Nagyal

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Nagyal (नाग्याल)or Nagra is a Hindu SIKH Muslim Jatt clan found in Jammu and Kashmir Punjab Haryana and Pakistan mirpur chhamb.

        Nagyal Kuldevta 

🌹जय बाबा प्यारा शहीद, जय बाबा बाला शहीद , जय बुआ मिर्ज़ा जी🌹

🌹जय बाबा शल्लो शहीद नगयाल वंश (भ्रादबारी गोत्र)🌹

ओम् कुलाना सूजद शान्त सर्वदा कुल वर्दनामा आयुवल यसोदेहि कुल देव नमोस्तूत ओम् गणेशाय नमः कुल देवाय नमः त्वमेव माता च पिता त्वमेव त्वमेव वन्धु च सखा त्वमेव त्वमेव विद्या च द्रविन त्वमेव त्वेमव सर्व मम देव देव बाबा शल्लो शहीद की जय नमो नमो बाबा वरदानी कलयुग में हो शुभ कल्याणी रठाना में हो ज्योति तुम्हारी पिण्डी रुप में हो अवतारी जगे अखण्ड, इक जोत तुम्हारी कलयुग में है महिमा तुम्हारी

🌹 नग्याल (रिवेरिये) बिरादरी का संक्षिप्त परिचय 🌹

मौखिक परम्परा से यह ज्ञात होता है कि सैकड़ों वर्ष पहले 'नागा 'और 'पागा' नामक दो भाई हुए। वे अति साहसी और वीर थे। किसी आपसी विवादस्वरूप इन्होंने अपने वंश को अलग-अलग नाम दे दिया। नागी के वंशज नग्याल जट्ट तथा पागी के वंशज 'भाऊ' राजपूत कहलाए जाने लगे। पुराने समय में अपनी और मवेशी की सुविधानुसार लोग एक स्थान से दूसरे स्थान पर बसते रहते थे। ऐसी ही कुछ भूगौलिक व अन्य परिस्थितियों वश उपरोक्त नग्याल जट्ट विस्थापित होते-होते अनेक जातियों में विभाजित हो गए। यह जातियां अपनी-अपनी रहनवारी से पहचानी जाने लगी, जैसे छम्ब के छिम्करियां वाले मौहल्ले में रहने वाले नग्याल छिम्करियां नग्याल, गुडानक्का स्थान पर रहने वाले गुडानक्के नग्याल, मोला नामक जगह पर रहने वाले नग्याल मोलावाले, नगैयाले में बसे हुए नगैयाले नग्याल कहलाए जाने लगे। इसी प्रकार हमारी बिरादरी को रिवेरी गाँव में रहने के कारण रिवेरिये नग्याल कहा जाता है। रिवेरी के कुछ नग्याल वीरावाल, कुछ मंडयाला तथा कुछ छम्ब में आकर बसे। मूलरूप से तीनों एक ही हैं। वीरावाल जो अब पकिस्तान में है वहां के कुछ नग्याल भारत पाक – विभाजन के समय अम्बाला में आकर बसे हैं। जो अपने नाम के साथ उपनाम 'नागरा' लिखते हैं। अनेक जातियों के साथ रिवेरिये नग्याल भी 1971 के भारत- पाक युद्ध के पश्चात् छम्ब से विस्थापित हुए। वर्तमान में नग्याल जट्ट जम्मू शहर व अनेक सीमावर्ती गाँवों में रहते हैं। बिरादरी की वार्षिक व अद्धवार्षिक मेल तहसील साम्बा के काली बड़ी गाँव में होती है। बाबा प्यारा शहीद जी की कथा :- यह समय मध्यकाल का था। राजनैतिक, सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से उथल-पुथल के इस समय में हिन्दू धर्म पर संकट था। मुगलों की सत्ता स्थापित होने के साथ अकबर की सहिष्णुता तले लोग थोड़ी राहत महसूस कर रहे थे। परन्तु इनके वंशज औरंगजेब की कट्टरता से प्रजा बहुत दुखी हो गई। औरंगजेब ने मंदिरों और मूर्तिकला को काफी क्षति पहुंचाई। कहते हैं कि औरंगजेब सवा मन जनेऊ उतरवाकर खाना खाता था। इस बात का कोई प्रमाण तथ्य रूप से इतिहास में नहीं मिलता। वैसे भी यह कोई तर्कसम्मत बात नहीं है। परन्तु औरंगजेब की कट्टरता पर कोई मतभेद नहीं है। उसने धर्मपरिवर्तन तो खूब करवाया पर इस परिवर्तन का मुख्य कारण औरंगजेब की कट्टरता से अधिक हिन्दू धर्म का जातिगत भेदभाव था। वह एक सफल और बड़ा शासक था। धार्मिक कट्टरता ने उसका पतन किया। इसी समय में औरंगजेब के समर्थकों और बाहरी आक्रमणकारियों ने भी औरंगजेब का अनुसरण करते हुए भारत का रुख किया। वे भी लूटपाट के साथ-साथ धर्म परिवर्तन करवा रहे थे। इसी उपक्रम में गढ़ गजनी से फौजें चढ़ाई करके भारत में पदार्पण कर चुकी थीं। इसी अराजकता भरे समय में प्रजा पर हो रहे अत्याचार, अन्याय और शोषण का विरोध करने के लिए बहुत से वीर योद्धा भी हुए। मीरपुर पकिस्तान, डुग्गर, पंजाब व अन्य प्रांतों के लोक साहित्य तथा लोक कथाओं में ऐसे अनेक वीरों का वर्णन मिलता है। कारकों में हम इनकेबलिदान और शौर्य की कथाएँ सुनते हैं। बाबा प्यारा शहीद भी उन में से एक थे। बाबे का जन्म रिवेरी गाँव में हुआ जो अब पकिस्तान में है। बाबा प्यारा का नाम प्यारा रखा गया। वे बचपन से ही बहुत धार्मिक, उदार हृदय और सेवा भाव वाले थे। माता वैष्णों के उपासक थे। शस्त्र और शास्त्र दोनों में गहरी रुचि रखते थे। कहते हैं जब मुस्लिम धर्मान्ध शासकों के कुछ सिपाही धर्म परिवर्तन करवाने हेतु रिवेरी गाँव में आए तो बाबा प्यारे की प्रसिद्धि देख दंग रह गए। लोगों का बाबा प्यारे पर अटूट विश्वास था। उन्होंने कहा कि अगर आप लोग योद्धा प्यारे का धर्म परिवर्तन करवा देंगे तो हम भी अपना धर्म बदल लेंगे। सिपाहियों ने लोगों की बात को स्वीकृत कर बाबा के घर को घेर लिया। बाबा उस समय माता की उपासना कर रहे थे। बाबा ने सिंगार करके शस्त्रों से सुसज्जित होकर शत्रुओं को ललकारा। बाबे की ललकार ने युद्ध की घोषणा कर दी। घोड़े पर सवार हो कर बाबा बाहर निकले। उन्होंने शत्रु दल के सामने छाती तान कर कहा- 'मैं किसी कीमत पर अपना धर्म नहीं छोडूंगा। धर्म छोड़ने के लिए नहीं निभाने के लिए होते हैं। मानवता से बड़ा कोई धर्म नहीं है। बात हिन्दू या मुस्लिम धर्म की नहीं है। बात है अन्याय को सहन न करने की। धर्म निजी मामला है पर जब मामला मेरे लोक पर तलवार की ताकत दिखाना है तो मुझे आपको मजा चखाना ही है, इतना कह कर बाबा शत्रुओं पर बिजली की गति से टूट पड़े। शत्रु दल को संभलने का अवसर भी न मिला। बाबा ने कितने सैनिकों को मार गिराया। समर भूमि में हाहाकार मच गया। शाम तक युद्ध होता रहा। स्मरण रहे कि यह युद्ध एक नदी के बीच बने छोटे से टापू पर हो रहा था। बाबा उन पर भारी थे। कोई वश न चलता देख शत्रु दल की एक टुकड़ी ने बाबा पर धोखे से पीठ पीछे से वार किया और उनका सिर काट दिया। यह माता वैष्णों की कृपा और बाबे के तप का फल था कि उनका धड़ घोड़े से नीचे नहीं गिरा। धड़ को युद्ध करता देख पानी भरने आई गाँव की औरतें आश्चर्यचकित हो गईं। वे बोली- 'देखो कैसा अपूर्व वीरता और रणकौशल भरा दृश्य है। चलो जाकर सब को सुनाते हैं। 'यह संवाद समाप्त होते ही धड़ नीचे गिर पड़ा। शत्रु दल ने भी बाबे की शक्ति को मान कर कहा - 'यह कोई बहुत बड़ा फकीर था। 'सैनिक वापिस लौट गए। इसी प्यारे वीर योद्धा को नग्याल अपना कुल देवता मानते हैं। रिवेरी में उनकी कोई देहरी नहीं थी। नग्याल वंश बाबे को पत्थर के एक चबूतरे पर दिया जला कर याद करता था। बाद में बाबा बाला शहीद जी ने अपनी और अपने भाई बाबा प्यारे शहीद की जगह बनाने का निर्देश अपने वंश को दिया। जिसे प्रसन्नता से बिरादरी ने माना। भारत – पाक विभाजन के बाद बाबा प्यारा व बाबा बाला शहीद व बुआ मिर्जा की देहरियाँ छम्ब के माड़ी स्थान पर बनाई गई। पकिस्तान में जिन हिन्दुओं ने धर्म परिवर्तन कर लिया वे बाबे को पीर मानते हैं।

इस प्रकार बाबा प्यारा जी ने धर्म की रक्षा हेतु प्राणों का बलिदान दे दिया। इसीलिए उनको बाबा प्यारा शहीद कहा जाता है। बाबा अपने कुल के ही नहीं मानवता के रक्षक हैं। वे मन्नतों को पूरा करते हैं। दुख-सुख में अपने भक्तों के अंग-संग रहते हैं। बाबा बहुत दयालू हैं। अपने भक्तों, कंजकों, ब्राह्मणों और त्यान (कुल की बेटी) की पुकार एकदम सुनते हैं।

जय बाबा बाला शहीद जी की कथा :-

मौखिक साहित्य तथा पूर्वजों के अनुसार बाबा बाला जी छम्ब से तीन मील उत्तर दिशा में स्थित  मंडयाला गाँव में रहते थे। वे संत स्वभाव के थे। वे अधिकतर समय घर से थोड़ी दूर एक वट वृक्ष के नीचेडेरा लगा कर रहते थे। वे तत्कालीन समय अनुसार आर्थिक रूप से अपनी खेती व मवेशी पर निर्भर थे। वे प्रतिदिन सुबह अपने गाँव से दक्षिण की तरफ मत्तेवाल की हरीभरी चरागाह में गायें चराने जाते थे और शाम को लौटते थे।

घरवालों ने बाबा की मंगनी मत्तेवाल गाँव में एक नडग्याल परिवार में की थी। बाबा की मंग का नाम मिर्जा था। एक दिन की बात है बुआ मिर्जा अपने भाईओं को खेत में खाना देने जा रही थी कि तभी एक तंग रास्ते में एक नाग ने उसे लपेट लिया। दरअसल बात यह थी कि बुआ मिर्जा ने बाबा और उसके साथियों को देख लिया था और रीति-रिवाजों और संस्कारों को निभाने हेतु उसने ओढ़नी से पूरा चेहरा ढक लिया था इसलिए वह नाग के लपेटे में आ गई। वह नारीसुलभ संकोचवश बाबा का नाम नहीं ले पाई। वह एक ही स्थान पर खड़े रहकर नाग से संघर्ष करती रही। कुछ चरवाहों ने यह दृश्य देखा तो वे आशंकित हुए। उन्होंने कहा- 'मित्रो जरा देखें तो यह कौन है और क्या कर रही है ? 'जब जाकर उन्होंने देखा तो वे हैरान हो गए। उसने देखा कि एक भयानक काले नाग ने बाबा की मंग को लपेट रखा है। एक ने दौड़ते हुए जाकर बाबा से कहा – 'बाला तेरी मंग को एक नाग ने शिकंजे में फांस लिया है। उसे बचाना असम्भव है। 'इतना सुनना था कि बाबा ने क्रोध से भर कर कहा- 'मेरी मंग का कोई बाल बांका नहीं कर सकता। एक नाग तो क्या मैं अपनी मंग की खातिर पूरी नाग जाति से भी लड़ सकता हूँ। 'बाबा ने संस्कारबद्ध अपने मुहं पर कपड़ा लपेटा और घटनास्थल पर जा पहुंचे। उन्होंने नाग को ललकारा। जब नाग ने नहीं छोड़ा तो उन्होंने अपने लकड़ी काटने के अस्त्र (जिसे डोगरी या पंजाबी में तवर कहते हैं) से नाग का सिर काट दिया। कटे हुए नाग ने उछल कर बाबा को काट खाया। बाबा जी अपनी मंग की रक्षा हेतु वही पर शहीद हो गए। मिर्जा को बहुत दुःख हुआ वह वही बैठ कर बाबा जी की देह से लिपट कर रोने लगी। जब बुआ के भाईओं को पता चला तो वे दौड़े-दौड़े आए और बुआ को घर चलने के लिए कहने लगे। भाई कहने लगे – 'बाला से अभी तेरी मंगनी ही हुई थी। कोई विवाह नहीं हुआ था। बहन तू क्यों रो रही है! हम तेरी शादी कहीं और तय कर देंगे। 'इस पर चुप होते हुए दृढसंकल्प होकर बुआ ने कहा 'यह मेरे लिए शहीद हुए हैं। शादी के बारे में मैं सोच भी नहीं सकती। मैं अपने धर्म का पालन करते हुए इन्हीं के साथ शहीद हो जाऊँगी। 'यह सुन कर भाई बुआ को घसीटते हुए घर ले गए। बुआ को अन्दर धकेल कर दरवाजा बंद कर दिया गया। नारी शक्ति महान है। उसी नारी शक्ति स्वरूप दरवाज़े अपने आप खुल गये। बुआ शमशानघाट में हवा से बातें करती पहुँच गई। बुआ ने अपना दृढ संकल्प दोहराया - 'मैं अपने बाला जी के साथ सती हो रही हूँ। मुझे आज के बाद नडग्याल अनिवार्य रूप से पूजेंगे और नग्याल स्वेच्छा से। 'इतना कह कर बुआ ने जलती अग्नि में अपना दाह कर लिया। बाद में बाबा बाला शहीद जी ने अपनी और अपने भाई बाबा प्यारे शहीद की जगह बनाने का निर्देश अपने वंश को दिया। जिसे प्रसन्नता से बिरादरी ने माना। भारत-पाक विभाजन के बाद बाबा प्यारा व बाबा बाला शहीद व बुआ मिर्जा की देहरियाँ छम्ब के माड़ी स्थान पर बनाई गईं। इस प्रकार बुआ और बाबा बाला जी अमर हो गए। बुआ का सतीत्व एक आदर्श था। बाबा जी की शहादत केवल अपनी मंग के लिए न थी बल्कि नारी जाति का मान थी।

नोट :- बाबा बाला के अलावा बाबा प्यारा के तीन भाई और थे। बाबा प्यारा ने विवाह नहीं किया था और बाबा बाला जी की भी केवल मंगनी हुई थी इस प्रकार रिवेरिये नग्याल अन्य तीन भाइयों के वंशज हैं Nagyal जम्मू में Nagyal को ही Nagra बोलते हैं क्योंकि जम्मू के लोग Nagyal लिखते हैं जम्मू में जितने भी लोग Nagyal लिखते हैं सभी मीरपुर छम्ब से है 1947 के बाद जम्मू पंजाब में आ कर बसें है ambala के लोग Nagra लिखने लगे तो जम्मू वाले ने भी Nagra लिखना शुरू कर दिया इसलिए जम्मू के Nagyal आपने नाम के पिछे Nagra लिखते हैं जेसे Nagyal आपने नाम के पिछे Nagra लिखते हैं वेसे ही 1 Dour Dhillon लिखते हैं। 2 Thathaal Randhawa लिखते हैं. 3 Pujal Bajwa लिखते हैं. 4 Chedi Chahal लिखते हैं 5 Nadgyal Nagokay लिखते हैं 6 Saryal 7 Samotra 8 virk 9 Bhatti 10 Jaal Johal 11 Sandhu      

Distribution in Jammu and Kashmir

Villages in Jammu district

Rakh Flora, Rangoor camp

Ramgarh 

Kail Badi ( Riviere nagyal kuldevta )

Distribution in Pakistan

Nagyal - The Nagyal claim [[ ]] jat ancestry. They are found in Jhelum, Chakwal, Gujrat and Rawalpindi districts.

Notable persons

References