Chaitrarathavana

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Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Chaitrarathavana (चैत्ररथवन) is name of a forest mentioned in Ramayana and Mahabharata. It was probably located west of Sarasvati River in Punjab region.

Origin

Variants

History

चैत्ररथवन

विजयेन्द्र कुमार माथुर[1] ने लेख किया है ...1. चैत्ररथवन (AS, p.344): चैत्ररथवन का उल्लेख वाल्मीकि रामायण के अयोध्याकाण्ड 71,4 में हुआ है- 'सत्यसंध: शुचिर्भूत्वा प्रेक्षमाण: शिलावहाम् अभ्यगात् स महाशैलान् वनं चैत्ररथं प्रति।' अर्थात् "केकय से अयोध्या आते समय सत्यसंध भरत पवित्र होकर शिलावह नदी को देखते हुए ऊँचे पर्वतों को पार करके चैत्ररथवन की ओर चले।" उपर्युक्त प्रसंग से जान पड़ता है कि यह वन सरस्वती नदी के पश्चिम में, सम्भवत: पंजाब के पहाड़ी प्रदेश में स्थित रहा होगा। इसके आगे सरस्वती का वर्णन है।

2. चैत्ररथवन (AS, p.345): महाभारत, सभापर्व के एक अन्य प्रसंग के अनुसार चैत्ररथवन को द्वारका (काठियावाड़) के उत्तर में स्थित वेणुमान् पर्वत के चतुर्दिक चार महावनों या उद्यानों में से एक बताया गया है- 'भाति चैत्ररथं चैव नन्दनं च महावनं, रमणं भावनं चैव वेणुमन्तं समन्तत:।' महाभारत, सभापर्व 38 दाक्षिणात्य पाठ।

3. चैत्ररथवन (AS, p.345): पुराणों के अनुसार चैत्ररथवन धनाधिप कुबेर का उद्यान है, जो अलका के निकट मेरु पर्वत के मंदार नामक शिखर पर स्थित था- 'अलकायां चैत्ररथादिवनेष्वमलपद्मखंडेषु।' विष्णुपुराण 4, 4, 1. वाल्मीकि रामायण युद्ध. 125, 28 में नंदिग्राम के वृक्षों को चैत्ररथवन के वृक्षों के समान ही कुसुमित बताया गया है- 'आससादद्रुमान् फुल्लान् नंदिग्रामसभीपगान् सुराधिपस्योपवने तथा चैत्ररथेंद्रुमान्।' महाकवि कालिदास ने रघुवंश 5,60 में शाप से विमुक्त हुए गंधर्व का चैत्ररथ के प्रदेश की ओर जाना कहा है- 'एवं तयोरध्वनि दैवयोगादासेदुषो: सख्यमचिन्त्य हेतु एकोययौ चैत्ररथप्रदेशान्सौराज्यरम्यानपरो त्रिदर्भान्।' रघुवंश 6,50 में इंदुमती स्वयंवर के प्रसंग में शूरसेनाधिप सुषेण के राज्य में स्थित वृंदावन (मथुरा के निकट) को चैत्ररथ के समान बताया गया है- 'संभाव्य भर्ताराममुं युवानं मृदुप्रवालोत्तर पुष्पशय्ये वृन्दावने चैत्ररथादनूने निर्विश्यतां सुंदरियौवन श्री:।' 'अमरकोश 1,70 में चैत्ररथ को कुबेर का उद्यान कहा गया है- 'अस्योद्यानं चैत्ररथम् पुत्रस्तु नलकुबर:, कैलास: स्थानमलका पूर्विमानंतु पुष्करम्।'

In Ramayana

Ayodhya Kanda/Canto LXXI mentions Bharat's Return from Kekaya to Ayodhya.....The route Bharata drove was a different one from the route the messengers had taken from Ayodhya to Rajagriha. This is a longer route and it took a complete week for Bharata to reach Ayodhya. The pure and illustrious Bharata, who kept up his promise, crossing shatradru river at Eladhana village, reaching the region of Apara parpata, crossing a rocky hill called akurvati, seeing the villages of Agneya and salyakartana as well as Silavaha river, crossed huge mountains and traveled towards the woods of Chitraratha. Arriving at the confluence of Saraswati and Ganga rivers, Bharata entered the woods of Bharunda, the north of Viramatsaya region.

External links

References