Mansa Ram Shivran

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Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Mansa Ram Shivran (महाशय मन्साराम जी) (शिवरान), from Panchgaon, Bhiwani was a social worker and freedom fighter in Bhiwani, Haryana and Shekhawati area of Rajasthan . [1]

जाट जन सेवक

ठाकुर देशराज[2] ने लिखा है ...महाशय मनसाराम जी - [पृ.517]: पंचगावा (जिला दादरी) जींद राज्य में शिवरान वंश में आपका जन्म हुआ। आप कई वर्ष से आर्य समाज के स्वतंत्र


[पृ.518]: उपदेशक का कार्य करते थे। सन् 1939 से जींद राज्य प्रजामंडल के संस्थापकों में आप सम्मिलित हो गए। प्रजामंडल के संगठन में खूब काम किया। दिसंबर 1940 से आप ढाई वर्ष संरूर में नजरबंद रहे और ढाई वर्ष अपने गांव में पाबंद रहे। नवंबर में आप की पाबंदी हटी। आप प्रजामंडल के संगठन में लगे हुए हैं। इस समय शेखावाटी में काम कर रहे हैं। आपने 32 बीघा जमीन कन्या गुरुकुल पंचगावा के लिए दान दी है और गुरुकुल के लिए अवैतनिक सेवा करने के लिए जीवन दान दिया है।

जीवन परिचय

स्वतंत्रता सेनानी महाशय मनसाराम त्यागी: स्वतंत्रता सेनानी महाशय मनसाराम त्यागी का जन्म ठेठ देहात के साधारण किसान परिवार में भिवानी जिले के पंचगांव में चौधरी अमीलाल श्योराण के घर लगभग वर्ष 1902 में हुआ था । बंसरी आदि बजाने गाने का शौक उनको बचपन से ही था । उस समय दादा बसतीराम आर्य भजनोपदेशक के सत्संग से गाने बजाने में माहिर हो गए और बाद में वे स्वयं स्वतंत्र रूप से गाने बजाने लग गए। वैराग्य लक्षण भी बचपन से ही दिखाई देने लग गए थे, इसलिए वे अविवाहित ही रहे ।

उनका जीवन-सार इसी में आ जाता है कि अविवाहित होते हुए भी 80 वर्ष तक चरित्र के धनी बने रहे । उस समय शिक्षा का अभाव था क्योंकि राजा जींद की तरफ से सारे इलाके में दो चार प्राइमरी स्कूल थे । राजा चाहता था कि लोग अनपढ़ रहें और मेरी मनमानी चलती रहे । त्यागी जी ने घर पर ही लगन और परिश्रम द्वारा पढ़ने लिखने का अभ्यास किया और पढ़ने में काफी योग्यता प्राप्त कर ली यहां तक की बड़े बड़े ग्रंथों को पढ़ने समझने की योग्यता हो गई । सत्यार्थप्रकाश ने तो उनके ज्ञानचक्षु ही खोल दिए । गांव गांव घूमकर आर्य समाज के माध्यम से स्वतंत्रता का प्रचार प्रसार करने में जुट गए । सामाजिक कुरीतियों का जिनमें पाखण्ड-ढोंग, बाल विवाह, फिजूलखर्ची, मूर्तिपूजा का निर्भीकतापूर्वक खण्डन करने लग गये जिससे लोग जाग गए और कूप मंडूक नहीं रहे । उस समय भजनोपदशकों में भी अपनी पहचान बना ली । उन्हें फीस आदी का लोभ नहीं था, वे सत्यवादी, निर्भीक, समाज सुधारक एवं देशभक्ति की भावना से प्रचार करते थे ।

राजा जीन्द के शासन से जनता तंग आ चुकी थी व देश प्रदेश में स्वतंत्रता की लहर चल रही थी । जींद से पं० देवीदयाल दादरी आए एवं साथियों से विचार-विमर्श कर प्रजामंडल की स्थापना की जिसमें मंशाराम जी, मेहताब सिंह पंचगांव, नंबरदार मंगलाराम जी डालावास, हीरासिंह चिनारिया कल्याणा, रामकिशन गुप्ता दादरी, बनारसी दास गुप्ता मानहेरू, निहाल सिंह तक्षक भागवी आदि मेंबर बने और सक्रिय रूप से राजनीति में जुट गए । राजा ने इन्हें अनेक प्रकार से घोर यातनाएं दी और त्यागी जी को भी तीन.चार साल तक काल कोठरी में बन्द कर दिया गया फिर भी राजा के नाक में दम कर दिया । नंबरदार मंगलाराम पटेल, महाशय मनसाराम त्यागी, मेहताब सिंह राजा यह त्रिमूर्ति ( ब्रह्मा विष्णु महेश) जीवन भर कंधे से कंधा मिलाकर चले और ये तीनों लंगोटिया यार थे ।

त्यागी जी अच्छे वैद्य भी थे एवं देशी जड़ी. बूटियों से असाध्य रोगों को ठीक कर देते थे । अपनी कुटिया में चारों ओर की दीवारों पर हाथ से सिली सैंकड़ों खद्दर की थैलियां जड़ी. बूटियों से भरी टंगी रहती थी । वैद्य का काम भी वे निस्वार्थ भाव से किया करते थे ।

त्यागी जी ने कन्या गुरुकुल पंचगांव हेतु अपनी 70 बीघा भूमि दान में देदी थी जिस पर कन्या गुरुकुल चल रहा है, उसमें दूर-दूर तक की लड़कियां शास्त्री तक की शिक्षा ग्रहण कर रही हैं । अपना सम्पूर्ण जीवन देश को समर्पित कर रखा था साथ ही अपनी 70 बीघा भूमि दान कर त्यागी कहलाये ।

लगभग वर्ष 1981 में त्यागी जी पंचतत्व में विलीन हो गये ।

लेखक-सुरेन्द्र सिंह भालोठिया पुत्र भजनोपदेशक धर्मपाल सिंह भालोठिया जयपुर मो. 9460389546

शिव विचार तरंगिणी-लेखक शिवराम आर्य से साभार

बाहरी कड़ियाँ

यह भी देखें

संदर्भ

  1. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.517-518
  2. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.517-518

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