Ruriala

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Ruriala village and fort is in Gujranwala district of Pakistan.

जाट इतिहास:ठाकुर देशराज

रूरियाला गांव जिला गुजरानवाला में है। सरदार रजवन्तसिंह के एक पुरुखा चौधरी तेज ने इसकी नींव डाली थी। बहुत दिन तक यह वंश इस गांव में रहा। कुछ समय इस वंश को चौधराहट का पद भी मिला था। सन् 1759 में भगतसिंह सिख हो गया और इसने अपनी बेटी देवी का विवाह भंगी मिसल में करके रूरियाला गांव में जागीर बना ली। गूजरसिंह ने युवा सेवासिंह और देवासिंह को अपनी नौकरी में रख लिया और गुजरात जिले के गांव नौशेरा में जागीर दे दी। इनके बाद गूजरसिंह के पुत्र साहबसिंह ने यह जागीर ले ली। वह भंगी मिसल का उत्तराधिकारी भी बन गया था। रूरिवाला तथा इस जागीर के दो गांव देवासिंह के लिए छोड़ दिए गए थे। इनके पुत्र जोधसिंह ने सरदार जोधसिंह रूरियान वाला की फौज में नौकरी कर ली। यह 1825 तक उनका घुड़सवार सैनिक रहा। अमीरसिंह की मृत्यु के पश्चात् महाराज ने जागीर जब्त कर ली और फौज को शेरसिंह के कमाण्ड में कर दिया। सन् 1831 में जोधसिंह कुंवर साहब के साथ सैयद अहमद खां के विरुद्ध युद्ध में गया था। खां परास्त हुआ था


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और दो सवार तैयार रखने की शर्त पर रूरियाली की जागीर 12043) रुपयों के साथ हमेशा उनके अधिकार में रही, सिर्फ एक साल के लिए ही सन् 1835 में जब्त कर ली गई थी। सन् 1848 में जिला गुजरानवाला के कोटली गांव में भी इन्हें जागीर मिल गई थी। सतलज के धावे के पश्चात् जोधसिंह अमृतसर में 3000) मय पर अपनी जागीर के अदालती बनाए गए। सन् 1849 में पंजाब के मिला लेने के पश्चात् यह उसी जगह पर अतिरिक्त सहायक कमिश्नर नियुक्त किए गए जहां पर वे सन् 1865 तक रहे और रिटायर हो गए।

सन् 1848-49 में अशांति के समय सरदार जोधसिंह राजभक्त रहे और अमृतसर शहर में शांति स्थापित रखने में पूर्ण उद्योग किया। पंजाब के अंग्रेजी राज्य में मिल जाने के समय से सन् 1862 के शुरू तक वे अमृतसर में सिखों के मन्दिर में दरबार साहिब के अधिकारी रहे। उन्हें स्वयं सिख-गुरुओं ने इस काम के लिए चुना था।

जोधसिंह का सबसे छोटा भाई सरदार मानसिंह फौज में एक प्रसिद्ध अफसर था। 25 साल की उम्र के लगभग वह राजा सुचेतसिंह की फौज में भर्ती हो गया था और पेशावर विजय प्राप्त करने के समय उसमें उपस्थित था। फिर वह राजा हीरासिंह की फौज में भर्ती हो गया। जहां पर कि वह कैवेलरी का एजूटेण्ट बना दिया गया। वह मुदकी, फीरोज शाह और सोवरांव में अंग्रेजों से लड़ा था। जब युद्ध खतम हो गया तो लाहौर में 50 घुड़सवार फौज का कमाण्डर बना दिया गया। सन् 1848 में वह अमृतसर भेज दिया गया और अपने भाई के साथ लड़ाई के समय बहुत अच्छी सेवा करता रहा। शांति हो जाने पर उसकी फौज तोड़ दी गई और वह पेन्शन पर रिटायर हो गए। किन्तु वे शान्ति से बैठने वाले पुरुष न थे अतः वह सन् 1852 में पुलिस में भर्ती हो गए और सन् 1857 तक उसी में रहे। गदर शुरू होते ही ये एक बड़ी फौज के कमाण्डर बनाकर मेजर हडसन के साथ देहली भी भेजे गए। मानसिंह ने देहली के घेरे और विजय में खूब सेवा की। ये सन् 1858 के गर्मी के मौसमों के धावे में लड़े और उनके नवाबगंज के युद्ध के साहस की सरकारी चिट्ठियों में इज्जत के साथ तारीफ की गई, जहां पर कि उन्होंने लेफ्टीनेण्ट बुलर को जो कि दुश्मनों से घिरा हुआ था, छुड़ाया। मानसिंह इस युद्ध में बहुत ही घायल हुआ और उसका घोड़ा तलवार से घायल हो गया। इस कार्य के उपलक्ष्य में उसे आर्डर ऑफ मेरिट की उपाधि मिली। सरदार साहब सन् 1877 में नौकरी से रिटायर हो गए और अमृतसर में रहने लगे। वहां पर वे सम्मान का जीवन व्यतीत करते हुए सिख-धर्म की सहायता में धन व्यय करते हुए समय व्यतीत करने लगे। सन् 1879 में आनरेरी मजिस्ट्रेट बनाये गए और उसी साल दरबार साहिब के मैनेजर नियुक्त दिए गए। उन्हें C.O.I.E. का खिताब मिला और वे प्रान्तीय दरबारी बनाये गए तथा अमृतसर की चुंगी के मेम्बर


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भी बना दिए गए। उनकी आमदनी 12000) सालाना अंदाजी गई थी।

सन् 1892 में इनका देहान्त हो गया और इनकी निजी जायदाद इनके पुत्रों में बंट गई। इनका श्रेष्ठ पुत्र जवाहरसिंह इनके स्थान पर प्रान्तीय दरबारी बनाया गया तथा जिला गुजरानवाला में आनरेरी मजिस्ट्रेट और जेलदार भी बनाया गया। सन् 1907 में इनका देहान्त हो गया और उनका ज्येष्ठ पुत्र सरदार रजवंतसिंह जो कि रूरियाला का जेलदार था, इस कुटुम्ब का प्रधान हुआ और उसे प्रान्तीय दरबार में स्थान दिया गया।

जाट इतिहास:ठाकुर देशराज, पृष्ठ-552

गंडासिंह का बेटा करमसिंह पुलिस में नौकर था। जिला गुजरानवाला में उसकी जमीन से 150) रु० सालाना की आमदनी थी। काहनसिंह के पुत्रों में से सबसे बड़ा पुत्र हीरासिंह चौबीसवीं पंजाब इनफैण्ट्री में सूबेदार मेजर था और सरदार बहादुर की उपाधि प्राप्त करके पेन्शन पर रिटायर हो गया। लाहौर और गुजरानवाला जिलों में उसके पास जमीन थी जिससे कि लगभग 3000) रुपये सालाना की आमद हो जाती थी। सन् 1905 में इसका देहान्त हो गया। काहनसिंह का तीसरा पुत्र शेरसिंह 28वीं माउण्टेन बैटरी में सूबेदार मेजर था और सन् 1901 में उसे सरदार बहादुर की उपाधि मिल गई। सरदार हीरासिंह का ज्येष्ठ पुत्र शारदूलसिंह सैन्ट्रल इण्डिया हौर्स में दफैदार था, तथा द्वितीय पुत्र आशासिंह अपने पिता वाली रिजमेण्ट - चौबीसवीं पंजाब इन्फैन्ट्री में सूबेदार मेजर था।

अप्रैल सन् 1861 में प्रतापसिंह पुलिस में सूबेदार मुकर्रर हो गया और दलसिंह 17वीं बंगाल कैविलरी में रिसलदार था। सन् 1885 में इसका देहान्त हो गया। जयसिंह का पुत्र ज्वालासिंह 29वीं नेटिव इनफैण्ट्री में सूबेदार था। यह पेन्शन पर रिटायर हो गया और सन् 1888 में इसका देहान्त हो गया। उसके रूरियाला गांव के हिस्से की आमद 240) रु० सालाना के लगभग थी। उसका पुत्र वीरसिंह सैण्ट्रल इण्डिया हौर्स में नौकर था।

जाट इतिहास:ठाकुर देशराज, पृष्ठ-553

जौधसिंह का द्वितीय पुत्र हंससिंह अपने चचा मानसिंह की तरह नवीं बंगाल कैवेलरी में रिसलदार था। वह अवध, सुलतानपुर और फैजाबाद के प्रधान युद्धों में बड़ी बहादुरी से लड़ा था। सन् 1860 में इसका देहान्त हो गया।

स्वर्गीय सरदार जोधसिंह के वंशजों के अधिकार में जिला गुजरानवाला के मौजा रामगढ़ में 600) रु० की निकासी की वंशानुगत जागीर थी तथा उसी जिले के रूरियाला ग्राम में 75) रु० की निकासी की मुआफी भी थी। उनको अमृतसर की जमीन और घरों के किराये से 1700) रुपये सालाना की आमद भी हो जाती थी।

सर लैपिल ग्रिफिन ने इस खानदान का वंश-वृक्ष निम्न प्रकार बताया है।


जाट इतिहास:ठाकुर देशराज, पृष्ठान्त-551

Notable persons


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