Bhadrachalam

From Jatland Wiki
Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Telangana State

Bhadrachalam (भद्राचलम) is a town in Bhadradri Kothagudem district of the Indian state of Telangana. It is an important Hindu pilgrimage town with an existence of the Bhadrachalam Temple of Lord Rama, situated on the banks of Godavari river.

Location

It is located 312 km from east of state capital, Hyderabad,115 km from Khammam, 180 km from Warangal. It is very close lower tip of Chhattisgarh.

Variants

  • Bhadrachalam भद्राचलम , जिला भद्राद्री कोठगुडेम, तेलंगाना, AS, p.657)

History

The town has a documented history of Lord Sri Rama temple constructed circa 17th century CE by Kancherla Gopanna (nearly 370 years ago).[1] Kancherla Gopanna (1620 - 1680), popularly known as Bhadradri Ramadasu or Bhadrachala Ramadasu, was a 17th century Indian devotee of Rama and a composer of Carnatic music. His devotional lyrics to Rama are famous in South Indian classical music as Ramadaasu Keertanalu, and have made Bhadrachalam a place of religious importance for Hindus.


This section is from the book History And Legend In Hyderabad, Department of Information and Public Relations, 1953, pp.123-124


Bhadrachalam: Bhadrachalam is a small village on the northern bank of the Godavari, Bhadra was the name of a rishi who was believed to have met Sri Rama at this place, and the village was named Bhadrachalam after the rishi. According to a local legend Sri Rama was separated from his wife at this place, and it is believed that the temple at Bhadrahalam was built on the very spot where Sri Rama had built a hut for himself. The site is the Achala Hill on top of which stands the temple. It is also believed that he crossed the Godavari from somewhere at the foot of the hill on his celebrated expedition to Ceylon.

The temple today is more famous for yet another reason. It was built at a cost of six lakhs of rupees by Ram Dass or Gopanna, to call him by the name he bore before his spiritual enlightenment, who was the nephew of Akkanna, the Prime Minister of King Abul Hasan Tana Shah (1654-1687), the last of the Qutb Shahi kings of Golconda. The story runs that while he was the Tahsildar of the tahsil which included Bhadrachalam when, Gopanna misappropriated six lakhs of rupees of the revenue and spent them in building this temple. When the matter came to the king's ears he commanded that

[p.124]: Ram Dass should be arrested and brought on foot to Golconda. Accordingly he was marched to Golconda and was incarcerated in a dungeon in the fort of Golconda, which is even now pointed out to visitors as Ram Dass’s prison. It is said that Ram Dass grew tired of life in prison and wanted to put an end to himself. Sri Rama appeared to him in a dream and gave him a clean receipt for the money he had spent in building the temple. Tana Shah himself then visited Ram Dass, confirmed the receipt of the money paid to him by some unknown person and set Ram Dass at liberty.

Every year on Sri Rama Navami, the birth anniversary of Rama, thousands of pilgrims from all parts of India congregate and attend the principal function of the day, namely Kalyanam (marriage of Rama and Sita). On this day small idols of Rama and Sita are bathed in sacred waters of the Godavari and decked with resplendent jewellery. They are placed in a small gaudily decorated silver palanquin and carried in procession amidst scenes of devotion and great enthusiasm to a huge mandapam, close by, capable of accommodating thousands of pilgrims. Amidst the assembled congregation and in the presence of high officials of the Hyderabad State, the marriage ceremony is celebrated with due rites and great eclat to the chanting of Vedic hymns and the applause of the spectators. Then the pilgrims fulfil their ' Vows ’ for favours received or solicited. This concludes the principal attraction of the Jatra which lasts for nearly a fortnight.

There is yet another important day, the Mukkoti Ekadasi, when pilgrims from all parts of India congregate in thousands to see the gods taken out in procession early in the morning. This festival lasts for about 10 days.

Tana Shah, the last king of Golconda, had endowed the temple with a substantial annual grant. The temple is now also getting a grant from Government.

Bhadrachalam can be reached by road as well as rail from Warangal. From the Bhadrachalam Road station, which is the terminus of the branch line connecting the Singareni Collieries with the main broad guage system, regular Road Transport Department buses run upto Burgampad, which is the last town in the State on the Madras border. The town is a short distance from the Godavari, which forms the boundary between Hyderabad and Andhra Pradesh, and across is Bhadrachalam. The road from Warangal to Bhadrachalam is excellent.

भद्राचलम

विजयेन्द्र कुमार माथुर[2] ने लेख किया है ...भद्राचलम (AS, p.657), जिला भद्राद्री कोथागुडेम, तेलंगाना, में गोदावरी नदी के उत्तरी तट पर स्थित प्राचीन स्थान है. कहा जाता है कि इस स्थान पर भद्र नामक ऋषि ने श्री रामचंद्रजी से वनवास काल में भेंट की थी. किंवदंती में यह भी प्रसिद्ध है कि श्री राम और लक्ष्मण इस स्थान के निकट अचलगिरि पर सीता हरण के पश्चात कुछ दिन कुटी बनाकर रहे थे और फिर दक्षिण की ओर जाते समय उन्होंने यहीं गोदावरी नदी को पार किया था. अचलगिरि पर श्रीराम का एक मंदिर है जिसे रामदास अथवा गोपन्ना ने बनवाया था. यह गोलकुंडा के अंतिम सुल्तान अबुलहसन तानाशाह (1654-1687 ई.) के प्रधानमंत्री अकन्ना का भ्रातृज था. कहा जाता है कि गोपन्ना ने सरकारी मालगुजारी में से ₹6 लाख निकालकर इस मंदिर का निर्माण करवाया था जिसके कारण उसे गोलकुंडा के सुल्तान ने कारागृह में डाल दिया था (इस स्थान को आज भी रामदास का कारागार कहते हैं). किंतु कथा के अनुसार भगवान राम ने अपने भक्तों पर जरा भी आंच न आने दी और सारा रुपया रहस्यमय रीति से सरकारी खजाने में जमा किया हुआ पाया गया. गोपन्ना को तानाशाह ने स्वं जाकर कारागार से मुक्ति दिलवाई और राम का भक्त उस दिन से रामदास कहलाने लगा. रामनवमी को भद्राचलम में आज भी भारी मेला लगता है और राम सीता का विवाह अथवा कल्याणम् धूमधाम से मनाया जाता है. यह मंदिर दक्षिण भारत का सबसे अधिक धनी मंदिर कहा जाता है.

भद्राचलम परिचय

भद्राचलम भगवान श्रीराम से जुड़ा और हिन्दुओं की आस्था का एक प्रमुख धार्मिक स्थल है. इस पुण्य क्षेत्र को "दक्षिण की अयोध्या" भी कहा जाता है। यह स्थान अगणित भक्तों का श्रद्धा केन्द्र है। मान्यता है कि यह वही स्थान है, जहाँ राम ने पर्णकुटी बनाकर वनवास का लंबा समय व्यतीत किया था। भद्राचलम से कुछ ही दूरी पर स्थित 'पर्णशाला' में भगवान श्रीराम अपनी पर्णकुटी बनाकर रहे थे। एक विश्वास यह भी किया जाता है कि रावण द्वारा सीताजी का अपहरण भी यहीं से हुआ था।

वनवासी बहुल क्षेत्र: भद्राचलम की एक विशेषता यह भी है कि यह वनवासी बहुल क्षेत्र है और राम वनवासियों के पूज्य हैं। वनवासी भी परंपरागत रूप से भद्राचलम को अपना आस्था का केन्द्र मानते हैं और 'रामनवमी' को भारी संख्या में यहाँ राम के सुप्रसिद्ध मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं।

जनश्रुति: यहाँ के मंदिर के आविर्भाव के विषय में एक जनश्रुति वनवासियों से जुड़ी हुई है। इसके अनुसार, एक राम भक्त वनवासी महिला दम्मक्का भद्रिरेड्डीपालेम ग्राम में रहा करती थी। इस वृद्धा ने राम नामक एक लड़के को गोद लेकर उसका पालन-पोषण किया। एक दिन राम वन में गया और वापस नहीं लौटा। पुत्र को खोजते-खोजते दम्मक्का जंगल में पहुँच गई और "राम-राम" पुकारते हुए भटकने लगी। तभी उसे एक गुफ़ा के अंदर से आवाज़ आई कि "माँ, मैं यहाँ हूँ"। खोजने पर वहाँ सीता, राम और लक्ष्मण की प्रतिमाएँ मिलीं। उन्हें देखकर दम्मक्का भक्ति भाव से सराबोर हो गई। इतने में उसने अपने पुत्र को भी सामने खड़ा पाया। दम्मक्का ने उसी जगह पर देव प्रतिमाओं की स्थापना का संकल्प लिया और बाँस की छत बनाकर एक अस्थाई मंदिर बनाया। धीरे-धीरे स्थानीय वनवासी समुदाय 'भद्रगिरि' या 'भद्राचलम' नामक उस पहाड़ी पर श्रीराम की पूजा करने लगे। आगे चलकर भगवान ने भद्राचलम को वनवासियों-नगरवासियों के मिलन हेतु एक सेतु बना दिया।

मंदिर का निर्माण: गोलकुंडा (वर्तमान हैदराबाद) का क़ुतुबशाही नवाब अबुल हसन तानाशाह था, किंतु उसकी ओर से भद्राचलम के तहसीलदार के नाते नियुक्त कंचली गोपन्ना ने कालांतर में उस बाँस के मंदिर के स्थान पर भव्य मंदिर बनाकर उस क्षेत्र को धार्मिक जागरण का महत्त्वपूर्ण केन्द्र बनाने का प्रयास किया। कर वसूली से प्राप्त धन से उसने एक विशाल परकोटे के भीतर भव्य राम मंदिर बनवाया, जो आज भी आस्था के अपूर्व केन्द्र के रूप में स्थित है। गोपन्ना ने भक्ति भाव से सीता, श्रीराम व लक्ष्मण जी के लिए कटिबंध, कंठमाला (तेलुगू में इसे पच्चला पतकम् कहा जाता है), माला (चिंताकु पतकम्) एवं मुकुट मणि (कलिकि तुराई) भी बनवा कर अर्पित की। उन्होंने राम की भक्ति में कई भजन भी लिखे, इसी कारण लोग उन्हें रामदास कहने लगे।

रामदास विदेशी अक्रमण के ख़िलाफ़ देश में 'भक्ति आंदोलन' से जुड़े हुए थे। कबीर रामदास के आध्यात्मिक गुरु थे और उन्होंने रामदास को 'रामानंदी संप्रदाय' की दीक्षा दी थी। रामदास के कीर्तन घर-घर में गाए जाते थे और तानाशाही राज के विरोध में खड़े होने की प्रेरणा देते थे। आज भी हरिदास नामक घुमंतु प्रजाति भक्त रामदास के कीर्तन गाते हुए राम भक्ति का प्रचार करती दिखाई देती है। लेकिन रामदास का यह धर्म कार्य तानाशाह को नहीं भाया और उसने रामदास को गोलकुंडा क़िले में क़ैद कर दिया। आज भी हैदराबाद स्थित इस क़िले में वह कालकोठरी देखने को मिलती है, जहाँ रामदास को बन्दी बनाकर रखा गया था।

कैसे पहुँचें: भारत के इस प्रसिद्ध धार्मिक स्थल तक पहुँचने के लिये कई साधन हैं। हैदराबाद, विजयवाडा से यहाँ के लिए अच्छी बसें चलती हैं। उत्तर की ओर से आने वाले यात्रियों को दिल्ली-चेन्नई मुख्य मार्ग पर वारंगल में उतरना चाहिए। वहाँ देखने के लिए बहुत कुछ है। इसके बाद यात्री बस द्वारा भद्राचलम तक जा सकते हैं। मुख्य मार्ग पर नजदीकी रेलवे स्टेशन खम्मम पड़ता है। खम्मम से ही एक रेल मार्ग है, जिस पर 'भद्राचलम रोड' (कोथागुडेम) स्टेशन पड़ता है, जो भद्राचलम से 40 किलोमीटर की दूरी पर है। यहाँ से भी टेक्सियों की व्यवस्था है।

संदर्भ: भारतकोश-भद्राचलम

External links

References