Khera Garhi Delhi

From Jatland Wiki
(Redirected from Kheda Gadi)

Khera Garhi (खेडा गढ़ी) is a village in Delhi.

Location

near Khera kalan

The founders

History

Vedik Sanskrit Jat High School Kheda Gadhi

Contribution of collegiate Jat students in the establishment of Vedik Sanskrit Jat High School Kheda Gadhi, Suba Delhi - Information culled out from the JAT GAZETTE Newspaper of 1920.

Dehli To-day I will try to place on record the names of the then college students of our community studying in various colleges at Delhi and Lahore and Agra from 1918 onwards who helped Chaudhary Bhim Singh Kadipur in the establishment of Vedik Sanskrit Jat School Kheda Gadi in Suba Delhi.

Special mention of colleges such as St. Stephen's college and Ramjas college at Delhi and D. A. V. College and Dayal Singh College at Lahore may be made which undertook special efforts to admit and teach the Jat students and gave many facilities like free accommodation in their hostels and freeship to the poor Jat students of the educationally backward community. These college students, at the clarian call of Chaudhary Bhim Singh Kadipur, did honorary (without any remuneration) teaching work and even did manual labour for the construction of class rooms at Vedik Sanskrit Jat School Kheda Gadhi, during their summer holidays. These students committed to the welfare of their educationally PICHHDI Jati. A few of these educated young heroes were

They are the real heroes and torch bearers of those days an of to-day too.

Source - Virendra Singh Kadipur (Jatrana)

वैदिक संस्कृत जाट स्कूल खेड़ा गढ़ी सूबा देहली का बुनियादी पत्थर

25 सितंबर 1920 ई. (दिन शनिवार माह भादो शुक्ल पक्ष त्रयोदसी) वैदिक संस्कृत जाट स्कूल खेड़ा गढ़ी सूबा देहली की तारीख में एक खास दिन है क्योंकि इस दिन स्कूल का बुनियादी पत्थर रखने की रस्म अदा की गई जिसकी विस्तृत जानकारी निम्नलिखित है।

सुबह के वक्त बड़ा भारी हवन यज्ञ हुआ और इस यज्ञ की सुगंधी ने दूर दूर तक हवा को महका दिया जिससे हर दिलो-दिमाग को ताजगी पहुंचती थी। हर शख्स की तबीयत को आनंदमय करती थी। हवन के बाद संध्या हुई। फिर उपस्थित महानुभावों की ईश्वर, धर्म और विद्या संबंधी भजनों से दावत की गई। ठीक 10 बजे एक आम जलसा हुआ जिसके सभापति चौधरी भीम सिंह गढ़ी निवासी थे। हालांकि आजकल फसल की वजह से लोगों को फुर्सत कम है फिर भी हाजिरी बहुत ज्यादा थी। मैनेजिंग कमेटी के तकरीबन 33 मेंबर हाजिर थे। यह इस बात का बड़ा सबूत है कि लोग स्कूल संबंधित मामलों को बहुत शौक से लेते हैं। सर्व प्रथम चौधरी टीकाराम बी. ए. (ऑनर्स) खड़े हुए और आपने इस मौके के महत्व को जतलाते हुए कहा कि चौधरी सुरजमल जी बी. ए. निवासी खांड़ा खेड़ी ने, जो लाहौर में शिक्षारत हैं 51 रुपये की रकम इस शुभ मौके पर स्कूल के लिए भेजे हैं। हालांकि इस मौके पर न किसी किस्म की अपील की गयी और न करने का इरादा था ताहम फिर भी जिनके कोमी दिलों में कोमी उद्धार की अग्नि प्रचंड हो रही है वो कब अपीलों का इंतजार करते हैं। इनका जोश और शहादत इन्हें चैन लेने नहीं देता। फलस्वरूप चौधरी सूरजमल जी के दान के ऐलान के बाद फोरन ही चौधरी रिछपाल सिंह जो इस स्कूल बैहसियत चपडासी खिदमत कर रहे हैं 15 रुपये मेज पर रख दिए और प्रतिज्ञा की के 6 रुपये सालाना और देता रहेगा। इस संबंध में ये बात खासतौर पर गौर करने काबिल है कि चौधरी रिछपाल सिंह के पास कुल रकम 15 रुपये ही थे जो इसने अब तक यहां तीन माह के अरसे में बचाए हैं। दूसरे मायनों में इसने अपनी तमाम पूंजी वेदी पर रख दी। अब जाट जाति का सच्चा सपूत देश का सच्चा वीर और विद्या का सच्चा उपासक चौधरी हरफूल सिंह नाहरी निवासी जो अभी भी पढ़ाई कर रहा है और जिसकी उम्र सिर्फ 18 साल की है आगे बढ़ा और अपनी स्वर्गवासी माता की याद में कमरा बनवाने की प्रतिज्ञा की और कमरे की रकम में से एक सो रुपये की रकम उसी वक्त दे दी। इस नौजवान की दानवीरता देखकर उपस्थित जन ऐसे खुश हुए कि तालियों से कमरा गुंजा दिया। धन्य है वो मां जिसने हरफूल सिंह जैसे होनहार को दूध पिलाया और गोद खिलाया। हरफूल जो सच्चे मायनों में देश और जाति का फूल है। तेरी महक से अगर कौम ने चाहा तो ये भारतवर्ष फिर से महक उठेगा। इस जगह ये बात खासतौर पर ध्यान देने के काबिल है कि इस होनहार की बदौलत स्कूल के लिए सबसे पहला चंदा उत्साही नौजवान की जन्म भूमि नाहरी में हुआ और स्कूल का सबसे पहला कमरा भी नाहरी के इस सच्चे सपूत ने ही दिया। सच पूछा जाए तो ना हरी की बजाए फल फूल रही बन गई। इस वीराने में अपने गांव का नाम रोजे रोशन की तरह रोशन कर दिया। दूसरी बात का काबिले गौर ये है कि चौधरी हरफूल सिंह सबसे पहले हैं जिन्होंने तालीम के अयाम और इस छोटी सी उम्र में इस कदर अधिक रकम दान करने का संकल्प किया है। जाट जाति में तो क्या बल्कि दूसरी जातियों में भी ऐसी मिसाल मिलनी अगर असंभव नहीं तो मुश्किल जरूर है। जो जाति हरफूल सिंह जैसा ज्योतिर्मय लाल व कीमती फूल पैदा कर सकती है तो क्या ऐसी कौम अज्ञानी व पिछड़ी रह सकती है। हरगिज़ नहीं! हरगिज़ नहीं! चौधरी हरफूल सिंह की इस सात्विक प्रतिज्ञा के बाद चौधरी रिसाल सिंह पहाड़ी धीरज वाले ने 50 रूपये दान दिये। आप देहली के उन नामवर महानुभावों में से हैं जिनको हर वक्त कौमी भलाई और तरक्की का ख्याल रहता है। आप 50 रुपये का दान दो माह पहले भी दे चुके हैं।

इसके बाद सर्वसम्मिति से निश्चय हुआ कि चौधरी भीम सिंह निवासी कादीपुर जो हरियाणा प्रांत में जाट जाति की जागृति के अग्रदूत ही नहीं है बल्कि जिन्होंने अपनी तमाम उम्र कौमी सेवा में खर्च कर दी। इन्होंने उस आजमाइश के दिनों में, जब जाट वीरों के जनेऊ उतरवाने के लिये हर तरह की कोशिश की जा रही थी और (सेहरी) खांडे में फुला ब्रह्मचारी ने दूरदराज से बड़े बड़े पंडित, जिनमें शिवकुमार और गुरुड़ध्वज जैसे विद्वान शामिल थे, सिर्फ इसलिये बुलाये ताकि जाट लोगों से यज्ञोपवित धारण करने का अधिकार छिना जाये, के समय सबसे आगे बढ़ कर अपनी महत्वपूर्ण सेवाएं कौम को दी हैं वे अपने पवित्र हाथों से इस स्कूल का बुनियादी पत्थर रखें। चौधरी हरीराम मैनेजर, स्कूल जिनके त्याग और पुरुषार्थ से ये दिन देखना नसीब हुआ और श्री आनंद मुनि जी जिन्होंने शुरू में इस भूमि में विद्या प्रचार की बुनियाद डाली और चौधरी अभय राम नरेला निवासी जो इस प्रांत के बड़े उत्साही कार्यकर्ता हैं और चौधरी रिसाल सिंह पहाड़ी वाले जिनके दिल में कौमी सेवा की लगन है और नौनिहाल हरफूल सिंह जिसने काबिले नमूना और बेनजीर मिसाल कायम कर दी है। इसलिए ये सब इस सुनहरे मौके पर ईट और गारा पकड़ाने का काम निभाएं।

ये हस्ताक्षर ठीक साढ़े ग्यारह बजे पत्थर रखने के लिये रवाना हुए। बुनियादी पत्थर एक संगमरमर का चौकोर टुकड़ा था जिसके ऊपरी सिरे पर सूरज (सूर्य) की तस्वीर बनी हुई थी जिससे मालूम हो जाये कि सूरजवंशी क्षत्रियों ने यह विद्यालय बनाया है। इससे नीचे की तरफ गायत्री मंत्र, जो वेदों का मुख्य मंत्र और वैदिक धर्म का तत्व है, खुदा हुआ था। इसके निचली तरफ वैदिक संस्कृत जाट स्कूल खेड़ा गढ़ी और विक्रमी सम्मत 1977 उकेरा हुआ था। जलसे में उपस्थित जन समूह के आगे बाजा बजता जाता था। ऐन मौके पर पहुंचकर सबने जुतियां उतार दी। चौधरी शादी राम हैडमास्टर और चौधरी टीकाराम ने उपरोक्त साहिबान के गले में मालायें डाली तथा सब ईश्वर उपासना के मंत्र एक सुर होकर गायन करने लगे। इसके बाद चौधरी भीम सिंह ने पत्थर रखा और हाजरीन बराबर गायत्री मंत्र का उच्चारण करते रहे। चौधरी टीकाराम बराबर फूलों की वर्षा करते रहे। यह समां देखने से ताल्लुक रखता था। मेरे पास अल्फाज नहीं की इसका पूरा नक्शा खींच सकूं। पत्थर रखा जाने पर स्वामी आनंद मुनि ने प्रार्थना कराई। तत्पश्चात चौधरी भीम सिंह ने एक संक्षिप्त सा भाषण दियाजिसमें आपने कहा कि आप साहबान ने जो सेवा कार्य मेरे सुपुर्द किया था इसे मैंने आप लोगों की मदद के भरोसे पर जैसा अच्छा बुरा मुझसे बन सका वो पूरा किया। चौधरी साहब की तकरीर के बाद चौधरी टीकराम ने वैदिक संस्कृत जाट स्कूल खेड़ा गढ़ी, हर गांव वालों, प्रधान कमेटी , मैनेजर स्कूल ,चौधरी भीम सिंह कादीपुर, चौधरी रिसाल सिंह, चौधरी अभय राम, चौधरी हरफूल सिंह, स्वामी आनंद मुनि, हैडमास्टर और विद्यार्थियों के लिये तीन तीन चियर्स (three cheers) का प्रस्ताव रखा। उपस्थित जन समूह ने खूब जोशो-खरोश से तालियां बजाकर अपनी दिली प्रशंसा का बड़ा सबूत दिया।

इसके बाद मिठाई बांटी गई और कार्रवाई बड़ी खुशी व आनंदमय माहौल में समाप्त हुई।

विद्या प्रेमी

शादी राम, हैड मास्टर व जॉइंट सैकेटरी

वैदिक संस्कृत जाट स्कूल खेड़ा गढ़ी

स्रोत: वीरेंद्र सिंह कादीपुर (जटराणा)


Jat gotras

Notable persons

  • चौधरी शादी राम हैडमास्टर

External Links

References


Back to Jat Villages