Panna Ram Manda

From Jatland Wiki
Jump to navigation Jump to search
लेखक:लक्ष्मण बुरड़क, IFS (R)
Panna Ram Manda

Subedar Panna Ram Manda (1898-1972) was a noted freedom fighter and famous social worker from village Dheengsari in Sujangarh tahsil of Churu district in Rajasthan.

पन्नाराम मण्डा का जीवन परिचय

जन्म और बचपन

सूबेदार पन्नाराम मण्डा का जन्म तत्कालीन जोधपुर स्टेट के एक छोटे से गाँव ढींगसरी के साधारण किसान परिवार चौधरी टीकूराम जी के घर दिनांक 27-11-1898 ई. को हुआ। यह मंडा गोत्र का गाँव भले ही छोटा है किन्तु प्राचीनकाल में इस गाँव को धीरासर नाम से पुकारा जाता था जो डीडवाना परगने का ख्याति प्राप्त ऐतिहासिक गाँव था। टीकूराम जी का स्वर्गवास जवानी में ही हो गया था जबकि ये बालक ही थे। किशोर पन्नाराम के कन्धों पर घर परिवार का भार आ गया।

सेना में नौकरी

आपके होश सँभालते ही परिवार के भरण-पोषण की समस्या थी। उस समय जागीरदारों का जमाना था और किसान परिवार के बच्चों के लिए शिक्षा की व्यवस्था नहीं थी। वर्षों तक लगातार अकाल पड़ने के कारण लोग मालवा की ओर कमाने-खाने के लिए चले जाते थे। सूबेदार साहब भी ऐसी परिस्थितियों में लखनऊ पचमढ़ी आदि स्थानों पर मजदूरी करने के लिए गए तथा सामान्य हिंदी तथा अंग्रेजी का ज्ञान प्राप्त किया। दिनाक 7-01-1922 को जोधपुर की 'सरदार इन्फैंट्री' में भर्ती हो गए। सूबेदार साहब प्रारंभ से ही तेजस्वी व कुशाग्र बुद्धि थे। उन्होंने अपने बुद्धि के बल पर क्यू-वन परीक्षा उत्तीर्ण कर ली तथा अल्प समय में ही सूबेदार का पद प्राप्त करके अपनी धाक जमाली।

पदोन्नति में अन्याय: महाराजा के खिलाफ शिकायत

जोधपुर स्टेट में जाटों की सेना खड़ी करना तो एक सामयिक आवश्यकता थी, परन्तु उस समय के शासकों को जाट की उन्नति बर्दास्त न थी। पन्ना राम एक सीनियर सूबेदार थे और इनकी पदोन्नति लेफ्टिनेंट के पद पर होनी थी। सरदार इन्फेंट्री में ही महाराजा का साला मोहनसिंह भी सूबेदार था किन्तु वह पन्ना राम से जूनियर था। पन्ना राम के समकक्ष सैनिक कोर्स भी उसने पास नहीं किये थे। महाराजा ने अपने साले को अयोग्य होते हुये भी सीनियर सूबेदार पन्ना राम को पदोन्नति न देकर मोहन सिंह को लेफ्टिनेंट के पद पर पदोन्नत कर दिया जो अन्याय था और योग्यता का अपमान था।

सूबेदार पन्नाराम ने इस अन्याय का सुनियोजित ढंग से विरोध करना आरम्भ किया। उन्होंने एक अवकाश प्राप्त कर्नल से दिशा-निर्देश लेकर इस अन्याय की सक्षम सेनाधिकारियों को शिकायतें भेजी। दो वर्ष तक कोई जांच नहीं हुई। उस समय राजा के खिलाफ शिकायत एक कल्पनातीत घटना थी। अंत में उन्होंने अंग्रेजी साम्राज्य के शिरोमणि सम्राट जार्ज-पंचम को टेलीग्राम से शिकायत भेजी। इंग्लॅण्ड से निर्देश प्राप्त हुआ कि तथ्यों की जांच करवाई जाकर कार्यवाही की जावे। अंग्रेजी साम्राज्य में एक सेनाधिकारी के साथ अन्याय नहीं होना चाहिये।

भारत के वाईसराय ने महाराजा को सूचित किया कि अमुक तारिख को सूबेदार पन्ना राम की शिकायत की जाँच की जावेगी और आप जोधपुर में उपस्थित रहे। महाराजा ने पन्नाराम को अंग्रेज सरकार के आदेश के खिलाफ ड्युटी पर बाहर भेज दिया। पन्ना राम को इसकी भनक लग गयी। इसलिए वह अपनी ड्युटी पूरी कर जाँच के समय जोधपुर में उपस्थित हो गए। अब महाराजा के पैरों तले से जमीन खिसकने लगी। शिकायत सच्ची होते ही राजगद्दी जाने का डर था। राजा ने नगर पुलिस अधीक्षक बलदेवराम जी मिर्धा को बुलाकर कहा कि सूबेदार पन्ना राम को कैसे भी जांच में भाग लेने से रोका जावे। नगर पुलिस अधीक्षक बलदेव राम जी मिर्धा पन्ना राम को बात करने के बहाने अपने बंगले पर ले गए और वहां ताले में बंद कर दिया। पन्ना राम ने बंद कमरे के दूरभाष से जांच अधिकारी से संपर्क करने का प्रयास किया परन्तु महाराजा ने दूरभाष तुरंत कटवा दिया। राजा ने बलदेवराम मिर्धा को उनकी नौकरी जाने की धमकी भी दी। इस प्रकार शिकायत में जांच करने से पन्ना राम को रोक दिया। जांच अधिकारी ने ऐसी स्थिति में वापस चला गया और जांच ख़ारिज कर दी। महाराजा जोधपुर ने सूबेदार पन्ना राम को अनिवार्य सेवानिवृति देकर पेन्सन भेज दिया।

पन्ना राम की क्रान्तिकारी प्रवृतियों पर प्रतिबन्ध

सन 1933 में इनको सेवानिवृत कर दिया। परन्तु इनको प्रतिवर्ष डीडवाना के नाजिम व दण्डाधिकारी के सम्मुख उपस्थित होकर अपने राजनैतिक कार्यकलापों का विवरण प्रस्तुत करना पड़ता था। इतना कठोर प्रतिबन्ध महाराजा ने स्टेट के बड़े से बड़े राजनेता पर भी नहीं लगाया था। जोधपुर महाराजा व स्टेट की नजर में वे संदिग्ध क्रन्तिकारी थे। देश आजाद होने के बाद ही यह प्रतिबन्ध हटा।

महाराजा द्वारा देश निकाला

सन 1937 में सूबेदार साहब के विरुद्ध महाराजा उम्मीद सिंह ने देश निकाले का आदेश कर दिया। सूबेदार साहब अपने आठ वर्षीय पुत्र हरीसिंह को साथ लेकर ननकाना साहब, पंजाब चले गए। वहां अपने अनन्य मित्र ईश्वर सिंह मंझोल से मिले। ईश्वर सिंह मंझोल गुरूद्वारा शिरोमणि सभा के सदस्य भी थे और पंजाब के प्रभावशाली व्यक्ति थे। उन्होंने हरी सिंह की पढाई, खान-पान व निवास की व्यवस्था गुरूद्वारे में ही करदी तथा सूबेदार साहब को अस्थाई रूप से कृषि भूमि भी अलाट करवा दी थी। सूबेदार साहब के देश निकले के आदेश को महाराजा ने कुछ महीनों बाद वापस भी ले लिया और वे वापस मारवाड़ आ गए।

आजाद भारत में सामंती अत्याचार

सन 1947 में भारत आजाद हो गया था। इससे सामंतो को उनकी जागीर ख़त्म होने का डर सताने लगा। उन्होंने किसानों पर दमन चक्र तेज कर दिया। जागीरदारों के पास हतियार थे और राज्य की सेवा से अधिक हथियार मिल गए थे। वे अब डाकू बन गए और जागीरदारों के इशारों पर गाँव के किसानों पर डाका डालने लगे। पन्नाराम मण्डा नि. ढींगसरी डाबडा आन्दोलन में मौत के मूंह से बाल-बाल बचे। वे डकैतों के हमलों में भी अनेकों बार सौभाग्य से ही बच पाए थे। उनके बड़े पुत्र की शादी में ग्राम कसुम्बी के जागीरदारों ने घोडी पर चढ़ने पर रोक लगा दी थी किन्तु बरात शस्त्रास्त्रों से लैस होकर गयी थी, इसलिए बच गए।[1]

सामाजिक सुधार के कार्य

सेवानिवृति के बाद सूबेदार पन्नाराम मण्डा ने जोधपुर, नागौर, डेगाना, डीडवाना आदि अंचलों में गाँव-गाँव व ढाणी-ढाणी जाकर किसानों को अन्यायकारी व्यवस्था का विरोध करने के लिए जाग्रत किया। इनके साथ निम्न क्रान्तिकारी स्वतंत्रता सेनानी थे:

इन साथियों के साथ आपने किसानों में व्याप्त सामाजिक बुराइयों यथा मृत्यु-भोज, अंधविश्वास व अशिक्षा के विरुद्ध पूरे मारवाड़ में प्रचार किया। गाँवों में शिक्षा का प्रचार करना इनका मुख्य ध्येय था। जोधपुर, नागौर और डीडवाना में जाट बोर्डिंग की स्थापना की, बोर्डिंग के लिए चन्दा किया तथा लड़कों को जाट बोर्डिंग में भरती करने हेतु प्रोत्साहित किया। डीडवाना में निरंजनी साधुओं के अखाड़े गाढाधाम में जाट बोर्डिंग डीडवाना की स्थापना कर उसके वर्षों तक अध्यक्ष रहे तथा उसका कुशलता पूर्वक सञ्चालन आपने ही किया। इसमें पढ़कर अनेक विद्यार्थियों ने शिक्षा ग्रहण की। राजस्थान के नामी व्यक्तित्व परसराम मदेरणा ने आपकी प्रेरणा से ही शिक्षा ग्रहण करना आरम्भ किया था। नागौर के जाट बोर्डिंग का शुभारम्भ भी श्री मूलचंद जी सिहाग निवासी चेनार के सहयोग से आपने ही किया था।

किसान सभा के अध्यक्ष

मारवाड़ में किसानों का संगठन तैयार किया गया था जिसका उद्देश्य राज्य के किसानों के हकों व हितों की रक्षा करना था। मारवाड़ किसान सभा डीडवाना के अध्यक्ष आप चुने गए थे। सामंती शोषण के खिलाफ अनेक जाटों के हितार्थ आपने मुकदमे लड़े व जाट किसानों को बेदखली से निजात दिलाई। सन 1952 में लाडनू के गाँधी चौक में एक विशाल किसान सम्मलेन का आयोजन किया गया था जिसमे लोक नायक जयनारायण व्यास, द्वारका प्रसाद पुरोहित, बलदेवराम मिर्धा आदि की उपस्थिति में आपने किसान सभा के कांग्रेस संगठन में विलीनीकरण की ऐतिहासिक घोषणा की थी।

राजस्थान में जब पंचायती राज संस्थाओं की स्थापना हुई तो आप निरंतर दो बार ग्राम पंचायत ढींगसरी के सरपंच रहे। आपने सरपंच काल में पंचायत के अधीन ग्रामों में उल्लेखनीय विकास कार्य करवाए तथा किसानों को हर सम्भव राहत पहुंचाई। आप पंचायत समिति लाडनू के लम्बे समय तक सहवृत सदस्य भी रहे।

जाट जन सेवक

रियासती भारत के जाट जन सेवक (1949) पुस्तक में ठाकुर देशराज द्वारा चौधरी मूलचंद सिहाग का विवरण पृष्ठ 192-193 पर प्रकाशित किया गया है । ठाकुर देशराज[2] ने लिखा है ....सूबेदार पन्नाराम जी - [पृ.191] : आप मंडा गोत्र में से हैं। आपका गांव ढिंगसरी है। यह परगना डीडवाना में है आपकी इस समय उम्र 45 साल के करीब है। आप पलटन में सिपाही से लेकर सूबेदारी के औहदे तक पहुंचने पर पेंशन ले ली। आप साधारण पढ़े-लिखे हैं और जाति सेवा कार्य में अग्रसर रहते आए हैं। जोधपुर फलटण में जब जाति सरदारों में आप मुख्य सेवा माniयों में से हैं। आप ने जोधपुर बोर्डिंग में चंदे की सहायता दी तथा डीडवाना बोर्डिंग के आप व्यवस्थापक हैं। आपने जातीय भाइयों के लिए रात दिन तकलीफ सहन कर रहे हैं और विद्या प्रचार व कुरीति निवारण की कोशिश करते हैं। आपने जाट सभा में प्रचार मंत्री पद पर रहकर अच्छी ड्यूटी दी है। आप हरदम सभा के ओहदेदार व मेम्बर होते आए हैं।


[पृ.192] : आप अभी डीडवाना बोर्डिंग के उपप्रधान हैं और जातीय कार्य दिलचस्पी से कर रहे हैं। आपके जातीय सेवा रग-रग में कूट-कूट कर भरी हुई है।

आपका परिवार

आपके चार पुत्र और चार पुत्रियाँ हैं। पुत्रों के नाम हैं:


हरी सिंह मण्डा - सहकारिता निरीक्षक पद से अवकाश प्राप्त

ईश्वर सिंह मण्डा - अध्यापक पद से अवकाश प्राप्त

श्रीराम मण्डा -

राम देव मण्डा -

आपके 11 पौत्र हैं जिनमे लक्ष्मणसिंह मण्डा अतिरिक्त पुलिस उपाधीक्षक , पुत्र हरी सिंह, उल्लेखनीय हैं जो राजस्थान पुलिस सेवा (RPS) में हैं। जगदीश अध्यापक और मुकेश व गोपाल सेना में सेवारत हैं। पड़पौत्र नवीन bhel कंपनी में इंजीनियर व राकेश भारतीय वायुसेना में कार्यरत है।

आपकी पुत्री के पुत्र अजय सिंह जेठू जो वर्तमान में राजकीय महिला इंजीनियरिंग कॉलेज अजमेर के प्रिंसिपल है व इनकी पत्नी बिंदु चौधरी नागौर जिले की 3 बार जिला प्रमुख रह चुकी है।बिंदु चौधरी के भाई अजय सिंह किलक अभी राजस्थान सरकार में मंत्री है व डेगाना से दूसरी बार विधायक है।

देहांत

74 वर्ष की आयु में 22 अगस्त 1972 को आपने देह त्याग किया।

अधिक जानकारी के लिए

  • यह लेख पुस्तक 'जुल्म की कहानी किसान की जबानी' (2006), लेखक - भीमसिंह आर्य, प्रकाशक - मरुधर प्रकाशन, आर्य टाईप सेंटर- सुजानगढ़ (चूरू), पृ.206-215 पर अधारित है।
  • Laxman Singh Manda (RPS), 28, Krishna Colony, Near-Jharkhand, Khatipura Road, Jaipur. Phone : 0141-2357173, Mobile: 09672373258.

सन्दर्भ

  1. भीमसिंह आर्य:जुल्म की कहानी किसान की जबानी (2006),p.53-54
  2. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.192-193

Back to The Reformers/The Freedom Fighters