Bhogavati River

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Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Bhogavati River (भोगवती नदी) is a river mentioned in Mahabharata. Saraswati River is known as the Bhogavati River (3-24,176) in Dvaita Forest or Dvaitavana (द्वैतवन).

Origin

Variants

History

In Mahabharata

Bhogavati River (भॊगवती) (Tirtha) is mentioned in Mahabharata (III.13.31), (III.83.72), (III.83.81)


Vana Parva, Mahabharata/Book III Chapter 13 mentions Arjuna's recites to angry Krishna the feats achieved in his former lives. Bhogavati River (भॊगवती) (Tirtha) is mentioned in Mahabharata (III.13.31). [1]..... And, O Janardana, thou hast also appropriate unto thyself the sacred city of Dwarka, abounding in wealth and agreeable unto the Rishi themselves, and thou wilt submerge it at the end within the ocean!


Vana Parva, Mahabharata/Book III Chapter 83 mentions names of Pilgrims.

Bhogavati River (भॊगवती) (Tirtha) is mentioned in Mahabharata (III.83.72).[2]....The country between the Ganga and the Yamuna is regarded as the mons veneris of the world, and Prayaga as the foremost point of that region. The tirthas Prayaga (प्रयाग) (III.83.72), Pratisthana (प्रतिष्ठान) (III.83.72), Kambala (कम्बल) (III.83.72), Ashwatara (अश्वतर) (III.83.72) and Bhogavati (भॊगवती) (III.83.72) are the sacrificial platforms of the Creator.....

Bhogavati River (भॊगवती) (Tirtha) is mentioned in Mahabharata (III.83.81). [3]....There at Prayaga is the excellent tirtha of Vasuki (वासुकी) (III.83.81) called Bhogavati (भॊगवती) (III.83.81). He that batheth in it, obtaineth the merit of the horse-sacrifice.

भोगवती नदी

भोगवती-3 = भोगवती नदी (AS, p.679): या सरस्वती नदी -- 'मनोरमां भोगवतीमुपेत्य पूतात्मनांचीरजटाधराणाम्, तस्मिन् वने धर्मभृतां निवासे ददर्श सिद्धर्षिगणाननेकान्' महाभारत वनपर्व 24,20. भोगवती नदी का इस स्थान पर द्वैतवन के संबंध में उल्लेख होने से यह सरस्वती नदी ही जान पड़ती है. [4]

द्वैतवन

विजयेन्द्र कुमार माथुर[5] ने लेख किया है ...द्वैतवन (AS, p.460) - महाभारत में वर्णित वन जहाँ पांडवों ने वनवास काल का एक अंश व्यतीत किया था। यह वन सरस्वती नदी के तट पर स्थित था, 'ते यात्वा पांडवास्तत्र ब्राह्मणैर्बहुभि: सह, पुण्यं द्वैतवनं रम्यं विविशुर्भरतर्षभा:। तमालतालाभ्रमधूकनीप कदंबसर्जार्जुनकर्णिकारै:, तपात्यये पुष्पधरैरुपेतं महावनं राष्ट्रपतिं ददर्श। [p.461]: मनोरमां भोगवतीमुपेत्य पूतात्मनांचीरजटाधराणाम्, तस्मिन् वने धर्मभृतां निवासे ददर्श सिद्धर्षिगणाननेकान्' (महाभारत वन 24, 16-17-20).

भोगवती नदी सरस्वती ही का एक नाम है। भारवी के 'किरातार्जुनीयम्' 1,1 में भी द्वैतवन का उल्लेख है-- 'स वर्णलिंगी विदित: समाययौ युधिष्ठिरं द्वैतवने वनेचर:.

महाभारत सभा पर्व में द्वैतवन नाम के सरोवर का भी वर्णन है-- 'पुण्य द्वैतवनं सर:'(महाभारत सभा पर्व 24, 13.

कुछ विद्वानों के अनुसार ज़िला सहारनपुर, उत्तर प्रदेश में स्थित देवबंद ही महाभारत कालीन द्वैतवन है। संभव है प्राचीन काल में सरस्वती नदी का मार्ग देवबंद के पास से ही रहा हो।

शतपथ ब्राह्मण 13, 54, 9 में द्वैतवन नामक राजा को मत्स्य-नरेश कहा गया है। इस ब्राह्मण ग्रंथ की गाथा के अनुसार इसने 12 अश्वों से अश्वमेध यज्ञ किया था जिससे द्वैतवन नामक सरोवर का यह नाम हुआ था। इस यज्ञ को सरस्वती तट पर संपन्न हुआ बताया गया है। इस उल्लेख के आधार पर द्वैतवन सरोवर की स्थिति मत्स्य अलवर, जयपुर, भरतपुर के क्षेत्र में माननी पड़ेगी। द्वैतवन नामक वन भी सरोवर के निकट ही स्थित होगा। मीमांसा के रचयिता जैमिनी का जन्मस्थान द्वैतवन ही बताया जाता है।

External links

References

  1. तां च भॊगवतीं पुण्याम ऋषिकान्तां जनार्दन, द्वारकाम आत्मसात्कृत्वा समुद्रं गमयिष्यसि (III.13.31)
  2. प्रयागं स प्रतिष्ठानं कम्बलाश्वतरौ तथा, तीर्थं भॊगवती चैव वेदी परॊक्ता परजापतेः (III.83.72)
  3. तत्र भॊगवती नाम वासुकेस तीर्थम उत्तमम, तत्राभिषेकं यः कुर्यात सॊ ऽशवमेधम अवाप्नुयात (III.83.81)
  4. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p. 679
  5. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.460-461