Gorakhnath

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Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Guru Gorakhnath

Gorakhnath (गोरखनाथ) or Gorakshanath (गोरक्षनाथ) was an 11th to 12th century [1] Hindu Nath yogi, connected to Shaivism as one of the two most important disciples of Matsyendranath, the other being Chaurangi. Also called Balnath.[2]

Spiritual descent of Gorakhanath

There are varying records of the spiritual descent of Gorakshanath. All name Adinath and Matsyendranath as two teachers preceding him in the succession. Though one account lists five gurus preceding Adinath and another lists six teachers between Matsyendranath and Gorakshanath, current tradition has Adinath identified with Lord Shiva as the direct teacher of Matsyendranath, who was himself the direct teacher of Gorakshanath.[3]

The Nath tradition underwent its greatest expansion during the life and times of Gorakshanath. He produced a number of writings and even today is considered the greatest of the Naths. It has been purported that it was Gorakshanath who wrote the first books on Laya yoga. In India there are many caves, many with temples built over them, where it is said that Gorakshanath spent time in meditation. According to Bhagawan Nityananda, the samadhi shrine (tomb) of Gorakshanath is located at Nath Mandir near the Vajreshwari temple about a kilometer away from Ganeshpuri, Maharashtra. [4]

Traditionally, Guru Gorakshanath is believed to have been born sometime in the 8th century, whereas some believe it to be anytime from 8th century to several centuries later.

He traveled widely across the Indian subcontinent, and accounts about him are found in some form or other at several places including Afghanistan, Baluchistan, Punjab, Sindh, Uttar Pradesh, Nepal, Assam, Bengal, Maharashtra, Karnataka and even in Sri Lanka.

Places after him

  • Gurkhas of Nepal take their name from this saint Gorkha; a historical district of Nepal is named after him because it was the place where he appeared for the first time in this universe, where there is a cave with his paduka (feet) and idol of him. Every year on the day of baisakh purnima there is a great celebration known as Rot Mahotsva at Gorkha cave.

गोरखनाथ का जन्म

गुरु गोरखनाथ के जन्म के विषय में जन मानस में एक किंम्बदन्ती प्रचलित है , जो कहती है कि गोरखनाथ ने सामान्य मानव के समान किसी माता के गर्भ से जन्म नहीं लिया था । वे गुरु मत्स्येन्द्रनाथ के मानस पुत्र थे । वे उनके शिष्य भी थे । एक बार भिक्षाटन के क्रम में गुरु गुरु मत्स्येन्द्रनाथ किसी गाँव में गये । किसी एक घर में भिक्षा के लिये आवाज लगाने पर गृह स्वामिनी ने भिक्षा देकर आशीर्वाद में पुत्र की याचना की । गुरु मत्स्येन्द्रनाथ सिद्ध तो थे ही, उनका हृदय दया ओर करुणामय भी था। अतः गृह स्वामिनी की याचना स्वीकार करते हुए उनने पुत्र का आशीर्वाद दिया और एक चुटकी भर भभूत देते हुए कहा कि यथासमय वे माता बनेंगी । उनके एक महा तेजस्वी पुत्र होगा जिसकी ख्याति दिगदिगन्त तक फैलेगी । आशीर्वाद देकर गुरु मत्स्येन्द्रनाथ अपने देशाटन के क्रम में आगे बढ़ गये । बारह वर्ष बीतने के बाद गुरु मत्स्येन्द्रनाथ उसी ग्राम में पुनः आये । कुछ भी नहीं बदला था । गाँव वैसा ही था । गुरु का भिक्षाटन का क्रम अब भी जारी था । जिस गृह स्वामिनी को अपनी पिछली यात्रा में गुरु ने आशीर्वाद दिया था , उसके घर के पास आने पर गुरु को बालक का स्मरण हो आया । उन्होने घर में आवाज लगाई । वही गृह स्वामिनी पुनः भिक्षा देने के लिये प्रस्तुत हुई । गुरु ने बालक के विषय में पूछा । गृहस्वामिनी कुछ देर तो चुप रही, परंतु सच बताने के अलावा उपाय न था । उसने तनिक लज्जा, थोड़े संकोच के साथ सबकुछ सच सच बतला दिया । हुआ यह था कि गुरु मत्स्येन्द्रनाथ से आशीर्वाद प्राप्ति के पश्चात उसका दुर्भाग्य जाग गया था । पास पड़ोस की स्त्रियों ने राह चलते ऐसे किसी साधु पर विश्वास करने के लिये उसकी खूब खिल्ली उड़ाई थी । उसमें भी कुछ कुछ अविश्वास जागा था , और उसने गुरु प्रदत्त भभूति का निरादर कर खाया नहीं था । उसने भभूति को पास के गोबर गढ़े में फेंक दिया था । गुरु मत्स्येन्द्रनाथ तो सिद्ध महात्मा थे ही, ध्यानबल से उनने सब कुछ जान लिया । वे गोबर गढ़े के पास गये और उन्होने बालक को पुकारा । उनके बुलावे पर एक बारह वर्ष का तीखे नाक नक्श, उच्च ललाट एवं आकर्षण की प्रतिमूर्ति स्वस्थ बच्चा गुरु के सामने आ खड़ा हुआ । गुरु मत्स्येन्द्रनाथ बच्चे को लेकर चले गये । यही बच्चा आगे चलकर अघोराचार्य गुरु गोरखनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुआ ।

गोरखपुर

विजयेन्द्र कुमार माथुर[5] ने लेख किया है ...गोरखपुर (उ.प्र.) (AS, p.303) - गोरखपुर का नाम मध्ययगीन तपस्वी संत गोरखनाथ के नाम पर प्रसिद्ध है. यहां स्थित गोरखनाथ की समाधि तथा मंदिर उल्लेखनीय हैं. कुशीनगर (कुसिया) जो, बुद्ध का निर्वाण स्थल है, गोरखपुर से 34 मील उत्तर-पूर्व में है.

गोगाजी और गुरू गोरखनाथ

गोरखनाथ जी से सम्बंधित एक कथा राजस्थान में बहुत प्रचलित है। राजस्थान के महापुरूष गोगाजी का जन्म गुरू गोरखनाथ के वरदान से हुआ था। गोगाजी की माँ बाछल देवी निःसंतान थी। संतान प्राप्ति के सभी यत्न करने के बाद भी संतान सुख नहीं मिला। गुरू गोरखनाथ ‘गोगामेडी’ के टीले पर तपस्या कर रहे थे। बाछल देवी उनकी शरण मे गईं तथा गुरू गोरखनाथ ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया और एक गुगल नामक फल प्रसाद के रूप में दिया। प्रसाद खाकर बाछल देवी गर्भवती हो गई और तदुपरांत गोगाजी का जन्म हुआ। गुगल फल के नाम से इनका नाम गोगाजी पड़ा। गोगाजी वीर और ख्याति प्राप्त राजा बने। गोगामेडी में गोगाजी का मंदिर एक ऊंचे टीले पर मस्जिदनुमा बना हुआ है, इसकी मीनारें मुस्लिम स्थापत्य कला का बोध कराती हैं। कहा जाता है कि फिरोजशाह तुगलक सिंध प्रदेश को विजयी करने जाते समय गोगामेडी में ठहरे थे। रात के समय बादशाह तुगलक व उसकी सेना ने एक चमत्कारी दृश्य देखा कि मशालें लिए घोड़ों पर सेना आ रही है। तुगलक की सेना में हाहाकार मच गया। तुगलक की सेना के साथ आए धार्मिक विद्वानों ने बताया कि यहां कोई महान सिद्ध है जो प्रकट होना चाहता है। फिरोज तुगलक ने लड़ाई के बाद आते समय गोगामेडी में मस्जिदनुमा मंदिर का निर्माण करवाया।

References


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