Ishtanagara
Author:Laxman Burdak, IFS (R) |
Ishtanagara (इश्तनगर) is an ancient city in Pakistan.
Variants
- Ashtanagara (अष्टनगर) = Ishtanagara (इश्तनगर) (AS, p.51)
- Ishtanagara (इश्तनगर) = Ashtanagara (अष्टनगर) (पाकिस्तान) (AS, p.83)
- Ashtanagara (अश्तनगर) (AS, p.573)
- Ishtanagara इश्तनगर]] (AS, p.573)
- Asthinagara (अस्थिनगर) (AS, p.573)
Origin
History
इश्तनगर
विजयेन्द्र कुमार माथुर[1] ने लेख किया है ... इश्तनगर (AS, p.83) पाकिस्तान में स्थित था। इश्तनगर को अष्टनगर के नाम से भी जाना जाता है। प्राचीन पुष्कलावती के स्थान पर बसा हुआ वर्तमान क़स्बा है।
पुष्कलावती
विजयेन्द्र कुमार माथुर[2] ने लेख किया है ...पुष्कलावती (AS, p.572): भारत के सीमांत प्रदेश पर स्थित अति प्राचीन नगरी जिसका अभिज्ञान जिला पेशावर (पाकिस्तान) के चारसड्डा नामक स्थान (पेशावर से 17 मील उत्तर-पूर्व) से किया गया है. कुमारस्वामी के अनुसार यह नगरी स्वात (प्राचीन सुवास्तु) और काबुल (प्राचीन कुभा) नदियों के संगम पर बसी हुई थी जहां वर्तमान मीर जियारत या बालाहिसार है (इंडियन एंड इंडोनेशियन आर्ट,पृ.55). वाल्मीकि रामायण में पुष्कलावत या पुष्कलावती का भरत के पुत्र पुष्कल के नाम पर बसाया जाना उल्लिखित है--'तक्षं तक्षशिलायां तु पुष्कलं पुष्कलावते गंधर्वदेशे रुचिरे गांधार-विषये ये च स:' बाल्मीकि उत्तरकांड 101,11. रामायण काल में गंधार-विषय के पश्चिमी भाग की राजधानी पुष्कलावती में थी. सिंधु नदी के पश्चिम में पुष्कलावती और पूर्व में तक्षशिला भरत ने अपने पुत्र पुष्कल और तक्ष के नाम पर बसाई थीं. इस काल में यहां गंधर्वों का राज्य था जिनके आक्रमण से तंग आकर भरत के मामा केकय-नरेश युधाजित् ने उनके विरुद्ध श्री रामचंद्रजी से सहायता मांगी थी. इसी प्रार्थना के फलस्वरूप उन्होंने भरत को युधाजित् की ओर से गंधर्वों से लड़ने के लिए भेजा था. गंधर्वों को हटाकर भरत ने पुष्कलावती और तक्षशिला - ये दो नगर इस प्रदेश में बसाए थे.
कालिदास ने रघुवंश में भी पुष्कल के नाम पर ही पुष्कलावती के बसाए जाने का उल्लेख किया है-- 'स तक्षपुष्कलौ पुत्रौ राजधान्योस्तदाख्ययोः । अभिषिच्याभिषेकार्हौ रामान्तिकं अगात्पुनः' (रघुवंश 15,89)
प्रकृत या पाली बौद्ध ग्रंथों में पुष्कलावती को पुक्कलाओति कहा गया है-- ग्रीक लेखक एरियन ने इसे प्युकेलाटोइस (Peucelatois) लिखा है. बौद्धकाल में गांधार-मूर्तिकला की अनेक सुंदर कृतियां पुष्कलावती में बनी थीं और यह स्थान ग्रीक-भारतीय सांस्कृतिक आदान-प्रदान का केंद्र था. गुप्तकाल में इसी स्थान पर रहते हुए वसुमित्र ने 'अभिधर्म प्रकरण' रचा था. नगर के पूर्व की ओर अशोक का बनवाया हुआ धर्मराजिक स्तूप था. पास ही इन्हीं का निर्मित पत्थर और लकड़ी का बना 60 हाथ ऊंचा दूसरा था. बौद्ध किंवदंती के अनुसार यहां से 6 कोस पर वह स्तूप था जहां भगवान तथागत ने यक्षिणी हारीति का दमन किया था. पश्चिमी नगर-द्वार के बाहर महेश्वर शिव (पशुपति) का एक विशाल मंदिर था.
प्रसिद्ध चीनी यात्री युवानच्वांग ने पुष्कलावती के बौद्ध कालीन गौरव का वर्णन किया है जिसकी पुष्टि यहां के [पृ.573]: तक खंडहरों से प्राप्त अवशेषों से होती है. पुष्कलावती नगरी के स्थान पर वर्तमान अश्तनगर या इश्तनगर कस्बा बसा हुआ है. अश्तनगर का शुद्ध रूप अस्थिनगर है. यहां के स्तूप में बुद्ध की अस्थि या भस्म धातुगर्भ के भीतर सुरक्षित थी.