Kunwar Narayan Mahla

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Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Kunwar Narayan Mahla (चौधरी कुंवरनारायणसिंह महला) was from village Swarupsar, District Sikar, Rajasthan. He was Freedom fighter of Shekhawati farmers movement. He was the first Jat Advocate in Sikar District. He was brother of Kanhaiya Lal Mahla.[1]

जीवन परिचय

जाट जन सेवक

ठाकुर देशराज[2] ने लिखा है ....चौधरी कुंवरनारायण सिंह - [पृ.319a]: सरूपसर और अलफसर सीकर ठिकाने में 2 पास-पास गांव हैं। जहां महलावत गोत्र के जाट हैं। महलावत यौद्धेय सरदारों की एक शाखा है। इन गांवों के महलावत हमेशा ही सीकर ठिकाने के निरंकुश शासन के खिलाफ लड़ते रहे हैं। वैसे यहां के जाटों में अगुआ हैं। इसी कारण इनको सरदारी का किताब है। आप बराबर कोशिश करते रहे लेकिन सामूहिक लगाना बंद नहीं करा सके इस कारण कामयाब नहीं हो सके।


[पृ.320a]: उन्होंने तय किया बिना विद्या हम कामयाब नहीं होंगे। आपके 3 लड़कों में से बड़े नानूराम घर के काम के लिए और कन्हैया लालकुमार नारायण को स्कूल में पढ़ने भेजा। जब समय 1990 में सीकर में जाटों पर दमन हो रहा था, मैट्रिक तक ही पढ़ाई करके कन्हैयालाल ने पढ़ाई छोड़ दी और जाति सेवा में ही अपना समय लगाना शुरु कर दिया। बिना कानून की जानकारी के हम ज्यादा अच्छी तरह जाति की सेवा नहीं कर सकेंगे। इसलिए इन्होंने कुमार नारायण को बीए-एलएलबी करवाया जो सीकर में सबसे पहला जाट वकील है।

इन सालो में टोल टैक्स, जागीरी पैमाइश व इस साल का छूट का आंदोलन इन सब में अगुआ होकर व संचालन कार्य कन्हैयालाल जी ने किया।

कुमार नारायण यहां के जाटों की ओर से जयपुर असेंबली और डिस्ट्रिक बोर्ड शेखावाटी के चुने हुए मेंबर हैं, जो यहां के कहां पर पेश करते हैं। इनसे यहां के जाटों को कानूनी सहायता मिलती है।

यहां के जाटों में सबसे पहले सामाजिक कुरीतियों को हटाने में सक्रिय कदम इन्होंने ही उठाया है। दोनों भाइयों की शादी में जेवर व दहेज का दर्शन तक नहीं हुआ। कुमार नारायण की शादी तो बिल्कुल ही नए ढंग से हुई। किसी तरह का पर्दा भी नहीं हुआ। लड़की 16 और लड़का 25 साल की उम्र में दोनों ही पूरी पढ़ाई करने के बाद शादी की गई। इनके घर में नुक्ता व किसी किस्म की कुरीति आज दिखाई नहीं देती है। विशेषता यह है कि घर में बच्ची और बच्चे सब पढ़ते हैं। सारा घर ही पढ रहा है। कन्हैयालाल के ब्रिज कुमार और कुंवर नारायण के विनोद नाम के लड़के हैं।

मोल्यासी में गोली चली

राजेन्द्र कसवा [3] ने लेख किया है कि सीकर के मोल्यासी गाँव में 23 दिसंबर 1945 को चौधरी लेख राम कसवाली ने प्रजामंडल की सभा बुलाई. जब आदमी इकट्ठे हो गए और सभा का समय हो गया तो मोल्यासी के ठाकुरों ने सभा करने का विरोध किया तथा भारी संख्या में हथिया लेकर आये. एकत्रित भीड़ ने हटने से मन कर दिया तो उन पर गोलियां चला दी जिससे लेखराम कसवालीरिडमल सिंह छर्रे लगने से घायल हो गए. (डॉ. ज्ञानप्रकाश पिलानिया: पृ. 42)

उस समय की परिस्थितियों का वर्णन राजेन्द्र कसवा (मेरा गाँव मेरा देश वाया शेखावाटी, पृ. 198-199) ने स्वतंत्रता सेनानी रणमल सिंह के शब्दों में कुछ यों किया है:

"मौल्यासी गाँव में 23 दिसंबर 1945 की रात को मीटिंग रखी गयी थी. नेतृत्व देने वालों में किसनसिंह बाटड , मास्टर कन्हैया लाल स्वरूपसर, कुमार नारायण वकील, चन्द्रसिंह बिजारनिया, लालसिंह कुलहरी माधोपुर, लेखराम कसवाली और मैं (रणमल सिंह) थे. बदरी नारायण सोढानी को भी आना था, लेकिन वे नहीं पहुँच सके.
"हम लोग मंच को ठीक कर ही रहे थे कि रात को 10 बजे 50 राजपूत नारे लगाते आये. उनका जय घोष था - करणीमाता की जय. मैं मंच पर खड़ा हो गया. मेरे साथ एक फौजी हनुमान महला भी खड़ा था. हमारे अन्य साथियों ने समझाया कि हमें बिना मीटिंग किये चलना चाहिए. लेकिन मैं नहीं माना. मैं भाषण देना चाहता था लेकिन राजपूतों के शोर के कारण कुछ बोल नहीं पा रहा था. तब मैंने भी जोर-जोर से नारे लगाने शुरू कर दिए - 'भारत माता की जय ! महात्मा गाँधी की जय ! 'ठिठुरती रात में, जब चारों और सन्नाटा बिखरा था, गाँव के चौक में गर्जना हो रही थी.
"एक राजपूत ने आकर मेरे कान में कहा, "राजपूत सरदारों के पास हथियार हैं. मुकाबला करना ठीक नहीं है. लेकिन मैं रूका नहीं और जोर-जोर से नारे लगाता रहा. इससे मेरा गला भी ख़राब हो गया. तभी एक राजपूत ने मंच पर आकर बर्छी से मुझ पर वार किया. सर व नाक पर चोट आई (इस चोट के निशान आज भी उनके सर तथा नाक पर हैं) . मैं बेहोश होकर गिर पड़ा. मुझे सीकर लाया गया और इलाज कराया गया. इसके बाद मैंने विरोध स्वरुप पांच दिन उपवास रखा.
"मैं तो बच गया लेकिन यह आंकड़े हैं कि सम्पूर्ण शेखावाटी में आन्दोलन के दौरान 117 व्यक्ति मरे थे. इनमें 104 जाट, 8 जाटव, 4 अहीर एवं एक ब्राहमण था. ...."

References

  1. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.319a-320a
  2. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.319a-320a
  3. राजेन्द्र कसवा: मेरा गाँव मेरा देश वाया शेखावाटी, 2012, पृ. 198-199

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