Itihas Ke Vibhinn Kalkhandon Mein Jat Jati Ka Safarnama
लेखक: दौलतराम सारण (इतिहासकार), जाट विकास संस्थान, सरदारशहर (चूरू)
जाट इतिहासकार ठाकुर देशराज ने जाटों की विस्तृत जनपदीय शासन व्यवस्था का उल्लेख किया हैं | प्राचीन एवं मध्यकालीन साहित्य में महाभारत काल से जैन-बोद्ध काल, यूनानी व अरब आक्रान्ताओं के हमलों के समय तक सिन्धु नदी के विस्तृत क्षेत्र से गंगा नदी के पश्चिमी किनारों एवं पाकिस्तान के सीमावर्ती इलाकों तक शक्तिशाली जाट गणराज्यों का उल्लेख मिलता हैं | विदेशी आक्रान्ताओं का सर्वप्रथम मुकाबला सीमावर्ती जाट जनपदों से ही होता था |
राजस्थान में जाट जनपद
इतिहासकारों के अनुसार उत्तरी राजस्थान में बीकानेर रियासत की स्थापना के समय जाटों के सात बड़े एवं अन्य छोटे छोटे जाट जनपद थे | इस इलाके में आज भी गाँवों, तालाबों व कुओं की पहचान आबाद करने वाले जाटों के नाम के साथ जुड़ी हुई हैं | जाटों ने जब ये गाँव बसाये, तो अन्य जातियों को भी इन गांवों में अपने साथ बसाया |
1. वर्तमान राजगढ़ तहसील व उसके आसपास के क्षेत्र के 360 गाँव पूनियां जनपद के भाग थे, इसे पुनियान कहा जाता था | लुद्दी-बड़ी इसकी राजधानी थी |
2. पूनियां जनपद के पश्चिम में सीमावर्ती कस्वां जनपद था, जो वर्तमान चूरू इलाके से लेकर सिधमुख तक का क्षेत्र हुआ करता था | इसमें 360 गाँव थे व सिधमुख इसकी राजधानी थी |
3. कस्वां जनपद के पश्चिम में वर्तमान सरदारशहर तहसील वाला क्षेत्र व आसपास का क्षेत्र सारण जनपद का भाग था | यहाँ अधिकतर सारण जाटों द्वारा आबाद गाँव थे | इसे सारणोटी कहा जाता था | इसमें 360 गाँव थे व भाड़न्ग इसकी राजधानी हुआ करती थी |
4. कस्वां जनपद के उत्तर में भादरा सिरसा व नोहर वाला कुछ क्षेत्र बेनीवाल जनपद का भाग था | इसमें भी 360 गाँव थे तथा रायसलाणा इसकी राजधानी हुआ करती थी |
5. सारण जनपद के उत्तर में साहवा से लेकर धानसिया तक जिसमें आंशिक रूप से भादरा व नोहर तहसील का दक्षिणी भाग शामिल था, इसमें 84 गाँव थे, सहू जनपद का भाग था | धानसिया इसकी राजधानी थी |
6. सारण जनपद के पश्चिम में डुंगरगढ़ एवं लुनकरणसर क्षेत्र गोदारा जनपद का भाग था | इसमें 360 गाँव थे | पहले इसकी राजधानी उदरासर के पास लाधड़ीया हुआ करती थी | बाद में शेखसर को राजधानी बना दिया गया |
7. गोदारा जनपद के उत्तर में भोजासर, सुंई-शेरपुरा से लेकर पल्लू रावतसर व गन्धेली तक 184 गांवों का इलाका सिहाग जनपद का भाग था, इसे सिहागोटी कहा जाता था | पल्लू व सुंई इसकी राजधानी हुआ करती थी |
इसके अलावा सताईस मंझले व अनेकों छोटे छोटे जनपद हुआ करते जिसमें रातुसर-कालवासिया-पिचकराई के आसपास सींवर, मेहरी-कोहिना के आसपास महिया, बिजरासर-साडासर क्षेत्र में पोटलिया, बुकनसर बड़ा व आसपास में डूडी, मालासी व उसके आसपास में दहिया, रिड़ी-बिग्गा-जखासर में जाखड़ थे | मालासी का रिक्ताराम, रामसीसर का बोयतराम, वीर बिग्गा जी, सूफी संत शेख फ़रीद (सन 1173-1265) के शिष्य तेजू पीर (पातवाना) लोकदेवता के रूप में अनेक महापुरुष हुए |
जाट जनपदों का पतन
आपसी सामंजस्य के अभाव में विक्रम संवत् 1545 (1488 ई.) में जाटों ने अपनी जनपदीय व्यवस्था समाप्त कर ली एवं शासक से शासित वर्ग की श्रेणी में आ गया | कालान्तर में रियासत व जागीरों की स्थापना के कारण जाट सामाजिक व आर्थिक शोषण के शिकार होते गये एवं अपनी मूल-भूमि से बेदखल होने शुरू हो गये |
रियासत द्वारा जाट-गांवों के नाम बदले
रियासत द्वारा जाटों के इन गांवों में गढ़ बनाकर गाँव के नाम बदलने का सिलसिला शुरू किया गया |
- सन 1766 में गजसिंह ने लुद्दी-बड़ी का नाम राजगढ़,
- 1799 में बिगोर का नाम फतेहगढ़,
- 1800 ई. में सूरतसिंह ने सोढ़ल का नाम सूरतगढ़,
- 1803 में सूरतसिंह ने अपने राजकुमार रतनसिंह के नाम पर कोलासर का नाम रतनगढ़,
- 1805 में भटनेर का नाम हनुमानगढ़,
- 1830-31 में रतनसिंह ने अपने राजकुमार के नाम पर सूरतगढ़ के पास स्थित अलवाना गाँव का नाम सरदारगढ़ व
- 1838 में राजियासर का नाम पहले सरदारगढ़ व फिर 1843 में सरदारगढ़ से सरदारशहर में बदल दिया |
- 1920 में सादुलसिंह ने राजगढ़ के पश्चिमी भाग का नाम सादुलपुर बदल दिया |
- 26 अक्तूबर 1927 को रामनगर का नाम गंगानगर बदल दिया |
- 16 मार्च 1941 को रिनी का नाम तारानगर बदल दिया | इसी प्रकार
- सारसू-रुपालसर से डुंगरगढ़,
- कोट-खरबूजा का नाम सुजानगढ़,
- चुडेहर का नाम अनुपगढ़ बदल दिया तथा अनेकों गांवों के नामों के साथ अपने जागीरदारों, राजपुरोहितों, चारणों के नाम जोड़कर जाटों द्वारा आबाद इस इलाके की ऐतिहासिक पहचान बदल दी गयी |
जाट जागृति
जबकि पंजाब, हरियाणा व पश्चिमी उत्तरप्रदेश का इलाका देश की आजादी तक स्वायतशासी क्षेत्र रहा | इस इलाके में रियासतों व जागीरों का कोई इतिहास नहीं मिलता | यही कारण हैं कि पंजाब, हरियाणा व पश्चिमी उत्तरप्रदेश का जाट आज भी उन्नत अवस्था में हैं | लम्बी अवधि के अंधकार युग से गुजरने के बाद जाट कौम ने करवट ली | सामाजिक एवं राजनीतिक चेतना का दौर शुरू हुआ | जिसकी आगाज सर्वप्रथम चूरू कस्बे में स्वामी गोपाल दास जी द्वारा 1907 में सर्वहितकारिणी सभा की स्थापना में सुनाई देती हैं | स्वामी गोपाल दास जो मूल रूप से चूरू जिले के गिनड़ी गाँव के पास स्थित भेरुसर के कस्वां जाट परिवार में पैदा हुए थे | सर्वहितकारिणी सभा द्वारा वाचनालय, पुत्री पाठशाला, कबीर पाठशाला, अनाथालय, महिलाश्रम आदि संस्थानों का संचालन किया गया |
9 अगस्त 1917 को बहादुर सिंह भोभिया द्वारा हनुमानगढ़ में जाट एंग्लो वैदिक स्कूल की स्थापना की गयी जो आगे चलकर हनुमानगढ़ से संगरिया स्थानांतरित होकर स्वामी केशवानन्द के नेतृत्व में विशाल संस्था के रूप में कार्य किया |
विद्यार्थी आश्रम रतनगढ़ व ग्रामोदय शिक्षण संस्थान खिंचीवाला ने शिक्षा के प्रसार में अहम् भूमिका निभायी |
इन संस्थानों से शिक्षा ग्रहण कर समाज सुधार, राजनीति, राजकीय सेवाओं में बहुत बड़ी संख्या में दलित मजदुर व किसानों के लड़के उच्च पदों पर पहुंचे | ग्रामोत्थान विद्यापीठ संगरिया के सानिध्य में किसान नेता श्री दौलतराम सारण ने बीकानेर संभाग में 287 स्कूलों की स्थापना व संचालन में महत्वपूर्ण योगदान दिया | चौ. कुम्भाराम आर्य व चौ. हनुमान सिंह बुडानिया, चौ. हरिश्चन्द्र नैन, चौ. मोतीराम सारण जैसे महापुरुषों ने क्रांति व समाज सुधार का बिगुल बजाया | हर कस्बे में किसान छात्रावास व जाट भवनों का निर्माण किया | जन जाग्रति के अग्रदूतों ने शेखावाटी किसान आन्दोलन, मारवाड़ किसान आन्दोलन, दुधवा खारा किसान आन्दोलन, काँगड़-महाजन-रायसिंहनगर आदि किसान आन्दोलनों में सफल नेतृत्व प्रदान किया | चौ. कुम्भाराम आर्य व दौलत राम सारण की जोड़ी ने बीकानेर सम्भाग में भूमि सुधार कानून बनाने व लागू करने में अहम् भूमिका निभायी | सरदारशहर के ग्रामीण आँचल के छात्रों के रहने के लिये चौधरी दौलतराम सारण ने किसान छात्रावास व ग्रामीण बालिकाओं के शैक्षिक विकास के लिए कन्या छात्रावास की स्थापना की | प्रो. कन्हैयालाल सींवर ने इन संस्थानों के संचालन में अपनी अविस्मर्णीय सेवाएं दी व वर्तमान में किसान नेता दौलतराम सारण के सुपुत्र श्री कृष्ण कुमार सारण के मार्गदर्शन में निरंतर प्रगति के पथ पर अग्रसर हैं | सरदारशहर आंचल के जागरूक लोगों ने सन 1988 में जाट विकास संस्थान की स्थापना की | इस संस्थान द्वारा सामाजिक उत्थान हेतु विगत तीन दशकों से भव्य निर्माण से लेकर सालाना प्रतिभा सम्मान समारोह व जनचेतना के कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे हैं | संस्थान के निरंतर उत्थान में श्री धनजी भुकर, किशन जी बेनीवाल, रामेश्वर जी मुंड, डॉ. धनपत चौधरी, मोहन जी चौधरी, रेवंतराम जी बेनीवाल, एडवोकेट महेन्द्र जी सींवर जैसे अनेक लोगों ने अपना बहुमूल्य योगदान दिया हैं | आज यह संस्थान अपने उद्देश्य पथ पर निरंतर अग्रसर हैं | समाज जागृति शताब्दी महोत्सव एवं स्वामी केशवानन्द अकादमी शुभारम्भ 2022 का मुख्य उद्देश्य समाज में शिक्षा प्रसार व नव-चेतना का संचार करना हैं |
सन्दर्भ
सन्दर्भ स्त्रोत : 1. नैनसी री ख्यात 2. दयालदास री ख्यात 3. वकेय राजपुताना – मुंशी ज्वालासहाय 4. Anlas and Antiquities of Rajasthan – Colonel Tod. 5. Bikaner Gazetteers – PW Powlet 6. जाट इतिहास ठाकुर देशराज 7.राजस्थान के जाटों का इतिहास – डॉ. पेमाराम 8. बीकानेर का इतिहास – डॉ. ओझा 9. भटनेर का इतिहास – हरिसिंह भाटी 10. बीकानेर के राजघराने का केन्द्रीय सत्ता से सम्बन्ध – डॉ. करणी सिंह 11. जाट जनपदों के वंशावली