Bareilly
Author:Laxman Burdak, IFS (R) |

Bareilly (बरेली) is a city and district in the north-central Uttar Pradesh.
Variants
- Bareli बरेली, उ.प्र., (AS, p.611)
- Bans Bareli बांस बरेली (AS, p.617)
Tahsils in Bareilly district
Villages in Bareilly Tahsil
Abdullapur Mafi, Abheypur Camp, Abheypur Keshonpur, Adhkata Bunnyadi Begum, Adhkata_Brahmnan, Adlakhia, Adoopura Jagir, Ahladpur, Aina, Ainthpur, Ajampur Mustaqil, Akhtiarpur, Alampur, Amlaunipur, Angori, Asaram Rajpur, Aspur Khubchand, Aspur Pitam Rai, Atakayasthan, Atapatti Janubi, Atapatti Shumali, Babhia, Badshah Nagar, Bahjuiya Jagir, Baikunthapur, Balipur Ahmedpur, Balla Kotha, Balrau, Banjaria Jagir, Barehpura, Bareilly (CB), Bareilly (M Corp.), Bari Nagla, Barkapur, Bebah, Beerpur Maqrooqa, Beerpur Urf Kasam Nager, Behti Deh Jagir, Benipur Sadat, Bhagnapur, Bhagwanpur Dhimri, Bhagwanpur Thakuran Mustqil, Bhagwantapur, Bhagwatipur, Bhairpur Khajuria, Bhandaria, Bhandsar, Bhartapur, Bhartaul, Bhikampur, Bhindaulia, Bhjhia Janoobi, Bhjhia Shumali, Bhoji Pura, Bhoora, Bibia Pur Kayasthan, Bibiapur Chaudhry, Bichra Balkishanpur, Bilwa, Birya Narainpur, Bithri Chainpur, Bohit, Bukhara, Chahar Nagla, Chandpur Bichpuri, Chaneta, Chaneti, Chathia Jagannath, Chaubari Mustqil, Chaupara Janubi, Chaupara Shumali, Chausanda, Chawer, Chena Murarpur, Dabhora Khanjanpur, Dahiya, Dalpatpur, Dandia, Daspur, Dauli Raghuber Dayal, Deoria Jagir, Dhaneti Kharagpur, Dhantiya, Dharoopur Thakuran, Dhaura Tanda (NP), Dhaurera Mafi, Didar Patti, Dogharia, Dohara, Dohna Pitam Rai, Dubari, Faridapur Barkalisaheb, Faridapur Inayat Khan, Faridapur Jagir, Faridapur Ramcharan, Fatehpur Durga Prasad, Gajraula, Garau, Ghanghora Piparia, Ghanghoua Ghanghori, Ghunsa, Ghur Shamashpur, Girdharipur, Gokulpur, Goonga, Gopalpur Azizpur, Gopalpur Nagaria Anoop, Gujarhai Mustqil, Gularia Riziqulanisan, Gupalapur, Hadauria, Haibatpur, Hamirpur, Harbanspur Urf Lachhmipur, Hardua, Herherpur, Ichoria, Isapur, Ismailpur, Itauwa Kedar Nath, Itawa Beni Ram, Itawa Sukhdevpur, Jadaunpur, Jafarpur, Jagannathpur, Jagatpur, Jallapur Ram Dayal, Jallapur Sobha Ram, Janak Jagir, Jatau Patti, Jatawa, Jhingri, Jitaur Ethmali, Jitaur Mustqil, Jogither, Kacholi, Kakgaina (CT), Kalapur, Kalara, Kalari, Kamuan Kalan, Kamuan Khurd, Kamuan Maqrooqa, Kandharpur, Kanthri, Karampur Chaudhary, Karampur Thakuran,]], Kareli, Karonda, Keeratpur, Kesarpur, Keshonpur, Khai Khera, Khajua Jagir, Khajuhai Ethmali, Khajuhai Mustqil, Khajuria Brahmnan, Khajuria Zulfiqar, Khanpur, Khatola Ganpat Rai, Khatola Hulas Kunwer, Khitausa, Kiara Ehtmali, Kiara Mustqil, Kodhampur, Kohni, Kuan Danda Dhimni, Kuan Danda Kurmian, Kumrah, Kundra Mustqil, Kunwerpur Banjaria, Lad Pur, Lahiya, Lakhampur, Lakhaura, Lalpur, Latoori, Laxmipur, Lilauri, Madhav Pur Mafi, Maheshpur Shahimamuddin, Maheshpur Shiv Singh, Maheshpur Thakuran, Mahgawan Urf Unchagaon, Majhawa Gangapur, Majhola Sarv Sukhi, Makrandpur Pitam Rai, Mallahpur, Mallahpur Dunda, Mamrezpur Nawadia, Manda, Manehra, Manpur Ahaiyapur, Manpur Chikitia, Manpuria Delel, Manpuria Janki Prasad, Masit, Mawai, Mehma Patti, Memaur, Meondi Khurd Lalan, Meondi Rani Mewa Kunwer, Mianpur, Milak Imamnager, Milak Kalara, Milakimam Ganj, Mohammadpur Thakuran, Mohammedpur Jatan, Mohanpur Urf Ram Nager, Mohenpur, Mohrania, Mubarkpur, Mudia Hafiz, Mullapur, Mundia Ahmed Nagar, Mundia Chetram, Murar Pur, Murshidabad, Nabi Nagar, Nagaria Kalan, Nagipur, Naryawal, Nathoo Rampura, Naugawan Ghatampur, Naugawan Harsa Patti, Naugawan Jagir, Nawa Nagla, Nawada Brahmnan, Nawadia Harkishan, Nawadia Ilaqa Singhai, Nawadia Jhada, Neodhana, Pachdeora Deoria, Pachdeora Kalan, Padarathpur, Pahar Ganj, Pahladpur, Pahrapur Basawan Nagaria, Paigapur, Palpur Kamalpur, Pandri Halwa, Parataspur, Pardholi, Parewa Kuiyan, Pargawan, Parsonia, Parsu Nagla, Patparaganj, Patti Beharipur, Pipalsana Chaudhari, (CT) Piparia Ram Dayal, Purnapur, Qusampur, Rahpura Girdhri Lal, Rahpura Karim Bux, Raipur, Rajpura Mafi, Rajpuri Nawada, Ramiapur, Rampura Inayetpur Ethmali, Rampura Inayetpur Mustqil, Rampura Mafi, Rasoola Chaudhry, Rasoola Gulam Abbas, Rithora (NP), Rohtapur, Rondhi Mustqil, Roopapur Barehpura, Rukam Pur, Safri, Sagalpur, Sagunia, Sahasia Hasainpur Mustqil, Sahasia Husainpur Ethmali, Sahua, Saidoopur Lashkariganj, Saidpur Chunni Lal, Saidpur Khajuria, Saidpur Kurmian, Saidpur Piareylal, Saiyad Pur Urf Saimudpur, Sakatpur, Sarai Talfi Mustqil, Sari Pur, Sarkara, Sawer Khera, Sendra, Simra Ajooba Begum, Simraboripur, Singhai Kayesthan, Singhai Murawan, Sisaiya, Soodanpur Mustqil, Sunderpur, Surla, Tahtajpur, Taimatpur, Tajua, Tandua, Thiriya Nizamat Khan (NP), Tigra, Tiliya Pur, Tirkunia, Tiwaria, Tulsi Pur, Udaipur Banno Jan, Udaipur Jasrathpur, Uganpur, Umarsia, Urla Jagir, Vaishpur,
History
Bareilly is famous for being connected with the Jat Regiment Centre of Indian Army.
Jat Gotras
- Dhanoye (धनोये) - Dhanoye gotra of Jats originated from a place named Dopaharia in Baheri tahsil in Bareilly district in Uttar Pradesh. They are descendants of Raja Dhrishtaketu (धृष्टकेतु). [1] Dhanoe Jats Gotra is found in Punjab also.
बरेली
विजयेन्द्र कुमार माथुर[2] ने लेख किया है .....बरेली, उ.प्र., (AS, p.611): पुरानी जनश्रुति के अनुसार बरेली को 'बरेल' क्षत्रियों ने बसाया था। प्राचीन काल में बरेली का क्षेत्र पंचाल जनपद का एक भाग था। महाभारत काल में पंचाल की राजधानी 'अहिच्छत्र' थी, जो ज़िला बरेली की तहसील आंवला के निकट स्थित थी। बरेली तथा वर्तमान रुहेलखंड का अधिकांश प्रदेश 18वीं शती में रुहेलों के अधीन था। 1772 ई. में रुहेलों तथा अवध के नवाब के बीच जो युद्ध हुआ, उसमें रुहेलों की पराजय हुई और उनकी सत्ता भी नष्ट हो गई। इस युद्ध से पहले रुहेलों का शासक हाफ़िज रहमत ख़ाँ था जो बड़ा न्यायप्रिय और दयालु था। रहमत ख़ाँ का मक़बरा बरेली में आज भी रुहेलों के अतीत गौरव का स्मारक है। बरेली को 'बाँसबरेली' भी कहते हैं, क्योंकि पहाड़ों की तराई के निकटवर्ती प्रदेश में इसकी स्थिति होने के कारण यहाँ लकड़ी, बाँस आदि का करोबार काफ़ी पुराना है। 'उल्टे बाँस बरेली' की कहावत भी, इस स्थान पर बाँसों की प्रचुर मात्रा होने के कारण बनी है। (दे. बाँसबरेली)
प्राचीन इतिहास
वर्तमान बरेली क्षेत्र प्राचीन काल में पांचाल राज्य का हिस्सा था। महाभारत के अनुसार तत्कालीन राजा द्रुपद तथा द्रोणाचार्य के बीच हुए एक युद्ध में द्रुपद की हार हुयी, और फलस्वरूप पांचाल राज्य का दोनों के बीच विभाजन हुआ। इसके बाद यह क्षेत्र उत्तर पांचाल के अंतर्गत आया, जहाँ के राजा द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा मनोनीत हुये। अश्वत्थामा ने संभवतः हस्तिनापुर के शासकों के अधीनस्थ राज्य पर शासन किया। उत्तर पांचाल की तत्कालीन राजधानी, अहिच्छत्र के अवशेष बरेली जिले की आंवला तहसील में स्थित रामनगर के समीप पाए गए हैं। स्थानीय लोककथाओं के अनुसार गौतम बुद्ध ने एक बार अहिच्छत्र का दौरा किया था। यह भी कहा जाता है कि जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथ को अहिच्छत्र में कैवल्य प्राप्त हुआ था।
छठी शताब्दी ईसा पूर्व में, बरेली अब भी पांचाल क्षेत्र का ही हिस्सा था, जो कि भारत के सोलह महाजनपदों में से एक था।[3] चौथी शताब्दी के मध्य में महापद्म नन्द के शासनकाल के दौरान पांचाल मगध साम्राज्य के अंतर्गत आया, तथा इस क्षेत्र पर नन्द तथा मौर्य राजवंश के राजाओं ने शासन किया।[4] क्षेत्र में मिले सिक्कों से मौर्यकाल के बाद के समय में यहाँ कुछ स्वतंत्र शासकों के अस्तित्व का भी पता चलता है।[5] क्षेत्र का अंतिम स्वतंत्र शासक शायद अच्युत था, जिसे समुद्रगुप्त ने पराजित किया था, जिसके बाद पांचाल को गुप्त साम्राज्य में शामिल कर लिया गया था।[6] छठी शताब्दी के उत्तरार्ध में गुप्त राजवंश के पतन के बाद इस क्षेत्र पर मौखरियों का प्रभुत्व रहा।
सम्राट हर्ष (606-647 ई.) के शासनकाल के समय यह क्षेत्र अहिच्छत्र भुक्ति का हिस्सा था। चीनी तीर्थयात्री ह्वेन त्सांग ने भी लगभग 635 ई. में अहिच्छत्र का दौरा किया था। हर्ष की मृत्यु के बाद इस क्षेत्र में लम्बे समय तक अराजकता और भ्रम की स्थिति रही। आठवीं शताब्दी की दूसरी तिमाही में यह क्षेत्र कन्नौज के राजा यशोवर्मन (725- 752 ई.) के शासनाधीन आया, और फिर उसके बाद कई दशकों तक कन्नौज पर राज करने वाले अयोध राजाओं के अंतर्गत रहा। नौवीं शताब्दी में गुर्जर प्रतिहारों की शक्ति बढ़ने के साथ, बरेली भी उनके अधीन आ गया, और दसवीं शताब्दी के अंत तक उनके शासनाधीन रहा। गुर्जर प्रतिहारों के पतन के बाद क्षेत्र के प्रमुख शहर, अहिच्छत्र का एक समृद्ध सांस्कृतिक केंद्र के रूप में प्रभुत्व समाप्प्त होने लगा। राष्ट्रकूट प्रमुख लखनपाल के शिलालेख से पता चलता है कि इस समय तक क्षेत्र की राजधानी को भी वोदमायुत (वर्तमान बदायूं) में स्थानांतरित कर दिया गया था।
स्थापना तथा मुगल काल: लगभग 1500 ईस्वी में क्षेत्र के स्थानीय शासक राजा जगत सिंह कठेरिया ने जगतपुर नामक ग्राम को बसाया था,[7] जहाँ से वे शासन करते थे - यह क्षेत्र अब भी वर्तमान बरेली नगर में स्थित एक आवासीय क्षेत्र है। 1537 में उनके पुत्रों, बांस देव तथा बरल देव ने जगतपुर के समीप एक दुर्ग का निर्माण करवाया, जिसका नाम उन दोनों के नाम पर Bans Bareli|बांस-बरेली]] पड़ गया। इस दुर्ग के चारों ओर धीरे धीरे एक छोटे से शहर ने आकार लेना शुरू किया। 1569 में बरेली मुगल साम्राज्य के अधीन आया,[8] और अकबर के शासनकाल के दौरान यहाँ मिर्जई मस्जिद तथा मिर्जई बाग़ का निर्माण हुआ। इस समय यह दिल्ली सूबे के अंतर्गत बदायूँ सरकार का हिस्सा था। 1596 में बरेली को स्थानीय परगने का मुख्यालय बनाया गया था।[9] इसके बाद विद्रोही कठेरिया क्षत्रियों को नियंत्रित करने के लिए मुगलों ने बरेली क्षेत्र में वफादार अफगानों की बस्तियों को बसाना शुरू किया।
शाहजहां के शासनकाल के दौरान बरेली के तत्कालीन प्रशासक, राजा मकरंद राय खत्री ने 1657 में पुराने दुर्ग के पश्चिम में लगभग दो किलोमीटर की दूरी पर एक नए शहर की स्थापना की।[10] इस शहर में उन्होंने एक नए किले का निर्माण करवाया, और साथ ही शाहदाना के मकबरे, और शहर के उत्तर में जामा मस्जिद का भी निर्माण करवाया।[11] मकरंदपुर, आलमगिरिगंज, मलूकपुर, कुंवरपुर तथा बिहारीपुर क्षेत्रों की स्थापना का श्रेय भी उन्हें, या उनके भाइयों को दिया जाता है। 1658 में बरेली को बदायूँ प्रांत की राजधानी बनाया गया। औरंगजेब के शासनकाल के दौरान और उसकी मृत्यु के बाद भी क्षेत्र में अफगान बस्तियों को प्रोत्साहित किया जाता रहा। इन अफ़गानों को रुहेला अफ़गानों के नाम से जाना जाता था, और इस कारण क्षेत्र को रुहेलखण्ड नाम मिला।
बांस बरेली
विजयेन्द्र कुमार माथुर[12] ने लेख किया है .....बांस बरेली (AS, p.617): उत्तर प्रदेश के बरेली का एक विशेषार्थक नाम है, जो यहाँ के तराई के जंगलों में बाँस के वृक्षों के बहुतायत से होने के कारण हुआ है। यह संभव है कि इस नगर को उत्तर प्रदेश के अन्य नगर रायबरेली (संक्षिप्त रूप बरेली) से भिन्न करने के लिए ही 'बाँस बरेली' कहा जाता है। (दे. बरेली)
बरेली परिचय
बरेली उत्तरी भारत में मध्य उत्तर प्रदेश राज्य में रामगंगा नदी तट पर स्थित है। यह नगर रुहेलों के अतीत गौरव का स्मारक है। बरेली को 'बाँसबरेली' भी कहा जाता है, क्योंकि यहाँ लकड़ी, बाँस आदि का कारोबार काफ़ी लम्बे समय से हो रहा है। एक कहावत 'उल्टे बाँस बरेली' भी इस स्थान पर बाँसों की प्रचुरता को सिद्ध करती है। लकड़ी के विभिन्न प्रकार के सामान और फर्नीचर आदि के लिए भी बरेली प्रसिद्ध है। इतिहास
1537 में स्थापित इस शहर का निर्माण मुख्यत: मुग़ल प्रशासक 'मकरंद राय' ने करवाया था। 1774 में अवध के शासक ने अंग्रेज़ों की मदद से इस क्षेत्र को जीत लिया और 1801 में बरेली की ब्रिटिश क्षेत्रों में शामिल कर लिया गया। बरेली मुग़ल सम्राटों के समय में एक प्रसिद्ध फ़ौजी नगर हुआ करता था। अब यहाँ पर एक फ़ौजी छावनी है। यह 1857 में ब्रिटिश शासन के ख़िलाफ़ हुए भारतीय विद्रोह का प्रमुख केंद्र भी था।
बरेली का जाट म्यूजियम
बरेली के जाट म्यूजियम में रखी एक-एक धरोहर गौरवमयी इतिहास समेटे है, जिन्हें देखकर सिर गर्व से तन जाता है और सीना चौड़ा। यहां रेजीमेंट की स्थापना से लेकर अब तक की अनेक बेशकीमती धरोहर सहेज कर रखी गई हैं, जिनमें दुश्मनों के छक्के छुड़ा कर छीनी चीजें भी शामिल हैं। जापानियों से छीनी तोप, बीएमडब्ल्यू मशीन गन, तलवारें और राइफलें भी यहां जाट वीरों का गौरव बढ़ा रही हैं। तो पाकिस्तानी बंदूके शौर्य गाथा बयान कर रही हैं। दुश्मनों से छीने गए झंडे भी यहां पर सुरक्षित हैं। १८०३ से लेकर के १९५५ के बीच बदले गए रेजिमेंटल बैज और समय के साथ बदली गई यूनिफार्म भी अपने इतिहास से लोगों को जोड़ती है। साथ ही अशोक और महावीर चक्र के साथ तमाम मेडल रेजीमेंट के जवानों की शौर्य गाथाओं के गवाही देते हैं।
कैस्टर की पलटन से जाट रेजीमेंट तक: जाट रेजीमेंट का इतिहास १७८५ से आरंभ होता है। हैनरी डी कोस्ट्रो ने गोदामों की सुरक्षा के लिए इसका गठन किया तब इसे कैस्टर की पलटन के नाम से जाना गया। १८५९ में इसे नियमित पैदल सेना में देकर अलीपुर रेजीमेंट का नाम दिया गया। १८६१ में इसका नाम बदल कर २२ रेजीमेंट बंगाल नेटिव इन्फेंट्री नाम दिया गया। इसी वर्ष इसका नाम बदल कर २२ रेजीमेंट बंगाल नेटिव इन्फेंट्री किया गया। १८८५ में पूरी भारतीय सेना से नेटिव शब्द हटा दिया गया। १९०२ में इस रेजीमेंट को १७ रायल बंगाल रेजीमेंट के साथ मुसलमान रेजीमेंट में बदल दिया गया और इसे १८ मुसलमान राजपूत पलटन नाम दिया गया १९२२ में भारतीय सेना का पुनर्गठन किया गया इसमें इसको ९वीं जाट रेजीमेंट में शामिल किया गया और चौथी बटालियन ९वीं जाट रेजीमेंट नाम दिया गया। २४ अगस्त १९२३ में सेना मुख्यालय के आदेश पर इसे भंग कर दिया गया और १८वीं इन्फेंट्री बटालियन के इतिहास को बरकरार रखने के लिए १०वीं ट्रेनिंग बटालियन ९ जाट रेजीमेंट में सम्मिलित कर दिया गया। दूसरे महायुद्ध के दौरान इसका नाम फिर बदला गया और नाम दिया गया जाट रेजीमेंट सेंटर।
जंग मराठों से लेकर कारगिल तक: ईस्ट इंडिया कंपनी के अधीन और आजाद भारत में इस रेजीमेंट की तरफ से कई लड़ाइयां लड़ीं गईं जिसमें जाटों ने वीरता के नए मुकाम हासिल किए। १८०३ में इसके जवानों ने मराठा और पिंडारियों से लोहा लिया तो १८२३ में बर्मा की फौज से आसाम में टक्कर ली। १८३९ में अंग्रेजों ने इस बटालियन के जवानों को काबुल विजय के लिए भेजा। जहां इन्होंने कुछ घंटों की लड़ाई के बाद ही गजनी के किले पर कब्जा कर लिया। इस फतह के बाद लेफ्टिनेंट स्टाकर, कमाडिंग अफसर और मेजर टैंकाक को आर्डर आफ दुर्रानी अंबायर पदक दिया गया और पलटन के सभी जवानों को ब्रिटिश बार मेटल मिला। १८४५ में सिखों के खिलाफ फिरोजशाह की लड़ाई में हिस्सा लिया। चीन से १८५८ और १९०० में युद्ध शामिल है। रेजीमेंट के जवान ने प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान बगदाद, फ्रांस, बर्मा, मलाया में दुश्मन सेना के छक्के छुड़ाए। आजादी के बाद जाट जवानों ने पाकिस्तान और चीन की फौज से लोहा लिया और कारगिल में भी दुश्मनों के दांत खट्टे किए।
विक्टोरिया क्रास से अशोक चक्र तक कब्जा: जाट रेजीमेंट के जवानों ने अपनी वीरता के बल पर सैकड़ों पदक अपने नाम किए हैं। जिसमें विक्टोरिया क्रास और अशोक चक्र से लेकर सेना पदक तक शामिल हैं। रेजीमेंट को एक विक्टोरिया पदक, २ अशोक चक्र, 8 महावीर चक्र, ३९ वीर चक्र, १२ कीर्ति चक्र, ४२ शौर्य चक्र और २४७ सेना पदक हासिल हैं। इसके साथ ही ९७ मेंशन इन डिस्पैचेज मेडल भी हासिल हैं।
रेजीमेंट की शान:
१. अब्दुल हफीज (विक्टोरिया क्रास) २. कर्नल जोजन थामस (अशोक चक्र) ३. मेजर दिनेश रघुरमन (अशोक चक्र) ४. कैप्टन अनुज नैय्यर (महावीर चक्र) ५. लेफ्टिनेंट कर्नल डीई हैडे (महावीर चक्र) ६. ब्रिगेडियर जोगिंदर सिंह बख्शी (महावीर चक्र) ७. मेजर आशाराम त्यागी (महावीर चक्र) ८. कैप्टन कपिल थापा (महावीर चक्र) ९. मेजर अजीत सिंह (महावीर चक्र) १०. नायक शीशपाल (महावीर चक्र) ११. हवलदार फतेह सिंह (महावीर चक्र)
शौर्य गाथाओं के लिए छोटा पड़ा म्यूजियम: धरोहरों के लिए अब जाट म्यूजियम छोटा पड़ने लगा है। इसे संजोने के लिए एक और म्यूजियम बनाया जा रहा है। तैयार होने के बाद इस म्यूजियम में आजादी के बाद की स्मृतियों और बहादुरों को याद के के रूप में उपलब्धियां, मेडल रखा जाएगा तो पुराने म्यूजियम में आजादी से पहले की स्मृतियों से जुड़ी वस्तुएं अपनी गौरवगाथा कहेंगी।[13]
23 जाट बटालियन का गठन

इंडियन आर्मी की किताब में शुक्रवार 1.7.2016 को एक और सुनहरा पन्ना जुड़ गया। बरेली जाट रेजिमेंट ने शुक्रवार को अपनी एक और बटालियन का गठन किया गया। इस नई जाट बटालियन का नाम 23 जाट बटालियन रखा है। इसमें कुल साढ़े आठ सौ जवान और अफसर हैं। सभी यूनिटों से प्रतिनिधित्व देकर इस पलटन को खड़ा किया गया है। अब तक जाट रेजीमेंट की 22 बटालियन थीं। 22 वीं बटालियन वर्ष 2012 में बनी थी। उसके चार साल बाद एक और पलटन खड़ी करके जाट ने अपने विस्तार का नया इतिहास लिखा है। अभी जाट रेजीमेंट की 19 नियमित, चार रायफल और दो टीए बटालियन थीं। नई 23 जाट भी नियमित बटालियन के रूप में बनाई गई है।
गौरवशाली इतिहास है रेजिमेंट का: 23 वीं बटालियन के शुभारंभ पर जाट सेंटर की ओर से बड़ा समारोह किया गया। इसमें जाट के कर्नल ऑफ द रेजीमेंट मुख्य अतिथि रहे। इनके अलावा सेना के और भी कई बड़े अफसरों ने समारोह में भाग लिया। पिछले साल जाट रेजीमेंट ने अपनी स्थापना के 220 साल पूरे किए थे। इस मौके पर इसकी 23 वीं बटालियन खड़ी करने का ऐलान किया गया था। उसके बाद से ही बटालियन को विस्तार देने का काम शुरू हो गया। बता दें कि जाट देश की बहुत पुरानी रेजीमेंट है। इसका गौरवशाली इतिहास है। जाट वीरों ने रेजीमेंट की स्थापना के बाद से अब तक अपने अदम्य साहस और शौर्यता से गौरवशाली इतिहास लिखा है। कई लड़ाइयों में दुश्मनों के दांत खट्टे किए हैं। सेंटर में स्थापित जाट म्यूजियम इसका गवाह है, जिसमें कई लड़ाइयों से संबंधित रिकार्ड और दुश्मनों देशों से जंग में छीने गए अस्त्र-शस्त्र भी मौजूद हैं। शहीद जाट वीरों के चित्र और उनकी गौरवगाथा भी म्यूजियम में उपलब्ध हैं।
Notable persons
- Raja Ratan Sing, of Bareilly - See Sir H. M. Elliot Edited by John Dowson, 1867 The history of India : as told by its own historians. Volume II/IV. Jamiu-l Hikayat of Muhammad Ufi,p.157
- Ib tomar -mayar
External links
References
- ↑ Dr Mahendra Singh Arya, Dharmpal Singh Dudee, Kishan Singh Faujdar & Vijendra Singh Narwar: Ādhunik Jat Itihasa (The modern history of Jats), Agra 1998 p.258
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.611
- ↑ Raychaudhuri, H.C. (1972). Political History of Ancient India, Calcutta: University of Calcutta, p.85
- ↑ Raychaudhuri, H.C. (1972). Political History of Ancient India, Calcutta: University of Calcutta, p.206
- ↑ Lahiri, B. (1974). Indigenous States of Northern India (Circa 200 B.C. to 320 A.D.) , Calcutta: University of Calcutta, pp.170-88; Bhandare, S. (2006). Numismatics and History: The Maurya-Gupta Interlude in the Gangetic Plain in P. Olivelle ed. Between the Empires: Society in India 300 BCE to 400 CE, New York: Oxford University Press, ISBN 0-19-568935-6, pp.76,88
- ↑ Raychaudhuri, H.C. (1972). Political History of Ancient India, Calcutta: University of Calcutta, p.473
- ↑ वसीम, अख्तर (4 जुलाई 2019). "मुहल्लानामा : पुराना शहर में जगतपुर से पड़ी बरेली की नींव". बरेली: दैनिक जागरण. मूल से 30 जुलाई 2019 को पुरालेखित
- ↑ वसीम, अख्तर (4 जुलाई 2019). "मुहल्लानामा : पुराना शहर में जगतपुर से पड़ी बरेली की नींव". बरेली: दैनिक जागरण. मूल से 30 जुलाई 2019 को पुरालेखित
- ↑ लाल 1987, पृ.6
- ↑ लाल 1987, पृ - 6
- ↑ लाल 1987, पृ.6
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.617
- ↑ Jat Museum Bareilly by RS Kankara