Narender Singh Ahlawat

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Narender Singh Ahlawat

Narender Singh Ahlawat (Captain) (28.11.1974) was the recipient of Sena Medal and Shaurya Chakra (posthumous) gallantry awards. He belonged to village Deeghal in district Jhajjar, Haryana. On 28 November 1974, he laid down his life while fighting with insurgents in Nagaland. Unit: 15 Grenadiers Regiment.

Early life

A brave Jat Soldier who laid down his life for the country, he belonged to village Deeghal in district Jhajjar, Haryana and followed the tradition of the family. Son of Maj Ran Singh, he studied at Sainik School & joined Army. Got commissioned in 15 Grenadiers and straightaway went for 1971 Indo-Pak war.

Shaurya Chakra

He won Sena Medal for his bravery.

On 28 November 1974, he laid down his life while fighting with insurgents in Nagaland, in an effort to save his soldiers.

On Republic Day 1976, Capt. NPS Ahlawat was awarded Shaurya Chakra (Posthomously).

कैप्टन नरेन्दर सिंह अहलावत 

कैप्टन नरेंदर सिंह अहलावत SM सर्विस नं - IC25103 शौर्य चक्र (मरणोपरांत) यूनिट - 15 ग्रेनेडियर्स रेजिमेंट नागा विद्रोह विरोधी ऑपरेशन

कैप्टन नरेंदर सिंह का जन्म अविभाजित पंजाब के रोहतक (अब हरियाणा के झज्जर जिले) जिले के डीघल गांव में एक सैन्य परिवार में मेजर रण सिंह अहलावत एवं श्रीमती निहाली देवी के घर में हुआ था। उनके दादा सोहन सिंह अहलावत ने प्रथम विश्व युद्ध में ब्रिटिश-भारतीय सेना में सेवाएं दी थीं। शिक्षा पूर्ण करने के पश्चात उन्होंने अपने परिवार की सैन्य सेवा की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए भारतीय सेना की ग्रेनेडियर्स रेजिमेंट की 15 बटालियन में सैकिंड लेफ्टिनेंट के रूप में कमीशन प्राप्त किया था। सेना में कमीशन पाते ही उन्हें 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में शकरगढ़ सेक्टर के युद्ध में तैनात किया गया था।

भारत-पाकिस्तान युद्ध 1971

8 दिसंबर 1971 को सैकिंड लेफ्टिनेंट नरेंदर सिंह को शकरगढ़ सेक्टर में शत्रु के एक मीडियम मशीन गन बंकर को नष्ट करने का कार्य सौंपा गया था। उन्होंने साहस के साथ अपने गश्ती दल का नेतृत्व किया, लक्षित मशीन गन बंकर पर अधिकार कर लिया और शत्रु को भारी क्षति पहुंचाई।

उस कार्रवाई में सैकिंड लेफ्टिनेंट नरेंदर सिंह ने नेतृत्व और कर्तव्य के प्रति समर्पण का परिचय दिया। उनके अदम्य साहस एवं वीरता के लिए फील्ड मार्शल सेम मानेकशॉ द्वारा उन्हें सेना मेडल से सम्मानित किया गया था।

वर्ष 1974 तक भिन्न-भिन्न स्थानों व परिचालन परिस्थितियों में सेवाएं देते हुए, वह कैप्टन के पद पर पदोन्नत हो गए थे तथा उनकी बटालियन को पूर्वोत्तर भारत में नागा विद्रोह विरोधी ऑपरेशन में नागालैण्ड में तैनात किया गया था।

नागालैण्ड विद्रोह विरोधी कार्रवाई 1974

28 नवंबर 1974 को, कैप्टन नरेंदर सिंह को नागा विद्रोहियों के विरुद्ध एक ऑपरेशन में दो अवरोध (STOP) स्थापित करने का कार्य सौंपा गया था, जबकि मुख्य स्तंभ खोज का कार्य कर रहा था। कैप्टन अहलावत ने अपना कार्य पूर्ण किया और उन्होंने स्वयं एक अवरोध का कार्यभार संभाल लिया, जबकि दूसरा अवरोध एक NCO द्वारा संभाला जा रहा था।

NCO ने अपने अवरोध से 300 गज के अंतर पर किंचित विद्रोहियों को देखा और त्वरित अपने लाइट मशीन गन समूह को गोलियां चलाने का आदेश दिया। इस त्वरित प्रतिक्रिया ने विद्रोहियों को स्तब्ध कर दिया, व्यूहभंग होकर वे भाग गए। उनमें से कुछ विद्रोही कैप्टन अहलावत के अवरोध की ओर भागे, उन्होंने तत्क्षण अपना अवरोध हटाया और विद्रोहियों को रोका। कुछ विद्रोही एक नाले में भाग गए। आकस्मिक दो विद्रोही और कैप्टन अहलावत आमने-सामने हो गए। कैप्टन अहलावत ने उन्हें आत्मसमर्पण करने के लिए कहा।

इस मध्य एक अन्य विद्रोही ने नाले से उनके STOP के सदस्य पर गोलियां चलाई। कैप्टन अहलावत ने त्वरित गोलियां चला कर उस विद्रोही पर आक्रमण किया, किंतु इस मध्य उनकी छाती पर अनेक गोलियां लगी। यद्यपि, वह गंभीर रूप से घायल हो गए थे,तो भी वह उस विद्रोही से संघर्ष करते रहे और अपने STOP के सैनिकों को भागते हुए अन्य विद्रोहियों का पीछा करने के लिए निर्देश देते रहे। साथ ही साथ उन्होंने खोज टुकड़ी के कमांडर को भी स्थिति से अवगत कराया और वीरगति को प्राप्त हो गए।

इस कार्रवाई में कैप्टन नरेंदर सिंह ने उच्च कोटि की वीरता, कर्तव्यपरायणता एवं नेतृत्व का परिचय दिया। उनके वीरतापूर्ण कार्य एवं सर्वोच्च बलिदान के लिए उन्हें मरणोपरांत शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया।

स्रोत - रमेश शर्मा

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