Narayan Singh Bhamu

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Author:Laxman Burdak, IFS (R), Jaipur

Narayan Singh Bhamu (born:1904) (नारायण सिंह भामू), from Bhamarwasi, Chirawa, Jhunjhunu, Rajasthan, was a Freedom fighter and hero of Shekhawati farmers movement.[1]

जाट जन सेवक

ठाकुर देशराज[2] ने लिखा है ....कुंवर नारायण सिंह मोहनपुर - [पृ.421]: शेखावाटी में भामू जाट की उज्जवल कीर्ति सदा ही रही है। इन्हीं के नाम पर भामरवासी गांव अपने अधिष्ठाता के नाम के साथ सदा कार्यक्षेत्र अगवा रहा है। हर तरह के सामूहिक यज्ञों में भामरवासी ने सदा ही आहुति दे कर सफल नाम रखा है। “यथा नाम तथा गुण” कहावत आप पर सदा ही लागू रही है। जाट सभा झुंझुनू का अधिवेशन यहां के युवकों को आगे लाने में सफल सम्मेलन साबित हुआ।

भामर वासी गांव में हरजीराम जी चौधरी के घर मैं आपका जन्म मिती फागुन सुदी 5 संवत 1960 (1904 ई.) के रोज हुआ था।


[पृ. 422]: अपने माता पिता के सबसे बड़े पुत्र हैं। इनसे छोटी 4 बहीने हैं। आप यहां के उत्साही कार्यकर्ता श्री ख्यालीराम जी के निकटतम साथियों में से हैं। आपमें यह एक खास गुण है कि आप रचनात्मक कार्य को ही सफल ध्येय मानते हैं। जबकि ख्यालीराम जी एक सफल पार्लियामेंट्री कार्य करता है। आपकी रचनात्मक सेवा का नमूना आज विद्यार्थी भवन झुंझुनू प्रत्यक्ष है। जिसके बारे में आप सार्वजनिक जीवन में आगे ही पूरी लग्न के साथ पड़े थे। आज तक सारी विघ्न-बाधाओं के होते हुए भी निस्वार्थ भावना से बराबर जुटे हुए हैं। जीवन में तरह तरह के संकल्प-विकल्प रहते हुए पूरी समझदारी के साथ अपने आप को खपा देने वाले एक नेता की एक आवाज पर जीवन कुर्बान कर देने वालों में से पाया है। शील स्वभाव एवं नम्रता आपका पुश्तैनी खिताब है। नम्रता की छाप आस-पास के गांवों तक में पड़ी हुई है। आजकल आप ग्राम समूह प्रजामंडल कमेटी के सभापति हैं। जिसमें पूरी लगन एवं निर्भीकता से जुटे हुए हैं। आस-पास से भोले किसानों पर जब भी कोई विपत्ति आती है तो भाग-भाग कर आपके पास दौड़े आते हैं। आप अपनी नम्रता की छाप सदा उन लोगों पर छोड़ते रहते हैं और पूरी लगन के साथ उनके दुखों को मिटाने की चेष्टा करते हुए उन्हें संतोष दिलाते हैं।

गत जयपुर प्रजामंडल के सन 1939 के आंदोलन के समय आप कोलकाता में थे परंतु आंदोलन का समाचार पाते ही सफल नौकरी को अदा के साथ तिलांजलि देकर आंदोलन में भाग लेने के वास्ते चल पड़े परंतु रास्ते में आगरा में संग्राम समिति के ऑफिस में पहुंचने पर मालूम हुआ कि पूज्यवर महात्मा गांधी के हस्तक्षेप से आंदोलन स्थगित हो गया है।


[पृ.423]: आपने तो अपना जीवन कोलकाता में ही सार्वजनिक कार्यों में समर्पित करने का निश्चय किया। अतः वहां से आते ही विद्यार्थी भवन झुंझुनू के कार्य में उतर पड़े जिसे पूरी कोशिशों से सजीव रखते जा रहे हैं।

आपको इन सारे कामों में आगे लाने का श्रेय इनकी पत्नी सौ. श्री राजकुमारी देवी को है जिन्होंने पूरी कोशिश से आपको इस रास्ते पर डाला है। इस समय आप के एक पुत्र एवं तीन पुत्रियां हैं जिनके नाम शांति कुमारी, कुंवर प्रताप सिंह कमल कुमारी सुशीला है। सबसे बड़ी पुत्री शांति कुमारी विद्यार्थी भवन में शिक्षा प्राप्त कर रही है। बच्चे होनहार जान पड़ते हैं जिससे सहज ही भविष्य की कल्पना की जा सकती है।

पिताजी श्री हारजीराम जी की उम्र 60 साल की है तथा आपकी उम्र 38 साल की है। ईश्वर करे हमारे नायक चिरंजीव हो जिससे उनके कार्यों का लाभ हमें सदा मिलता रहे।

जीवन परिचय

सन्दर्भ

  1. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.421-423
  2. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.421-423

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