Raja Bachchu Singh (Girrajsaran Singh)

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Bachchu Singh of Bharatpur

Raja Bachchu Singh (b: Nov, 30, 1922; d:December 16, 1969), also called Girrajsaran Singh was from the Royal family of Bharatpur. He was youngest son of Maharaja Kishan Singh of Bharatpur. He was a great pilot. During the partition in 1947, he led the army of the Bharatpur state on a jeep. His jeep was fitted with a machine gun. MLA Rajkumar Arun Singh Bharatpur was his son.

Member of First Lok Sabha

He was elected for First Lok Sabha (1952) from Bharatpur constituency, as an Independent candidate. He was also elected (as an Independent candidate) for Fourth Lok Sabha (1967) from Mathura constituency.

Bio Profile at the website of Lok Sabha

http://164.100.47.194/loksabha/writereaddata/biodata_1_12/1024.htm

4th Lok Sabha
Members Bioprofile

SINGH, SHRI GIRRAJ SARAN, Ind.. (U.P.--Mathura—1967): s. of late H. H. Maharaja Kishan Singh of Bharatpur; b. at Bharatpur, ed. at Wiliingdon College, Berkshire, England : m. Shrimati P. N. Krishna. 1961; 2 S.; Commissioned Officer in I.A.F., 1940-46; Minister, Bharatpur State 1946—48; Member, First Lok Sabha, 1952-57.

Favourite pastime and receation : Tennis , Squash , horse-riding and shikar.
Clubs: Defence Services Club
Permanent address: Rose Villa , Bharatpur, Rajasthan.

महाराज व्रजेन्द्रसिंह

ठाकुर देशराज[1] लिखते हैं कि महाराज सर श्रीकृष्णसिंह के. सी. एल. आई. के स्वर्गवास के पश्चात् उनके ज्येष्ठ राजकुमार श्री व्रजेन्द्रसिंह देव भरतपुर की गद्दी पर बैठाए गए। आपके तीन छोटे भाइयों के नाम हैं - मीठू सिंह, बच्चू सिंह और मान सिंह

  • बच्चू सिंह के पुत्र हैं - अनूप सिंह और अरुण सिंह । अनूप सिंह पंजाब में व्यापार कर रहे हैं तथा अरुण सिंह का स्वर्गवास हो गया है। अरुण सिंह डीग से दो बार विधायक रहे हैं.
  • मान सिंह के तीन पुत्रियाँ हैं जिनमें सबसे बड़ी दीपा हैं ।

महाराजा श्रीकृष्णसिंह के पुत्र

दलीप सिंह अहलावत[2]ने लिखा है.... आज सारा भारत कहता है कि महाराजा श्रीकृष्णसिंह वीर थे, देशभक्त और समाज सुधारक थे। ऐसे महारथी का देहली में मार्च सन् 1929 को स्वर्गवास हो गया। जुलाई सन् 1929 को राजमाता श्रीमती राजेन्द्रकुमारी का स्वर्गवास हो गया। आपने चार राजकुमार और तीन राजकुमारियां छोड़ीं।

महाराजा सर श्रीकृष्णसिंह जी के० सी० एम० आई० के स्वर्गवास के बाद आपके ज्येष्ठ पुत्र राजकुमार श्री ब्रजेन्द्रसिंह जी भरतपुर की गद्दी पर बैठाये गये। आपके तीन छोटे भाइयों के नाम - श्री मानसिंह, गिरेन्द्रसिंह और गिर्राजसरनसिंह (बच्चूसिंह) थे। बच्चूसिंह की मृत्यु दिसम्बर 1969 ई० में हुई।


जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-733


महाराजा ब्रजेन्द्रसिंह (सन् 1929 ई० से सन् 1948 ई० तक): आपने अपने भाइयों समेत यूरोप में विद्याध्ययन किया। 15 अगस्त, 1947 ई० को भारत को स्वतन्त्रता मिलने के बाद जब गृहमन्त्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने भारत की देशी रियासतों को भारत सरकार में मिलाया तब उस अवसर पर 18 मार्च, 1948 ई० को भरतपुर रियासत को ‘मत्स्य संघ’ में मिला दिया गया। (पूरा ब्यौरा अगले पृष्ठों पर देखो)

आपत्तियां : महाराजा श्रीकृष्णसिंह के निर्वासन के समय से ही राजपरिवार और प्रजाजनों पर आपत्तियां आनी आरम्भ हो गई थीं। महाराजा ब्रजेन्द्रसिंह के समय में तो कुछेक पुलिस के उच्च कर्मचारियों ने अन्याय की हद कर दी थी। सुपरिण्टेंडेण्ट पुलिस मुहम्मद नकी ने हिन्दू जनता के धार्मिक कृत्यों पर पाबन्दी लगा दी। यही क्यों, भरतपुर के राजवंश के बुजुर्गों के स्मृति-दिवस न मनाने के लिए भी पाबन्दी लगाई गई। जयंती मनाने वालों के वारंट काटे गए जिनमें ठाकुर देशराज भी थे। आपका एक ही कसूर था कि उसने दीवान मैंकेंजी और एस० पी० नकी मुहम्मद के भय प्रदर्शन की कोई परवाह न करके 6 जनवरी सन् 1928 ई० को महाराजा सूरजमल की जयन्ती का आयोजन किया और महाराजा कृष्णसिंह की जय बोली। इसी बात के लिए दीवान मि० मैंकेंजी ने अपने हाथ से वारण्ट पर लिखा था, “मैं देशराज को दफ़ा 124 में गिरफ्तार करने का हुक्म देता हूं और उसे जमानत पर भी बिना मेरे हुक्म के न छोड़ा जावे।”

सन् 1929 ई० के दिसम्बर में भरतपुर सप्ताह मनाने की आयोजन हुआ। सारे भारत के जाटों ने भरतपुर के दीवान मैंकेंजी और मियां नकी की अनुचित हरकतों की गांव-गांव और नगर-नगर में सभायें करके निन्दा की।

दीनबन्धु सर छोटूराम जी रोहतक, राव बहादुर चौधरी अमरसिंह जी पाली, ठाकुर झम्मन सिंह जी एडवोकेट अलीगढ और कुंवर हुक्मसिंह जी रईस आंगई जैसे प्रसिद्ध जाट नेताओं ने देहातों में पैदल जा-जाकर जाट सप्ताह में भाग लिया। उन्हीं दिनों आगरे में जाट महासभा का एक विशेष अधिवेशन सर छोटूराम जी की अध्यक्षता में हुआ। उसमें श्री ब्रजेन्द्रसिंह जी को विलायत भेजने और दीवान मि० मैंकेंजी की पक्षपातिनी नीति व अन्याय के विरोध के प्रस्ताव पास किए। इस समय भरतपुर के हित के लिए महाराजा श्री उदयभानसिंह राणा जी ने सरकार के पास काफी सिफारिशें भेजीं।

आखिरकार ब्रिटिश सरकार ने कुछ दिनों बाद दीवान मैंकेंजी को भरतपुर से दूसरे स्थान पर बदल दिया। वह 1928 से 1933 ई० तक भरतपुर में रहा।

इस एडमिंस्ट्रेशनरी शासन में सबसे कलंकपूर्ण बात यह हुई कि ‘सूरजमल शताब्दी’ जो कि बसंत पंचमी सन् 1933 ई० में जाट महासभा की ओर से भरतपुर में मनायी जाने वाली थी, उसको न मनाने का हुक्म दिया गया। इस दिन जनवादी अन्दोलन हुआ, जाट लोगों के जत्थे भरतपुर पहुंच गये और नगर में घूम-घूमकर उन्होंने सूरजमल शताब्दी मनाई।

इसके बाद ‘भरतपुर राज्य प्रजा संघ’ के नेतृत्व में ब्रिटिश विरोधी आन्दोलनों का श्रीगणेश हुआ। सन् 1938 ई० में “भरतपुर राज्य प्रजामण्डल” और सन् 1940 ई० में “भरतपुर राज्य प्रजा परिषद्” की स्थापना के बाद दिसम्बर 1947 ई० तक ‘उत्तरदायी शासन’ की मांग को लेकर लगातार


जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-734


आन्दोलन चलते रहे। बेगारप्रथा बन्द करने, पूर्ण उत्तरदायी शासन तथा लोकप्रिय मन्त्रिमण्डल की मांगों को लेकर जनवरी, 1947 ई० में प्रजापरिषद्, लाल झण्डा, किसान सभा तथा मुस्लिम कांफ्रेंस का सामूहिक अन्तिम आन्दोलन चला था। लगभग 22 दिन तक नगर में पूर्ण हड़ताल रही। शिक्षण संस्थायें बन्द रहीं।

सत्याग्रहियों ने ‘कोर्ट धरना’ दिया, इसको कुचलने के लिए तत्कालीन मिलिट्री सेक्रेटरी श्री गिर्राजशरणसिंह उपनाम बच्चूसिंह ने 15 जनवरी 1947 ई० के दिन आन्दोलनकारियों पर घोड़े चढ़ाकर बल्लम व बर्छों से प्रहार किया। फलतः अनेक नेता व स्वयंसेवक घायल हो गये। श्री राजबहादुर तथा स्व० सांवलप्रसाद चतुर्वेदी पर प्रहार किये गये थे। इस आन्दोलन में महिलाओं ने भी भाग लिया। निवर्तमान नरेश सवाई ब्रजेन्द्रसिंह ने सोमवार 4 अक्तूबर, 1943 ई० के दिन विधान निर्मात्री समिति “ब्रज जया प्रतिनिधि समिति” और ग्रामों में साधिकार निर्वाचित पंचायतें स्थापित करके स्वायत्त शासन को प्रोत्साहन दिया। प्रजा परिषद् तथा अन्य राजनैतिक दलों के व्यापक आन्दोलन तथा जन-जागृति को देखकर अन्त में 3 जनवरी, 1948 ई० को अस्थायी लोकप्रिय मन्त्रिमंडल की स्थापना करनी पड़ी थी।

गिर्राज शरण सिंह उर्फ बच्चू सिंह

बच्चू सिंह

भरतपुर के महाराजा किशन सिंह जी के यहाँ 30 नवंबर 1922 के दिन एक पुत्र उत्पन्न हुआ। उसका नाम किशन सिंह जी ने अपनी स्वर्गीय माता गिरराज कौर के नाम पर ‘गिर्राज शरण सिंह’ रखा। उनको ही प्यार से ‘बच्चू सिंह’ कहा जाता था।

बच्चू सिंह जी अपने जन्म से मस्तिष्क पक्षाघात (सीपी) और आत्मकेंद्रित स्पेक्ट्रम विकार (एएसडी) नामक असाध्य बीमारी से पीड़ित थे। मस्तिष्क पक्षाघात होने से सामान्य रोगी का जीवन निष्क्रिय हो जाता है, परन्तु उनके पिता महाराजा किशनसिंह जी और उनके वफादार समर्थकों द्वारा उनकी गहन आयुर्वेदिक चिकित्सा करायी गयी और क्षत्रियोचित प्रशिक्षण भी दिया गया, जिससे वे शारीरिक रूप से अपने आपको ढालने में समर्थ रहे।

उस समय राजपरिवारों के युवकों के लिए ब्रिटिश सरकार की सेना में शामिल होना सामान्य परम्परा थी। इसलिए ब्रिटिश प्रशासन ने भरतपुर के पूरे राजपरिवार को ‘क्षत्रिय’ नामक सैन्य शक्ति में शामिल करने के लिए मनाया। लेकिन बच्चूसिंह जी की विशेष शारीरिक अक्षमता के कारण उनको थलसेना में भेजना संभव नहीं था, परन्तु उनकी उपेक्षा करना भी असंभव था, इसलिए उन्हें वायुसेना में फ्लाइंग ऑफिसर (पायलट) के रूप में भेजा गया।

1943-44 में जब नेताजी सुभाष चन्द्र की आजाद हिन्द फौज द्वारा उत्तर-पूर्व भारत पर आक्रमण किया गया, तो उसकी प्रतिक्रिया में बच्चूसिंह जी को आजाद हिन्द फौज पर हमला करने के लिए निर्देश दिया गया। किन्तु इसमें बच्चू सिंह जी ने पूरी बेरुखी दिखायी, क्योंकि वे पूरे मन से देशभक्त थे और अपने ही देशभक्त देशवासियों पर आक्रमण करना उनको उचित नहीं लगा।

बच्चू सिंह जी की बेरुखी से नाराज होकर ब्रिटिश शासन ने बच्चू सिंह जी को चिढ़ाने के लिए उनके ही एक मित्र फ्लाइंग ऑफिसर राजेन्द्र सिंह को बच्चू सिंह जी के युद्ध विमान हरिकेन-2 से ही आजाद हिन्द फौज पर हमला करने के लिए भेजा। ब्रिटिश शासन समझता था कि बच्चू सिंह कुछ कर नहीं पाएगा और इस हमले पर भरतपुर के राजपरिवार का नाम आ जाने से आंदोलन खराब होगा। लेकिन नाराज बच्चू सिंह जी ने अपने विमान में खराबी कर दी जिससे हरिकेन-2 सिलचर और इंफाल के बीच दुर्घटनाग्रस्त हो गया। उसमें राजेन्द्र सिंह की मृत्यु हो गई।

बच्चू सिंह जी को इसका दोषी माना गया, लेकिन ब्रिटिश शासन युद्ध के दौरान एक प्रभावशाली रियासत के विरुद्ध कुछ कार्यवाही नहीं कर सकती थी, न ही इसके लिए दोष देकर आंदोलन का खतरा और बढ़ा सकती थी। बच्चू सिंह जी ने न तो खुद आजाद हिन्द सेना पर हमला किया, और न अपने किसी साथी को करने दिया। ब्रिटिश सरकार हाथ मलती रह गई।

वास्तव में द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान बच्चू सिंह जी सर छोटूराम जी के अधीन आर्य समाज, और क्षत्रिय आंदोलन से जुड़ गए थे, जो पाकिस्तान की मांग, और जन्म आधारित आरक्षण के विरुद्ध था तथा सयुंक्त भारत और केवल जरूरतमंदों के संरक्षण के लिए प्रयासरत था।

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References


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