Mohan Singh Verma Fogawat

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Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Mohan Singh Verma Fogawat (born:5.1.1922) (मोहनसिंह वर्मा फोगावट) was from village Fogawat Ki Dhani, Sikar, Rajasthan. He was social worker and Freedom fighter of Shekhawati farmers movement. [1]

जीवन परिचय

जाट जन सेवक

ठाकुर देशराज[2] ने लिखा है ....मोहनसिंह वर्मा -[पृ.464]: मोहनसिंह का जन्म 5 जनवरी सन 1922 में हुआ। गोत्र फोगावट व पिता का नाम वक्शारामजी था। यह जयपुर राज्य के खंडेला ठिकाने में फोगावटों की ढाणी में जन्मे थे। श्री धन्नासिंह जी के छोटे भाई हैं।

जब इनके पिताजी का देहांत हो गया तो इनके भाई धन्नासिंह जी ने इन को पढ़ाने के लिए स्कूल में भेज दिया। यह


[पृ.465]: बचपन से ही सरल स्वभाव के थे। पढ़ने में इनका मन लग गया था। थोड़े दिनों में प्राइवेट कक्षा 5 तक की मान्यता प्राप्त कर ली। सन् 1935 के नवंबर माह में ये खुद खंडेला ठिकाने के स्कूल में ही कक्षा 6 में भर्ती हो गए और वहां के हेडमास्टर के पास ही रहने लगे। वह स्कूल छठवीं तक ही थी। छठवीं क्लास में इनका नंबर सबसे अव्वल रहा और बहुत सी इनामें भी इन्हें मिली। जब खंडेला के राजा साहब को यह मालूम हुआ तो उनको आश्चर्य हुआ। जब उन्हें यह मालूम हुआ कि यह जाट है और इसका नाम मोहनसिंह है तो और भी नाराज हुये और वहां के हेडमास्टर को नाम के आगे सिंह न लगाने को कहा। अस्तु !

सन् 1935 में आसपास पढ़ाई का कोई उचित साधन न पाकर ये रामगढ़ (शेखावाटी) स्कूल में भर्ती हो गए। बड़ी आसानी से दो ही साल में उन्होंने मिडिल पास कर लिया। मिडिल पास करते ही इनके घर वालों ने इनकी इच्छा के विरुद्ध शादी करदी।

शादी करने पर भी इनका पढ़ने का विचार नहीं छूटा और बगड़ शेखावाटी हाई स्कूल में जाकर भर्ती हो गए। बड़ी आसानी से 2 ही साल में सन् 1939 में इन्होंने हाईस्कूल की परीक्षा पास कर ली।

परीक्षा पास करने के बाद उन्होंने कुछ दिनों तक अपने गांव में स्वतंत्र पढ़ाने का विचार किया। किंतु उचित साधनों की कमी के कारण और लोगों की विरोधी भावनाओं के कारण फलीभूत न हो सके। इनका विचार अब सिर्फ यही था कि किसी तरह से जाट जाति में जो अशिक्षा है उसको मिटाया जाए। किंतु उचित सहयोग और अनुभव न मिलने के कारण


[पृ.466]: उन्होंने कुछ दिन किसी संस्था की शरण लेना चाहा। सबसे अच्छी संस्था इन्हें इस वक्त राजस्थान चरखा संघ की लगी ।उन्होंने इसके तत्वावधान में कुछ दिन शिक्षण कार्य किया। कुछ दिनों में इसका अनुभव हो जाने के बाद इन्होंने मारवाड़ी रिलीफ सोसाइटी के स्कूलों में काम करना शुरू किया।

उन्होंने एक साल तक इस तरह से काम किया। किन्तु उनका दिल व दिमाग हमेशा अपने प्रांत की अशिक्षा को दूर करने में ही लगा रहता था। सब ओर निराश हो ये बिरला एजुकेशन ट्रस्ट के जनरल इंस्पेक्टर श्री निहाल सिंह जी तक्षक ने इन्हें आश्वासन दिया और हमारे यहां 5 स्कूल चालू करने का वायदा किया। इन्हें इससे बड़ा भरी संतोष हुआ। चटपट इन्होंने आकर ठिकाने वालों के विरोध करने पर भी अपनी ढाणी फोगावट की में इन्होंने स्कूल चालू कर दिया। एक साल के अंदर ही उन्होंने गढ़वालों की ढाणी, जयरामपुरा, सुजाना, चला आदि आदि में स्कूल चालू करवाने की व्यवस्था कर दी।

11 सितंबर सन 1940 चाहिए अपने प्रांत खंडेलावाटी में ही अशिक्षा निवारण का कार्य कर रहे हैं। इनको काफी सफलता मिली है। सन 1944 से इन्होंने जयरामपुरा में मिडिल स्कूल भी चालू कर दिया है। स्कूल तरकी पर है। 150 लड़के तालीम पा रहे हैं। लोगों का शिक्षा के प्रति प्रेम बढ़ता जा रहा है। रात दिन ये इसी स्कूल की उन्नति में लगे रहते हैं। जय हैडमास्टर स्तर का कार्य कार्य भी स्वयं ही कर रहे हैं। आशा है भविष्य में यह संस्था और भी अधिक पनपे और इससे जाट जाति का हित हो।

श्री मोहनसिंह जी के दो संतान हैं। एक 4 वर्ष की लड़की है और एक डेढ़ साल का लड़का है। शिक्षा का प्रचार करना


[पृ.467]: इन का उद्देश्य है और इसी में संलग्न है। समाज सुधार में रात दिन लगे रहते हैं। उनके चार भाई हैं। 3 काश्तकारी का काम करते हैं। एक धन्ना सिंह समाज सुधार के कार्य में ही लगे रहते हैं।

बाहरी कड़ियाँ

संदर्भ

  1. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.464-467
  2. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.464-467

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