Kalsia Misal
Kalsia (कलसिया) was one of Misal in Punjab. The leader of this Misl was Sirdar Gurubaksh Singh, a Sindhu Jat.
Origin
The misl derives its name from village named Kalsia to which its founder S. Gurbaksh Singh belonged.
Organization
This Misal was a branch of Larsian. The founder of this Misal was Sardar Gurbax Singh of Kalsian Village. His son was Jodh Singh.
Lepel H. Griffin writes on the issue as follows:[1]The Chief of Kalsia takes rank above all Cis-Sutlej Chiefs, except Pattiala, Jhind, Nabha, Maler Kotla and Faridkot. The founder of the [Page-76] family was Sirdar Gurbuksh Siugh of Kalsia in the Manjha, one of the Krora Singhia confederacy, and a companion of Sirdar Bhagel Singh of Chiloundi. He was not a man of much note, bat his sou Jodh Siugh, born in 1751, possessed great ability, took possession of the District of Chichrowli, and, on the the death of Sirdar Bhagel Singh, was acknowledged as the head of the Krora Singhia confederacy. He conquered Dehra and Basal from Sirdar Khazan Singh ; Lotal and Achrak ; and encroached upon Pattiala and Nabha territory, bat Raja Sahib Singh gave to Hari Singh, son of Jodh Singh, his daughter Karm Koar as wife, in 1803, and thus quieted a most dangerous neighbour. In 1807 he fought under Maharaja Ranjit Singh at the siege of Nariangarh, and was rewarded with estates at Budala, Kaneri and Chubbal. At the time of the treaty of 1809, the Kalsia territory was worth two lakhs and a half per annum. Jodh Singh gave a great deal of trouble to his neighbours and to the British Agent, and no one was sorry when he died at Multan, where he had been left in command of a detachment after the seize in 1818. Only the elder son, Sobha Singh, survived him, and held the estate till 1858. Both he and his son Lehna Singh did good service in the mutinies and supplied a contingent of 20 foot and four sowars. The latter received a sanad conferring the right of adoption in March 1862. Sirdar Lehna Singh has lately died, and his only son Bishan Singh, aged 16, is now Chief of Kalsia. The estate is worth about Rs. 1,30,000 a year, with a population of 62,000.
Raja Raghbir Singh of Jind married, as his first wife, the daughter of Jowahir Singh, Chaudhri of Dadri. She bore him one son and a daughter. The daughter of him was married to Sirdar Bishan Singh Kalsia in April 1865. [2]
Raja Karan Sher Singh
On 19 January, 1961, Flight Lieutenant Kalsia was on a training flight in a Hunter aircraft. Just after getting airborne, at a height of approximately 200 ft., he called up his leader and informed him that his engine had flamed out. At this time his aircraft was heading towards populated area of Jamnagar city and had he ejected and abandoned the aircraft, without any doubt it would have crashed into Jamnagar city, thus causing extensive damage to life and property. Realising this Flight Lieutenant Kalsia deliberately turned his aircraft away from the populated area and in doing so he lost the valuable height at which he could have ejected safely. He then attempted a force landing during which he was killed instantaneously. Flight Lieutenant Kalsia warded off what might have been a catastrophe and in doing so sacrificed his own life.
By his gallant act and supreme sacrifice, Flight Lieutenant Kalsia has created a noble tradition for the India Air Force to emulate.
State:- Kalsia (Chhachhrauli)
Dynasty:- Sandhu Jats. See Less
— with Sahil Singh Baliyan . Source - Jat Kshatriya Culture
कलसिया
जाट इतिहास:ठाकुर देशराज (पृ.515-17) के अनुसार लाहौर जिले की कसूर तहसील में मंझा ग्राम है, कलसिया उसी में से बसा हुआ है। इस वंश के प्रवर्त्तक सरदार गुरबख्शसिंह करोरासिंघिया मिसिल के एक प्रसिद्ध व्यक्ति तथा चलौदी के मशहूर सरदार बघेलसिंह के साथी सिन्धू जाट थे। होशियारपुर के गवर्नर अदीनाबेग पर धावा करके जब सन् 1760 में मांझा के सिखों ने बम्वेली को छुड़ाया था, तब यह भी उस धावे में मंझा के सिखों के साथ गए थे। बघेलसिंह के मरने के बाद उनका पुत्र जोधसिंह मिसिल का प्रधान बना। इसने अपनी चतुराई और व्यक्तिगत साहस से अम्बाला के उत्तरी भाग पर अधिकार कर लिया था। इसके अलावा बसी, छछरौली और चिराकू के इलाके भी तथा और प्रदेश भी जो पीछे पृथक् हो गए, इन्होंने अपने अधिकार में कर लिए थे। जोधसिंह के राज्य की सालाना आमदनी उसके यौवन-काल में पांच लाख से भी अधिक थी। फुलकियां मिसिल के प्रधान के बराबर ही यह अपना रुतबा समझते थे और बहुधा नाभा, पटियाला से युद्ध भी करते रहते थे। पटियाला के राजा साहबसिंह ने इनके द्वितीय पुत्र हरीसिंह को अपनी पुत्री का पाणिग्रहण कराके इनको अपना मित्र बना लिया। सन् 1807 में जब महाराज रणजीतसिंह ने अम्बाला के निकट नारायणगढ़ पर धावा किया था तो सरदार जोधसिंह भी महाराज के साथ युद्ध में गए। महाराज ने इनको बदाला, खेरी और शामचपल की जागीर इनाम में दी थीं। सन् 1818 के मुल्तान के घेरे में जब यह फौज के कमाण्डर थे, उसी स्थान पर इनका देहान्त हो गया। इनका अधिकारी पुत्र शोभासिंह इनके रिश्तेदार पटियाला के राजा करमसिंह की देख-रेख में कुछ वर्षों रहा था। इन्होंने पचास साल तक राज किया और इनका देहान्त गदर के बाद ही हो गया था। सन् 1857 में इन्होंने तथा इनके पुत्र लेहनासिंह ने अंग्रेज सरकार की अच्छी सेवा की थी। इन्होंने सौ आदमियों की टुकड़ी सहायता को भेजी थी जो अवध को भेजे गए थे। देहली से ऊपर जमुना में कुछ नावों को सुरक्षित रखने में भी इन्होंने सहायता की थी और दादूपुर में इसने एक पुलिस का थाना भी नियुक्त किया था और कालका, अम्बाला और फीरोजपुर की मुख्य-मुख्य सड़कों पर अंग्रेजों की रक्षा करने के लिए भी इन्होंने प्रबन्ध कर दिया था। सरदार लेहनासिंह का देहान्त सन् 1869 में हो गया। इनके बाद सरदार
- 1. किताब 'सैरे पंजाब' के दो भाग हैं जो उर्दू में लिखी हुई है। दूसरे भाग के लेखक मुंशी तुलसीराम सुपरिन्टेंडेण्ट बन्दोबस्त पंजाब हैं। यह किताब सन् 1872 ई० में लिखी गई थी।
जाट इतिहास:ठाकुर देशराज, पृष्ठान्त-515
बिशनसिंह गद्दी पर बैठे जो नाबालिग थे। बिशनसिंह को जींद के महाराज की लड़की ब्याही थी। बिशनसिंह की मृत्यु के बाद उनके बड़े पुत्र जगजीतसिंह के मर जाने के कारण जगजीतसिंह के छोटे भाई रणजीतसिंह गद्दी पर बैठे। जगजीतसिंह सन् 1886 में सात साल की उम्र में ही मृत्यु को प्राप्त हो गया था। रणजीतसिंह की नाबालिगी के समय में देहली के कमिश्नर की देख-रेख में रियासत के तीन अफसरों की कौंसिल द्वारा रियासत का प्रबन्ध होता था। यह रियासत सन् 1891 में विधिवत् स्थापित हुई क्योंकि भारी टैक्सों के कारण इसकी स्थिति बिगड़ गई थी और रिआया बहुत गरीब हो गई थी। रियासत के नशीली वस्तु के महकमे का प्रबन्ध 6000 रुपये सालाना पर अंग्रेज सरकार को ठेके में दे दिया गया। सन् 1906 में बालिग होने पर सरदार को पूर्ण अधिकार प्राप्त हो गए। सन् 1908 की जुलाई में सरदार रणजीतसिंह का देहान्त हो गया। इनके बाद इनके बालक पुत्र रविशेरसिंह गद्दी पर बैठे। इनकी नाबालिगी के जमाने में इनके पिता के समय ही रियासत का प्रबन्ध देहली के कमिश्नर की देख-रेख में एक कौंसिल द्वारा संचालित होता रहा है। सतलज के दोनों ओर के मुख्य-मुख्य सिख-घरानों में इस वंश के विवाह सम्बन्ध होते रहे हैं।
कलसिया के सरदार को शासन में फांसी की सजाओं के अतिरिक्त पूर्ण अधिकार प्राप्त थे। फांसी के सजा के लिए देहली के कमिश्नर की मंजूरी लेनी आवश्यक थी। सरदार जोधसिंह ने 1809 के आम प्रबन्ध को मंजूर कर लिया था जिसके अनुसार सतलज के सरदार अंग्रेज सरकार के संरक्षण में माने गये थे। सरदार शोभासिंह ने सन् 1821 में सतलज के उत्तर के कुछ प्रदेश लाहौर सरकार को, कुछ रकम देने के बोझ को हटाने के लिए, दे दिए थे। इसने दोनों ही सिख-युद्धों में पूरी सहायता दी थी और बहुत से अन्य कार्यों में भी सरकार की ओर राजभक्ति प्रदर्शित की थी। राहदारी-कर इनके समय में उठा दिया गया था और इसके एवज में रियासत को 2,851 रुपये सालाना मिलने लगा। सन् 1862 में उसके पुत्र लेहनासिंह को तथा उसके उत्तराधिकारियों के लिए असली वारिश न होने की सूरत में गोद लेने की सनद मिल गई।
पंजाब की रियासतों में कलसिया का नम्बर सोलहवां है और इसके रईस को वायसराय द्वारा स्वागत किए जाने का हक है।
सर लैपिल ग्रिफिन साहब ने कलसिया का वंश-वृक्ष निम्न प्रकार दिया है -
1. शोभासिंह, 2. हरीसिंह और करमसिंह > सरदार जोधासिंह > शोभासिंह के 1. लेहनासिंह 2. मानसिंह, हरीसिंह के देवीसिंह, इनके उमरावसिंह > राजेन्द्रसिंह। लेहनासिंह के बिशनसिंह। मानसिंह के जगजीतसिंह और लालसिंह, बिशनसिंह के जगजीतसिंह तथा रणजीतसिंह के रावशेरसिंह।
जाट इतिहास:ठाकुर देशराज, पृष्ठान्त-516
विशेष - इस रियासत का क्षेत्रफल 138 वर्गमील था और जनसंख्या 67,181 थी। इसकी उगाही 190725) रु० और 121 फौजी जवान तथा 2 तोपें भी थीं।
Notable persons
Gallery
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Kunwar Zoravar Sher Singh of Kalsia (Right) with his friend. Kunwar Zorawar Singh is Direct Descendant of Maharaja GURBAKSH SINGH of Kalsia, Founder of Kalsia State (1753). Dynasty:- Sandhu, State:- Kalsia (Haryana). Source - Jat Kshatriya Culture
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Kunwar raja Pavan Sher Singh of Kalsia and Kunwarani Nirmala Nathan Singh
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His Highness Maharaja Ravi Sher Singh of Kalsia, at the Delhi flying club. He was the first "Royal" to be trained to fly by the DFC. State:- Kalsia, Dynasty :- Sandhu Jats, Source - Jat Kshatriya Culture
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H.H Maharaja Ravi Sher Singh of Kalsia with Sir Malcom Hailey the governor of Punjab... this was on his farewell visit to Chhachhrauli in May 1928. Dynasty :- Sandhu