Brahmasara

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(Redirected from Brahma-sara)
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Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Brahmasara (ब्रह्मसर) refers to the name of a Tīrtha (pilgrim’s destination) or Pond/Lake mentioned in the Mahābhārata (cf. III.82.74, III.85.6). Manasarowar lake in Tibbet, Pushkar Lake in Ajmer (Rajasthan) and Lake of Kurukshetra are known by the name of Brahmasara. [1]

Origin

Variants

History

In Mahabharata

Brahmasara (ब्रह्मसर) (Tirtha)/(Pond) is mentioned in Mahabharata (III.82.74), (III.85.6), (XIII.26.38), (XIII.26.55),


Vana Parva, Mahabharata/Book III Chapter 82 mentions names Pilgrims. Brahmasara (ब्रह्मसर) (Tirtha)/(Pond) is mentioned in Mahabharata (III.82.74).[2].... Bathing there at the Mahanadi (3.82.73), and offering oblations to the gods and the Pitris, a man acquireth eternal regions, and also rescueth his race. Proceeding then to Brahma-sara (ब्रह्मसर) (III.82.74) that is adorned by the woods of Dharma, and passing one night there, a man attaineth to the region of Brahma. In that lake, Brahma had raised a sacrificial pillar. By walking round this pillar, a person acquireth the merit of the Vajapeya sacrifice.


Vana Parva, Mahabharata/Book III Chapter 85 mentions sacred asylums, tirthas, mountans and regions of eastern country. Brahmasara (ब्रह्मसर) (Tirtha)/(Pond) is mentioned in Mahabharata (III.85.6). [3]....In that quarter also is that best of hills called Gaya (गय) (III.85.6), which is sacred and much regarded by royal ascetics. There on that hill, is the auspicious lake called Brahmasara (ब्रह्मसर) (III.85.6) which is adored by celestial Rishis.


Anusasana Parva/Book XIII Chapter 26 mentions the sacred waters on the earth. Brahmasara (ब्रह्मसर) (Tirtha)/(Pond) is mentioned in Mahabharata (XIII.26.38).[4]..... Repairing to Brahmasaras as also to the Bhagirathi and bathing there and offering oblations to the Pitris every day for a full month, abstaining from food all the while, one is sure to attain to the region of Soma (Somaloka).


Brahmasara (ब्रह्मसर) (Tirtha)/(Pond) is mentioned in Mahabharata (XIII.26.55). [5]....One who repairs to Brahmasara which is adorned by the woods called Dharmaranya, becomes cleansed of all one's sins and attains to the merit of the Pundarika sacrifice.

ब्रह्मसर

विजयेन्द्र कुमार माथुर[6] ने लेख किया है ... 1. ब्रह्मसर (AS, p.650): मानसरोवर (तिब्बत) को प्राचीन संस्कृत साहित्य में ब्रह्मसर भी कहा गया है. कालिदास ने रघुवंश 13,60 में सरयू नदी की उत्पत्ति ब्रह्मसर से बताई है--'ब्राह्मंसरः कारणं आप्तवाचो बुद्धेरिवाव्यक्तं उदाहरन्ति'. मल्लिनाथ [p.651]: ने अपने टीका में 'ब्रह्मसरो मानसाख्यं यस्या: सरय्या:' आदि लिखा है जिससे स्पष्ट है कि सरयू का उद्गम मानसरोवर या ब्रह्मसर है. कवि की विचित्र उपमा से यह भी ज्ञात होता है कि कालिदास के समय में ब्रह्मसर तक पहुंचना यद्यपि अधिकांश लोगों के लिए असंभव था फिर भी सब लोगों का परंपरागत विश्वास यही था कि सरयू मानसरोवर से उद्भूत होती है. किंतु साथ यह भी दृष्टव्य है कि इस विशिष्ट भौगोलिक तथ्य की खोज, जो उस प्राचीन समय में बहुत ही कठिन रही होगी, कालिदास के समय के बहुत पूर्व हो चुकी थी. कालिका पुराण में ब्रह्मपुत्र या लौहित्य का उद्भव भी ब्रह्मकुंड या ब्रह्मसर से ही माना गया है. यह भी भौगोलिक तथ्य है. (दे. सरयू, लौहित्य)

2. ब्रह्मसर (AS, p.651): महाभारत अनुशासनपर्व में पुष्कर (जिला अजमेर, राजस्थान) के प्रसिद्ध सरोवर का एक नाम. यह ब्रह्मा के तीर्थ के रूप में प्राचीन काल से ही प्रख्यात है.

3. ब्रह्मसर (AS, p.651): कुरुक्षेत्र में स्थित सरोवर. शतपथ ब्राह्मण के कथानक के अनुसार राजा पुरु को खोई हुई अप्सरा उर्वशी इसी स्थान पर कमलों पर क्रीड़ा करती हुई मिली थी.

कुरुक्षेत्र

विजयेन्द्र कुमार माथुर[7] ने लेख किया है ...कुरुक्षेत्र (जिला कुरुक्षेत्र, हरयाणा) (AS, p.207). महाभारत के युद्ध की प्रसिद्ध रणस्थली. महाभारत में वर्णित अनेक स्थल यहां आज की वर्तमान हैं.

यहां का प्राचीनतम स्थान ब्रह्मसर सरोवर है. शतपथ ब्राह्मण के एक कथानक के अनुसार राजा पुरू को अपनी खोई हुई प्रेयसी अप्सरा उर्वशी इसी सरोवर के कमलों पर क्रीड़ा करती हुई मिली थी. वायु पुराण में वर्णित है की कुरुक्षेत्र के सरोवर के तट पर सृष्टि के आदि में ब्रह्मा ने एक यज्ञ किया था जिससे इसका नाम ब्रह्मसर हुआ. इसके बीच में 'चंद्रकूप' नामक कूप स्थित है. ब्रह्मसर में एक प्राचीन मंदिर है जहां पहुंचने के लिए अकबर ने एक पुल बनवाया था जो अब जीर्ण-शीर्ण हो गया है. ब्रह्मसर के स्नानार्थी यात्रियों पर औरंगजेब ने कर लगा दिया था और उसके कर्मचारी यहां पास ही स्थित गढ़ी में रहते थे. ब्रह्मसर को द्वैपायनह्रद और और रामह्रद भी कहते हैं.

कुरुक्षेत्र का दूसरा सरोवर ज्योतिसर है. कहा जाता है कि यह वही पुण्यस्थान है जहां भगवान कृष्ण ने अर्जुन को गीता सुनाई थी.

एक छोटा तड़ाग सैन्यहत या सन्निहित कहलाता है. सन्निहिती सरोवर (III.81.167) का उल्लेख महाभारत वन पर्व 83, 195 में है. यह सरोवर भी है जहां [p.208]: दुर्योधन अंत समय में छुप गया था और भीम ने गदा युद्ध में मारा था. यह तालाब मिट्टी और वनस्पतियों से ढक गया है.

कुरुक्षेत्र से थोड़ी दूर पर बाणगंगा है जहां भीष्म पितामह के आहत होने पर उनके लिए अर्जुन ने भूमि से बाण तथा जलधारा प्रकट की थी. वामन पुराण 39, 6-7-8 में कुरुक्षेत्र की 7 नदियां बताई गई हैं-- 'सरस्वती नदी पुण्या तथा वैतरणी नदी, आपगा च महापुण्या गंगा मंदाकिनी नदी. मधुस्रवा-अम्लुनदी कौशिकी पाप-नाशिनी, दृषद्वती महापुण्या तथा हिरण्यवती नदी'.

External links

References

  1. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.650-651
  2. ततॊ ब्रह्मसरॊ गच्छेद धर्मारण्यॊपशॊभितम, पौण्डरीकम अवाप्नॊति प्रभाताम एव शर्वरीम (III.82.74)
  3. तस्यां गिरिवरः पुण्यॊ गयॊ राजर्षिसत्कृतः, शिवं ब्रह्मसरॊ यत्र सेवितं त्रिदशर्षिभिः (III.85.6)
  4. तथा बरह्मशिरॊ गत्वा भागीरथ्यां कृतॊदकः, एकमासं निराहारः सॊमलॊकम अवाप्नुयात (XIII.26.38)
  5. तथा ब्रह्मसरॊ गत्वा धर्मारण्यॊपशॊभितम, पुण्डरीकम अवाप्नॊति परभातां शर्वरीं शुचिः (XIII.26.55)
  6. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.650-651
  7. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.207-208