Carpathian

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Carpathians or Carpathian Mountains (Hindi:कार्पेथियन पर्वत) are a range of mountains forming an arc roughly 1,500 km long across Central and Eastern Europe, making them the second-longest mountain range in Europe (after the Scandinavian Mountains, 1,700 km.

Location

The Carpathians consist of a chain of mountain ranges that stretch in an arc from the Czech Republic (3%) in the northwest through Slovakia (17%), Poland (10%), Hungary (4%) and Ukraine (11%) to Romania (53%) in the east and on to the Iron Gates on the River Danube between Romania and Serbia (2%) in the south.

The Carpathians are usually divided into three major parts: the Western Carpathians (Czech Republic, Poland, Slovakia), the Eastern Carpathians (southeastern Poland, eastern Slovakia, Ukraine, Romania), and the Southern Carpathians (Romania, Serbia).[1]

Origin of name

The name "Carpathian" may have been derived from Carpi, a Dacian tribe. According to Zosimus, this tribe lived until 381 on the eastern Carpathian slopes. The word could come from an Indo-European word meaning "rock". In Thracian Greek Καρπάτῆς όρος (Karpates oros) means "rocky mountain".[2]

History

In late Roman documents, the Eastern Carpathian Mountains were referred to as Montes Sarmatici (meaning Sarmatian Mountains). The Western Carpathians were called Carpates, a name that is first recorded in Ptolemy's Geographia (2nd century AD).

In the Scandinavian Hervarar saga, which relates ancient Germanic legends about battles between Goths and Huns, the name Karpates appears in the predictable Germanic form as Harvaða fjöllum (see Grimm's law).

Cities and towns

Important cities and towns in or near the Carpathians are, in alphabetical order:

प्राचीनकाल में कारुपथ

दलीप सिंह अहलावत[3] लिखते हैं: यूरोप देश - इस देश को प्राचीनकाल में कारुपथ तथा अङ्गदियापुरी कहते थे, जिसको श्रीमान् महाराज रामचन्द्र जी के आज्ञानुसार लक्ष्मण जी ने एक वर्ष यूरोप में रहकर अपने ज्येष्ठ पुत्र अंगद के लिए आबाद किया था जो कि द्वापर में हरिवर्ष तथा अंगदेश और अब हंगरी आदि नामों से प्रसिद्ध है। अंगदियापुरी के दक्षिणी भाग में रूम सागर और अटलांटिक सागर के किनारे-किनारे अफ्रीका निवासी हब्शी आदि राक्षस जातियों के आक्रमण रोकने के लिए लक्ष्मण जी ने वीर सैनिकों की छावनियां आवर्त्त कीं। जिसको अब ऑस्ट्रिया कहते हैं। उत्तरी भाग में ब्रह्मपुरी बसाई जिसको अब जर्मनी कहते हैं। दोनों भागों के मध्य लक्ष्मण जी ने अपना हैडक्वार्टर बनाया जिसको अब लक्षमबर्ग कहते हैं। उसी के पास श्री रामचन्द्र जी के खानदानी नाम नारायण से नारायण मंडी आबाद हुई जिसको अब नॉरमण्डी कहते हैं। नॉरमण्डी के निकट एक दूसरे से मिले हुए द्वीप अंगलेशी नाम से आवर्त्त हुए जिसको पहले ऐंग्लेसी कहते थे और अब इंग्लैण्ड कहते हैं।

द्वापर के अन्त में अंगदियापुरी देश, अंगदेश के नाम से प्रसिद्ध हुआ, जिसका राज्य सम्राट् दुर्योधन ने अपने मित्र राजा कर्ण को दे दिया था। करीब-करीब यूरोप के समस्त देशों का राज्य शासन आज तक महात्मा अंगद के उत्तराधिकारी अंगवंशीय तथा अंगलेशों के हाथ में है, जो कि ऐंग्लो, एंग्लोसेक्शन, ऐंग्लेसी, इंगलिश, इंगेरियन्स आदि नामों से प्रसिद्ध है और जर्मनी में आज तक संस्कृत भाषा का आदर तथा वेदों के स्वाध्याय का प्रचार है। (पृ० 1-3)।

यूरोप अपभ्रंश है युवरोप का। युव-युवराज, रोप-आरोप किया हुआ। तात्पर्य है उस देश से, जो लक्ष्मण जी के ज्येष्ठपुत्र अङ्गद के लिए आवर्त्त किया गया था। यूरोप के निवासी यूरोपियन्स कहलाते हैं। यूरोपियन्स बहुवचन है यूरोपियन का। यूरोपियन विशेषण है यूरोपी का। यूरोपी अपभ्रंश है युवरोपी का। तात्पर्य है उन लोगों से जो यूरोप देश में युवराज अङ्गद के साथ भेजे और बसाए गये थे। (पृ० 4)

कारुपथ यौगिक शब्द है कारु + पथ का। कारु = कारो, पथ = रास्ता। तात्पर्य है उस देश से जो भूमध्य रेखा से बहुत दूर कार्पेथियन पर्वत (Carpathian Mts.) के चारों ओर ऑस्ट्रिया, हंगरी, जर्मनी, इंग्लैण्ड, लक्षमबर्ग, नॉरमण्डी आदि नामों से फैला हुआ है। जैसे एशिया में हिमालय पर्वतमाला है, इसी तरह यूरोप में कार्पेथियन पर्वतमाला है।

इससे सिद्ध हुआ कि श्री रामचन्द्र जी के समय तक वीरान यूरोप देश कारुपथ देश कहलाता था। उसके आबाद करने पर युवरोप, अङ्गदियापुरी तथा अङ्गदेश के नाम से प्रसिद्ध हुआ और ग्रेट ब्रिटेन, आयरलैण्ड, ऑस्ट्रिया, हंगरी, जर्मनी, लक्षमबर्ग, नॉरमण्डी, फ्रांस, बेल्जियम, हालैण्ड, डेनमार्क, स्विट्जरलैंड, इटली, पोलैंड आदि अङ्गदियापुरी के प्रान्तमात्र महात्मा अङ्गद के क्षेत्र शासन के आधारी किये गये थे। (पृ० 4-5)

नोट - महाभारतकाल में यूरोप को ‘हरिवर्ष’ कहते हैं। हरि कहते हैं बन्दर को। उस देश में अब भी रक्तमुख अर्थात् वानर के समान भूरे नेत्र वाले होते हैं। ‘यूरोप’ को संस्कृत में ‘हरिवर्ष’ कहते थे। [4]

References

  1. Carpathian Heritage Society
  2. Douglas Harper. "Carpathian". Online Etymology Dictionary.
  3. Jat History Dalip Singh Ahlawat/Chapter IV,p.339-340
  4. (सत्यार्थप्रकाश दशम समुल्लास पृ० 173)