Hinglaj

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Author: Laxman Burdak लक्ष्मण बुरड़क

Hinglaj (Hindi:हिंगलाज, Urdu: ﮨنگلاج ), Hinglaz, is an important Hindu pilgrimage place in Layari tahsil, Lasbela district of Balochistan province, Pakistan.

Location

It is situated in Balochistan province about 250km north-west of Karachi[1]. It is 19 km from Arabean sea and 130 km from western cost of Indus River, located in Khirkar Hill series.

History

The Kshatriyas in ancient times had movements between Baluchistan and India. Thakur Deshraj writes that the Jats of Braj area traditionally sing songs of Hinglaj devi and it is very likely that the jats constructed the temple of Hinglaj Mata at Balochistan. During mauryan period kulut was capital of this country and Chitra Varma was the ruler. Jats have Baloch Gotra. [2] According to Usha Agarwal, The Mauri rulers founded the temple of Hinglaj Mata in Mandsaur district as she was their kuladevi. Initially this area was known as 'Hinglaj Tekri' but later the Mauri rulers built a fort here and this came to be known as Hinglajgarh or Hinglaj Fort. [3][4]


V S Agarwal[5] mentions....[p.39]: These six names (of mountains) seem to be taken from some Bhuvanakosha list, giving in order the ranges on the western frontiers from Afghanistan to Baluchistan. Starting from below, Shalvakagiri is phonetically the name of [p.40]: Hala Range lying north-south between Sind and Baluchistan. To the west of it is the Makran chain of hills the home of the Hingula River and Hingulaja goddess, Hingula seems to be the Prakrit form of Kimsulaka. It was also called by its synonymous name, the Parada country, Pardene of classical writers, corresponding to Pardayana of Patanjali (IV.2.99). Goddess Hihgula of this place is of vermilion colour, also called Dadhiparni, because of its association with the ancient Scythian tribes of Dahae and Parnians. It was worshipped also as Nani, or Nana of antiquity.

Mantra for Devi Hinglaj by Dadhichi

The mantra or incantation for Devi Hinglaj is attributed to Saint Dadhichi, an important saint in Hindu mythology. The mantra is :

ॐ हिंगले परम हिंगले अमृतरुपिनी तनु शक्ति मनः शिवे श्री हिंगलै नमः स्वाहा
om hingule param hingule amrutrupini tanu shakti manah shive shree hingulai namah swaha

Translation : "Oh Hingula Devi, she who holds nectar in her self and is power incarnate. She who is one with Lord Shiva, to her we pay our respects and make this offering (swaha)"

Hinglaj Mata in Baluchistan

हिंगलाज देवी का मंदिर पाकिस्तान में बलूचिस्तान प्रांत के लासबेला जिले के कस्बे हिंगलाज में स्थित है। यह स्थल लयारी तहसील का भाग है। कराची के उत्तर पश्चिम में 250 किमी की दूरी पर स्थित इस मंदिर की अरब सागर से दूरी मात्र 19 किमी है, जबकि सिंधु नदी के पश्चिमी किनारे से दूरी 130 किमी। यह मंदिर खीरकाड़ पर्वतीय श्रंखला में स्थित है।

इसी कस्बे के हिंगोल नेशनल पार्क में यह मंदिर स्थित है। इसे हिंगलाज माता का मंदिर और नानी-माता मंदिर के नाम से भी पुकारते हैं। यह मंदिर पौराणिक शक्ति पीठों में से एक है। हिंगोल नदी के तट पर एक पर्वतीय गुफा में स्थित इस मंदिर की मान्यता शिव-सती प्रकरण से जुड़ी है। पौराणिक मान्यता है की सती का मस्तक इसी स्थान पर गिरा था। यहाँ पर माता की पूजा एक पिंडी के रूप में होती है जिस पर सिंदूर का लेप चढ़ा रहता है। संभवत सिंदूर के लिए संस्कृत शब्द हिंगुल से इस देवी को हिंगुला देवी भी कह दिया जाता है। हिंगलाज के आस-पास गणेशकाली की मूर्तियाँ, गुरु गोरखनाथ की धुणी, ब्रह्म कुंड, तीर कुंड, गुरु नानक खड़ाऊ, राम-झरोका बैठक, अनिल कुंड, चंद्रकूप, अघोरी मंदिर आदि हैं। ब्रह्म-क्षत्रिय समुदाय के लोग हिंगलाज माता को कुलदेवी मानते हैं।

कहते हैं यहाँ दधीचि ने सिंध के शासक रतनसेन को अपने आश्रम में सुरक्षा प्रदान की थी। लेकिन रतनसेन एक बार कार्यवाश आश्रम से बाहर निकले तो परशुराम ने उनको मार डाला था परंतु उनके बेटे जयसेन आश्रम में सुरक्षित रहे। परशुराम जब आश्रम में आए तो उन बेटों को ब्राह्मण पुत्र के रूप में परिचित कराया गया। कुछ समय पश्चात ऋषि दधीचि के माध्यम से हिंगलाज माता का रक्षा मंत्र लेकर जयसेन सिंध लोटे ताकि राजपाट संभाल सकें। हिंगलाज माता ने न केवल जयसेन की रक्षा की बल्कि परशुराम को हिंसा-त्याग के लिए भी प्रेरित किया। स्थानीय मसलमान भी हिंगलाज माता को पूरी श्रद्धा से देखते हैं।

संदर्भ - जाट गाथा, नवंबर-2016, p. 11-12

शाकम्भरी शक्तिपीठ

शिव पुराण में इसका वर्णन मिलता है कि एक बार सती के पिता दक्ष प्रजापति ने यज्ञ का आयोजन किया। इस अवसर पर सती व उसके पति शिव के अतिरिक्त सभी देवी-देवताओं व ऋषि-मुनियों को बुलाया गया। जब सती को इस बात का पता चला तो वह अनुचरों के साथ पिता के घर पहुंची। तो वहां भी दक्ष ने उनका किसी प्रकार से आदर नहीं किया और क्रोध में आ कर शिव की निंदा करने लगे। सती अपने पति का अपमान सहन न कर पाई और स्वयं को हवन कुंड में अपने आप होम कर डाला। भगवान शिव जब सती की मृत देह को लेकर ब्राह्मांड में घूमने लगे तो भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 52 हिस्सों में बांट दिया। जहां-जहां सती के अंग गिरे वहां-वहां पर शक्ति पीठ स्थापित हुए। कांगड़ा के स्थान पर माता का वक्षस्थल गिरा था जिसके कारण माता वज्रेश्वरी कहलाई। इसी प्रकार कलकत्ता मे केश गिरने से महाकाली, असम मे कोख गिरने से कामाख्या, मस्तिष्क का अग्रभाग गिरने से मनसा देवी, जिह्वा गिरने से ज्वालामुखी देवी, सहारनपुर के पास शीश गिरने से शाकम्भरीदेवी, ब्रह्मरंध्र गिरने से हिंगलाज देवी आदि शक्तिपीठ भक्तों की आस्था के केन्द्र बन गये।

External links

References

  1. Hindus in Pakistan - BBC News
  2. Thakur Deshraj Jat Itihas, 1992, p. 177
  3. Usha Agarwal:Mandsaur Zile Ke Puratatvik samarakon ki paryatan ki drishti se sansadhaniyata - Ek Adhyayan, Chirag Prakashan Udaipur, 2007, p. 38
  4. Puran Sahgal:Dashpur Janapad mein Arawali ke Sudrarh Durg Prachir, Shodh Patra, Sangoshthi, Mandsaur, 1991, p. 104
  5. India as Known to Panini,pp.39-40

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