Jaisangsar
Jaisangsar (जयसंगसर) is a large village in Sardarshahar Tehsil of Churu district in Rajasthan.
Origin
Village gets name from its founder Jaisang Saran (जयसंग सारण).[1] Saran Jats migrated from village Phogabas Bharthari in Sardarshahar tahsil in Churu district, Rajasthan and Barda Saran son of Jaisang Saran founded this village.
Jat Gotras
History
लक्ष्मण महला जाट कीर्ति संस्थान चुरू ने अवगत कराया की गाँव में लगभग 600 साल पहले सारण जाटों ने एक जोड़ा खुदवाया। ऐसा कहते हैं की यह जोहड़ बड़ार पुत्र जयसंग सारण ने खुदवाया था। इसमें 51 काँच की सीढ़ियाँ लगी हुई होने की किंवदंती प्रचलित है। कहते हैं इस जोहड़ को बाद के शासकों ने बुरा दिया था। इसी गाँव में एक छतरी बनी है जो एक माँ के बेटे की मृत्यु पर सती होने के उपलक्ष में बनी थी।इस विषय में अनुसंधान की आवश्यकता है।
जयसंगसर की कहानी गांव वालों की जुबानी
बीकानेर संभाग की तहसील सरदारशहर के गांव जयसंगसर के बसने की कहानी बड़ी दिलचस्प एवं शौध के काबिल है। यहां जयसंग नाम का एक सारण गोत्री जाट था। जिसकी उम्र उस समय 75 वर्ष के आस-पास थी। तभी उनकी धर्मपत्नि का स्वर्गवास हो गया था। जैसंग के एक ही लड़का था, जिसका नाम भोजराज था। भोजराज शादीशुदा था और उसके एक पुत्र था। चौधरी जयसंग को दही खाने का बड़ा शौक था। बिना दही उनको खाना अच्छा नहीं लगता था। लड़के की पत्नि ने जयसंग को खाने के साथ दही देना बंद कर दिया तथा पति के जरिए से कहलवाया कि दही उपलबध ही नहीं है। जयसंग ने भी संतोष कर लिया कि जब दही उपलब्ध ही नहीं है तो पुत्रवधु कहां से देगी?
एक दिन जयसंग का पौत्र उसके पास आया और बोला कि दादा जी आज मैं दही के साथ खाना खाकर आया हूँ। दादा ने पोते से दही के बारे में सारी जानकारी हासिल कर ली, जबकि पोता इन सब बातों से अनभिज्ञ सब बातें दादा को बताता चला गया। दूसरी ओर इन सब बातों के खुलासे के बाद जयसंग ने प्रण कर लिया कि बेटे-बहु ने मेरी पत्नि की मृत्यु के पश्चात दही देना बंद कर दिया जो मेरा घोर अपमान है, अत: मैं आज से अन्न का त्याग कर दूंगा।
मैलूसर गांव में जयसंग का मलक नाम का छोटा भाई बसता था। जयसंग द्वारा अन्न त्याग देने के बाद भोजराज अपने चाचा मलक के पास गया तथा जयसंग द्वारा नाराज होकर अन्न त्याग देने की घटना के बारे में जानकारी दी। भोजराज ने चाचा से कहा कि आप चलकर पिताजी को अन्न त्याग करने से रोकें। मलक अपने भतीजे भोजराज को साथ लेकर जयसंग को मनाने के लिए चल पड़ा। मलक द्वारा जयसंग को मनाने के लिए जतन करने पर जयसंग पुनर्विवाह के लिए अड़ गया। मलक ने अपने भाई की शर्त भतीजे भोजराज को बताई कि तुम्हारे पिताजी दूसरी शादी करने पर ही अन्न ग्रहण करेंगे। भोजराज ने पिता की शर्त मान ली तथा पास ही के गांव आसूसर गया तथा वहां पर ढूकिया जाटों के यहां अपने पिता की दूसरी शादी के लिए माँ (मौसी) की मांग की। आसूसर के ढूकिये जाटों ने अपनी पुत्री की शादी चौधरी जयसंग के साथ कर दी। ढूकियां औरत से जयसंग के एक पुत्र हुआ, जिसका नाम बडाल रखा गया। बडाल जब बड़ा हुआ तो उसने अपने भाई भोजराज से एक बढ़िया घोड़ी की मांग रखी। इधर जयसंग मृत्यु के नजदीक था, लेकिन उसकी मृत्यु हो नहीं रही थी। तब जयसंग से पूछा गया कि आपकी इच्छा बताएं, जिससे आपकी मोक्ष हो सके। जयसंग ने कहा कि बडाल छोटा है, मेरी मृत्यु पश्चात भोजराज इसको परेशान करेगा। तदनुसार बडाल की रक्षा जिम्मेदारी जयसंग के वफादार चांवरिया नायकों को सौंपी गई। चांवरिया नायकों में से 100 बंदूकधारी चांवरियों की फौज बडाल की रक्षा के लिए तैनात की गई। चांवरिया नायकों से वचन लिया गया कि आप सदैव बडाल के साथ रहेगें तथा उसकी रक्षा करेगें, तभी मेरी मोक्ष होगी। चांवरिया नायकों ने ऐसा वचन दिया तथा जयसंग ने अपने प्राण त्याग दिए।
इधर घोडी की मांग पर भोजराज ने बडाल से कहा कि सारी घोड़ी अपनी ही हैं, तुमको जो पसंद हो वही ले लो। बडाल की मां ने भी भोजराज से यही मांग रखी तो भोजराज ने पहले वाला ही उत्तर दिया कि जितनी घोड़ी हैं, उनमें से जो पसंद हो वही रख लो। इस पर बडाल की मां ने भोजराज का घोड़ा ही मांग लिया। वचनानुसार भोजराज ने अपना सबसे बढिया घोड़ा बडाल को दे दिया।
बडाल घोड़े पर सवार होकर उसे जोहड़ में पानी पिलाने के लिए जाता था। भोजराज की घोडियां भी वहीं पानी पीती थीं, जिनको भोजराज का साला लेकर जाता था। बडाल के इस रवैये से परेशान होकर भोजराज के साले ने एक दिन बडाल को थप्पड़ जड दिया। इससे गुस्साये बडाल ने भोजराज के साले को गोली मार दी, जिससे उसकी मृत्यु हो गई। बडाल की मां इस घटनाक्रम से घबरा गई ताथा चावरिया नायकों से कहा कि बडाल को मेलूसर में चाचा मलक के पास ले जाओ, वरना भोजराज उसको मार डालेगा। भोजराज भी बडाल की खोज में मेलूसर पहुंच गया तथा चाचा मलक से बडाल को सौंपने को कहा। चाचा ने बडाल का पक्ष लेते हुए भोजराज को सौंपने से साफ इंकार कर दिया।
बडाल व उसकी मां ने सोचा की कि अलग बस जायें तो ठीक रहे। यह सोचकर बडाल ने टांई टिब्बे पर बसने का मन बना लिया, ताकि दोनों भाईयों के बीच झगड़ा नहीं हो। टांई टिब्बे पर बडाल ने गुप्त रूप से कुआं खुदवाना शुरू कर दिया। इसके लिए चारों ओर तंबू लगाकर कुएं को खोदने का काम युद्धस्तर पर शुरू हो गया। उस समय राजा की बिना आज्ञा के कुआं खोदना व गांव बसाना बहुत कठिन काम था। बडाल के चाचा मलक को जब पता चला तो उसने बीकानेर राजा के दरबार में स्वयं पेश होकर बडाल द्वारा गुप्त तरिके से कुआं खोदने की शिकायत कर दी। राजा ने मातहत अधिकारियों को निर्देश दिया कि शिकायत की जांच की जाये तथा आदेश दिया कि कुआं अगर मीठे पानी का हो तो ठीक, वरना उसे मिट्टी से भरवाकर बंद कर दें। साथ ही कहा कि मीठा पानी हो तो गांव बसाने की स्वीकृति दे देवें। इधर टिब्बे पर कुआं खोदने का कार्य पूरा नहीं हुआ था। बडाल ने चतुराई का परिचय दिया और कुएं में लोहे की कडाही रखवाकर उसमें पास के कामासर गांव से मीठा पानी लाकर भरवा दिया। जब अधिकारी जांच के लिए पहुंचे और उन्होंने कुएं से पानी निकलवाया तो पानी मीठा निकला। ऐसे में टिब्बे पर गांव बसाने की इजाजत दे दी गई। बडाल ने अपने पिता के नाम पर जयसंगसर नाम का गांव बसा दिया। अपने नाम से बडाल ने जोहड़ खुदवाया, जिसका नाम बडदाना रखा। किवदंती के अनुसार इसके 52 पेड़ी कांच की बनी हुई बताई जाती हैं। फिर भी इस तालाब को मिट्टी से भरवा दिया गया था। (विशेष - पुष्टी शोध के उपरांत ही संभव है)
जयसंगसर गांव बसने के बाद एक दिन दीपावली के दिन पूलासर का ब्राह्मण मेलूसर मलक के दीपावली का टीका तथा रामरमी करने पूलासर से जयसंगसर होते हुए निकला। बडाल ने ब्राह्मण से पूछ लिया कि दादा आज कहां जा रहे हो ? मेलूसर में मलक के घर दीपावली का टीका करने तथा दान-दक्षिणा लाने जा रहा हूँ – ब्राह्मण ने जवाब दिया। बडाल ने ब्राह्मण से प्रश्न किया कि मेरे घर भी टीका कर दो। मेरे पिता भी तो टीकाई (बड़े)थे – बडाल ने प्रश्न किया। इस पर पंडित ने बडाल के घर टीका कर दिया तथा बडाल ने खुश होकर पंडित को एक सोने की मोहर देकर मेलूसर के लिए आदर सहित विदा किया। पंडित ने भी बडाल को खुश होकर आर्शिवाद दिया और वहां से मेलूसर के लिए चल पड़ा। मेलूसर में जब पंडित ने मलक के घर टीका किया तो उसने पंडित को एक तांबे का टका दिया। पंडित ने कहा कि जैसा टिकाई जयसंग था, वैसे ही बडाल हैं। आप सूने माथे में रोली का तिलक करवाते हो। इस पर मलक नाराज हो गया तथा अपना अपमान समझकर बडाल पर चढाई कर दी। बडाल बडे़ भाई भोजराज के पास गया तथा संधि प्रस्ताव रखा कि आपको जैसाणा जोहड़ा दे दूंगा और टांई टिब्बा मैं रख लूंगा। चाचा मलक का मैं चावरिया नायकों की फौज लेकर के सामना कर लूंगा। इस प्रकार भोजराज से बडाल की संधि हो गई। तय हुआ कि सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक घोडे़ से बडाल जितना चक्कर लगा लेगा वो इलाका उसके हक अधिकार में रहेगा तथा वह जयसंगसर की सीमा मानी जाएगी। बडाल ने 9 किमी के घेरे में चक्कर लगाया तो जयसंगसर की सीमा में हरपालसर, पूलासर, कालूसर आदि भी इसकी सीमा में आ गए तथा ये इलाका जयसंगसर नाम से खातेदारी भूमि कहलाई। चौडसर तथा फौगां गांव की कुछ भी इसकी सीमा के तहत आई।
बडाल ने अपने नाम से सरदारशहर-रतनगढ़ रोड़ पर स्थित बरड़ासर गांव बसाया था, जिसे चारणों एवं भाटों को दान कर दिया था। बडाल के एक ही पुत्र था, जिसका नाम देवा था। देवा के नाम पर बडाल ने देवानियां (देवासर) गांव बसाया तथा पुत्रवधु बिल्ला के नाम पर बिल्यूं गांव की स्थापना की।
संदर्भ – 26 मार्च 2013 को लेखक (लक्ष्मण राम महला) ने जयसंगसर का भ्रमण किया तथा प्रवास के दौरान वहां के निवासियों की जुबानी जानकारी के आधार पर यह लेख तैयार किया। जानकारी बताने वाले सर्व श्री सत्यनारायण पुत्र हेतराम सारण एवं हरलाल पुत्र रामेश्वर लाल देडू थे। सारणों की बही भाट से शोध की आवश्यकता है। यह संपूर्ण जानकारी भेंट वार्ता पर आधारित है।
Population
According to Census-2011 information: With total 586 families residing, the Jaisangsar village has the population of 3444 (of which 1855 are males while 1589 are females).[2]
Jat Monuments
Temples
Notable persons
- Surja Ram Saran - Freedom fighter and social worker.[3]
गाँव जयसंगसार (सरदारशहर) से काँगड़ काण्ड में भाग लेने वाले जाट सदस्य[6] :
- मुकनाराम सारण पुत्र जीराम,
- घडसीराम सारण पुत्र भैराराम ,
- आँसूराम सारण पुत्र श्योजी राम,
- सुरजाराम सारण पुत्र लिछमन राम - स्यानण के ठाकुर बिशन सिंह ने इनका सर फोड़ दिया था,
- नानू राम सारण पुत्र हुकमा राम ,
- चुना राम सारण पुत्र गोरु राम,
- भूराराम सारण पुत्र हुक्मा राम,
- बक्साराम सारण पुत्र गुलाराम,
- मानाराम जाट,
- दानाराम जाट,
- पुरणाराम सारण पुत्र गंगाजल,
- श्योला राम सारण पुत्र न्योला राम,
- बेगाराम सारण पुत्र देवी सिंह,
- आसूराम सारण पुत्र खुमाराम,
- मामराज सारण पुत्र मुकना राम,
- चंद्राराम सारण पुत्र खुमानाराम,
Gallery
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Baksa Ram Saran, Jaisangsar
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Dula Ram Saran, Jaisangsar
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Ghadsi Ram Saran, Jaisangsar
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Ghadsi Ram Saran son of Bhiraram Jaisangsar
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Purn Ram, Jaisangsar
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Surja Ram Saran, Jaisangsar
External Links
References
- ↑ Churu Janpad Ka Jat Itihas by Daulat Ram Saran Dalman
- ↑ http://www.census2011.co.in/data/village/70425-jaisangsar-rajasthan.html
- ↑ Sanjay Singh Saharan, Dharati Putra: Jat Baudhik evam Pratibha Samman Samaroh Sahwa, Smarika 30 December 2012, by Jat Kirti Sansthan Churu, pp.11-12
- ↑ Sanjay Singh Saharan, Dharati Putra: Jat Baudhik evam Pratibha Samman Samaroh Sahwa, Smarika 30 December 2012, by Jat Kirti Sansthan Churu, pp.11-12
- ↑ Sanjay Singh Saharan, Dharati Putra: Jat Baudhik evam Pratibha Samman Samaroh Sahwa, Smarika 30 December 2012, by Jat Kirti Sansthan Churu, pp.11-12
- ↑ उद्देश्य: जाट कीर्ति संस्थान चूरू द्वारा आयोजित सर्व समाज बौधिक एवं प्रतिभा सम्मान समारोह, चूरू, जनवरी 2013, p.23
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