Raja Mahabal
Raja Mahabal (800 BC-744 BC), also called Swarupbal, was ruler of Delhi who was Pandav vansi Jat.
History
देहली प्रान्त के जाट-राज्य
ठाकुर देशराज[1] ने लिखा है.... देहली आज से पांच हजार वर्ष पूर्व इन्द्रप्रस्थ के नाम से प्रसिद्ध थी। उससे भी पहले यह हस्तिनापुर-राज्य के अन्तर्गत थी। महाराज युधिष्ठिर के वंशजों ने इस पर कई पीढ़ी तक राज्य किय। ‘सत्यार्थ प्रकाश’ में उन सब राजाओं का वर्णन है जिन्होंने इन्द्रप्रस्थ में राज किया। ‘राजतरंगिणी’ के लेखक और ‘हरप्रिया’ के संपादक ने भी वह सूची अपनी पुस्तकों में दी थी। उसके देखने से पता चलता है कि इन्द्रप्रस्थ पर चौहानों से पहले कई राज-वंशों का राज रहा है।
जीवनसिंह (481 BC-455 BC)
उस सूची में जीवन नामक राजा का नाम भी आता है जो कि वीरमहा का वंशज था। ‘वाकआत पंच हजार रिसाला’ के लेखक ने जीवन को जीवन-जाट के नाम से संबोधित किया है।1 जिस समय भारत में जीवन जाट राज्य करता था, उसी समय उक्त रिसाला के लेखानुसार हजरत मूसा अपने धर्म का प्रचार कर रहे थे। युधिष्ठिर से 2619 वर्ष पीछे जीवन का राज्य देहली में होना बताया है। रिसाले में जीवन के समय का तूफानी सन् का वर्णन किया है। यह समय ईसा से 481 वर्ष पहले जाकर बैठता है। अर्थात् ईसा से 481 वर्ष पूर्व महाराज जीवनसिंह देहली के राज सिंहासन पर बैठे थे। उन्होंने 26 वर्ष तक राज्य किया था। उनके राज्य-काल का सन् रिसाले 2619 से तूफानी सत् तक दिया हुआ है। उनका राजवंश इस प्रकार है-
- 1. 'वाकआत पंज हजार रिसाला' अनेक फारसी किताबों के अधर पर लिखी गयी थी
जाट इतिहास:ठाकुर देशराज,पृष्ठान्त-716
रिसाले के अनुसार इनका वर्णन इस प्रकार मिलता है - महाबल (800 BC-744 BC) ईसवी सन् से लगभग 800 वर्ष पूर्व हुए थे। इनके समय में भारत के उज्जैन नगर में बुद्ध नाम का राजा शासक था। फारस में बहमनशाह राज्य करता था। महाबल के पश्चात् सर्वदत्त या स्वरूपदत्त दिल्ली के सिंहासन पर बैठने का समय ईसा से 744 वर्ष पूर्व का है। इन्हीं दिनों खता में लादकून के यहां तामीसांग का जन्म हुआ था। इनके पश्चात् ईसा से 708 वर्ष पूर्व ईरान के प्रथम दाराशाह के समय में महाराज वीरसेन गद्दी पर बैठे। खता में जिन दिनों पैगम्बर लिंक (इंक) बालक्रीड़ा कर रहे थे, उन्हीं दिनों भारत में दिल्ली की गद्दी पर महाराज महीपाल बैठे। वह इतने बहादुर थे कि उन्हें सिंहदमन के नाम से पुकारा जाता था। उनका सिंहासन पर बैठने का समय ईसवी पूर्व 668 है। इनके समय में ईरान में कस्ताप नाम के बादशाह का राज-समारोह मनाया गया था। इनकी मृत्यु के पश्चात् कलिंक या सिंहराज नाम के महाराज दिल्लीश्वर बने। यह घटना ईसवी पूर्व 624 की है। ईसवी सन् से 595 वर्ष पूर्व जबकि खता में आदकन फोरी नामक अवतार का जन्म हुआ था राजा जीतमल गद्दी पर बैठे। ‘हरिप्रिया’ के संपादक ने इन्हें तेजपाल नाम से याद किया है किन्तु हमारे मत से उसके पढ़ने में भूल हुई है। यदि उसने फारसी पुस्तकों से अनुवाद किया होगा तो जीतमल को ही तेजपाल पढ़ लिया होगा। जीतमल के पश्चात् कालदहन कामसैन राजा हुए। इनके राजगद्दी पर बैठने का समय ईसा से 515 वर्ष पहले का है। हमारा अनुमान है कि ब्रह्मपुर तक इसका राज्य था और ब्रह्मपुर इसी के नाम पर काम्यवन (कामां) कहलाया। यह स्थान दिल्ली से 60 मील पूर्व-दक्षिण में है। 506 ई. पूर्व में कामसेन के पश्चात् शत्रुमर्दन नाम के महाराज देहली के शासक हुए और शत्रुमर्दन से 28 वर्ष बाद ईसवी पूर्व 478 से महाराजा जीवन दिल्ली से अधिराज हुए। इनके समय में हजरत मूसा यूरोप में अपने धर्म का प्रचार कर रहे थे। एक पार्सी दल भी भारत में आया था, जिसने घूम-घूम कर भारत की परिस्थिति का अध्ययन किया था। डेरिस (दारा) को हम लोग खूब जानते ही हैं, उसी के बाप की महान् इच्छा थी कि भारत पर आक्रमण किया जाए। किन्तु वह इच्छा दारा के समय में पूरी हुई और सिन्ध के एक बड़े भाग पर ईरानियों का अधिकार हो गया, किन्तु वह अधिकार स्थिर न रहा। जीवन महाराज के पश्चात् ईसवी पूर्व 372 तक वीर-भुजंग उर्फ हरिराव, वीरसेन और उदयभट उर्फ आदित्यकेतु नाम के तीन जाट राजाओं का राज्य रहा। आदित्यकेतु से उनके ही एक सरदार धन्धर या धनीश्वर ने धोखे से राज्य छीन लिया।
जाट इतिहास:ठाकुर देशराज,पृष्ठान्त-717
इस तरह से इस वंश का राज्य लगभग 450 वर्ष तक दिल्ली में रहा। इनके बाद जोगी, कायस्थ, पहाड़ी और वैरागी लोगों का राज्य हुआ। बीच में विक्रमादित्य का भी रहा। अन्त में तोमर लोगों का राज्य हुआ। तोमरों से चौहानों और फिर मुसलमानों का हुआ। जीवन और उसके वंशज पांडव-वंशी ही थे। युधिष्ठिर से 27 पीढ़ी राज करने के बाद दूसरे लोगों के हाथ राज चला गया और फिर समय पाते ही उन्हीं के वंशजों ने कब्जा कर लिया।
‘वाकआत पंज हजार’ रिसाला में ईरान, अरब, मिश्र, खता, चीन, तिब्बत, आदि कई प्रदेशों के वर्णन तूफानी सन्, विक्रम संबत् और ईसवी सन् में दिए हुए हैं। यह पुस्तक मुंशी राधेलाल जी नाम के सज्जन ने फारसी इतिहासों के आधार पर सन् 1898 ई. में प्रकाशित की थी जो कि अब अप्राप्य है।1
1. हमने यह पुस्तक ठाकुर नारायण सिंह जी, गोकुलपुरा आगरा के पास देखी थी
Chronology of Jat rulers of Delhi
Satyarth Prakash by Swami Dayanand Saraswati has published a list of Aryan kings of Delhi. [2]Raja Virsalsen was killed by Raja Virmaha. His 16 generations ruled Delhi for 445 years, 5 months and 3 days. Thakur Deshraj has given the details of thse Pandavavanshi Jat rulers.[3] The chronology of these Jat rulers is as under:
- Raja Vir Maha (817 BC - 800 BC)
- Raja Mahabal or Swarupbal (800 BC-744 BC)
- Sarvdutt or Swarupdatt (744 BC-708 BC)
- Virsen (708 BC-668 BC)
- Singdaman or Mahipal (668BC-624 BC)
- Kalink or Sanghraj (624 BC-595 BC)
- Jitmal or Tejpal (595 BC-515 BC)
- Kaldahan or Kamsen (515 BC-506 BC)
- Shtrumardan (506 BC-481 BC)
- Raja Jiwan (481 BC-455 BC)
- Virbhujang or Hari Rao (455 BC- 424 BC)
- Virsen II (424 BC- 389 BC)
- Udaybhat or Adityaketu (389 BC - 372 BC)
According to Risala their period has been prescribed as under – Mahabal ascended to the throne of Delhi in 800 BC. At that time the ruler of Ujjain city in India was Buddha and Bahmanshah was ruler in Persia. After Mahabal, Sarvdutt or Swarupdatt ascended to the throne of Delhi in 744 BC. During this period Tamisang was born to Ladkun in Khata. Maharaja Virsen became the ruler in 708 BC when Darashah I was ruler of Iran. In 668 BC Maharaja Mahipal ascended to the throne of Delhi. He was so brave that he was popular as Singhdaman. During his regime Kastap had become the ruler of Iran. After death of Singhdaman, Kalink or Sanghraj sat on the throne in 624 BC. Raja Jitmal ascended to throne of Delhi in 595 BC. Kaldahan or Kamsen became ruler of Delhi in 515 BC. His rule extended up to Brahmpur which was known as Kamyvan (Kaman) after Kamsen. In 506 Strumardan became the ruler of Delhi after Kamsen. Thakur Deshraj has worked out the year 481 BC, when Raja Jiwan ascended to the throne of delhi. Maharaja Jiwan became the ruler of Delhi in 478 BC. During the rule of Maharaja Jiwan, one Persian delegation had come to India which studied the conditions of India by visiting various places. After Maharaja Jiwan, Virbhujang or Hari Rao, Virsen II, Udaybhat or Adityaketu were three Jat rulers of Delhi till 372 BC. Adityaketu lost his throne to his own Chieftain Dharandar or Dhaniswar due to conspiracy.
Thus Jats ruled Delhi for about 445 years. Raja Jiwan and his descendents were Pandav vansi. The rule of Delhi went to other people after 27 generations of Yudhidthira. After them Jogi, Kayastha, Pahadi and Vairagi people ruled Delhi. Vikramaditya was also a ruler of Delhi during this period.
References
- ↑ Jat History Thakur Deshraj/Chapter XII, p.716-718
- ↑ Swami Dayanand Saraswati: Satyartha Prakash, Arsha Sahitya Prachar Trust, Delhi,2004
- ↑ Jat History Thakur Deshraj/Chapter XII, p.716-718
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