Andhra
Andhra (आंध्र)(/आन्ध्र) Andhrana (आंध्राणा)/(आन्धराणा)[1] is Jat gotra of Chandravanshi Kshatriyas.
Origin
It gets its name from Andhra rulers rulers. They were branch of Yadavas. [2]
There has been mention of Andhra rulers numbering 22 in Shrimad Bhagwat, 24 in Vishnu Purana, 30 in Matsya Purana. they have been mentioned as Andhra/Andhrabhratya there. They are descendant of samrat Yayati's great grandson Dirghatama's (दीर्घत्तमा) son Andhra (आंध्र).
इतिहास
दलीप सिंह अहलावत[3] लिखते हैं कि चन्द्रवंशी सम्राट् ययाति के पुत्र अनु का प्रपौत्र दीर्घतमा* था जिसके अङ्ग, वङ्ग, कलिङ्ग, सुह्म, पुण्ड्र और आन्ध्र नामक पुत्र थे। इन सबने अपने नाम से प्रान्त बसाये। आन्ध्र ने अपने नाम से आन्ध्रालय (आस्ट्रेलिया) बसाया था। वहां से कुछ आन्ध्र लोगों ने भारतवर्ष में आकर आन्ध्रप्रदेश बसाया2। इस आन्ध्र के नाम पर आन्ध्र वंश प्रचलित हुआ था जो कि जाट वंश (गोत्र) है।
वैदिक सम्पत्ति के लेखक पं० रघुनंदन शर्मा साहित्यभूषण ने पृ० 414 पर लिखा है कि आन्ध्र लोग आन्ध्रालय अर्थात् आस्ट्रेलिया को गये।
दक्षिण भारत में एक प्रदेश आज भी ‘आन्ध्र’ के नाम पर प्रसिद्ध है। आन्ध्रवंश के राजाओं का राज्य इस आन्ध्रप्रदेश एवं कई अन्य प्रदेशों पर वैदिककाल में ही स्थापित हो गया था। रामायणकाल में भी इस वंश का राज्य आन्ध्र देश पर था। रामायण में लिखा है कि “सुग्रीव ने सीताजी की खोज के लिए सेनापति अङ्गद के नेतृत्व में वानरों को दक्षिण दिशा के कई देशों के अतिरिक्त ‘आन्ध्र देश’ में भी जाने का आदेश दिया3।” इन आन्ध्रवंश जाटों का राज्य महाभारत काल में भी था। पांडवों की दिग्विजय के अवसर पर सहदेव ने आन्ध्र देश के राजा को दूतों द्वारा ही वश में करके उससे टैक्स (कर) लिया (महाभारत सभापर्व, अध्याय 31वां)।
- 1. Jats the Ancient Rulers P. 249 by B.S. Dahiya I.R.S.
- 2. जाट इतिहास पृ० 26, लेखक श्रीनिवासाचार्य महाराज।
- 3. वाल्मीकीय रामायण किष्किन्धाकाण्ड, सर्ग 41वां, पृ० 794.
- 4. क्षत्रिय जातियों का उत्थान पतन एवं जाटों का उत्कर्ष पृ० 309-310, लेखक योगेन्द्रपाल शास्त्री।
- * अनु की 13 वीं पीढ़ी में हुआ (देखो अनु की वंशावली)।
जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-223
इस वंश के राजा, युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में पधारे और द्रव्य लाये। आन्ध्रवंश के शूरवीर कौरवों की तरफ होकर महाभारत युद्ध में लड़े थे (महाभारत कर्णपर्व)।
इस आन्ध्रवंश के राजाओं का पुराणों में वर्णन इस प्रकार से है। श्रीमदभागवत में 22, विष्णु पुराण में 30 (चतुर्थ अंश, अध्याय 24, श्लोक 43-50, शासन 456 वर्ष), मत्स्य पुराण में 30 जिनका शासन 448 वर्ष रहा, वायुपुराण में 176 आन्ध्रराजाओं का शासनकाल 172 वर्ष लिखा है3। इस मतभेद का कारण विभिन्न स्थानों में आन्ध्रराजाओं का राज्य होना ही हो सकता है। इनका परिचय आन्ध्र, आन्ध्रभृत्य, सातवाहन और शातकर्णी के नाम से दिया है। इसी कारण मि० स्मिथ को यह अनुमान करना पड़ा कि “आन्ध्रों के तीन प्रकार के राज्य थे - एक प्रजातन्त्री स्वतन्त्र, दूसरा मौर्यों के आधीन परतन्त्र, तीसरा एकतन्त्री।” इसी को पुराणों ने अनेक धाराओं में लिखा है1।
सम्राट् चन्द्रगुप्त मौर्य के समय 30 बड़े परकोटे नगर आन्ध्रों के थे। इनकी सेना में एक लाख पैदल, दो हजार घुड़सवार थे। इनकी राजधानी कृष्णा नदी के किनारे श्री काकुलंम थी। सम्राट् बिन्दुसार ने आन्ध्रों को मौर्य शासन के आधीन किया था। किन्तु सम्राट् अशोक के बाद ये लोग फिर स्वतन्त्र हो गये थे। इनका प्रभाव बहुत विस्तृत था2।
आन्ध्र लोगों को स्वतन्त्रता दिलाने वाला सिमुक था3। इस वंश के 30 शासक हुए हैं जिन्होंने 220 ई० पू० से 225 सन् ईस्वी तक 445 वर्ष राज्य किया। गोदावरी और कृष्णा नदियों के बीच के क्षेत्र पर इनका स्वतन्त्र राज्य रहा। उत्तर में आन्ध्र लोगों ने 28 ई० पू० कण्व वंश जिनका राज्य पाटलिपुत्र में था, को हराकर राज्य किया। आन्ध्रवंश के 30 शासक हुए जिनमें अधिक प्रसिद्ध ये थे -
- 1. सिमुक - इसने मौर्यवंश के पराधीन आन्ध्र लोगों को 220 ई० पू० में स्वतन्त्रता दिलाई। इसके शासनकाल में बड़ी उन्नति हुई4।
- 3. श्रीसतकर्णि - यह सम्राट् सिमुक का पुत्र था। इसने मालवा, विदर्भ तथा नर्मदा घाटी के प्रदेशों को जीत लिया था। इसने दो अश्वमेध यज्ञ किये और “दक्षिणापथपति” की उपाधि ग्रहण की6।
- 4. श्री गौतमीपुत्र सतकर्णि - यह इस वंश का सुप्रसिद्ध और शक्तिशाली शासक था। इसने सन् 106 से130 ई० तक राज्य किया। उसे शक, यवन, पल्हव आदि विदेशी जातियों का नाशक कहा गया है। इसके काल में शक जाति पश्चिमी भारत में काफी शक्तिशाली थी। इसने उनको हराया और एक शक शासक की कन्या से विवाह किया। सन् 130 ई० में इस सम्राट् की मृत्यु हो गई7। इस सम्राट् के पुत्र राजा श्रीपल्माई से शक सम्राट् जोरवम्न ने आन्ध्रराज्य का कुछ भाग छीन लिया।
- 1. क्षत्रिय जातियों का उत्थान, पतन एवं जाटों का उत्कर्ष पृ० 309-310 लेखक योगेन्द्रपाल शास्त्री।
- 2. जाटों का उत्कर्ष, पृ० 310, लेखक योगेन्द्रपाल शास्त्री।
- 3, 6, 7. भारत का इतिहास पृ० 65, हरयाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड भिवानी।
- 3, 4, 5, 6. हिन्दुस्तान की तारीख उर्दू पृ० 240.
- 7. जाटों का उत्कर्ष, पृ 310, लेखक योगेन्द्रपाल शास्त्री।
जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-224
- 5. श्रीयज्ञ सतकर्णि - यह आन्ध्रवंश का अंतिम प्रसिद्ध राजा था। इसने भी शकों के साथ युद्ध जारी रक्खा। समुद्रपार देशों से इसके अच्छे सम्बन्ध थे। इसके बाद आन्ध्रवंश के शासक दुर्बल थे। शक सम्राट् रुद्रदामन ने लगभग सन् 225 में यह आन्ध्रराज्य जीत लिया1।
आन्ध्रवंश अथवा सातवाहन वंश के शासनकाल में उद्योग-धन्धे तथा व्यापार बहुत उन्नत थे। इस काल में पश्चिमी देश जैसे मिस्र, रोम, सीरिया आदि से घनिष्ठ व्यापारिक सम्बन्ध थे। इन देशों के व्यापारिक जहाज भारत की भड़ौच बन्दरगाह पर माल उतारते और नगरा एवं पैठन मण्डियों से माल लादकर ले जाते थे। भारत से मलमल, सूती कपड़ा और मसाले बाहर के देशों में जाते थे और इनके बदले में शीशे का सामान, मदिरा, जूता तथा अन्य वस्तुएँ आती थीं2।
इस आन्ध्रवंश का राज्य कश्मीर, पंजाब, सिन्ध, दक्षिणी भारत, बिहार और उड़ीसा में था। इस वंश की बडियार शाखा का राज्य मैसूर रियासत पर था जो दक्षिण का सर्वाधिक प्रगतिशील राज्य था। बडियार वंश के जाट जोधपुर जिले में हैं। आन्ध्रवंश के अनेक गांव हैं जिनमें बिजनौर जिले के नांगल, कादीपुर, मोहनपुर आदि हैं3।
आन्ध्रवंश के शाखा गोत्र - 1. सातवाहन-सातकर्णी 2. बड़ियार। इस वंश को आन्ध्रभृत्य भी कहते हैं।
:1. जाटों का उत्कर्ष, पृ० 310, लेखक योगेन्द्रपाल शास्त्री।
- 2, 3. भारत का इतिहास पृ० 65, हरयाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड भिवानी, हिन्दुस्तान की तारीख उर्दू पृ० 244।
- 3. जाट इतिहास पृ० 76, लेखक ले० रामस्वरूप जून।
In Bhagavata Purana

'A study of the Bhagavata Purana; or, Esoteric Hinduism' by Purnendu Narayana Sinha, pp 226-227 mentions that (10) ten kings of the Sunga dynasty shall reign for 112 years. These are:Pushyamitra → Agnimitra → Sujyestha → (Vasumitra + Bhadraka + Pulinda): Pulinda → Utghosha → Vajramitra → Bhagavata → Devabhuti
Vasudeva, the minister of Devabhuti, shall kill his master and become himself the king.
- Vasudeva → Bhumitra → Narayana → Susarman
These four kings shall be called Kanvas. They shall reign for 345 years. Susarman shall be killed by his servant Balin, a King of the Andhra clan, who shall himself usurp the throne. Balin shall be succeeded by his brother Krishna (Balin + Krishna). The genealogy of Krishna is:
Krishna → Srisantakarna → Pournamasa → Lambodara → Chivilaka → Meghasvati → Atamana → Anishta Karman → Haleya → Talaka → Purishabhiru → Sunandana → Chakora → 8 Bahuka or Bahus ending in Sivasvati → Gomati → Purimat → Medasiras → Sivaskanda → Yajnasri → Vijaya → Chandravijna → Salomadhi [Page-227 ]
These thirty kings of the Andhra dynasty shall rule the earth for 456 years.
In Ramayana
Ramayana - Kishkindha Kand Sarg 41 mentions about Andhras as under:
तथा वन्गान् कलिन्गाम् च कौशिकान् च समंततः ।
अन्वीक्ष्य दण्डक अरण्यम् स पर्वत नदी गुहम् ॥४-४१-११॥
नदीम् गोदावरीम् चैव सर्वम् एव अनुपश्यत ।
तथैव आन्ध्रान् च पुण्ड्रान् च चोलान् पाण्ड्यान् केरलान् ॥४-४१-१२॥
In Mahabharata
Bhisma Parva, Mahabharata/Book VI Chapter 10 mentions geography of Bharatavarsha:
- "Andhras, and, O king, many hilly tribes, and many tribes residing on lands laying at the foot of the hills, and the Angamalajas, and the Manavarjakas (Maan)+(Bardak); "
- अन्ध्राश च बहवॊ राजन्न अन्तर्गिर्यास तदैव च
- बहिर्गिर्य आङ्गमलदा मागधा मानवर्जकाः (Maan+Bardak) Mahabharata (6.10.48)
Sabha Parva, Mahabharata/Book II Chapter 28 mentions the provinces sabjugated by Sahadeva, who marched towards the southern direction. The hero brought under his subjection and exacted tributes from the Paundrayas, and the Dravidas along with the Udrakeralas and the Andhras and the Talavanas, the Kalingas and the Ushtrakarnikas.
- पाण्ड्यांश च थरविथांश चैव सहितांश चॊथ्र केरलैः
- अन्ध्रांस तलवनांश चैव कलिङ्गान ओष्ट्र कर्णिकान Mahabharata (2.28.48)
The Mahabharata Tribe - Andhra (अन्ध्र) , A very ancient tribe, mentioned as Dasyus in the Aitareya Brahmana (VII.18), as the result of a curse by Vishwamitra. Linked with Pulinda, Khasa, Nishada and other low peoples, they fought for Duryodhana (VIII. 51.17). The Mbh. (XII.200.40) describes them as natives of the south. (VI.10.48)
- अन्ध्राश च बहवॊ राजन्न अन्तर्गिर्यास तदैव च
- बहिर्गिर्य आङ्गमलथा मागधा मानवर्जकाः (VI.10.48)
- The Mahabharata Tribe - Andhra (अन्ध्र) may be identified with Jat Gotra - Taka or Takhar, Name of their tribe was Andhra. [4]
- According to Thakur Deshraj there was a great king in Andhra-vansh named Hala around 69 AD. The descendants of Maharaja Hala came from south to north and settled in uttar Pradesh and Rajasthan. The Jat groups of these Kshatriyas were known as Hala.[5]
- The Mahabharata Tribe - Andhra (अन्ध्र) may be identified with Jat Gotra - Andar (अंदार) or Andara (अंदार) is Jat gotra same a Andhak. [6]
- The Mahabharata Tribe - Andhra (अन्ध्र) may be identified with Jat Gotra - Andhrana (आंध्राणा).[7]
- The Mahabharata Tribe - Andhra (अन्ध्र) may be identified with Jat Gotra - Vadiar (वाडियार) .[8]
See also
References
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Parishisht-I, s.n. आ-2
- ↑ Mahendra Singh Arya et al.: Ādhunik Jat Itihas, p.222,s.n.6
- ↑ जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठ.223-225
- ↑ Dr Naval Viyogi: Nagas – The Ancient Rulers of India, p.144
- ↑ Jat History Thakur Deshraj/Chapter VIII, p. 559
- ↑ Mahendra Singh Arya et al.: Ādhunik Jat Itihas,
- ↑ Mahendra Singh Arya et al.: Ādhunik Jat Itihas, p.222
- ↑ Mahendra Singh Arya et al.: Ādhunik Jat Itihas, p. 267
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