Harnawa

From Jatland Wiki
Jump to navigation Jump to search
Ranabai Dham Harnawa
Ranabai
Ranabai

Harnawa (हरनावा) is a large village in Parbatsar tehsil of Nagaur district in Rajasthan. It is the birth place of Ranabai, known as 'Second Mira' of Rajasthan.

Location

Pincode of the village is 341501. It is situated 37km away from Parbatsar town and 113km away from Nagaur city. Being a large village, Harnawa has got its own gram panchayat. Bhadwa, Badoo and Kurada are some of the nearby villages.

Founder

Harnawa village was founded by Harji Ram Bhati, ancestor of Ranabai.

Genealogy of Ranabai

Harji Ram Bhati (founded Harnawa) → Dhunaji (founded Dhunasar, Dhoon gotra) → Jalam Singh → Ram Singh → Ram Gopal (w. Gangadevi Garhwal) → Ranabai (1504 -1570 AD)

Jat Gotras

Jat Gotras in Harnawa with number of families are:

History

Ranabai (रानाबाई) (1504-1570) was a Jat warrior girl and a Hindu mystical poetess whose compositions are popular throughout Marwar region of Rajasthan, India. She is known as 'Second Mira of Rajasthan". She was a disciple of sant Chatur Das also known as Khojiji. Ranabai composed many poems (padas) in Rajasthani Language. [1]

Jalam Singh, grandfather of Ranabai, had two sons namely, Ramoji (elder) and Ram Gopal (younger). Ram Gopal was married to Gangabai of Garhwal Jat Gotra. He had one son - Buwanji and three daughters namely Dhaanibai, Ranabai and Dhapubai. Thus Ranabai was the daughter of Ram Gopal and his wife Gangabai. [2]

Jalam Singh was grandfather of Ranabai and was a powerful sardar of about twenty villages around Harnawa. He was under Bidiyasar Chaudhary of Khinyala. Jalam Sing used to collect tax (lagan) from farmers and deposited with Chaudhary of Khinyala, who in turn used to send the taxes to Delhi Badshah.[3]

Ranabai's father Ram Gopal, being younger, was not that popular. He was not educated and so was Ranabai.

तेजापथ में स्थित यह गाँव

खरनाल से सुरसुरा का मानचित्र

संत श्री कान्हाराम[4] लिखते हैं कि..... [पृष्ठ-224]: सारे जहां के मना करने के बावजूद - शूर न पूछे टिप्पणो, शुगन न पूछे शूर, मरणा नूं मंगल गिणै, समर चढ़े मुख नूर।।

यह वाणी बोलकर तेजाजी अपनी जन्म भूमि खरनाल से भादवा सुदी सप्तमी बुधवार विक्रम संवत 1160 तदनुसार 25 अगस्त 1103 ई. को अपनी ससुराल शहर पनेर के लिए प्रस्थान किया। वह रूट जिससे तेजा खरनाल से प्रस्थान कर पनेर पहुंचे यहाँ तेजा पथ से संबोधित किया गया है।

तेजा पथ के गाँव : खरनाल - परारा (परासरा)- बीठवाल - सोलियाणा - मूंडवा - भदाणा - जूंजाळा - कुचेरा - लूणसरा (लुणेरा) (रतवासा) - भावला - चरड़वास - कामण - हबचर - नूंद - मिदियान - अलतवा - हरनावां - भादवा - मोकलघाटा - शहर पनेर..इन गांवो का तेजाजी से आज भी अटूट संबंध है।


[पृष्ठ-225]:खरनाल से परारा, बीठवाल, सोलियाणा की सर जमीन को पवित्र करते हुये मूंडवा पहुंचे। वहाँ से भदाणा होते हुये जूंजाला आए। जूंजाला में तेजाजी ने कुलगुरु गुसाईंजी को प्रणाम कर शिव मंदिर में माथा टेका। फिर कुचेरा की उत्तर दिशा की भूमि को पवित्र करते हुये लूणसरा (लूणेरा) की धरती पर तेजाजी के शुभ चरण पड़े।


[पृष्ठ-226]: तब तक संध्या हो चुकी थी। तेजाजी ने धरती माता को प्रणाम किया एक छोटे से तालाब की पाल पर संध्या उपासना की। गाँव वासियों ने तेजाजी की आवभगत की। इसी तेजा पथ के अंतर्गत यह लूणसरा गांव मौजूद है।

जन्मस्थली खरनाल से 60 किमी पूर्व में यह गांव जायल तहसिल में अवस्थित है।ससुराल जाते वक्त तेजाजी महाराज व लीलण के शुभ चरणों ने इस गांव को धन्य किया था। गांव वासियों के निवेदन पर तेजाजी महाराज ने यहां रतवासा किया था। आज भी ग्रामवासी दृढ़ मान्यता से इस बात को स्वीकारते हैं। उस समय यह गांव अभी के स्थान से दक्षिण दिशा में बसा हुआ था।

उस जमाने में यहां डूडीछरंग जाटगौत्रों का रहवास था। मगर किन्हीं कारणों से ये दोनों गौत्रे अब इस गांव में आबाद नहीं है। फिलहाल इस गांव में सभी कृषक जातियों का निवास है। यहाँ जाट, राजपूत, ब्राह्मण, मेघवाल, रेगर, तैली, कुम्हार, लोहार, सुनार, दर्जी, रायका, गुर्जर, नाथ, गुसाईं, हरिजन, सिपाही, आदि जातियाँ निवास करती हैं। गांव में लगभग 1500 घर है।

नगवाडिया, जाखड़, सारण गौत्र के जाट यहां निवासित है।

ऐसी मान्यता है कि पुराना गांव नाथजी के श्राप से उजड़ गया था।


[पृष्ठ-227]: पुराने गांव के पास 140 कुएं थे जो अब जमींदोज हो गये हैं। उस जगह को अब 'सर' बोलते है। एक बार आयी बाढ से इनमें से कुछ कुएं निकले भी थे।...सन् 2003 में इस गांव में एक अनोखी घटना घटी। अकाल राहत के तहत यहां तालाब खौदा जा रहा था। जहां एक पुराना चबूतरा जमीन से निकला। वहीं पास की झाड़ी से एक नागदेवता निकला, जिसके सिर पर विचित्र रचना थी। नागदेवता ने तालाब में जाकर स्नान किया और उस चबूतरे पर आकर बैठ गया। ऐसा 2-4 दिन लगातार होता रहा। उसके बाद गांववालों ने मिलकर यहां भव्य तेजाजी मंदिर बनवाया। प्राण प्रतिष्ठा के समय रात्रि जागरण में भी बिना किसी को नुकसान पहुंचाये नाग देवता घूमते रहे। इस चमत्कारिक घटना के पश्चात तेजा दशमी को यहां भव्य मेला लगने लग गया। वह नाग देवता अभी भी कभी कभार दर्शन देते हैं।उक्त चमत्कारिक घटना तेजाजी महाराज का इस गांव से संबंध प्रगाढ़ करती है। गांव गांव का बच्चा इस ऐतिहासिक जानकारी की समझ रखता है कि ससुराल जाते वक्त तेजाजी महाराज ने गांववालों के आग्रह पर यहां रात्री-विश्राम किया था। पहले यहां छौटा सा थान हुआ करता था। बाद में गांववालों ने मिलकर भव्य मंदिर का निर्माण करवाया।

लूणसरा से आगे प्रस्थान - प्रातः तेजाजी के दल ने उठकर दैनिक क्रिया से निवृत होकर मुंह अंधेरे लूणसरा से आगे प्रस्थान किया। रास्ते में भावला - चरड़वास - कामण - हबचर - नूंद होते हुये मिदियान पहुंचे। मिदियान में जलपान किया। लीलण को पानी पिलाया। अलतवा होते हुये हरनावां पहुंचे। वहाँ से भादवा आए और आगे शहर पनेर के लिए रवाना हुये।

नदी ने रोका रास्ताभादवा से निकलने के साथ ही घनघोर बारिस आरंभ हो गई। भादवा से पूर्व व परबतसर से पश्चिम मांडण - मालास की अरावली पर्वत श्रेणियों से नाले निकल कर मोकल घाटी में आकर नदी का रूप धारण कर लिया। इस नदी घाटी ने तेजा का रास्ता रोक लिया।

तेजा इस नदी घाटी की दक्षिण छोर पर पानी उतरने का इंतजार करने लगे। उत्तर की तरफ करमा कूड़ी की घाटी पड़ती है। उस घाटी में नदी उफान पर थी। यह नदी परबतसर से खरिया तालाब में आकर मिलती है। लेकिन तेजाजी इस करमा कूड़ी घाटी से दक्षिण की ओर मोकल घाटी के दक्षिण छोर पर थे। उत्तर में करमा कूड़ी घाटी की तरफ मोकल घाटी की नदी उफान पर


[पृष्ठ-228]: थी अतः किसी भी सूरत में करमा कूड़ी की घाटी की ओर नहीं जा सकते थे। दक्षिण की तरफ करीब 10 किमी तक अरावली की श्रेणियों के चक्कर लगाकर जाने पर रोहिण्डीकी घाटी पड़ती है। किन्तु उधर भी उफनते नाले बह रहे थे। अतः पर्वत चिपका हुआ लीलण के साथ तैरता-डूबता हुआ नदी पार करने लगा। वह सही सलामत नदी पर करने में सफल रहे। वर्तमान पनेर के पश्चिम में तथा तत्कालीन पनेर के दक्षिण में बड़कों की छतरी में आकर नदी तैरते हुये अस्त-व्यस्त पाग (साफा) को तेजा ने पुनः संवारा।

Birth of Ranabai

Ranabai was born in the family of Chaudhari Jalam Singh of village Harnawa in Parbatsar pargana of Marwar. [5] Jalam Singh was a Hindu Jat chieftain of Ghana gotra. [6] Sagar Mal Sharma in his book 'Rajasthan Ke Sant' has mentioned that her father was Jalam Jat. [7] But as per Dr Pema Ram she was of Dhoon gotra Jat vansha. [8] According to Dr Pema Ram[9] Ranabai was born on vaishakh shukla tritiya somwar samvat 1561 (1504 AD). This is also clear from a doha by Birdhichand, which reads as under in Rajasthani Language:

पन्द्रह सौ इकसठ प्रकट, आखा तीज त्यौहार
जहि दिन राना जन्म हो, घर-घर मंगलाचार

According to Dr Pema Ram [10] Ranabai's father was Ram Gopal and Jalam Singh was his grandfather. This is also clear from a doha by Birdhi Chand, which reads as under in Rajasthani Language:

जाट उजागर धून जंग, नामी जालम जाट ।
बस्ती रचक ओ दौ विगत, गण हरनावो ग्राम ।।
जालम सुत रामो सुजन, जा का राम गोपाल ।
उनका पुत्र भुवन ओरू, बाई बुद्धि विशाल ।। [11]

According to Karnisharan Charan of village Indokli also, as mentioned in 'Bā Rānā Jas Bāīsī' (बा राना जस बाईसी), Ram Gopal was father of Ranabai:

पन्द्रह सौ इकसठ प्रत्यक्ष, तीज अक्षय त्यौहार ।
पिता राम गोपाल घर, राना को अवतार ।।[12]

Chandra Prakash Dudi in his book 'Shri Ranabai Itihas' writes that Ranabai's father was Ram Gopal. [13]

भाटी और धुणा

हरजीराम भाटी के दो बेटे थे । बड़ा कानाजी, छोटा धुणा जी। कानाजी एक संत बन गए,जबकि धुणा जी ने धुणासर गाँव बसाया जो कि आज भी है रामदेवरा से 8 कि. मी. दूर है क्योंकि हरजीराम भाटी हरनावा गाँव बसाया था जो की परबतसर में है । वो जैसलमेर से आये थे पोकरण के पास से जब वहा पर पर अकाल पड़ गया तब उनके गाँव ने मालवा (मंदसोर) जाने जाने की सोची क्योंकी हरजीराम भाटी सरदार थे जब उन्होंने यहाँ पर पानी देखा तो हरनावा गाँव बसाया धुणाजी को अपने पूर्वजो के गाँव देखने की इच्छा हुई तो वो जैसलमेर आये यहा उन्होंने (धुणाजी ने) धुणासर गाँव बसाया । लेकिन कुछ समय बाद हरनावा गाँव आ गये उनका बेटे का जालम सिंह था जालम सिंह के बेटे का नाम रामसिंह था रामसिंह के बेटे का नाम रामगोपाल था उनकी शादी गंगा देवी (गढ़वाल गोत्री ) से हुई उनकी बेटी रानाबाई का जन्म सम्वत 1561 (10 अप्रेल 1504) आखा तीज को हुआ इस तरह भाटी और धूण एक ही गोत्र है । [14]

How to reach Harnawa

Location of Harnawa in Nagaur District

Harnawa can be reached from Parbatsar - Piplod - Bagot - Chitai - Gular - Harnawa. One can also come from Merta City - Bherunda - Hansor - Bakri - Harnawa.

Demograhhics

As of 2001 census te populatin of village is 6312, out of which 906 are SC people. Harnawa has a population of about 1100 families out of them 300 are Jats, 300 Rajputs (Medatia), Brahmans (60), Kumhars (50),Harijan (30), Mahajans (15) (Oswals and Maheshwaris).

See also

Ranabai

External links

References

  1. Dr Pema Ram & Dr Vikramaditya Chaudhary, Jaton ki Gauravgatha (जाटों की गौरवगाथा), First Edition 2004, Publisher - Rajasthani Granthagar, Jodhpur, Ph 0291-2623933, p. 40-41
  2. Dr Pema Ram & Dr Vikramaditya Chaudhary, Jaton ki Gauravgatha (जाटों की गौरवगाथा), First Edition 2004, Publisher - Rajasthani Granthagar, Jodhpur, Ph 0291-2623933, p. 34
  3. Dr Pema Ram & Dr Vikramaditya Chaudhary, Jaton ki Gauravgatha (जाटों की गौरवगाथा), First Edition 2004, Publisher - Rajasthani Granthagar, Jodhpur, Ph 0291-2623933, p. 34
  4. Sant Kanha Ram: Shri Veer Tejaji Ka Itihas Evam Jiwan Charitra (Shodh Granth), Published by Veer Tejaji Shodh Sansthan Sursura, Ajmer, 2015. p. 224-228
  5. Thakur Deshraj: Jat Itihas (Hindi), Maharaja Suraj Mal Smarak Shiksha Sansthan, Delhi, 1934, 1992 (pp – 610)
  6. Thakur Deshraj: Jat Itihas (Hindi), Maharaja Suraj Mal Smarak Shiksha Sansthan, Delhi, 1934, 1992 (pp – 610)
  7. Sagar Mal Sharma: 'Rajasthan Ke Sant', Part-1, Chirawa, 1997, p. 193
  8. Dr Pema Ram & Dr Vikramaditya Chaudhary, Jaton ki Gauravgatha (जाटों की गौरवगाथा), First Edition 2004, Publisher - Rajasthani Granthagar, Jodhpur, Ph 0291-2623933, p. 39
  9. Dr Pema Ram & Dr Vikramaditya Chaudhary, Jaton ki Gauravgatha (जाटों की गौरवगाथा), First Edition 2004, Publisher - Rajasthani Granthagar, Jodhpur, Ph 0291-2623933, p. 33
  10. Dr Pema Ram & Dr Vikramaditya Chaudhary, Jaton ki Gauravgatha (जाटों की गौरवगाथा), First Edition 2004, Publisher - Rajasthani Granthagar, Jodhpur, Ph 0291-2623933, p. 34
  11. Dr Pema Ram & Dr Vikramaditya Chaudhary, Jaton ki Gauravgatha (जाटों की गौरवगाथा), First Edition 2004, Publisher - Rajasthani Granthagar, Jodhpur, Ph 0291-2623933, p. 34
  12. Dr Pema Ram & Dr Vikramaditya Chaudhary, Jaton ki Gauravgatha (जाटों की गौरवगाथा), First Edition 2004, Publisher - Rajasthani Granthagar, Jodhpur, Ph 0291-2623933, p. 34
  13. Chandra Prakash Dudi: 'Shri Ranabai Itihas', Jaipur, 1999, p. 3
  14. Ranabai Ka Itihas Jat Samaj-July 2000, as told by Ramaram Dhun Pujjari of Ranabai Mandir Harnawa. JEETUTOMARJAT (talk) 12:59, 16 November 2012 (EST)

Back to Places