Jambumarga
Author:Laxman Burdak, IFS (R) |
Jambumarga (जंबुमार्ग) was a pilgrim mentioned in Mahabharata. Jambumarga is same as Jambu-Aranya and identified with Keshoraipatan (केशोरायपाटन) in Bundi district, Rajasthan. [1]
Variants
- Jambu-Aranya (जम्बू-अरण्य) (जिला कोटा, राज.) (AS, p.350)
- Jambumarga (जंबुमार्ग) (AS, p.351)
- Jamvu-marga/Jamvumarga (जम्बू मार्ग)
- Jambu-marga (जम्बू मार्ग)
Identification
Jambumarga is same as Jambu-Aranya and identified with Keshoraipatan (केशोरायपाटन) in Bundi district, Rajasthan. [2]
History
जंबुमार्ग
विजयेन्द्र कुमार माथुर[3] ने लेख किया है ...जंबुमार्ग (AS, p.351) महाभारत वन पर्व के अंतर्गत पश्चिम दिशा के जिन तीर्थों का वर्णन पांडवों के पुरोहित धौम्य ने किया है उनमें जंबुमार्ग भी है--'जम्बू मार्गॊ महाराज ऋषीणां भावितात्मनाम, आश्रमः शाम्यतां श्रेष्ठ मृगद्विज निषेवितः (वनपर्व 89, 13-14). श्री वी.एस. अग्रवाल के मत में जंबुमार्ग आबू पर्वत पर स्थित था किंतु इसका जम्बू-अरण्य से अभिज्ञान अधिक समीचीन जान पड़ता है. विष्णु पुराण में भी जम्मू मार्ग का उल्लेख है-- 'ततश्च तत्कालकृतां भावनां प्राप्य तादृशींजंबुमार्गे महारण्ये जातो जातिश्मारो मृग:' अर्थात राजा भरत, मृत्यु-समय की दृढ़-भावना के कारण जंबुमार्ग के घोरवन में अपने पूर्व जन्म की [p.352]: स्मृति से युक्त एक मृग हुए. यह तथ्य द्रष्टव्य है कि विष्णु पुराण और महाभारत दोनों में ही जंबुमार्ग में मृगों का निवास बताया गया है. विष्णु पुराण में जंबुमार्ग को स्पष्ट रूप से महारण्य कहा है. इससे भी इस स्थान का जम्बू-अरण्य से अभिज्ञान उपयुक्त जान पड़ता है.
जंबू अरण्य
विजयेन्द्र कुमार माथुर[4] ने लेख किया है ...जंबू अरण्य (AS, p.350) कोटा ज़िला, राजस्थान में स्थित प्राचीन अरण्य है। चंबल नदी के तट पर कोटा से लगभग 5 मील (लगभग 8 कि.मी.) की दूरी पर स्थित वर्तमान केशवराय पाटण ही प्राचीन जंबू अरण्य है। किंवदंती है कि अज्ञातवास के समय विराट नगर जाते समय पांडव कुछ दिनों तक यहाँ ठहरे थे। वर्तमान केशवराय का मंदिर कोटा नरेश शत्रुशल्य ने बनवाया था। यह भी लोकश्रुति है कि आदि मंदिर राजा रंतिदेव का बनवाया हुआ था। महाभारत तथा विष्णु पुराण में वर्णित 'जंबूमार्ग' सम्भवत: यही हो सकता है। (दे.जंबूमार्ग)
In Mahabharata
Jambu-marga (जम्बू मार्ग) (Tirtha) mentioned in Mahabharata (III.80.60), (III.80.62), (III.87.11), (XIII.26.48),
Vana Parva, Mahabharata/Book III Chapter 80 mentions Merit attached to tirthas. Jamvu-marga (जम्बू मार्ग) (Tirtha) mentioned in (III.80.60), (III.80.62). [5]... Having dwelt for twelve nights at Pushkara with regulated diet and vows, and having walked round (the place), one must go to Jamvu-marga] (जम्बू मार्गं) (3.80.60). One that goeth to Jamvu-marga which is resorted to by the celestials, the Rishis, and the Pitris, acquireth the merit of the horse-sacrifice and the fruition of all his wishes. The man that resideth there for five nights, hath his soul cleansed from all sins. He never sinketh into hell, but acquireth high success. Leaving Jamvu-marga one must go to Tandulikasrama (तण्डुलिकाश्रम) (3.80.62).
Vana Parva, Mahabharata/Book III Chapter 87 mentions the Sacred spots in the west. Jamvu-marga (जम्बू मार्ग) (Tirtha) is mentioned in verse (III.87.11).[6]....the region called Jamvumarga (जम्बू मार्ग) (III.87.11), inhabited by birds and deer, and which constitutes the retreat of ascetics with souls under control...
Anusasana Parva/Book XIII Chapter 26 mentions the sacred waters on the earth. Jambu-marga (जम्बू मार्ग) (Tirtha) is mentioned in Mahabharata (XIII.26.48).[7].....If one proceeds with restrained senses and a concentrated soul to the tirtha known under the name of Jambumarga, one is sure to attain to success in course of a single day and night.
References
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.350,351,352
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.350,351,352
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.351-352
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.350
- ↑ जम्बू मार्गं समाविश्य देवर्षिपितृसेवितम, अश्वमेधम अवाप्नॊति विष्णुलॊकं च गच्छति (III.80.60); जम्बू मार्गाद उपावृत्तॊ गच्छेत तण्डुलिकाश्रमम, न दुर्गतिम अवाप्नॊति सवर्गलॊके च पूज्यते (III.80.62)
- ↑ जम्बू मार्गॊ महाराज ऋषीणां भावितात्मनाम, आश्रमः शाम्यतां श्रेष्ठ मृगद्विजगणायुतः (III.87.11)
- ↑ जम्बू मार्गे तरिभिर मासैः संयतः सुसमाहितः, अहॊरात्रेण चैकेन सिद्धिं समधिगच्छति (XIII.26.48)