Prajamandal

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प्रजामण्डल ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय रियासतों की जनता के संगठन थे। इनकी स्थापना 1920 के दशक में तेजी से हुई। चूँकि रियासतों की शासन व्यवस्था ब्रिटिश नियंत्रण वाले भारतीय क्षेत्र से भिन्न थी, तथा अनेक रियासतों के राजा प्रायः अंग्रेजों के मुहरे के समान व्यवहार करते थे, इस सारी जटिलता के कारण भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने जो कि उस समय ब्रिटिश भारत में स्वतंत्रता संघर्ष चला रही थी, ने रियासतों को अपने अभियान से अलग रखा था। परन्तु जैसे-जैसे रियासतों की जनता में निकटवर्ती क्षेत्रों के कांग्रेस चालित अभियानों से जागरूकता बढ़ी, उनमें अपने कल्याण के लिए संगठित होने की प्रवृत्ति बलवती हुई, जिससे प्रजामंडल बने।

शुरुआती दौर में राष्ट्रीय कांग्रेस देशी रियासतों के प्रति उदासीन रही। परन्तु हरिपुरा अधिवेशन में कांग्रेस की नीति में परिवर्तन आया। रियासती जनता को भी अपने-अपने राज्य में संगठन निर्माण करने तथा अपने अधिकारों के लिए आन्दोलन करने की छूट दे दी।

प्रजामंडल एवं जाट पंचायतों में गठबंधन

सन 1938 में कांग्रेस के हरिपुरा अधिवेशन में एक प्रस्ताव पारित हुआ जिसमें कहा गया कि कांग्रेस रियासती जनता से अपनी एकता की घोषणा करती है और स्वतंत्रता के उनके संघर्ष के प्रति सहानुभूति प्रकट करती है. त्रिपुरा अधिवेशन में कांग्रेस ने रियासती जनता के प्रति समर्थन की घोषणा कर दी, इससे जनता में बड़ा उत्साह और उमंग जगी. आल इण्डिया स्टेट्स पीपुल्स कांफ्रेंस की स्थानीय इकाइयों के रूप में जगह-जगह प्रजामंडल अथवा लोकपरिषदों का गठन हुआ. राजस्थान में प्रजामंडलों के संस्थापन की प्रथम कड़ी के रूप में जयपुर राज्य प्रजामंडल की स्थापना सन 1931 में हुई. (डॉ. ज्ञानप्रकाश पिलानिया: पृ. 36)

सन 1938 के प्रजामंडलों की कोई राजनीतिक गतिविधियाँ नहीं थी. इसी साल प्रजामंडल ने संवैधानिक सुधार एवं कृषि सुधर के लिए आन्दोलन चलाये. किसान सभाएं 1937 में ही जयपुर प्रजा-मण्डल में विलीन हो चुकी थी. इसी साल सेठ जमनादास बजाज और पंडित हीरालाल शास्त्री इसके सचिव बने. इसी के साथ इसके वार्षिक अधिवेशन नियमित रूप से होने लगे. प्रजामण्डल का उद्देश्य जनता के लिए प्राथमिक नागरिक अधिकार प्राप्त करना और जयपुर राज्य में समग्र विकास की प्रक्रिया शुरू करना था. अब तक प्रजा मंडल का काम शहरी क्षेत्रों तक ही सीमित था. ग्रामीण क्षेत्रों में पैठ नहीं होने से प्रजा मंडल ने जाट पंचायत के साथ जागीरदार विरोधी संधि में शामिल होने पर विचार किया. उधर शेखावाटी में भी यह विचार चल रहा था कि क्या हमें किसान पंचायतों का विलय प्रजा मंडल में कर देना चाहिय. एक गुट, जिसमें चौधरी घासीराम, पंडित ताड़केश्वर शर्मा, विद्याधर कुलहरी आदि थे, का सोच था कि इससे किसानों की मांगें उपेक्षित होंगी, क्योंकि अपनी बहुविध गतिविधयों में प्रजा मंडल इस और पूरा ध्यान नहीं दे पायेगा. दूसरी और सरदार हरलाल सिंह, चौधरी नेतराम सिंह आदि इस विचार के थे कि प्रजा मंडल जैसे सशक्त संगठन में शामिल होने से किसान पंचायतों को सीमित क्षेत्र से निकाल कर विशाल क्षेत्र तक पहुँचाने का यह एक सशक्त माद्यम बन सकेगा. प्रजामंडल में शामिल होने से उनकी पहुँच सीधी जयपुर राज्य से हो जाएगी जिससे जागीरी जुल्मों का वे अधिक सक्रियता से और ताकत से मुकाबला करने में समर्थ होंगे. इस द्विविध विचारधारा के कारण शेखावाटी का राजनीतिक संघर्ष विभाजित हो गया. (डॉ. ज्ञानप्रकाश पिलानिया: पृ. 37)

प्रजामंडल की शेखावाटी में गतिविधियाँ - नवंबर 1937 में में प्रजामंडल के महासचिव हीरा लाल शास्त्री ने शेखावाटी का दौरा किया. सरदार हरलाल सिंह तथा चौधरी नेतराम सिंह आदि उनके साथ थे. 25 एवं 30 नवम्बर 1937 को उनका भाषण हनुमानपुरा में हुआ. 16 दिसंबर 1938 को प्रजामंडल के अध्यक्ष सेठ जमनालाल बजाज के जयपुर राज्य में प्रवेश पर रोक लगा दी गयी और 'पब्लिक सोसायटीज एक्ट' के तहत प्रजामंडल को 12 जनवरी 1939 को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया. प्रजामंडल के दमन का कारण उसका जाट किसान पंचायत से मेल जोल बढ़ाना था और किसानों को भी इसी संधि की सजा दी जा रही थी. सेठजी ने दो बार 1 फ़रवरी और 5 फ़रवरी को जयपुर की सीमा में प्रवेश की कोशिश की किन्तु दोनों ही बार उन्हें बलपूर्वक खदेड़ कर राज्य से बाहर कर दिया गया. शेखावाटी में इस पर भयंकर प्रतिक्रिया हुई. किसानों ने जगह-जगह सत्याग्रह व आन्दोलन शुरू कर दिए. किसानों पर घोड़े दौडाए गए और लाठी चार्ज हुआ. झुंझुनू में 1 से 4 फ़रवरी तक एकदम अराजकता की स्थिति रही. इसी दौरान प्रजामंडल के प्रभाव में आकर शेखावाटी जाट किसान पंचायत का नाम बदल कर किसान पंचायत और जाट बोर्डिंग हाऊस झुंझुनू का नाम विद्यार्थी भवन कर दिया. सन 1942 में झुंझुनू एवं सन 1942 में श्रीमाधोपुर में प्रजामंडल के वार्षिक अधिवेशन आयोजित किये गए लेकिन ठिकानों की ज्यादतियां अब नए सिरे से शुरू होने लगीं, क्योंकि अब जयपुर दरबार व ब्रिटिश अधिकारी भी उन्हें शह दे रहे थे. ठिकाने कई तरह की लाग-बाग़ और मोहराने मांगने लगे. (डॉ. ज्ञानप्रकाश पिलानिया: पृ. 37)

प्रजा मंडल में फूट और किसान सभा की स्थापना

पंडित हीरा लाल शास्त्री ऐसे बौद्धिक नेता थे जो एक हाथ से जयपुर रियासत और बिड़ला जी को नमन करते थे तो दूसरे हाथ से किसानों को राम-राम कहते थे. वे दोनों का साथ नहीं छोड़ना चाहते थे. लेकिन इसमें किसानों का भला नहीं हो रहा था. सरदार हरलाल सिंह, नरोत्तम जोशी, नेतराम सिंह जैसे नेता थे जो प्रजामंडल से प्रभावित थे. चौधरी घासी राम, पंडित ताड़केश्वर शर्मा आदि को कभी विश्वास नहीं रहा कि प्रजामंडल किसानों की समस्याएं हल कर देगा. उनका सोचना था कि पूंजीपतियों के पैसे के बल पर पार्टी चलाने वाले नेता कैसे गाँव, गरीब, किसान और मजदूर का भला कर सकेंगे. [1]

15 मई 1946 को झुंझुनू में किसान कार्यकर्ताओं की एक बैठक चौधरी घासी राम ने बुलाई. शेखावाटी के प्रमुख कार्यकर्ताओं ने इसमें भाग लिया. अध्यक्षता विद्याधर कुल्हारी ने की. इसमें यह उभर कर आया कि भविष्य में समाजवादी विचारधारा को अपनाया जाये. कुछ व्यक्तियों ने किसान सभा का विरोध किया. निम्न व्यक्तियों ने किसान सभा का अनुमादन किया.

  • चौधरी घासी राम
  • विद्याधर कुल्हारी
  • जगन सिंह भोजासर
  • जयदेव सिंह सांगासी
  • केसरदेव सांगसी
  • डूंगर सिंह मांडासी
  • रामनाथ सिंह श्यामपुरा
  • राम लाल भोडकी
  • गोपाल राम खिरोड़
  • मुकुंद राम धमोरा
  • रामधन खींवासर
  • डूंगर सिंह कुमावास
  • सांवल राम राणासर
  • हरनन्द राम वकील अजाड़ी
  • हनुमान कासनिया का बास
  • रामकुमार फतेहसरा
  • रामदेव बाकरा
  • लादू राम फतेहसरा
  • नत्थू सिंह बाडलवास
  • लेख राम पूरा की ढाणी
  • ख्याली राम भामरवासी
  • कमल सिंह हनुमानपुरा
  • सुरजा राम गोठड़ा
  • पंडित ताड़केश्वर शर्मा पचेरी
  • थाना राम भोजासर
  • धोकल सिंह भोजासर
  • मुकुंद राम सांगसी
  • घडसी राम मांडासी
  • हरजी राम श्यामपुरा
  • बिसना राम सोटवारा
  • जीवन राम खिरोड़
  • लादू राम देवगांव
  • परसाराम परसरामपुरा
  • राम लाल पोषण
  • ओंकार सिंह हनुमानपुरा
  • मोहन राम अजाडी
  • करनी राम वकील अजाडी
  • अर्जुन राम बीबासर
  • भानी राम बाकरा
  • ठण्डी राम बाकरा
  • रणजीत सिंह बाडलवास
  • कन्हैया लाल पूरा की ढाणी
  • बूंटी राम कोशोरपुरा
  • सोहन सिंह हनुमानपुरा
  • सूरज मल हनुमानपुरा
  • कूम सिंह बिरोल
  • होती लाल मुकुंदगढ़
  • लक्ष्मण सिंह बगड़
  • बिंदु सिंह अलीपुर
  • गणेश राम
  • बूजन राम,
  • सूरजा राम,
  • चत्तर सिंह बख्तावरपुरा,
  • राम सिंह कंवरपुरा,
  • मांगी लाल,
  • मूल सिंह,
  • सुल्तान सिंह खाजपुर,
  • कल्लू राम खाजपुर,
  • लेख राम प्रतापपुरा,
  • मुकुंदा राम महरमपुर,
  • कालू राम स्योलाना,
  • शिव राम स्योलाना,
  • जीता राम भदूंदा कला,
  • राम करण हमीरवास,
  • बालू राम हमीरवास,
  • पूर्ण सिंह हमीरवास,
  • माल राम हमीरवास,
  • ताराचंद झारोड़ा,
  • कुरड़ा राम झारोड़ा,
  • लादू राम रायपुर,
  • रामेश्वर घरडाना,
  • मान सिंह बनगोठडी,
  • गंगा राम चिड़ावा,
  • लादू राम लालपुर,
  • भोमा राम लालपुर,
  • राजू राम माली बगड़,
  • माम चंद माली बगड़,
  • उमादत्त महाजन बगड़,
  • छानू राम भोबिया,
  • गनपत राम पिचानवा,
  • पित राम पिचानवा,
  • प्रहलाद सिंह पिचानवा,
  • गुरुमुख सिंह दौलतपुरा,
  • चिमना राम लुटू,
  • बलदेव सिंह लुटू,
  • परसा राम लुटू,
  • राम दयाल भीखनसर,
  • मेघ राम भीखनसर,
  • रामू राम धीरासर,
  • गुलाब सिंह खाजपुर,
  • लेख राम खाजपुर,
  • मोती राम कुलोद,
  • सूबेदार सुख राम,
  • बालू राम ढाणी अडूका,
  • मालजी गाडोली,
  • मामराज घुमनसर,
  • लादू राम घुमनसर,
  • चुन्नी लाल ढाणी मझाऊ,
  • सुरजा राम गोपालपुरा,
  • बख्ता राम काजी,
  • बस्ती राम बाडेट ,
  • लाला राम दूलपुरा,
  • हजारी राम तिगियास,
  • श्याम लाल तिगियास,
  • नानू राम तिगियास,
  • शिवनारायण सिंह वकील,
  • खेता राम माली उदयपुर,
  • खेताराम नंदरामपुरा ,
  • घड़ी राम नंदरामपुरा,
  • बिसना राम बुडानिया,
  • बक्सा राम बुडानिया,
  • शिव लाल जाखड़,
  • गिरधारी लाल बजावा,
  • लादू राम बजावा,
  • भोज राम निवाई,
  • चीखा राम निवाई,
  • माली राम घोडीवारा कला,
  • मग सिंह घोडीवारा खुर्द,
  • बस्ती राम नारनोद,
  • महादेवा खाती पचेरी,
  • अलबाद सिंह पचेरी,
  • दया किशन गौरीर,
  • लादू राम खाती जीणी,
  • लालचंद खाती तोगड़ा,
  • लालचंद ढाणी कुलड़िया,
  • बीजा राम ढाणी कुलड़िया,
  • सुरजा राम ढीगाल ,
  • हीरा राम ढीगाल,
  • लक्ष्मण सिंह बाजीसर,
  • हनुमान सिंह बाजीसर,
  • लक्ष्मण सिंह भुडनपुरा ,
  • जीता राम झेरली,
  • नारायण सिंह झेरली,
  • ओनाड़ जाट झेरली,
  • श्योनारायण ढंढारिया ,
  • चानू राम बास पुनिया,
  • जगदीश राम लूणा,
  • हरदेव सिंह ढांढोटी,
  • महेंद्र सिंह गोवली,
  • गोरू राम तिगियास,

नोट - यह सूची विद्याधर कुलहरी की पुस्तक 'मेरा जीवन संघर्ष' पेज 206 से ली गयी है.

उपरोक्त सूची से प्रकट होता है कि किसान सभा के लिए पूरे जिले से किसानों का समर्थन प्राप्त था. इसमें सीकर जिले के किसानों के नाम नहीं हैं. विद्याधर कुलहरी को किसान सभा का अध्यक्ष चुन लिया गया. यह दुर्भाग्य पूर्ण था कि किसानों का संघर्ष सफल हुए बिना ही प्रजामंडल में फूट पड़ गयी. दोनों गुट प्रचार-प्रसार में लग गए. अनेक अवसरों पर दोनों गुटों में विवाद हुआ.

16 जून 1946 को किसान सभा का पुनर्गठन

सरदार हरलाल सिंह ने दूसरे ही दिन 16 जून 1946 को प्रजा मंडल का जिला अधिवेशन नवलगढ़ में बुलाया. इसमें पंडित हीरा लाल शास्त्री भी सम्मिलित हुए. उन्होंने मंच से किसान सभा के विरुद्ध भाषण दिया.

प्रथम गुट के लोग जिसमें चौधरी घासी राम, विद्याधर कुलहरी आदि प्रमुख थे, किसान सभा में बने रहे जबकि दूसरे लोग प्रजा मण्डल से जुड़कर आजादी के संघर्ष की मूल धारा में चले गए. इन परिस्थियों में 16 जून 1946 को किसान सभा का पुनर्गठन किया गया. इस समय शेखावाटी के कुछ प्रमुख किसान नेताओं ने प्रजामंडल से अपने संबंधों का विच्छेद कर लिया. ये थे चौधरी घासी राम, पंडित ताड़केश्वर शर्मा, विद्याधर कुलहरी और तारा सिंह झारोड़. विद्याधर कुलहरी को झुंझुनू जिला किसान सभा का अध्यक्ष बनाया गया. इस विभाजन से शेखावाटी किसान आन्दोलन की गति कम हो गयी. आगे चलकर जयपुर राज्य से प्रजामंडल के कारण उनका संघर्ष शुरू हुआ. इस समय वे कई मोर्चों पर एक साथ लड़ रहे थे. प्रथम मोर्चा ठिकानेदारों के विरुद्ध, दूसरा उनके हिमायती जयपुर राज के विरुद्ध तथा तीसरा अपने ही उन भाईयों के विरुद्ध जो ठिकानों के अंध भक्त बने हुए थे. इस समय शेखावाटी के विविध क्षेत्रों में किसान सम्मलेन आयोजित कर किसानों की समस्याओं पर विचार-विमर्श किया जाता था. ऐसे सम्मेलनों कि अध्यक्षता या सभापतित्व सरदार हरलाल सिंह किया करते थे. (डॉ. ज्ञानप्रकाश पिलानिया: पृ. 37-38)

किसान सभा का रींगस सम्मलेन 30 जून 1946

इसके प्रत्युत्तर में किसान सभा की और से रींगस में विशाल किसान सम्मलेन 30 जून 1946 को बुलाया गया. इसमें पूरे राज्य के किसान नेता सम्मिलित हुए. यह निर्णय किया गया की पूरे जयपुर स्टेट में किसान सभा की शाखाएं गठन की जावें. विद्याधर कुलहरी को ही जयपुर स्टेट की किसान सभा का अध्यक्ष चुन लिया गया. अन्य कार्यकारिणी सदस्य निम्न थे:-

  • अध्यक्ष - विद्याधर कुलहरी
  • उपाध्यक्ष - ईश्वर सिंह भैरूपुरा एवं छाजूराम कुंवरपुरा
  • प्रधानमंत्री - राधावल्लभ अग्रवाल, जयपुर
  • उपमंत्री - पंडित ताड़केश्वर शर्मा एवं जयदेवसिंह सांगसी
  • कोषाध्यक्ष - लादू राम रानीगंज (मूलत: पलसाना से)
  • सदस्य -
    • देवा सिंह बोचाल्या,
    • त्रिलोक सिंह अलफसर,
    • ताराचंद झारोड़ा,
    • हेम करण यादव कोटपूतली,
    • नवल राम भारणी,
    • दुर्गा लाल बिजलीवाला, जयपुर,
    • गफ्फार अली वकील, जयपुर,
    • मोती राम धायल कोटडी,
    • मोहन सिंह इन्दाली,
    • हरी सिंह बुरड़क पलथाना,
    • हरदेव सिंह ढांढोता
    • चौधरी घासी राम,
    • शिव नारायण सिंह वकील

सीकर वाटी में त्रिलोक सिंह, देवा सिंह बोचल्या, ईश्वर सिंह भामू, हरी सिंह बुरड़क आदि किसान सभा के जिम्मेवार नेताओं के रूप में पहचाने गए.

किसान सभा के मुख्य उद्देश्य थे -

  • 1.शोषण रहित समाज की स्थापना करना
  • 2.जागीरदारी प्रथा का समूल खात्मा व किसानों को भूमि का मालिक घोषित करना
  • 3.किसानों को आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक एवं शैक्षणिक उन्नति के अवसर प्रदान करना
  • 4.सारी जमीन का बंदोबस्त करवाना एवं उचित लगान कायम करना


विभाजन से रावराजा सीकर का मनोबल बढ़ा - विभाजन होने से रावराजा सीकर का मनोबल बढ़ गया था. पहले सीकर में पक्का मकान बनाने पर मोहराना या नजराना नहीं देना पड़ता था पर अब किसान सभा के विभाजन के पश्चात् पुख्ता निर्माण करने वाले किसानों को नजराना अनिवार्य कर दिया. यदि किसान शहरों में अनाज, चारा, लकड़ी, दूध, दही, घी आदि बेचने आवेंगे तो उन्हें टेक्स देना होगा.

किसानों में इससे भारी असंतोष फ़ैल गया. किसान सभा ने आह्वान किया कि कोई भी किसान शहर में कुछ भी बेचने न आए. इससे शहरों की जनता परेशान हो उठी. पशु रखने वालों में हाहाकार मच गया. क्योंकि जिनके पास स्टाक था, वे ऊँचे भावों पर देने लगे. आखिर राव राजा को अपनी मूर्खता पर पछताना पड़ा. उसने घोषणा करदी कि न तो पुख्ता निर्माण पर नजराना लिया जायेगा और न किसानों द्वारा कोई चीज बेचने पर टेक्स वसूल होगा. इससे किसान सभा एक मजबूत संगठन के रूप में उभरा. ईश्वर सिंह भामू और त्रिलोक सिंह ठिकानेदारों के आँखों में चुभने लगे.

External links

राजस्थान में प्रजा मंडल

सन्दर्भ

  1. राजेन्द्र कसवा: मेरा गाँव मेरा देश (वाया शेखावाटी), जयपुर, 2012, ISBN 978-81-89681-21-0, P. 201

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