Jaton Ke Vishva Samrajya aur Unake Yug Purush/Author's Note
प्रकाशक: मरुधरा प्रकाशन, आर्य टाईप सेन्टर, पुरानी तह्सील के पास, सुजानगढ (चुरु)
जब कोई समुदाय नेता विहीन होता है तो इतिहास ही राह दिखाता है।जाटों का इतिहास सबसे शानदार है लेकिन खेद है कि जाट इतिहास में बहुत कम रुचि रखते हैं। बीसवीं सदी में अनेक विद्वानों ने जाटों के बारे में शानदार पुस्तकें लिखी है,जाटों ने भी और गैर जटों ने भी। इन महानुभावों में मुख्य रूप से ठाकुर देशराज, चौधरी रामलाल सिंह हाला, उजागरसिंह माहिल, बी. एस. दहिया, कै. दिलीपसिंह अहलावत, कानूनगो, उपेंद्र नाथ शर्मा, पी. सी. चंदावत, कुँवर नटवर सिंह, एम. सी. प्रधान, आदि। जयपाल अजेंसी आगरा के प्रयास भी सराहनीय हैं। यह विशिष्टता का युग है। जाट इतिहास और जाट महापुरुषों के बारे में युवा पीढ़ी बहुत कम जानती है। आपाधापी के इस युग में युवा पीढ़ी पर पढ़ाई व अपने पैरों पर खड़े होने का भी बोझ है। खाली समय के उपयोग के लिए उसके पास टी. वी., इंटरनेट, मनोरंजन क्लब, फिल्में, खेल, भ्रमण आदि अनेक विकल्प हैं। पढ़ने के लिए अनेक पत्र-पत्रिकाएँ, और दुनिया भर की पुस्तकें उपलब्ध हैं। इस माहौल में युवा पीढ़ी जाट इतिहास के महान कार्यों की जानकारी अवश्य रखे। ज्ञान-विज्ञान के इस युग में जानकारी को अधिकतम लोगों तक पहुंचाना आसान बना है। आज का युवा दुनिया भर की जानकारी रखे और अपने पुरखों के इतिहास और उनके कार्यों के बारे में बिलकुल भी न जाने तो शर्म की बात है। यह पुस्तक इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर लिखी गई है।
जाट इतिहास और संस्कृति के बारे में जानने की जिज्ञासा मेरी बचपन से ही रही है। दादा परदादा और नाना जाट आंदोलन में सक्रिय रहे। जाटों के बल और प्रक्रम की चर्चाओं में बचपन बीता। बचपन और गाँव और ननिहाल में मैंने जाटों को सबसे बलिष्ठ देखा। पलथना के बुरड़क जाट जुझारूपन में अगुआ रहे हैं। मेरे नाना का परिवार भी पलथाना के विख्यात वंश की शाखा है। मुझ में मेरे नानाओं से ही यह संस्कार पैदा हुआ।
एक बार ठाकुर देशराज लिखित जाट इतिहास पढ़ा। यह इतिहास पढ़ने के बाद मेरा यह शौक चरमोत्कर्ष पर पहुँच गया। जाट समाज पत्रिका में भी बड़ी रुचि रही। जाटों के बारे में जानकारी प्राप्तट करना मेरा व्यक्तिगत शौक है। मेरा मन हुआ कि जानकारी मेरे पास है वह लोगों तक पहुंचे। हर लेखक अपनी शैली में प्रस्तुती देता है। हर विषय या व्यक्ति पर मौलिक टिप्पणी होती है। जाटों की उत्पति के बारे में इस पुस्तक में मेरे मौलिक विचार हैं। विश्व साम्राज्य लेख में कुछ टिप्पणियाँ मौलिक हैं। पुस्तक अपने उद्देश्यों में कितनी सफल रही है यह तो पाठक ही महसूस कर सकते हैं।
इस पुस्तक को लिखने व प्रथम संस्करण के प्रकाशन में निम्न महानुभावों का विशेष सहयोग रहा है:
- कृष्ण चन्द्र डीडेल
- भगवान सिंह बिजारनिया
- प्रो जवाहरसिंह जाखड़
- कर्नल द्वारका प्रसाद बुगालिया
- दिलसुख राय चौधरी
- डॉ. ईश्वरसिंह नेहरा
- हीरा लाल जी ठेकेदार - फुलेरा
- सूरज मल ठेकेदार - धाय की ढ़ाणी, सीकर
- स्वामी चेतना नन्द
- भँवर लाल गढ़वाल
- रामेश्वर सिंह गढ़वाल
- अर्जुन लाल भाकर
- ओमप्रकाश आबूसरिया
- आर के कलर लैब -झुंझनूं
- इन्दिरा हॉस्पिटल - झुंझनूं
- सुमन हॉस्पिटल - झुंझनूं
इसके द्वितीय संस्कारण के प्रकाशन में जिनका विशेष सहयोग रहा वे महानुभाव है:
- कृष्ण चन्द्र डीडेल
- प्रो जवाहर सिंह जाखड़
- स्वामी चेतना नन्द
- भीम सिंह आर्य
- मनसूख रणवां
- राम देव सिंह धायल
- हनुमानसिंह भामू
- सुशीला भामू
- हरी राम ढाका
- अर्जुन सिंह खिचड़, हवल
- टोडर मल भूकर
- रामेशवर लाल जाखड़
- राजाराम मील
- रामेश्वर लाल रणवां
- डूंगल मल ढाका
- आर के चौधरी
- लक्षमी नारायण केवटिया
- खेता राम सारण
- नेमा राम जाखड़
- डॉ शारदा एवं वीरेंद्र महला
- विद्याधर बेनीवाल
- वीरेंद्र कसवा
इसके व्यवस्थित प्रकाशन के लिए मरुधरा प्रकाशन के श्री भीम सिंह आर्य सहित उन सभी मित्रों का आभारी हूँ जिनहोने इस पुस्तक को तैयार करने में सहयोग दिया। उत्कृष्टता के प्रयास में,
- आपका
- महावीर सिंह जाखड़