टेट्स इन इंडिया' में आया है रायथान और रजवाड़ा उन्हीं के द्वारा दिए गए नाम हैं. राजस्थान के कोने कोने से इतिहास बीन कर यहां एकांत में कर्नल टॉड ने उसे तरातीब से लिखा. यहां वे रहते थे और वर्षों तक टॉड बंगला के नाम से जाना जाता रहा है. अब तो उसके भग्नावशेष ही शेष बचे हैं. इसमें बचे फोटो धूल फांक रही है तो कर्नल टॉड की छोटी सी प्रतिमा कोने में कहीं रखी है.[2]
राजस्थान का मिनी माउण्ट आबू: टॉडगढ़
अजमेर जिले के अंन्तिम छोर में अरावली पर्वत श्रृंखला में मन मोहक दर्शनीय पर्यटक स्थल टॉडगढ़ बसा हुआ है जिसके चारो और एवं आस पास सुगंन्धित मनोहारी हरियाली समेटे हुए पहाडिया एवं वन अभ्यारण्य है। क्षेत्र का क्षेत्रफल 7902 हैक्टेयर है जिनमें वन क्षेत्र 3534 हैक्टेयर, पहाडिया 2153 हैक्टेयर, काश्त योग्य 640 हैक्टेयर है। टॉडगढ़ को राजस्थान का मिनी माउण्ट आबू भी कहते हैं, क्यों कि यहां की जलवायु माउण्ट आबू से काफी मिलती है व माउण्ट आबू से मात्र 5 मीटर समुद्र तल से नीचा हैं। टॉडगढ़ का पुराना नाम बरसा वाडा था। जिसे बरसा नाम के गुर्जर जाति के व्यक्ति ने बसाया था। बरसा गुर्जर ने तहसील भवन के पीछे देव नारायण मंदिर की स्थापना की जो आज भी स्थित है।
यहां आस पास के लोग बहादुर थें एवं अंग्रेजी शासन काल में किसी के वश में नही आ रहे थे, तब ई.स. 1821 में नसीराबाद छावनी से कर्नल जेम्स टॉड पोलिटिकल ऐजेन्ट ( अंग्रेज सरकार ) हाथियो पर तोपे लाद कर इन लोगो को नियंत्रण करने हेतु आये। यह किसी भी राजा या राणा के अधीन नही रहा किन्तु मेवाड़ के महाराणा भीम सिह ने इसका नाम कर्नल टॉड के नाम पर टॉडगढ़ रख दिया तथा भीम जो वर्तमान में राजसमंद जिले में हैं टॉडगढ़ से 14 कि.मी. दूर उत्तर पूर्व में स्थित है, का पुराना नाम मडला था जिसका नाम भीम रख दिया। 1857 ई.स. में भारत की आजादी के लिये हुए आंदोलन के दौरान ईग्लेण्ड स्थित ब्रिटिश सरकार ने भारतीय सेना में कार्यरत सैनिको को धर्म परिवर्तित करने एवं ईसाई बनाने हेतु इग्लेण्ड से ईसाई पादरियो का एक दल जिसमें डॉक्टर, नर्स, आदि थें ये दल जल मार्ग से बम्बई उतरकर माउण्ट आबू होता हुआ ब्यावर तथा टॉडगढ़ आया। धर्म परिवर्तन के विरोध में टॉडगढ़ तथा ब्यावर में भारी विरोध हुआ जिससे दल विभाजित होकर ब्यावर नसीराबाद, तथा टॉडगढ़ में अलग अलग विभक्त हो गया।
टॉडगढ़ में इस दल ने विलियम रॉब नाम ईसाई पादरी के नेतृत्व में ईसाई धर्म प्रचार करना प्रारम्भ किया । शाम सुबह नजदीक की बस्तियो में धर्म परिवर्तन के लिये जाते तथा दिन को चर्च एवं पादरी हाउस/टॉड बंगला ( प्रज्ञा शिखर ) का निर्माण कार्य करवाया। सन् 1863 में राजस्थान का दूसरा चर्च ग्राम टॉडगढ़ की पहाडी पर गिरजा घर बनाया और दक्षिण की और स्थित दूसरी पहाडी पर अपने रहने के लिये बंगला बनाया जिसमें गिरजा घर के लिये राज्य सरकार द्वारा राशि स्वीकृत की है। पश्चिम में पाली जिला की सीमा प्रारम्भ, समाप्त पूर्व उत्तर व दक्षिण में राजसमंद जिला समाप्ति के छोर से आच्छादित पहाडिया प्राकृतिक दृश्य सब सुन्दरता अपने आप में समेटे हुए है।
प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान टॉडगढ़ क्षेत्र से 2600 लोग (सैनिक) लडने के लिये गये उनमें से 124 लागे (सैनिक) शहीद हो गये जिनकी याद में ब्रिटिश शासन द्वारा पेंशनर की पेंशन के सहयोग से एक ईमारत बनवाई “फतेह जंग अजीम” जिसे विक्ट्री मेमोरियल धर्मशाला कहा जाता है। (जिसमें लगे शिलालेख में इसका हवाला है।)
इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड “राजपूताना का इतिहास” (Annals and Antiquities of Rajasthan) के रचयिता की कर्मभूमि बाबा मेषसनाथ व भाउनाथ की तपोभूमि क्रान्तिकारी बीर राजू रावत , विजय सिह पथिक, व राव गोपाल सिंह खरवा के गौरव का प्रतीक, पवित्र दुधालेश्वर महादेव की उपासनीय पृष्ठभूमि यही नही बहुत कुछ छुपा रहस्य हैं टॉडगढ़ !
टॉडगढ़ के दर्शनीय स्थल
दुधालेश्वर – टॉडगढ़ कस्बे से 7 किमी दूर टॉडगढ़ रावली अभ्यारण के बीचो बीच स्थित है। दुधालेश्वर की स्थापना का संबंध में हा जाता है कि बरसा वाडा वर्तमान टॉडगढ़ निवासी खंगार जी मालावत भक्ति भव वाले व्यक्ति थे और जंगल में गाये चराते थे। एक दिन जंगल में खंगार जी को साधु वेश धारी एक सन्यासी मिले जिन्होने खंगार जी से जल लाने हेतु कहा और खीर बनाकर खाने की इच्छा व्यक्त की। खंगार जी ने अपने पास रखे हुए पानी के पात्र को देखा तो उसमें पानी समाप्त हो गया था इसलिये एक किमी दूर कुएं से पानी लाने हेतु साधु से आज्ञा मांगी इस पर साधु ने काह इतना दूर जाने की आवश्यकता नही और उन्होने पास ही खडे घास के एक गुछे को उखाडने के लिये कहा, खंगार जी ने साधु द्वारा बताये गये घास के गुछे को उखाडा तो वहां से जल धारा फूट पडी उन्होने सोचा कि यह साधु कोई साधारण सन्यासी नही वल्कि बहुत ही चमत्कारिक महात्मा देवाधिदेव महादेव ही हो सकते हैं जिन्होने पहाडी पर गंगा को अवत्रित किया। खंगार जी ने साधु महात्मा को श्रधा पूर्वक नमन कर जल पिलाया और उनके दर्शन से अभीभुत हो गये जल पीने के बाद साधु महात्मा ने खंगार जीजी से कहा कि दूध लेकर आओ खीर बनाकर खाऐगें। खंगार जी दूध लाने के लिये एक दूध देने वाली गाय की और जाने लगे तो साधु ने कहा इतना दूर जाने की जरूरत नही है यही पर रूको इस बहती हुई जल धारा से एकत्रित हुए पानी को पीने के लिये जो भी पहली गाय आये उसका दूध निकाल लेना। खंगार जी ने साधु से कहा कि महाराज यह तो टोगडी (केअडी) है इसके दूध कहां से होगा। महात्मा ने कहा आप दूध निकालो दूध आ जायेगा। खंगार जी ने वैसा ही किया और महात्मा के चमत्कार से एक बिन व्याही गाय के थनो से दूध आ गया। जिसे खंगार जी ने निकाला।
खंगार जी को बहुत आश्चर्य हुआ और मन ही मन सोचने लगे कि यह तो साक्षात भगवान महादेव के दर्शन हो गये है अब खंगार जी को खीर बनाने के लिये चावल और पकाने के पात्र की आवश्यकता थी। जिसके साधु ने भाप लिया और उन्होने आगे होकर अपनी झटा में से चावल का एक दाना और डेगची ( बर्तन) खंगार जी को देकर कहा कि खीर बना दो अब तो खंगार जी को पूर्ण विश्वास हो गया कि वह साक्षात्त महावेद के सामने ही खडे हें और उनकी आज्ञा से ही कार्य कर रहे है इसलिये यह पूछना व्यर्थ होगा कि चावल के एक दाने खीर केसे बनेगी खंगार जी ने बडे मनोयोग से खीर बनाई जिसे महात्मा जी खंगार जी और अन्य ग्वालो ने पेट भर खाई फिर भी खीर समाप्त नही हुई वह भी एक चमत्कार ही था। एक चावल के दाने की खीर इतने लोगो के खने के बावजूद भी खत्म नही हुई खीर खाने के बाद महात्मा जी वहां से जाने लगे तो खंगार जी ने उनसे आर्शिवाद लिया और महात्मा जी ने उनसे कुछ मागने को कहा तो खंगार जी ने उनसे वह डेगची मांग ली जिसे महात्मा जी उन्हे दे दी। कहते है कि आज भी वह डेगची खंगार जी मालावत के वशं वालो के पास विद्यमान है इस प्रकार खंगार जी द्वारा दुध निकालने की घटना से स स्थान का नाम दुधालेश्वर हुआ और बाद में जहां गंगा अवतरित हुई थी उस दिनांक पर एक छोटी कुई बनवाई और खंगार जी मालावत द्वारा सम्वत् 1651 में महादेव जी का मंदिर बनवाया गया। कुई में आज भी जल धारा प्रवाह सतत ही चल रहा हैं।
प्रज्ञा शिखर – प्रज्ञा शिखर के नाम से यहां एक पहाडी पर महाशिला अभिलेख के रूप में सुदूर दक्षिण से लाया गया विशालकाय काले ग्राईट पत्थर पर मानवीयता के संदेश आने वाले 5000 वर्षो तक देता रहेगा। इस महाशिला अभिलेख के अतिरिक्त यहीं पर मनोहारी हितमा मय वातावरण में एक विशाल पुस्तकालय एवं सभग्रह भी है। जो पर्यटको को अपनी और आकर्षित करता हैं।
ब्रिटिश कालीन गिरजाकर – व्रिटिश काल के समय में निर्मित लगभग 150 वर्ष पुराना चर्च इस कस्बे में है जो कि ब्रिटिश काल में ब्यावर व उदयपुर के मध्य मात्र यही एक चर्च था इस चर्च की महता इस बात से चलती है कि कांग्रेस के शासन काल में केन्द्र ने इसके विकास हेतु 1 करोड़ पचास लाख रूपये पास किये और इसका विकास किया जा रहा हैं।
पीपलाज माता का मंदिर – माता सम्बंध वर्गो में पूजनीय देवी है। चाहमान का क्षेत्र या मूल स्थान अहिच्छत्रपुर (नागोर) रहा। चौहामान वंश में वासुदेव ने अहिच्छत्रपुर में शाकम्भरी क्षेत्र (साम्भर) में अपनी सत्ता स्थापित की स्थान नाम के कारण आशापुरा नाम शाकम्भरी माता भी पडा। इसका ही प्रतिरूप है पीपलाज माता। यह मंदिर कितना प्राचीन है यह लिखित तथ्य प्राप्त नही हैं, किन्तु कर्नल टॉड की पुस्तक में उदयपुर के महाराण जयसिह का इस घटना से सम्बंध हैं अत: जयसिह के समय काल से देखे तो सन् 1681 ई. में पिता महाराणा राजसिह की जगह जयसिंह को मेवाड की राज गद्दी पर बैठाया गया। मूल पीपलाज माता बरडो की आराधना हैं। ऐसा कहा जाता है कि यह देवी माल गोत्र की आराध्य देवी थी। चौहान वंश परम्परा में विट्ठल राव के पुत्र काला राव के उदयपुर के महाराणा जयसिह अनबन होने के कारण गढ़बोर (चारभुजा) का राज छोडना पडा। कुछ समय अज्ञात वास में थे ग्राम भानपा (कनोडा) में अपने माल गोत्र के मामा के यहां रहे. उदयपुर के महाराणा को गुप्तचरों से पता लगने पर उनके मामा के सहयोग से इनको मरवाने की योजना बनाई।
कालाराव को स्वप्न में शाकम्भरी देवी ने दर्शन दिये एवं बताया कि यहां मामा के घर स्थापित मेरी मूर्ती लेकर भाग जाओ, मैं तुम्हारी रक्षा करूगीं। कालाराव ने ऐसा ही किया. उनके मामा व अन्य सैनिक सहायको ने मालक मालिया नामक गांव में आकर उन्हे घेरा। देवी मूर्ती के लिये घमासान युद्व हुआ। सिवाय एक व्यक्ति को छोडकर सभी माल गोत्रियों को सेनिक सहायक मारे गये। इसके बाद महाराणा के सैनिको ने कालेटड़ा के पास इन्हे घेरा यहां युद्व हुआ, जैसे तैसे बच कर कालाराव जी वर्तमान मंदिर स्थान पर पहुचे। यहां मौजुद विशाल पीपल वृक्ष खोए में मूर्ती स्थापति कर विश्राम किया। अत: यह शाकम्भरी या आशापुरा माता का प्रतिरूप पीपलाज माता के नाम से प्रसिद्व हुआ। कहते है - तब से देवी माओ से रूठी, बरडो पे टूटी। कालोर, केलवा, केलवाडा, काला गुमान, व कालेटड़ा कालाराव जी के नाम से बसे गांव है।
महादेव मंदिर – यह स्थान टॉडगढ़ तेजाजी मंदिर से पाडल सीसी सडक पर नर्सरी तालाब के किनारे स्थित एक सुन्दर एवं पुराना शिव मंदिर है।
बडा का माजाती का मंदिर एवं सन सेट पोईंट :- स्थान टॉडगढ़ से लगभग 3 किमी पर ग्राम मालातो की बैर में स्थति है विवरण आगे दर्ज हैं।
देव जी का मंदिर :- यह मंदिर पुराना ऐतिहासिक मंदिर जो कि टॉडगढ़ बसा तभी से पूजा जा रहा है जो तेजाजी मंदिर के पास स्थित हैं ।
शीलता माता मंदिर :- यह प्रज्ञा शिखर के पास टॉडगढ़ देवगढ सडक पर स्थित एक भव्य मंदिर हैं विवरण आगे दर्ज हैं।
तेजाजी का मंदिर :- टॉडगढ़ में ही स्थति है जो पुराना मंदिर है जहां पर दूर दूर से र्स दंश के केस ठीक होने हेतु आते हैं हर वर्ष मेला लगता हैं।
धर्मा की तलाई :- यह टॉडगढ़ से बराखन सडक होते हुए कानपुरिया से 3.500 किमी दूर कच्ची सडक से पहाडी पर राजस्थान के गुरूशिखर के बाद दूसरी सबसे उंची चोटी हैं ।
मांगट जी महाराज का मंदिर :- यह स्थान टॉडगढ़ से 17 किमी दूर बडाखेडा से सरूपा पक्की सडक से पहाडी पर 4 किमी उपर स्थति एक पुराना धार्मिक स्थल है. इसी स्थान के पास कुण्डामाता का मंदिर का दर्शनीय स्थान भी है। टॉडगढ़ रावली अभ्यारण सुरमय प्राकृतिक दृश्य मेरवाडा, व मारवाड की धर की सीमा पर पेहरेदार सा खडा रोही पवर्त वन्य व वन पम्पतियो की विविधता से परीपूर्ण सत्र लोग देवता की पूजन सामग्री के महक से महकता वातावरण प्राकृतिक शांत व सुन्दर स्थान पर कभी कभी उठती जंगली जावरो व पक्षियो की आवाजें पेंथर, भालू, लंगूर, मेडिया, सियार, खरगोश, सुअर इत्यादि जानवरो से परिपूर्ण चहुऔर फैला वन क्षेत्र। प्राकृतिक रूप से सम्पन्न अभ्यारण्य है इसी रोही पर्वत के शिखर पर वना है प्राचीन सुन्दर मंदिर देव पुरूष मालदेव( मांगट जी) का।[मूल शोध?] पंवार वंश वृक्ष के शिखर पुरूष धाराजी से ग्यारवें वंश में रोहिता जी हुए। संत व ऋषि थे रोहिता जी इनके दो पुत्र हुए हरिया व सरिया। हरिया जिसे मोठिस वंश प्रारम्भ माना जाता है। व सरिया जी के वंशज जहाजपुर भीलवाडा क्षेत्र मे बसे हुए हैं हरिया जी के वंशज मोठिस बराखन भालिया वन प्रान्तर में रहते है पंवारो की कुल 25 गोत्र बताई जाती हैं हरिया जी की सातवी पीडी में सातू जी हुएजो सातूखेडा भालिया के संस्थापक ठाकुर थे। इनके पांच पुत्र में से पाचवें पुत्र मालदेव मांगट जी देव पुरूष के रूप में विख्यात है इनकी पुत्री कुण्डोरानी हुई जो मोठिसो की देव के रूप में पूजी जाती हैं दोनो भई बहिन लोक देवतओं के रूप में अति पूजनीय है माल जी काजन्म बराखन के पास सातूखेडा में धनतेरस को सम्वत् 1432 /सन् 1429 ई. को हुआ था। माता का नाम जगमल देय डाकल तथ पिता का नाम सातू जी था। सातू जी का विवाह भाडिया नवमी के दिन सिंहदे भाटियानी के साथ हुआ था।
आसिन्द (गोठा) के 24 बगडावत जब युद्व में खेल रहे थे तो बडे भाई शिव भक्त सवाई भोज की गर्भवती विधवारानी साडूमाता की गोद में वचन बद्व भगवान ने कुवंर के रूप में अवतार धारण किया कार्तिक माह के पुण्य स्नान हेतु अपने दो ढाई वर्षिय पुत्र देव नारायण के साथ पुष्कर आई उन्ही दिनो सातू जी माटिस की पत्नि सिंहदे एक वर्ष के कुअंर के साथ पुष्कर स्नानार्थ आई हुई थी। नहाने के बाद घाट पर वस्त्र धारण करते समय संयोग वशं दोनेा की कांचलिया बदल गई। जब यह बात मामुल हुई तो इसे देव संकेत मानकर दोनो ने एक दूसरे को बहन बना लिया। इस तरह भगवान देव नारायण व मांगट जी दोनो में मासीयात भाई का सम्बंध कायम हुआ।
बालक देव नारायण के आग्रह पर साडू माता अपनी कांचली बदल बहन से मिलने सातूखेडा आई। घोडे पर सवार पता पूछती साडूमाता उपली मेडिया आई यहा से बताया गया कि सातू जी बेडी माली में रह करे हैं। ( बेडीमाली के खंडर सातूखेडा के दक्षितण में आज भी है। ) यहां आकर देव नारायण ने हानी लगाई। (सकून मनाया) बाद में सातू जी उनकी पत्नि और मालदेव जी ने आकर खूब स्वागत सत्कार किया। कुछ दिन यही प्रसन्नता पूर्वक रहे देव नारायण जी ने मांगट जी को कहा कि घोडे को पानी पिलाकर लावें। परन्तु घोडे की सवारी न करें कुछ दूर रावली मालादेह पर पानी पिलाने के पश्चात उत्सुकतावशं मांगट जी घोडे पर बैठ गये ज्यो ही घोडे पर बैइ रस्सी खीची और घोडा दोडा तो जमीन छोड उपर उछने लगा। यह कोई आध्यात्मिक संकेत था। कई स्थानो की यात्र कर पुन: यहां स्थान आकर रूक गया। जब माल जी डरे सहमे गबराये से घर पहुचे और घोडे को पसीने से तरबरत देख देव नारायणजी समझ गये कि मांगट जी ने घेडे की सवारी की है इस पर देव नारायण ने आशिर्वाद दिया और हा कि आज से आप भी देव पुरूष होगये हो। 15 कलाएं में देता हूं 16 वी कला भविष्य में एक योगी देगा जिससे आप अदृश्य हो सकेगें। देव नारायण जी को विदा करने मागट जी खारी नदी के तट तक एक पत्ते वाला खाखरे का पेड तक गये। उसी स्थान परमाल जी को कमर से बाधने का पट्टा टेकर पूर्ण देवत्व प्रदान किया। इसके बाद माल देव जी अपने क्षेत्र में आये वर्षो कतक कई चमत्कारिक कार्य कर लोगो की मनोकामनाऐं पूर्ण कर देव पुरूष होने का प्रमाण दिये मेवाड महाराण से सम्बंधित एक व्यक्ति थाना रावल ने गोरख नाथ की धूनी नाहर मगरा ( उदयपुर डबोक) से दीक्षा ग्रहण की व सिद्वियां प्राप्त की। धूणिया रमाते अखल जगाते धुमते धुमते आसन जिलोला आये यह स्थान रावतो गोडावतो का गुरूद्वारा है। यहां से जोग मण्डी ( गोरमघाट) गये। सम्वत् 1444 में यहां मागट जी की थाना रावल जी से भेंट हुई सो गाये भेट कर मांगट जी ने इन्हे गुरू बनाया और अदृश्य रूप में होने की विद्या जिलोलाव आकर प्राप्त की।
मांगट जी (मालदेव जी) के देवरे रोही पर्वत, मालवा, मेवाड़, मारवाड़, गुजरात से भी लोग दर्शनार्थी आते है। टॉडगढ़ तहसील का क्षेत्र है N H 8 जस्साखेडा से (बराखन) बडाखेडा के पश्चिम में 7 किमी तथा बामनहेडा के 3 किमी दूर पर स्थित है मांगट जी का मथारा।
गोरमघाट :- टॉडगढ़ से सीधा 12 किमी दूर व सडक मार्ग से 25 किमी दूर कामलीघाट से फुलाद रेलवे लाईन पर स्थित एक दर्शनीय स्थान पर जो राजसमंद में आता है यहां पर रेलवे लाईन का (यू) आकार का टर्न एवं गुफा शानदार व मनमोहक हैं।
हनुमान प्रतिमा :- टॉडगढ़ से 10 किमी दूर लाखागुडा ग्राम के पास 72 फिट उंची हनुमान प्रतिमा हैं जो पर्यटको का दर्शनीय स्थल है जिला राजसमंद में आता हैं।
वीर राजू रावत स्मार्क :- यह स्थान टॉडगढ़ से 6 किमी दूरी पर फुतिया खेडा में चौराहे पर इनकी भव्य प्रतिमा स्थत हैं। अंग्रेजों के खिलाफ टॉडगढ़ मे विद्रोह का बिगुल 1821 में ही बज गया था। इसका नायक राजू रावत था। यदि इतिहास में जगह दी जाती तो संभवतः वह पहला स्वतन्त्रता सेनानी होता। अङ्ग्रेज़ी हुकूमत के समय कर्नल टॉड 1821 में अपनी बटालियन के साथ टॉडगढ़ पहुंचे थे। बताते हैं कि राजू रावत ने अंग्रेजों का खुलकर विरोध किया था। कर्नल डिक्सन ने राजू रावत को 18 अप्रेल 1843 को खुली फांसी की सजा सुनाई थी। 12 साल तक उसे पकड़ा नहीं जा सका था। आखिर में ससुर चंपजी को माध्यम बनाकर अंग्रेजों ने उसे पकड़ा था। [3]
विक्ट्री मेमोरियल फौजी धर्मशाला :- यह टॉडगढ़ में ही स्थत है द्वितिय विश्वयुद्व में शहीद यहां के निवासीयों की याद मे बनी फौजी धर्मशाला हैं।
कातर घाटी सडक :- टॉडगढ़ से बराखन सडक पर 6 किमी पर विहंगम दृश्य सजोए अद्भुत सडक है जिसमें यू टर्न (मोड) है जिसका सम्वत् 1956 में अंग्रेजो द्वारा निर्माण करवाया गया। उस समय भयंकर अकाल पडा था जिसमें आस पास के ग्रामीणो द्वारा इसका निर्माण किया गया था।
टॉडगढ़ रावली वन्य जीव अभ्यारण :- यह स्थान टॉडगढ़ मालातो की बैर आसन बराखन पंचायत क्षेत्र से मारवाड पाली जिले के मध्य बने नदी नालो से आच्छादित व वन क्षेत्र है जिमें दुधालेश्वर महादेव का धार्मिक स्थल फोरेस्ट की होटले एवं जंगली जानवरी शेर आदि हैं।
बागलिया भग्गड गुफा मामारेल टॉडगढ़ :- भग्गड (गुफा ) ग्राम टॉडगढ़ से भीम टॉडगढ़ पक्की सडक से 1/किमी दूर मामाजी की रेल में स्थित है जो कि यहां से 13 किमी दूर गोधाजी के गांव भीम के पास किले के पास निकलती हैं यह स्थान मामादेव की धूनी के नाम से प्रसिद्ध हैं।
Population
At the time of Census-2011, the population of Tatgarh village stood at 2272, with 475 households.
External links
External Links
Gallery
-
दैनिक भास्कर जयपुर.20.10.2021: इतिहास के बोझ तले दबे गाँव टॉडगढ़ की कहानी - डॉ सत्यनारायण