Mirzapur District

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Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Mirzapur district map
Location map of Mirzapur

Mirzapur (मिर्जापुर) is a city and district in Uttar Pradesh.

Location

Mirzapur is about 650 km from both Delhi and Kolkata, almost 84 km from Allahabad and 59 km from Varanasi.It is known for its carpets and brassware industries. The city is surrounded by several hills and is the headquarters of Mirzapur district. It is famous for the holy shrine of Vindhyachal, Ashtbhuja and Kali khoh and also Devrahwa Baba ashram. It has many waterfalls and natural spots.

History

Before the establishment of the town, the area was a dense forest and freely used by various states like Varanasi, Sakteshgarh, Vijaygarh, Nainagarh (Chunar), Naugarh, Kantit and Rewa for Hunting. British East India Company had established this area to fulfill the needs of a trading center between central and western India. This time Rewa was a well-established state of central India and was directly connected with Mirzapur by the Great Deccan Road. Over the time Mirzapur became a famous trading center of Central India and started trading of cotton, and silk at very large scale.

The East India Company named this place as Mirzapore (मिर्ज़ापुर). The word Mirzapur is derived from 'Mirza' which in turn is derived from the Persian term ‘Trip Kalchu which literally means "child of the ‘Amīr" or "child of the ruler". In Persia‘ Amīrzād in turn consists of the Arabic title ‘Amīr (English. "Emir"), meaning "commander", and the Persian suffix -zād, meaning "birth" or "lineage". Due to vowel harmony in Turkic languages, the alternative pronunciation Morza (plural morzalar; derived from the Persian word) is also used. The word entered English in 1595, from the French émir. The meaning of Mirzapur is the place of King.

Most of the city was established by British officers, but the starting development was founded by the most famous officer of British East India Company "Lord Marquess Wellesley". As per some evidence the British construction was initiated from Burrier (Bariya) Ghat. Lord Wellesley has reconstructed the Burrier Ghat as a main entrance in Mirzapur by Ganga. Some of the places in Mirzapur was pronounced as per the name of Lord Wellesley, like Wellesleyganj (The first market in Mirzapur), Mukeri Bazar, tulsi chowk etc. The building of Municipal Corporation is also a precious example of British Constructions.

It is the place in India where the Holy River Ganges meets with Vindhya Range. This is considered significant in Hindu Mythology and has a mention in Vedas. Near mirzapur founded a religious place Vindhyanchal. Vindhyachal, a Shakti Peeth, is a centre of pilgrimage in Mirzapur District, Uttar Pradesh. The Vindhyavasini Devi temple located here is a major draw and is thronged by thousands of devotees during the Navratris of Chaitra and Ashwin months to invoke the blessings of the Goddess.

Other sacred places in the town are Ashtbhuja temple, Sita Kund, Kali Khoh, Budeh Nath temple, Narad Ghat, Gerua talab, Motiya talab, Lal Bhairav and Kal Bhairav temples, Ekdant Ganesh, Sapta Sarovar, Sakshi Gopal temple, Goraksha-kund, Matsyendra kund, Tarkeshwar Nath temple,'Narghat Kali Ji Mandir, Kankali Devi temple, Shivashiv Samooh Awadhoot Ashram, Badeura nath temple and Bhairav kund.

मिर्जापुर

मिर्ज़ापुर शहर, दक्षिण-पूर्व उत्तर प्रदेश राज्य, उत्तर-मध्य भारत, वाराणसी (पहले बनारस) के दक्षिण-पश्चिम में गंगा नदी के तट पर विन्ध्याचल की कैमूर पर्वत श्रेणियों में स्थित है। इसके आसपास के क्षेत्र में उत्तर में गंगा के कछारी मैदान का हिस्सा और दक्षिण में विंध्य पर्वतश्रेणी की कुछ पहाड़ियाँ हैं। यह क्षेत्र सोन नदी द्वारा अपवाहित होता है। इसकी सहायक धारा रिहंद पर बांध बनाया गया है, जिससे विशाल जलाशय का निर्माण हो गया है और इसमें जलविद्युत उत्पादन भी होता हैं। यहाँ नदी तट पर कई मंदिर और घाट हैं। विंध्याचल में काली का प्राचीन मंदिर है, जहाँ तीर्थ्यात्री जाते हैं।

इतिहास: मिर्ज़ापुर की स्थापना संभवतः 17वीं शताब्दी में हुई थी। 1800 तक यह उत्तर भारत का विशालतम व्यापार केंद्र बन गया था। जब 1864 में इलाहाबाद रेल लाइन की शुरुआत हुई, तो मिर्ज़ापुर का पतन होने लगा, लेकिन स्थानीय व्यापार में इसका महत्त्व बढ़ता रहा।

मिर्जापुर क्षेत्र में सोन नदी के तट पर लिखुनिया, भलदरिया, लोहरी इत्यादि सौ से अधिक पाषाणकालीन चित्रों से युक्त गुफ़ाएँ तथा शिलाश्रय प्राप्त हुए हैं। ये चित्र लगभग 5000 ई.पू. के माने जाते हैं। यहाँ शिकार के सर्वाधिक चित्र बने हुए हैं। जलती हुई मशाल से बाघ का सामना करता हुआ मानव लोहरी गुफ़ा में चित्रित किया गया है। लिखुनिया गुफ़ा में कुछ घुड़सवार पालतू हथिनी की सहायता से एक जंगली हाथी को पकड़ते हुए चित्रित हैं। इन घुड़सवारों के हाथों में लम्बे-लम्बे भाले चित्रित किए गए हैं। यहाँ पर मृत्यु के कष्ट से कराहता हुआ ऊपर की ओर मुँह किए हुए सूअर, जिसकी पीठ पर नुकीला तीरनुमा हथियार घुसा हुआ है, स्वाभाविक रुप से चित्रित किया गया है।


सड़क मार्ग: मिर्जापुर सड़क मार्ग द्वारा भारत के कई प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। लखनऊ, इलाहाबाद, वाराणसी, पटना, दिल्ली और कलकत्ता आदि जगह से सड़क मार्ग द्वारा पहुँचा जा सकता हैं।

पर्यटन

तारकेश्‍वर महादेव: विन्ध्याचल के पूर्व में स्थित तारकेश्‍वर महादेव का ज़िक्र पुराण में भी किया गया है। मंदिर के समीप एक कुण्ड स्थित है। माना जाता है कि तराक नामक असुर ने मंदिर के समीप एक कुण्ड खोदा था। भगवान शिव ने ही तराक का वध किया था। इसलिए उन्हें तारकेश्‍वर महादेव भी कहा जाता है।

महा त्रिकोण: कहा जाता है कि महा त्रिकोण की परिक्रमा करने से भक्तों की इच्छा पूरी होती है। मंदिर स्थित विन्ध्यावशनी देवी के दर्शन करने के पश्चात् भक्त संकट मोचन मंदिर जाते हैं। इस मंदिर को कालीखोह के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर विन्ध्याचल रेलवे स्टेशन के दक्षिण दिशा की ओर स्थित है।

शिवपुर: पौराणिक कथा के अनुसार भगवान श्री रामचन्द्र ने अपने पिता राजा दशरथ का श्राद्ध विन्ध्याचल क्षेत्र में ही किया था। माना जाता है कि भगवान श्रीराम भगवान शिव के उपासक थे। इस जगह पर भगवान राम ने पश्चिम दिशा की ओर भगवान शिव की प्रतिमा स्थापित की थी।

सीता कुंड: अष्टभुजा मंदिर के पश्चिम दिशा की ओर सीता जी ने एक कुंड खुदवाया था। उस समय से इस जगह को सीता कुंड के नाम से जाना जाता है। कुंड के समीप ही सीता जी ने भगवान शिव की स्थापना की थी। जिस कारण यह स्थान सीतेश्‍वर के नाम से प्रसिद्ध हो गया। सीता कुंड के पश्चिम दिशा की तरफ भगवान श्री राम चंद्र ने एक कुंड खोदा था। जिसे राम कुण्ड के नाम से जाना जाता है। इसके अतिरिक्त शिवपुर स्थित लक्ष्मण जी ने रामेश्वर लिंग के समीप शिवलिंग की स्थापना की थी, जो कि लक्ष्मणेश्‍वर के नाम से प्रसिद्ध है।

External links

References