Kanheya Misl

From Jatland Wiki
(Redirected from Kanheya)
Map of Misls of Sikhs

The Kanheya Misl (Kanhiya) was one of Misal in Punjab. The leader of this Misal was Sardar Jai Singh Kanhaiya.

Origin

Kanheya misl gets name after village Kanah, 15 km from Lahore, founded by a Sindhu-Jat. Its first leader was Jai Singh.[1]

Organization

Bhrewal was its stronghold. The territory of Jammu and Pathankot was under his rule. The annual income from this Misal was forty Lakhs. Kalanaur, Bhatala, Sohiyan Fathegarh, Ajnala, Pathankot, Gurdaspur were also the important possessions of the Kanhiyas.

Ranjit Singh of Lahore was married into this Misal.

History

The Kanhaiya Misl was first led by Sardar Jai Singh Kanhaiya. It had a strength of 5,000 regular horsemen.

The Kanhaiya Misl was founded by Sardar Jai Singh (1712-1793), a Sandhu Jatt of the village of Kahna, 21 km south-west of Lahore on the road to Firozpur. His father Bhai Khushhal Singh sold hay at Lahore. Jai Singh received the vows of the Khalsa at the hands of Nawab Kapur Singh and joined the derah or jatha of Sardar Amar Singh Kirigra.

It is commonly believed that the name of the Misl, Kanhaiya, was derived from the name of Jai Singh's village, Kahna, although another explanation connects it with the Sardar's own handsome appearance which earned him the epithet (Kahn) Kanhaiya, an endearing title also used for Lord Krishna a Hindu deity. The Kanhaiya Misl under Jai Singh became the dominant power in the Punjab. He seized a part of Riarki comprising the district of Gurdaspur and the upper portions of Amritsar. He first made his wife's village, Sohiari, in Amritsar district, his headquarters from where he shifted to Batala and thence to Mukerian. His territories lay on both sides of the Beas River and Ravi River.

Jai Singh extended his territory up to Parol, about 70 km south-east of Jammu, and the hill chiefs of Kangra, Nurpur, Datarpur became his tributaries. In 1778 with the help of Mahan Singh Sukkarchakkia and Jassa Singh Ahluwalia, he banished Jassa Singh Ramgarhia to the desert region of Hansi and Hissar (Haryana Region).

In 1781, Jai Singh and his associate Haqiqat Singh led an expedition to Jammu and received a sum of 3,00,000 rupees as tribute from its new ruler, Brij Raj Dev. On Jai Singh's death in 1793, at the age of 81, control of the Kanhaiya clan passed into the hands of his daughter-in-law Sada Kaur, as his son Gurbakhsh Singh had died before him. Sada Kaur whose daughter Mehtab Kaur was married to Maharaja Ranjit Singh (Punjab) was instrumental in the Sukkarchakkia chief's rise to political power in the Punjab. The Kanheya Misl United with The Sukerchakia Misl in 1796.

ठाकुर देशराज लिखते हैं

ठाकुर देशराज कन्हैया मिसल के बारे में लिखते हैं कि लाहौर से 15 मील की दूरी पर कान्हा गांव में खुशालसिंह नामक एक जाट चौधरी निवास करते थे, जो कि बड़े सीधे और सरल स्वभाव के थे। उनके पुत्र का नाम जयसिंह था। जयसिंह बड़ा वीर और साहसी पुरुष था। उसने सिक्ख-धर्म की दीक्षा कपूरसिंहजी फैजलपुरिया से ली और अमरसिंह नाम के डाकू के साथ मिल कर छापा मारने लगा। इस काल में उसने इतनी उन्नति तथा प्रसिद्धि प्राप्त की कि आसपास के हजारों आदमी उसके साथ शामिल हो गए। इस तरह से उसने एक नई मिसल स्थापित कर दी। चूंकि यह कान्हा गांव का रहने वाला था, इसलिए इस मिसल का नाम कन्हैया मिसल हुआ।


जाट इतिहास:ठाकुर देशराज, पृष्ठान्त-227


कांगड़े के राजा संसारचन्द्र और नवाब शेफ-अली खां किलेदार में झगड़ा हो गया। संसारचन्द्र ने किले पर अधिकार प्राप्त करने के लिए जयसिंह को अपनी सहायता के लिए बुलाया। जयसिंह के कांगड़ा पहुंचने के वक्त तक शेफ-अली खां मर चुका था और उसका लड़का जीवनखां किले को अधिकार में किए हुए था। जयसिंह ने जीवनखां को डरा धमका कर किले पर अधिकार कर लिया और राजा संसारचन्द्र को भी धता बता दिया। जयसिंह युद्ध करने में अति निपुण था। रामगढ़िया मिसल के सरदार जयसिंह को इसने सतलज पार खदेड़ दिया था। जम्बू की चढ़ाई में इसने रणजीतसिंह व उनके पिता महासिंह की सहायता की थी और जम्बू की लूट के माल में से बंटवारा कराने के लिए प्रस्ताव रखने के कारण रणजीतसिंह से इनकी अनबन हो गई। चूंकि निर्भयता और वीरता इसके अन्दर कूट-कूट कर भरी हुई थी इसलिए रणजीतसिंह के बाप महासिंह के साथ युद्ध छेड़ दिया। महासिंह ने राजा संसारचन्द्र और जस्सासिंह को सहायता के लिए बुलाया जो कि इसके पुराने शत्रु थे। इस तरह से तीन शक्तियों ने गुट बना कर जयसिंह को नष्ट करना चाहा। किन्तु जयसिंह इस समाचार को सुनकर के घबराया नहीं, उसने तुरन्त ही अपने सरदार गुरबक्ससिंह को जस्सासिंह की रोक के लिए सतलज के इस पार भेज दिया। पटियाला के निकट युद्ध हुआ। गुरबक्ससिंह मारा गया। एक दूसरी लड़ाई जस्सासिंह से उसी समय और हुई। इस वक्त जयसिंह का लड़का गुरबक्ससिंह जस्सासिंह के सामने आया, किन्तु वह भी मारा गया। इस तरह से एक तरफ जयसिंह के धन जन की हानि जस्सासिंह के द्वारा हो रही थी और दूसरी तरफ भागे हुए संसारचन्द्र ने पहाड़ों से उतर कर जयसिंह के इलाके लूटना आरम्भ कर दिया। इस समय जयसिंह ने एक बुद्धिमानी और चालाकी का यह काम किया कि रणजीतसिह से अपनी पोती की शादी करके उसके बाप महासिंह को अपना सम्बन्धी बना लिया। इस तरह से तीन शत्रुओं द्वारा जो उसका राज्य नष्ट होने वाला था, उसकी रक्षा कर ली। जयसिंह ने यद्यपि राज की रक्षा कर ली थी, किन्तु पुत्र-शोक में थोड़े ही वर्षों बाद उसकी मृत्यु हो गई और उसके बेटे गुरबक्ससिंह की रानी सदाकौर राज्य की मालिक हुई ।

रानी सदाकौर बड़ी निपुण और योग्य शासक थी। वह अनेक लड़ाइयों में भी सम्मिलित हुई थी। उन्होंने रणजीतसिंह के पिता महासिंह के मर जाने पर दोनों ही राज्यों का काम संभाला था। रणजीतसिंह की वह बड़ी कड़ी देखरेख रखती थी। कई बार युद्ध-भूमि में उन्होंने महाराज की सहायता की थी। इनके पास बहुत सा धन और जवाहरात थे। इनकी शारीरिक मजबूती का पता इस घटना से चल जाता है कि जिस समय उनका पति युद्ध में मारा गया था और फौज तितर-बितर हो गई थी, वह नंगे पांव भागकर बटाला में आ पहुंची। इनका राज्य अमृतसर


जाट इतिहास:ठाकुर देशराज, पृष्ठान्त-228


से उत्तर की ओर पहाड़ी प्रदेश में था और उसमें कांगड़ा, कलानोर, नूरपुर, यकरिपान, हाजीपुर, पठानकोट, अटलगढ़ आदि प्रसिद्ध नगर थे।

तरुण होने पर महाराज रणजीतसिंह को अपनी सास सदाकौर की संरक्षता अखरने लगी थी। वह उससे छुटकारा पाने की चेष्टा करने लगे। कुछ ही दिनों के बाद उन्होंने राजी सदाकौर के इलाके को अपने राज्य में मिला लेने का यत्न आरम्भ कर दिया। जब कहने सुनने से भी रानी सदाकौर अपना राज्य रणजीतसिंह को देने के लिए तैयार न हुई तो उन्होंने बलपूर्वक उनके राज्य को जब्त कर लिया और सरदार कन्हैयासिंह के निकट सम्बन्धियों को कुछ गांव जागीर में दे दिए। सन् 1800 ई० में रानी सदाकौर का देहान्त हो गया और इस तरह से यह मिसल समाप्त हुई । (जाट इतिहास:ठाकुर देशराज, पृष्ठ-228)

Notable persons

Gallery

External links

References