Arjun Ram Baswana

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Arjun Ram Baswana3.jpg

Arjun Ram Baswana (1976-1999) is a Martyr of Kargil War from Rajasthan. He belonged to village Budhi in Nagaur tehsil of Nagaur district in Rajasthan.

He was in Unit-04 Jat Regiment of Indian Army. He along with Captain Saurabh Kalia of the Indian Army laid down his life during the Kargil War while being held as a prisoner of war by the Pakistani security forces in Kaksar sector.[1] He was one of five soldiers and Captain Saurabh Kalia whose patrolling team was captured alive and kept in captivity where they were Investigated.[2][3]

Martyr of Kargil War

On May 15, 1999 Saurabh Kalia along with five soldiers - Sepoys Arjun Ram, Banwari Lal Bagaria, Bhikha Ram Moondh, Moola Ram Bidiyasar and Naresh Singh Sinsinwar[4] of the 4 Jat Regiment had gone for a routine patrol of the Bajrang Post in the Kaksar sector in the rugged, treeless Ladakh mountains. After a continuous cross fire with Pakistan armed forces from across the LoC, he and his troops ran out of ammunition. They were finally encircled by a platoon of Pakistan rangers and captured alive before any Indian reinforcement could reach for their help. No trace of this entire patrol was left meanwhile Radio Skardu of Pakistan announced that Captain Saurabh Kalia had been captured by the Pakistani troops.[5][6] It was after this that India discovered hundreds of guerrillas had established fortified positions on the peaks of the hills deep inside the Indian side of the Line of control, with sophisticated equipment and supply lines back to Pakistan-controlled Kashmir.[7]

Captain Kalia and his men were in captivity for over twenty-two (May 15, 1999 – June 7, 1999) days and subjected to torture as evident from their bodies handed over by Pakistan Army on June 9, 1999.[8] The postmortem revealed that the Pakistan army had tortured their prisoners by burning their bodies with cigarettes, piercing ear-drums with hot rods, puncturing eyes before removing them, breaking most of the teeth and bones, fractures of the skull, cutting the lips, chipping of nose, chopping off limbs and private organs of these soldiers besides inflicting all sorts of physical and mental tortures and finally shooting them dead, as evidenced by the bullet wound to the temple. The postmortem report also confirmed that injuries were inflicted ante-mortem (before death)[9][10][11][12][13]

His family

  • Father - Chaudhari Chokha Ram Baswana
  • Mother - Bhanwari Dewi

जीवन परिचय

अमर शहीद अर्जुन राम बसवाणा

शहीद अर्जुनराम का जन्म नागौर जिले के बूढ़ी गांव मेँ जाट चौधरी चोखाराम बसवाणा के यहां 5 अक्टूबर 1976 को श्रीमति भंवरी देवी की कोख से हुआ । इनके एकमात्र भाई पपूराम है ।

शहीद अर्जुन बसवाणा कश्मीर के कारगिल क्षेत्र मेँ कैप्टन सौरभ कालिया व अपने चार साथियोँ के साथ पाकिस्तानी घुसपेठियोँ को खदेड़ने गये थे मगर दुर्भाग्यवश पाकिस्तानी सैनिको के हाथोँ पकड़े गये । लगभग पँद्रह दिन बाद इन सभी के क्षत-विक्षत शवोँ को पाकिस्तान सरकार ने भारत को सौँपे ।

शिक्षा व खेल गतिविधियां

इन्होनेँ अपनी प्राथमिक शिक्षा बूढ़ी गांव मेँ, उच्च प्राथमिक शिक्षा सिणोद, सीनियर सैकण्डरी एवं प्रथम वर्ष कॉलेज की शिक्षा नागौर मेँ प्राप्त की । शिक्षा प्राप्त करने के साथ ये कब्बडी एवं हॉकी के अच्छे खिलाड़ी रहे । इन्होँने राज्य स्तर पर अपने खेल का प्रर्दशन कर कई पुरूष्कार भी जीतने का गौरव प्राप्त किया । शरीर से हष्ट पुष्ट होने के कारण ये अच्छे पहलवान भी रहे । इन्होनेँ कई बार खरनाल के वीर तेजा व बसवाणी रामदेव मेलोँ मेँ कुश्ती मेँ भाग लेते हुए पुरुष्कार व सम्मान प्राप्त किये ।

भारतीय सेना मेँ चयन

अर्जुनराम आगे की शिक्षा ग्रहण करने के बजाय मातृभूमि की सेवा करने के लिए भारतीय थल सेना मेँ चार जाट रेजीमेँट मेँ 20 अक्टूबर 1996 मेँ भर्ती हुए । सैनिक जीवन मेँ बरेली के बाद 1998 मेँ कश्मीर के कारगिल क्षेत्र मेँ सीमा सुरक्षा मेँ लगे रहे । सेना मेँ रहते इनके द्वारा खेलकूद मेँ कब्बडी,हॉकी मेँ भाग लेकर कई बार सम्मान प्राप्त किये ।

देशहित में बलिदान

पाक क्रूरता के शिकार भारतीय सैनिक

जम्मू कश्मीर के कारगिल क्षेत्र में सीमा सुरक्षा हेतु तैनात किया गया । उस समय मई 1999 में लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया के नेतृत्व में अपने साथियों के साथ गस्त लगा रहे थे । पाक घुसपैठियों ने उन के गस्ती दल पर हमला कर दिया । आक्रमण का जमकर मुकाबला किया परन्तु 14 मई 1999 को 6 भारतीय सैनिकों को गुप्त सूचना प्राप्त करने के लिए पाक गुप्तचर विभाग ने पकड़ लिया । इनमें राजस्थान के अर्जुन बसवाणा, मूलाराम सेंवर, भीखाराम मूंढ भी थे । पाकिस्तान ने इन सैनिकों के साथ अमानवीय व्यवहार किया । इनकी आँख, कान, नाक, गुप्तांग आदि बर्बरतापूर्वक काट दिए गए । एक-एक सप्ताह तक कठोर एवं पाशविक यातनाएं देकर नृशंसतापूर्वक मार डाला । शहीद अर्जुनराम भी इसका भुक्त भोगी थे । अंतर्राष्ट्रीय दबाव के मद्देनजर 9 जून 1999 को इन सैनिकों के क्षत-विक्षत शव भारत को सौंपे । अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस काण्ड की भर्त्सना की गयी ।

शहादत के पश्चात

इस बीर शहीद का शव जब 11 जून 1999 को इनके पैतृक गांव बूढ़ी लाया गया तो सारा गांव और आसपास के क्षेत्रोँ से आये हजारोँ लोगोँ ने अंतिम दर्शन किये तथा देशभक्त के शव को देखकर भाव विहल हो उठे । परिवार वालोँ का तो रो रोकर बुरा हाल हो गया ।

समस्त ग्रामवासियोँ ने शहीद का अँतिम संस्कार शमशान मेँ करने के बजाय गांव के चौक मेँ करने का फैसला किया जहां आज शहीद का स्मारक बना हुआ है ।

जब इनका अंतीम संस्कार किया गया तो पूरे वातावरण मेँ "जब तक सूरज चांद रहेगा, अर्जुन तेरा नाम रहेगा " जैसे नारे गुंजायमान हो उठे। वहां शहीद के अमर होने व भारत माता की जय जयकार गूँज उठी । इस तरह भारत माँ के चरणोँ मेँ अपना सर्वस्व लुटा देने वाले जाबांजो मेँ एक और नाम अमर हो गया ।

शहीद अर्जुनराम ने पाक के अत्याचारोँ के बाद भी मातृभूमि के लिए अपने प्राण उत्सर्ग कर राजस्थान के उन शूरवीरोँ की याद ताजा कर दि जो सदियोँ से मातृभूमि की रक्षा मेँ अपने प्राणोँ के जोहर दिखला रहे । शहीद अर्जुनराम ने भी यह वीरोचित इतिहास रचकर देश व समाज का नाम गर्व से ऊँचा कर दिया । ऐसे वीर सपूत पर सभी को गर्व है ।

सिपाही अर्जुनराम बसवाना

भारत-पाक के बीच हुए कारगिल युद्ध में सैकड़ों भारतीय जवानों ने राष्ट्र की एकता और अखंडता के लिए प्राणों का बलिदान देकर भारतीय सेना की सर्वोच्च बलिदान की परंपरा को कायम रखा। ऐसे अमर जवानों में से एक थे शहीद सिपाही अर्जुनराम बसवाना।


सिपाही अर्जुनराम बसवाना का जन्म राजस्थान के नागौर जिले की नागौर तहसील के बूढ़ी गांव में चौधरी चौखाराम जी बसवाना और श्रीमती भंवरी देवी के परिवार में 5 अक्टूबर 1976 को हुआ था। 20 अक्टूबर 1996 को वे भारतीय सेना की 4 जाट रेजिमेंट में सिपाही के रूप में शामिल हुए।

सिपाही अर्जुनराम कैप्टन सौरभ कालिया के उस गश्ती दल में शामिल थे, जिन्हे सब से पहले इस घुसपैठ का पता चला व उन्होने अपने वरिष्ठ अधिकारियों को इस घुसपैठ के बारे में सूचित किया।

कैप्टन कालिया अपने साथी सैनिकों के साथ 15 मई 1999 को द्रास सेक्टर की बजरंग पोस्ट पर गश्त पर थे। जहाँ पहले से सुसज्जित बंकरों में घात लगाये बैठे घुसपैठियों ने घात लगा कर हमला किया, भीषण मुठभेड़ हुई। जिस में गोलियां खत्म होने पर दुर्भाग्य से इन सभी सैनिकों को पाकिस्तानी सेना ने जिंदा पकड़ लिया।

इन युद्धबंदी भारतीय सैनिकों को पाकिस्तान सेना ने 22 दिनों (15 मई 1999 से 6 जून 1999) तक अत्यंत ही बर्बर, पाशविक व अभूतपूर्व अमानवीय यातनांए दी। कैप्टन सौरभ कालिया व उन के साथ पाँच सैनिकों

(1) शहीद सिपाही अर्जुन राम बसवाना (जाट) गाँव - बूढ़ी (नया नाम अर्जुनपुरा) तहसील व जिला - नागौर (राजस्थान)

(2) शहीद सिपाही भीकाराम मूंड (जाट) गाँव - पतासर तहसील - पचपदरा जिला - बाड़मेर (राजस्थान)

(3) शहीद सिपाही बनवारी लाल बगड़िया (जाट) गाँव - सिगडोला बड़ा तहसील - लक्ष्मणगढ़ जिला सीकर (राजस्थान)

(4) शहीद सिपाही मूलाराम बीडियासर (जाट) गाँव - कठौती तहसील - जायल जिला - नागौर (राजस्थान)

(5) शहीद सिपाही नरेश सिंह सिनसिनवार (जाट) गाँव - छोटी बल्लभ तहसील - इगलास जिला - अलीगढ. (उत्तर प्रदेश)

इन युद्ध बंदी सैनिकों को सिगरेटों से दागा गया, नाक, कान व होंठ काटे गऐ, अंगुलियां काटी गई, लगभग सारे दाँत व हड्डियां तोड़ी गईं, कानों में लोहे की गरम सलाखें डाली गई, आँखे फोड़ने बाद शरीर से निकाली गई, खोपड़ियां बंदूक की बट से तोड़ी गई।

इतनी यातनायें देने के बाद भी पाशविकता और बर्बरता की सारी हदें पार करते हुऐ इन बेबस निरीह सैनिकों के गुप्तांग तक भी काटे गये। जब भारत ने अपने इन सैनिकों की रिहाई के लिये प्रयास शुरू किये तब इन सैनिकों की कनपटी पर गोली मार कर हत्या कर दी गई। 9 जून 1999 को इन सैनिकों के क्षत-विक्षत शव भारत को सुपुर्द किए गए।

इन की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ की ये सब इन सैनिकों के साथ तब हुआ जब वो जिंदा थे।

"पाक क्रूरता के शिकार" पुस्तक में अर्जुनराम बसवाना पर लेख

आभार

शहीद और उनके परिवार की तस्वीरें तथा जानकारियाँ श्री रमेश दधीच द्वारा ईमेल (Ramesh Dadhich<dadhichramesh77@gmail.com>) से उपलब्ध कराई गई हैं.

Photo Gallery

External links

See also

सन्दर्भ

  1. "Pakistan `tortured Indians to death`". The Independent. 12 June 1999.
  2. "Pakistan `tortured Indians to death`". The Independent. 12 June 1999.
  3. Singh, Mohinder. Punjab 2000: Political and Socio-economic Developments. Anamika Pub & Distributors, 2001. ISBN 9788186565902.
  4. "Breach of Geneva Convention by Pak armed forces". Foreign Affairs Record 1999. Ministry of External Affairs, Government of India.
  5. "Saurabh Kalia’s parents waging a lone battle to highlight war crimes". The Hindu.
  6. "War in Kargil". Frontline, The Hindu. June 5–18, 1999
  7. "Pakistan `tortured Indians to death`". The Independent. 12 June 1999
  8. "Saurabh Kalia’s parents waging a lone battle to highlight war crimes". The Hindu. Jul 6, 2009
  9. "Saurabh Kalia’s parents waging a lone battle to highlight war crimes". The Hindu. Jul 6, 2009
  10. "History in golden letters?". tehelka.com. 12 February 2005.
  11. "Is this how we should remember Kargil?". Sify News.
  12. Sood, Ravinder (March 21, 2008). "Seven years, Captain Kalia’s family still waiting for justice".
  13. "Pakistan `tortured Indians to death`". The Independent. 12 June 1999.

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