Jat Gazette
Author:Laxman Burdak, IFS (R) |
Jat Gazette, an Urdu weekly, was started in 1916 at Rohtak. It was an organ of the Zamindara League and enjoyed the patronage of the Unionist Party. Its circulation in Rohtak district was the highest when the Unionist Party was in power in Punjab. For some time, this paper was sent to villagers free of cost. The paper espoused the cause of rural population, particularly the farmers. The paper, however, ceased publication in 1980s.
पंचायते आज़म खेड़ा बरौणा: 7 मार्च 1911
रोहतक जाट सभा ने दिसंबर 1917 में जाट गजट नामक अखबार शुरू किया था। इसके नीति संपादक चौधरी छोटू राम थे। इस समाचार पत्र में, रोहतक जिले के दहिया गोत्रीय खेड़े बरौणा गाँव में 7 मार्च 1911 को आयोजित पंचायते आज़म (महा पंचायत) के आह्वान पर हरयाणा क्षेत्र, बीकानेर रियासत, व पश्चिमी उत्तर प्रदेश में स्थापित शिक्षण स्थानों जैसे एंग्लो संस्कृत जाट स्कूल रोहतक, जाट हीरोज मेमोरियल हाई स्कूल रोहतक, वेदिक संस्कृत जाट मिडिल स्कूल खेड़ा गढ़ी सूबा देहली, वेदिक जाट स्कूल बड़ौत जिला मेरठ, जाट मिडिल संगरिया मंडी बीकानेर रियासत, किंग एडवर्ड मेमोरियल जाट स्कूल लखावटी जिला बुलंदशहर, हेली रिफाये आम स्कूल नरेला सूबा देहली व सीकर झुंझनु के जाट विधार्थी पढ़ाने वाले बिडला स्कूल पिलानी से सम्बंधित खबरें जाट गजट अखबार में महत्वपूर्ण जगह पाती थी।
ऐसी ही एक स्कूल के आधारशिला समारोह की खबर की झलक जाट गजट अखबार में।
Source - Virendra Singh Kadipur (Jatrana)
वैदिक संस्कृत जाट स्कूल खेड़ा गढ़ी सूबा देहली का बुनियादी पत्थर
25 सितंबर 1920 ई. (दिन शनिवार माह भादो शुक्ल पक्ष त्रयोदसी) वैदिक संस्कृत जाट स्कूल खेड़ा गढ़ी सूबा देहली की तारीख में एक खास दिन है क्योंकि इस दिन स्कूल का बुनियादी पत्थर रखने की रस्म अदा की गई जिसकी विस्तृत जानकारी निम्नलिखित है।
सुबह के वक्त बड़ा भारी हवन यज्ञ हुआ और इस यज्ञ की सुगंधी ने दूर दूर तक हवा को महका दिया जिससे हर दिलो-दिमाग को ताजगी पहुंचती थी। हर शख्स की तबीयत को आनंदमय करती थी। हवन के बाद संध्या हुई। फिर उपस्थित महानुभावों की ईश्वर, धर्म और विद्या संबंधी भजनों से दावत की गई। ठीक 10 बजे एक आम जलसा हुआ जिसके सभापति चौधरी भीम सिंह गढ़ी निवासी थे। हालांकि आजकल फसल की वजह से लोगों को फुर्सत कम है फिर भी हाजिरी बहुत ज्यादा थी। मैनेजिंग कमेटी के तकरीबन 33 मेंबर हाजिर थे। यह इस बात का बड़ा सबूत है कि लोग स्कूल संबंधित मामलों को बहुत शौक से लेते हैं। सर्व प्रथम चौधरी टीकाराम बी. ए. (ऑनर्स) खड़े हुए और आपने इस मौके के महत्व को जतलाते हुए कहा कि चौधरी सुरजमल जी बी. ए. निवासी खांड़ा खेड़ी ने, जो लाहौर में शिक्षारत हैं 51 रुपये की रकम इस शुभ मौके पर स्कूल के लिए भेजे हैं। हालांकि इस मौके पर न किसी किस्म की अपील की गयी और न करने का इरादा था ताहम फिर भी जिनके कोमी दिलों में कोमी उद्धार की अग्नि प्रचंड हो रही है वो कब अपीलों का इंतजार करते हैं। इनका जोश और शहादत इन्हें चैन लेने नहीं देता। फलस्वरूप चौधरी सूरजमल जी के दान के ऐलान के बाद फोरन ही चौधरी रिछपाल सिंह जो इस स्कूल बैहसियत चपडासी खिदमत कर रहे हैं 15 रुपये मेज पर रख दिए और प्रतिज्ञा की के 6 रुपये सालाना और देता रहेगा। इस संबंध में ये बात खासतौर पर गौर करने काबिल है कि चौधरी रिछपाल सिंह के पास कुल रकम 15 रुपये ही थे जो इसने अब तक यहां तीन माह के अरसे में बचाए हैं। दूसरे मायनों में इसने अपनी तमाम पूंजी वेदी पर रख दी। अब जाट जाति का सच्चा सपूत देश का सच्चा वीर और विद्या का सच्चा उपासक चौधरी हरफूल सिंह नाहरी निवासी जो अभी भी पढ़ाई कर रहा है और जिसकी उम्र सिर्फ 18 साल की है आगे बढ़ा और अपनी स्वर्गवासी माता की याद में कमरा बनवाने की प्रतिज्ञा की और कमरे की रकम में से एक सो रुपये की रकम उसी वक्त दे दी। इस नौजवान की दानवीरता देखकर उपस्थित जन ऐसे खुश हुए कि तालियों से कमरा गुंजा दिया। धन्य है वो मां जिसने हरफूल सिंह जैसे होनहार को दूध पिलाया और गोद खिलाया। हरफूल जो सच्चे मायनों में देश और जाति का फूल है। तेरी महक से अगर कौम ने चाहा तो ये भारतवर्ष फिर से महक उठेगा। इस जगह ये बात खासतौर पर ध्यान देने के काबिल है कि इस होनहार की बदौलत स्कूल के लिए सबसे पहला चंदा उत्साही नौजवान की जन्म भूमि नाहरी में हुआ और स्कूल का सबसे पहला कमरा भी नाहरी के इस सच्चे सपूत ने ही दिया। सच पूछा जाए तो ना हरी की बजाए फल फूल रही बन गई। इस वीराने में अपने गांव का नाम रोजे रोशन की तरह रोशन कर दिया। दूसरी बात का काबिले गौर ये है कि चौधरी हरफूल सिंह सबसे पहले हैं जिन्होंने तालीम के अयाम और इस छोटी सी उम्र में इस कदर अधिक रकम दान करने का संकल्प किया है। जाट जाति में तो क्या बल्कि दूसरी जातियों में भी ऐसी मिसाल मिलनी अगर असंभव नहीं तो मुश्किल जरूर है। जो जाति हरफूल सिंह जैसा ज्योतिर्मय लाल व कीमती फूल पैदा कर सकती है तो क्या ऐसी कौम अज्ञानी व पिछड़ी रह सकती है। हरगिज़ नहीं! हरगिज़ नहीं! चौधरी हरफूल सिंह की इस सात्विक प्रतिज्ञा के बाद चौधरी रिसाल सिंह पहाड़ी धीरज वाले ने 50 रूपये दान दिये। आप देहली के उन नामवर महानुभावों में से हैं जिनको हर वक्त कौमी भलाई और तरक्की का ख्याल रहता है। आप 50 रुपये का दान दो माह पहले भी दे चुके हैं।
इसके बाद सर्वसम्मिति से निश्चय हुआ कि चौधरी भीम सिंह निवासी कादीपुर जो हरियाणा प्रांत में जाट जाति की जागृति के अग्रदूत ही नहीं है बल्कि जिन्होंने अपनी तमाम उम्र कौमी सेवा में खर्च कर दी। इन्होंने उस आजमाइश के दिनों में, जब जाट वीरों के जनेऊ उतरवाने के लिये हर तरह की कोशिश की जा रही थी और (सेहरी) खांडे में फुला ब्रह्मचारी ने दूरदराज से बड़े बड़े पंडित, जिनमें शिवकुमार और गुरुड़ध्वज जैसे विद्वान शामिल थे, सिर्फ इसलिये बुलाये ताकि जाट लोगों से यज्ञोपवित धारण करने का अधिकार छिना जाये, के समय सबसे आगे बढ़ कर अपनी महत्वपूर्ण सेवाएं कौम को दी हैं वे अपने पवित्र हाथों से इस स्कूल का बुनियादी पत्थर रखें। चौधरी हरीराम मैनेजर, स्कूल जिनके त्याग और पुरुषार्थ से ये दिन देखना नसीब हुआ और श्री आनंद मुनि जी जिन्होंने शुरू में इस भूमि में विद्या प्रचार की बुनियाद डाली और चौधरी अभय राम नरेला निवासी जो इस प्रांत के बड़े उत्साही कार्यकर्ता हैं और चौधरी रिसाल सिंह पहाड़ी वाले जिनके दिल में कौमी सेवा की लगन है और नौनिहाल हरफूल सिंह जिसने काबिले नमूना और बेनजीर मिसाल कायम कर दी है। इसलिए ये सब इस सुनहरे मौके पर ईट और गारा पकड़ाने का काम निभाएं।
ये हस्ताक्षर ठीक साढ़े ग्यारह बजे पत्थर रखने के लिये रवाना हुए। बुनियादी पत्थर एक संगमरमर का चौकोर टुकड़ा था जिसके ऊपरी सिरे पर सूरज (सूर्य) की तस्वीर बनी हुई थी जिससे मालूम हो जाये कि सूरजवंशी क्षत्रियों ने यह विद्यालय बनाया है। इससे नीचे की तरफ गायत्री मंत्र, जो वेदों का मुख्य मंत्र और वैदिक धर्म का तत्व है, खुदा हुआ था। इसके निचली तरफ वैदिक संस्कृत जाट स्कूल खेड़ा गढ़ी और विक्रमी सम्मत 1977 उकेरा हुआ था। जलसे में उपस्थित जन समूह के आगे बाजा बजता जाता था। ऐन मौके पर पहुंचकर सबने जुतियां उतार दी। चौधरी शादी राम हैडमास्टर और चौधरी टीकाराम ने उपरोक्त साहिबान के गले में मालायें डाली तथा सब ईश्वर उपासना के मंत्र एक सुर होकर गायन करने लगे। इसके बाद चौधरी भीम सिंह ने पत्थर रखा और हाजरीन बराबर गायत्री मंत्र का उच्चारण करते रहे। चौधरी टीकाराम बराबर फूलों की वर्षा करते रहे। यह समां देखने से ताल्लुक रखता था। मेरे पास अल्फाज नहीं की इसका पूरा नक्शा खींच सकूं। पत्थर रखा जाने पर स्वामी आनंद मुनि ने प्रार्थना कराई। तत्पश्चात चौधरी भीम सिंह ने एक संक्षिप्त सा भाषण दियाजिसमें आपने कहा कि आप साहबान ने जो सेवा कार्य मेरे सुपुर्द किया था इसे मैंने आप लोगों की मदद के भरोसे पर जैसा अच्छा बुरा मुझसे बन सका वो पूरा किया। चौधरी साहब की तकरीर के बाद चौधरी टीकराम ने वैदिक संस्कृत जाट स्कूल खेड़ा गढ़ी, हर गांव वालों, प्रधान कमेटी , मैनेजर स्कूल ,चौधरी भीम सिंह कादीपुर, चौधरी रिसाल सिंह, चौधरी अभय राम, चौधरी हरफूल सिंह, स्वामी आनंद मुनि, हैडमास्टर और विद्यार्थियों के लिये तीन तीन चियर्स (three cheers) का प्रस्ताव रखा। उपस्थित जन समूह ने खूब जोशो-खरोश से तालियां बजाकर अपनी दिली प्रशंसा का बड़ा सबूत दिया।
इसके बाद मिठाई बांटी गई और कार्रवाई बड़ी खुशी व आनंदमय माहौल में समाप्त हुई।
विद्या प्रेमी
शादी राम, हैड मास्टर व जॉइंट सैकेटरी
वैदिक संस्कृत जाट स्कूल खेड़ा गढ़ी
स्रोत: वीरेंद्र सिंह कादीपुर (जटराणा)
दलीपसिंह अहलावत ने लिखा है
दलीपसिंह अहलावत [1] ने लिखा है ....सन् 1916 में उर्दू साप्ताहिक ‘जाट गजट’ - स्कूलों के अतिरिक्त चौ० छोटूराम ने अखबार तथा लेखों के माध्यम से किसानों में जागृति लाने का काम भी किया। इस उद्देश्य से ‘जाट गजट’ नामक समाचार-पत्र निकाला गया। खर्च के लिए 1500 रुपये गांव मातनहेल के रायबहादुर चौधरी कन्हैयालाल ने पहले प्रकाशन के लिए दिए और ‘जाट गजट’ उर्दू साप्ताहिक चल पड़ा।
जाट गजट के पहले सम्पादक पं० सुदर्शन जी, दूसरे पं० श्रीराम शर्मा के पिता पं० बिशम्भरनाथ शर्मा झज्जर वाले, तीसरे चौ० मोलड़सिंह जो बहुत जोशीले हुए थे। सन् 1924 में चौ० शादीराम यात्री सम्पादक बने और फिर चौ० छोटूराम दलाल गांव छाहरा और 1971 ई० से धर्मसिंह सांपलवाल एडवोकेट सम्पादक हैं।
चौ० छोटूराम ने भ्रष्ट सरकारी अफसरों और सूदखोर महाजनों के शोषण के विपरीत अनेक लेख लिखे। ‘ठग्गी के बाजार की सैर’, ‘बेचारा जमींदार’, ‘जाट नौजवानों के लिए जिन्दगी के नुस्खे’ और ‘पाकिस्तान’ आदि लेखों द्वारा किसानों में राजनैतिक चेतना, स्वाभिमानी भावना तथा देशभक्ति की भावना पैदा करने का प्रयास किया। इन लेखों द्वारा किसान को धूल से उठाकर उनकी शान बढ़ाई। महाजन और साहूकार ही नहीं, अंग्रेज अफसरों के विरुद्ध भी चौ० छोटूराम जनता में राष्ट्रीय चेतना जगाते थे। अंग्रेजों द्वारा बेगार लेने और किसानों की गाड़ियां मांगने की प्रवृत्ति के विरोध में आपने जनमत तैयार किया था। गुड़गांव जिले के अंग्रेज डिप्टी कमिश्नर कर्नल इलियस्टर मोरों का शिकार करते थे। लोगों ने उसे रोकना चाहा परन्तु ‘साहब’ ने परवाह नहीं की। जब उनकी शिकायत चौ० छोटूराम तक पहुंची तो आपने जाट गजट में जोरदार लेख छापे जिनमें अन्धे, बहरे, निर्दयी अंग्रेज के खिलाफ लोगों का क्रोध व्यक्त किया गया। मिस्टर इलियस्टर ने कमिश्नर और गवर्नर से शिकायत की। जब ऊपर से माफी मांगने का दबाव पड़ा तो चौ० छोटूराम ने झुकने से इन्कार कर दिया। अपने चारों ओर आतंक, रोष, असन्तोष और विद्रोह उठता देख दोषी डी.सी. घबरा उठा और प्रायश्चित के साथ वक्तव्य दिया कि वह इस बात से अनभिज्ञ था कि “हिन्दू मोर-हत्या को पाप मानते हैं”। अन्त में अंग्रेज अधिकारी द्वारा खेद व्यक्त करने तथा भविष्य में मोर का शिकार न करने के आश्वासन पर ही चौ० छोटूराम शांत हुए।
External Links
Dndeswal (talk) 21:29, 1 March 2017 (EST)
References
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Chapter X (Page 901-902)
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