Bhedaghat

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(Redirected from Bhedaghata)
Author:Laxman Burdak, IFS (Retd.)

District map of Jabalpur

Bhedaghat ( भेड़ाघाट) is a town in Jabalpur district in the state of Madhya Pradesh, India.

Variants

  • Bhedaghata (भेड़ाघाट)
  • Bheraghat भेड़ाघाट दे. Bhrigukshetra भृगुक्षेत्र (AS, p.678)
  • Bhrigukshetra (भृगुक्षेत्र) , जिला जबलपुर, म.प्र., (AS, p.677)
  • Vaidurya (वैडूर्यू) (AS, p.878) - विष्णुपुराण 2,2,28 के अनुसार मेरू के पश्चिम में स्थित एक पर्वत (केसराचल) - 'शिखिवासा: सवैडूर्यू; कपिलो गंधमादन:; जारूधिप्रमुखास्तद्वत् पश्चिमे केसराचला:'.
  • Vaidurya-Shikhara (वैदूर्य-शिखर)
  • Vaidurya-Parvata (वैदूर्य-पर्वत)

Location

It is situated by the side of river Narmada and is approximately 20 km from Jabalpur city.

History

भेड़ाघाट, मध्य प्रदेश

भेड़ाघाट, मध्य प्रदेश के जबलपुर से 22 किलोमीटर दूर नर्मदा नदी के तट पर अवस्थित है। यहाँ से रानी अल्हण देवी का 907 चेदि संवत में लिखित एक शिलालेख उपलब्ध हुआ है। अल्हण देवी के भेड़ाघाट अभिलेख से हमें ज्ञात होता है कि गांगेयदेव के पुत्र एवं उत्तराधिकारी चालुक्य नरेश कर्ण ने बंग या पूर्वी बंगाल के राजा पर विजय प्राप्त की थी।

मार्बल सिटी: यहाँ नर्मदा का प्रवाह ऊँची-ऊँची पहाड़ियों से घिर कर झील के रुप में परिणत हो गया है। नदी की ऊपरी धारा के सिरे पर 'धुआंधार' नामक प्रसिद्ध जल प्रपात है और आगे नर्मदा दोनों और लगभग सौ फुट ऊँची संगमरमर की परतदार चट्टानों के कगारों के बीच बहती है। मार्बल-रॉक्स के लगभग दो किलोमीटर लम्बे सिलसिले में चट्टानों में आकार की अनूठी विविधा और विभिन्न मनोहारी रंगों की कोमल छटा है। इन कगारों की कमनीय स्निग्धता मुग्धकारी है। यहाँ चारों ओर व्याप्त निस्तब्धता में लगता है कि काल की गति थम गई। यहाँ नौकायन करने के बाद महात्मा गाँधी ने कहा था--जितनी शांति यहाँ है, वैसी अगर दुनिया में हो जाएँ तो क्या कहना।

चौंसठ योगिनी मन्दिर: भेड़ाघाट का एक और प्रमुख आकर्षण संगमरमरी कगारों के पीछे शंकु आकार की एक पहाड़ी के शिखर पर बना चौंसठ योगिनी मन्दिर है। यह एक बड़ा मन्दिर है। कई पाश्चात्य पर्यटन लेखकों ने इसे दुनिया का ख़ूबसूरत मन्दिर कहा है। योगिनियों की मूर्तियाँ यद्यपि 1808 ई. में अमीर ख़ाँ पिंडारी के हाथों खण्डित हो गई थीं पर उसमें मूर्तिकला की अद्भुत ऊर्जा के दर्शन होते हैं। मूर्तियों में प्रचुर अलंकरण हैं और सूक्ष्म विवरण की प्रधानता है। भेड़ाघाट में भृगुऋषि की तपस्थली मानी जाती है। यहाँ कई पुराने मंदिर पहाड़ी के ऊपर स्थित हैं। यह स्थान अवश्य ही बहुत प्राचीन है। नर्मदा नदी के प्रसिद्ध जल-प्रपात धुआँधार के निकट द्वितीय सदी ई. की एक मूर्ति प्राप्त हुई है, जो अब चौंसठ-योगिनियों के मंदिर में है।

भेड़ाघाट से कई अन्य गुप्तकालीन मूर्तियाँ भी प्राप्त हुई हैं, जो इस प्रदेश के तत्कालीन शासक परिव्राजक महाराजाओं तथा उच्छकल्प के नरेशों के समय में निर्मित हुई थीं। चौंसठ योगिनियों के मंदिर में त्रिपुरी के नरेशों के समय की भी कई मूर्तियाँ लक्ष्मणराज की रानी नोहाला द्वारा प्रतिष्ठापित की गई थीं। चौंसठ योगिनियों के मंदिर का निर्माण संवत 907 (1155-1156 ई.) में अल्हण देवी ने करवाया था। इस मंदिर की गोलाकृति होने के कारण इसे गोलकीमठ भी कहते हैं। भेड़ाघाट का प्राकृतिक परिदृश्य मनोरम है। वर्तमान समय में बंदर कूदनी, चौंसठ योगिनि का गोल मन्दिर और गौरी-शंकर का मन्दिर यहाँ के दर्शनीय स्थल हैं।

संदर्भ: भारतकोश-भेड़ाघाट

भृगुक्षेत्र

विजयेन्द्र कुमार माथुर[1] ने लिखा है ....भृगुक्षेत्र, जिला जबलपुर, म.प्र., (p.677): जबलपुर से 13 मील दूर स्थित भेड़ाघाट का प्राचीन पौराणिक नाम है. यहां नर्मदा का प्रवाह ऊंची-ऊंची पहाड़ियों से घिरकर झील के रूप में परिणित हो गया है. चारों ओर रंगीन और श्वेत चमकदार संगमरमर की पहाड़ियों का दृश्य बहुत ही अद्भुत और मनोमुग्धकारी है. भेड़ाघाट में भृगुऋषि की तपस्थली मानी जाती है. यहां कई पुराने मंदिर पहाड़ी के ऊपर स्थित हैं. यह स्थान अवश्य ही बहुत प्राचीन है.

महाभारत में संभवत: यहां की संगमरमर की पहाड़ियों का वैदूर्य-शिखर या वैदूर्य-पर्वत के नाम से वर्णन किया गया है. 'वैदूर्य-शिखरो नाम पुण्यो गिरिवर: शिव:' (महाभारत वन पर्व-89,6) (III.86.15);स पयोष्णयां नरश्रेष्ठ स्नात्वा वै भ्रातृभि: सह, वैदूर्यपर्वतंचैव नर्मदां च महानदीम्, देवाना मेति कौंतेय तथा राज्ञां सलोकताम्, वैदूर्यपर्वतंं दृष्टवा नरमदामवतीर्य च' (महाभारत वन पर्व-121, 16-19).

धुआंधार नर्मदा नदी के झरने के निकट द्वितीय शती ई. की एक मूर्ति प्राप्त हुई थी जो अब चौसठ योगिनी मंदिर में है. कई अन्य गुप्तकालीन मूर्तियां भी यहां से प्राप्त हुई थी जो इस प्रदेश के तत्कालीन शासक परिव्राजक महाराजाओं तथा उच्छकल्प के नरेशों के समय में निर्मित हुई थी. चौसठ योगिनी के मंदिर में त्रिपुरी के हैहयवंशी राजाओं के समय की कई मूर्तियां लक्ष्मणराज की रानी नोहाला द्वारा प्रतिस्थापित हुई थी. चौसठ योगिनी मंदिर का निर्माण कलचुरी संवत 907 = 1155-1156 ई. में अल्हणदेवी ने करवाया था. इस मंदिर को गोलाकृति होने के कारण गोलकीमठ भी कहते हैं.

च्यवनाश्रम

विजयेन्द्र कुमार माथुर[2] ने लेख किया है ...1. च्यवनाश्रम (AS, p.347) का उल्लेख महाभारत, वनपर्व 121-122 में हुआ है। इसमें वर्णित च्यवन ऋषि और सुकन्या की कथा में च्यवन के आश्रम की स्थिति नर्मदा नदी के तट पर बताई गई है। इसका उल्लेख वैदूर्यपर्वत (वन. 121, 19) के पश्चात् है। वैदूर्यपर्वत संभवत: नर्मदा नदी के तटवर्ती संगमरमर के पहाड़ों को कहा गया है, जिनके निकट वर्तमान भेड़ाघाट नामक स्थान है, जो जबलपुर, मध्य प्रदेश से 13 मील की दूरी पर है। जनश्रुति के अनुसार [p.348]: भेड़ाघाट में भृगु का स्थान था और यहाँ इनका मंदिर भी है। महाभारत के अनुसार च्यवन, भृगु के ही पुत्र थे- 'भृगोर्महर्षे: पुत्रोऽभूच्च्यवनो नाम भारत, समीपे सरसस्तस्य तपस्तेपे महाद्युति:।' महाभारत, वनपर्व, 121, 211. इस प्रकार महाभारत के इस प्रसंग में वर्णित च्यवन के आश्रम की भेड़ाघाट में स्थिति प्राय: निश्चित समझी जा सकती है। च्यवनाश्रम का उल्लेख महाभारत, वनपर्व (89, 12) में भी है- 'आश्रम: कक्षसेनस्य पुण्यस्तत्र युधिष्ठिर, च्यवनस्याश्रम श्चैव विख्यातस्तत्र पांडव।'

मुरल

मुरल (AS, p.752): संभवतः केरल प्रदेश का प्राचीन नाम है. कलचुरी-राजा कर्ण देव द्वारा विजित देशों में मुरल भी था जैसा कि अलहण देवी के भेड़ाघाट अभिलेख से विदित होता है, 'पांड्य: चंडितमतां मुमोच मुरलसत्याजगर्वग्रहम्' अर्थात कर्ण देव के प्राक्रम के सामने पांड्य देशवासियों ने अपनी प्रखरता तथा मुरलवासियों ने अपना गर्व छोड़ दिया (दे. एपिग्राफिक इंडिया, जिल्द-2, पृ. 11). संस्कृत के महाकवि राजशेखर ने कन्नौजाधिप महिपाल (9 वीं सदी ई.) को मुरल तथा कई अन्य प्रदेशों का विजेता कहा है.[3]

Places of interest

Its most famous sights are the Dhuandhar Falls, Marble Rocks, and the Chaunsath Yogini temple

The temple is one of the four major extant temples containing carvings of sixty four yogini, female yoga mystics. It was built in the 10th century under the Kalachuris. It commands a view of the whole area around and of the river flowing through the marble rocks.

Its major attraction is a waterfall known as Dhuandhar, which looks like smoke coming out of the river and therefore it got its name as "Dhuan(smoke)-dhar(flow of water)". Another major attraction is 'Bandar Kodini', when one travels in between the marble rocks in a boat, the mountains at both the sides at one point come so close that the monkeys are able to jump across them, hence the name "Bandar Kodini". In a moonlit night, the travel between the marble rock mountains in a boat on the river Narmada is one of the popular tourist attractions here.

In Mahabharata

Vaidurya (वैडूर्य) (Mountain Tirtha) is mentioned in Mahabharata (III.86.15), (III.87.4),


Vana Parva, Mahabharata/Book III Chapter 86 mentions the sacred tirthas of the south. Vaidurya (वैडूर्य) (M)/(T) is mentioned in Mahabharata (III.86.15). [4]....And there also is the Vaidurya (वैडूर्य) (III.86.15) mountain, which is delightful abounding in gems and capable of bestowing great merit. There on that mountain is the asylum of Agastya abounding in fruits and roots and water.


Vana Parva, Mahabharata/Book III Chapter 87 mentions Sacred spots in the west. Vaidurya (वैडूर्य) (M)/(T) is mentioned in Mahabharata (III.86.15), (III.87.4). [5]....There also is that foremost of hills, the sacred and auspicious Vaidurya (वैडूर्य) (III.87.4) peak abounding with trees that are green and which are always graced with fruit and flowers.

References

  1. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur,p.677
  2. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.347
  3. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.752
  4. वैडूर्य पर्वतस तत्र शरीमान मणिमयः शिवः, अगस्त्यस्याश्रमश चैव बहुमूलफलॊदकः(III.86.15)
  5. वैडूर्य शिखरॊ नाम पुण्यॊ गिरिवरः शुभः, दिव्यपुष्पफलास तत्र पादपा हरितछदाः (III.87.4)