Malaya Parvata

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(Redirected from Malayanila)
Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Malayaparvata (मलय पर्वत) (Malaya Mountains) were a range of mountains that were mentioned in the Hindu sacred texts like Matsya Purana, the Kurma Purana, the Vishnu Purana,[1] and the epics of the Ramayana and the Mahabharata.[2][3]

Variants

History

The Vishnu Purana specifically mentions it amongst the seven main chains of mountains in Bharata (ancient name of India), namely Mahendra, Malaya, Sahya, Śuktimat, Riksha, Vindhya, and Páripátra.[4] According to the Matsya Purana, during the Great flood, the giant boat of King Manu was perched after the deluge on the top of the Malaya Mountains.[5]

These mountains are believed to have formed the southernmost part (Southwards starting from the Mangalore region) of the Western Ghats, modern day Kerala while the Northern part of the same was called the Sahya Mountains. The peaks of these Malaya mountains were said to be higher than those of the Sahya Mountariod of recorded history, it might have been the junction of the Chera and Pandya Kingdoms. Sangam Literature calls these mountains Pothigai.

In Mahavansa

In Mahabharata

Malaya (मलय) (Mountain) in Mahabharata (I.27), (II.27.8), (VI.10.10),

Bhisma Parva, Mahabharata/Book VI Chapter 10 describes geography and provinces of Bharatavarsha. Malaya (मलय) (Mountain) is mentioned in Mahabharata (VI.10.10).[6]....Mahendra, Malaya, Sahya, Shuktimana, Rikshavan, Vindhya, and Pariyatra,--these seven are the Kala-mountains (mountains forming boundaries of divisions) of Bharatavarsha.

मलय

विजयेन्द्र कुमार माथुर[7] ने लेख किया है ...1. मलय (AS, p.715) = मलय पर्वत: सप्त कुलपर्वतों में से एक है. इसका अभिज्ञान पूर्वी घाट के दक्षिणी भाग की श्रेणियों से किया गया है. यह पूर्वी और पश्चिमी घाट की पर्वत मालाओं के बीच की श्रंखला के रूप में स्थित है. नीलगिरी की पहाड़ियां इसी पर्वत का अंग हैं. संस्कृत साहित्य में मलयपर्वत पर चंदन वृक्षों की प्रचुरता मानी गई है तथा मलयानिल या मलयपर्वत की वायु को चंदन से सुगंधित माना गया है. मलय का दर्दुर के साथ उल्लेख वाल्मीकि रामायण अयोध्या कांड 91,24 में [p.716]: है. 'मलयं दर्दुरं चैव तत: स्वेदनुदऽ ऽनिल:, उपस्पृश्य ववौ युक्त्या सुप्रियात्मा सुख: शिव:'.

कालिदास ने रघु की दिग्विजय यात्रा के प्रसंग में मलयाद्रि की उपत्यकाओं में मारीच या कालीमिर्च के वनों और यहां विहार करने वाले हारीत या हारीतशुकों का मनोहर उल्लेख किया है--'बलैरधुषितास्तस्य विजिगीषोर्गताध्वनः, मरिचोद्भ्रान्तहारीता मलयाद्रेरुपत्यकाः ' रघुवंश 4,46. भवभूति ने उत्तररामचरित में मलय पर्वत को कावेरी नदी से परिवृत बताया है. बाल रामायण 3,31 में मलय पर्वत को एला और चंदन के वनों से ढका हुआ कहा है (चंदन का पर्याय ही मलय हो गया है) हर्ष के नागानंद और रत्नावली नाटकों में भी मलय पर्वत का उल्लेख है. मलय को कालिदास ने दक्षिण समुद्र (रत्नाकर) तक विस्तृत माना है--'वैदेहि पश्य्ऽ आ मलयाद्विभक्तं मत्सेतुना फेनिलं अम्बुराशिं, छायापथेनेव शरत्प्रसन्नं आकाशं आविष्कृतचारुतारं' रघुवंश 13,2. श्रीमद्भागवत 5,19,16 में पर्वतों की सूची में मलय को पहला स्थान दिया गया है--'मलयो मङ्गलप्रस्थो मैनाकस्त्रिकूट ऋषभ:....'. हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में भी मलयगिरि तथा मलयानिल का वर्णन अनेक स्थानों पर है-- देखें 'सरस वसंत समय भल पाइल दछिन (मलय) पवन बहुधीरे'-- विद्यापति; 'मलियागिरि की भीलनी चंदन दैत जराय' बृंद. मलय के मलयागिरि, मलयाचल, मलयाद्रि इत्यादि पर्याय शब्द हैं.

2. मलय (AS, p.715) = मलद जनपद: बिहार में स्थित मलद नामक जनपद जो मत्स्य (2) या मल्लदेश के निकट था. मलय मलद का ही पाठांतर है-- 'ततॊ मत्स्यान् महातेजा मलयांश च महाबलान्, अनघान भयांश चैव पशुभूमिं च सर्वशः' महाभारत 2,30,8

3. महवंश 7,68 में उल्लिखित लंका का मध्यवर्ती पर्वतीय प्रदेश.

External links

References

  1. "The Vishnu Purana: Book II: Chapter III". p. 174.
  2. D.C. Sircar (1 January 1990). Studies in the Geography of Ancient and Medieval India. Motilal Banarsidass. pp. 243–. ISBN 978-81-208-0690-0.
  3. Diana L Eck (2012). India: A Sacred Geography. Crown Publishing Group. pp. 125–. ISBN 978-0-385-53191-7.
  4. "The Vishnu Purana: Book II: Chapter III". p. 174.
  5. The Matsya Purana
  6. महेन्द्रो मलयः सह्यः शुक्तिमान ऋक्षवान अपि, विन्ध्यश च पारियात्रश च सप्तैते कुलपर्वताः (VI.10.10)
  7. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.715-716