Manimati
Author:Laxman Burdak, IFS (R) |
Manimati (मणिमती) is a place mentioned in Mahabharata located near Gaya in Bihar. It is probably same as Maninaga or Maniyar Math.
Origin
Variants
History
In Mahabharata
Manimata (मणिमत) in Mahabharata (II.19.10), (II.27.10)
Manimant (मणिमन्त) (Tirtha) in Mahabharata (III.80.109)
Sabha Parva, Mahabharata/Book II Chapter 19 mentions that Krishna, Bhima and Arjuna attacked Girivraja to kill Jarasandha. Manimata is mentioned in Mahabharata (मणिमत) (II.19.10).[1]....Maninaga himself had ordered the country of the Magadhas to be never afflicted with drought, and Kaushika and Manimat also have favoured the country. Owning such a delightful and impregnable city, Jarasandha is ever bent on seeking the fruition of his purposes unlike other monarchs. We shall, however, by slaying him to-day humble his pride.
Sabha Parva, Mahabharata/Book II Chapter 27 mentions the countries subjugated by Bhimasena. Manimata (मणिमत) is mentioned in Mahabharata (II.27.10)[2]....And the mighty son of Kunti (Bhimasena) then subjugated, by sheer force, the country called Vatsabhumi, and the king of the Bhargas, as also the ruler of the Nishadas and Manimat and numerous other kings.
Vana Parva, Mahabharata/Book III Chapter 80 mentions the merit attached to tirthas. Manimant (मणिमन्त) (Tirtha) is mentioned in Mahabharata (III.80.109). [3]....Proceeding then, with subdued soul and leading a Brahmacharya mode of life, to Manimant (मणिमन्त) (III.80.109) , and residing there for one night, one acquireth, O king, the merit of the Agnishtoma sacrifice
मणिमती
विजयेन्द्र कुमार माथुर[4] ने लेख किया है ...मणिमती (AS, p.696): ‘इल्वलो नाम दैतेय आसीत कौरवनंदन, मणिमत्यां पुरी पुरा वातापिस्तस्य चानुज:’ महाभारत वन पर्व 96,4. इस नगरी को गया (बिहार) के निकट बताया गया है तथा यहां अगस्त आश्रम की स्थिति मानी गई है. उपर्युक्त प्रसंग में इल्वल दैत्य के वध की कथा यही गठित हुई कही गई है. संभव है मणिनाग और मणिमती एक ही हों. ऐसी दशा में मणिमती को राजगृह (राजगीर, बिहार) के सन्निकट माना जा सकता है (देखें मणिनाग)
मणिनाग
विजयेन्द्र कुमार माथुर[5] ने लेख किया है ...मणिनाग (AS, p.694): राजगृह (=राजगीर बिहार) के खंडहरों में स्थित अति प्राचीन स्थान है इसे अब मणियार मठ कहते हैं. महाभारत में मणिनाग का तीर्थ रूप में [p.695]: उल्लेख है--'मणिनागं ततॊगत्वा गॊसहस्रफलं लभेत्' वन पर्व 84,106. 'तैर्थिकं भुञ्जते यस्तु मणिनागस्य भारत,दष्टस्याशीर्विशेणापि न तस्य क्रमते विषम्' वन पर्व 84,107. निश्चय ही यह स्थान महाभारत काल में नागों का तीर्थ था. मणियार मठ से, उत्खनन द्वारा गुप्तकालीन कई नाग मूर्तियां मिली हैं और एक नागमूर्ति पर तो 'मणिनाग' शब्द ही उत्कीर्ण है. यह प्राय निश्चित है कि महाभारत में जिस मणिनाग का उल्लेख है वह वर्तमान मणियार मठ ही था क्योंकि महाभारत के वन पर्व के अंतर्गत तीर्थ यात्रा के प्रसंग का अधिकांश, मूल महाभारत के समय के बाद का है और बौद्ध कालीन जान पड़ता है जैसा कि मणिनाग के प्रसंग में राजगृह के नामोल्लेख से सूचित होता है-- 'ततॊ राजगृहं गच्छेत तीर्थसेवी नराधिप' वन पर्व 84,104. राजगृह नाम बुद्ध के समकालीन मगधराज बिंबसार का रखा हुआ था. (देखें राजगृह)
External links
References
- ↑ अपरिहार्या मेघानां मागधेयं मणेः कृते, कौशिकॊ मणिमांश चैव ववृधाते हय अनुग्रहम (II.19.10)
- ↑ भर्गाणाम अधिपं चैव निषाथाधिपतिं तदा, विजिग्ये भूमिपालांश च मणिमत परमुखान (II.27.10) बहून
- ↑ मणिमन्तं समासाद्य बरह्म चारी समाहितः, एकरात्रॊषितॊ राजन्न अग्निष्टॊम फलं लभेत (III.80.109)
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.696
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.694-695