Partangan
Partangan (परतङ्गण) Partangana (परतङ्गण) Paratangan (परतंगण)[1][2] is gotra of Jats.
Origin
This gotra originated from branch of Tangana (तङ्गण). [3]
History
Tangal (तंगल) Tangana (तंगण) is a gotra of Jats. They are mentioned as tangana (तंगण) in the Puranas. The Markendeya Purana and the Vayu Purana mention them. Mahabharata Sabha Parva mentioned the Tangana and Partangana i.e. the nearest and farther sections of these people. [4] Dilip Singh Ahlawat has mention it as one of the ruling Jat clans in Central Asia. [5]
They have been mentioned in Mahabharata Bhisma Parva in shloka 63 as under:
Tanganas have been mentioned in Mahabharata in Kurukshetra War Day-2 fighting for Pandavas.
तङ्गण जाटवंश
अर्ह, पारद, तङ्गण-परतङ्गण - ये तीनों जाटवंश हैं। इनका वर्णन - मेरु और मन्दराचाल (मेरु के पूर्व में) पर्वतों के बीच में प्रवाहित होने वाली शैलौदा नदी के दोनों तटों पर छिद्रों में वायु के भर जाने से वेणु की तरह बजने वाले बांसों की रमणीय छाया में जो लोग बैठते थे और विश्राम करते थे, वे अर्ह, पारद, तङ्गण-परतङ्गण आदि नरेश, महाराजा युधिष्ठिर को भेंट देने के लिए पिपीलिकाओं (चींटियों) द्वारा निकाले हुए पिपीलिक नाम वाले स्वर्ण के ढेर के ढेर उठा लाये थे। (सभापर्व 52वां अध्याय, श्लोक 2-4)। इन लोगों का प्रजातन्त्र राज्य मरु तथा मन्दराचल के क्षेत्र में था। आजकल यह स्थान मंगोलिया में है। अर्जुन ने इन तङ्गण-परतङ्गण नरेशों को हराकर इनसे भेंट ली थी (सभापर्व)।[6]
जाट इतिहास:ठाकुर देशराज
ठाकुर देशराज[7] लिखते हैं.... परतंगण और तंगण - महाभारत में परतंगण और तंगण लोगों का वर्णन आता है। ये गणतन्त्री समुदाय हिमालय की गोद में मानसरोवर के निकट शासन करते थे जहां इनका जनपद (राज्य) है वह स्थान चीन और भारत का प्रवेश द्वार (फाटक) है। परतंगण का शाब्दिक अर्थ (परतम्...गण) परवर्ती वहिः गण अर्थात् सीमावर्ती गण होता है। इस भांति भारतीय राष्ट्र के ये प्रतिहार (द्वारपाल) सिद्ध होते हैं। इस शब्दार्थ वाली दलील को छोड़ भी दिया जये तो भी परतंगण से प्रतिहार और परिहार बनना भाषा-शास्त्र के अनुसार कठिन बात नहीं है - बिल्कुल सम्भव बात है। सी० बी० वैद्य ने भी इनका अस्तित्व भारत के उत्तर में बताया है। हर हालत में ये भारत के प्रवेशद्वार पर पाये जाते हैं। इनके पड़ौसी तंगण आजकल तांगर के रूए में भरतपुर राज्य में अपना अस्तित्व रखते हैं। जाट-स्टाक में ये समुदाय हजारों वर्ष पूर्व से है। कहा जाता है कि जाटों में अनगिनती गोत हैं। सौलह सौ से कुछ ऊपर गोत्रों की (गिनती) तो जाट-हितकारी के सम्पादक महोदय श्रीकन्हीसिंहजी ने की थी। इस बात से ही जाट कौम बहुत पुरानी साबित होती है और साथ ही यह भी सिद्ध होता है कि पुराने प्रजातन्त्री अथवा अन्य तंत्री राजवंशों का निशान अगर कहीं जाटों के अलावा दूसरे स्थान पर पाया जाता है तो वह भी जाटों से ही वहां पहुंचा है।
Distribution
Notable persons
Population
Reference
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Parishisht-I, s.n. प-31
- ↑ O.S.Tugania:Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu, p.48, s.n. 1473
- ↑ Mahendra Singh Arya et al: Adhunik Jat Itihas, p. 264
- ↑ Bhim Singh Dahiya, Jats the Ancient Rulers ( A clan study), p. 290
- ↑ Dilip Singh Ahlawat: Jat viron ka Itihas
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Chapter III, Page 291
- ↑ Jat History Thakur Deshraj/Chapter V, p. 146
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