Mahipal Tomar

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Author:Laxman Burdak, IFS (R), Jaipur

Mahipal Tomar

Mahipal Tomar (975, 985 AD)[1] (महीपाल तोमर) or Mahipal Tanwar (महीपाल तंवर) was Tomar King of Delhi. He was elder son of Salakpal Tomar.

महीपाल तोमर प्रथम का इतिहास

महिपाल तोमर (कुन्तल) महाराजा सलकपाल देव का ज्येष्ठ पुत्र था । राजा महिपाल देव अपने चाचा जयपाल देव की मृत्यु होने और सभी भाइयों में बड़े होने से दिल्ली की गद्दी पर सन 1021 ईस्वी से 1026 ईस्वी तक कुल 5 साल 3 महीने 6 दिन तक शासन किया था। महिपालपुर को बसाने वाला महिपाल तोमर द्वितीय था। यह दोनो महिपाल अलग अलग है।[2]

मुस्लिम इतिहासकार अब्दुल रहमान ने मिराते मसूदी ग्रंथ में जाट शासक महिपाल प्रथम के युद्धों का रोचक वर्णन किया है। अब्दुल रहमान लिखता है कि महिपाल जाट बड़ा वीर था दिल्ली के निकट सालार महमूद से इसका युद्ध हुआ था। यह युद्ध एक महीन तक चला था। इस युद्ध मे जाटों की वीरता से महिपाल का पलड़ा भारी था जिसे देख सालार महमूद अल्लाह से याचना करता है। युद्ध मे हार को देखते हुए महमूद अपने पांच अमीरों को गजनी भेज कर इस्लाम खतरे में है कि दुहाई दे सैनिक सहायता प्राप्त कर लेता है। अब्दुल रहमान के अनुसार पुनः प्रारम्भ हुए युद्ध के चौथे दिन महिपाल का पुत्र गोपाल अपनी गदा से महमूद की नाक के साथ दो दाँत भी तोड़ देता है। युद्ध मे वीरता दिखाते हुए गोपाल तोमर वीरगति को प्राप्त होता है। गोपाल देव के वंशज बावली की गोपी की पट्टी में निवास करते हैं।[3]अगले दिन प्रातःकालयुद्ध पुनः प्रारम्भ होता है।महमूद अपनी टूटी नाक के साथ युद्ध का संचालन करता है जाट वीरो की वीरता की धाक ने उसके दिल मे भय उत्पन्न कर दिया था इसलिए युद्ध क्षेत्र में आने की जगह उसने दूर से युद्ध का संचालन किया महमूद के सेनापति अज्जिउदीन का सिर काट कर जाट वीरो ने भाले पर टांग दिया था। महिपाल भी युद्ध मे वीरगति को प्राप्त हुआ । महाराजा महिपाल के चार पुत्र थे गोपाल देव ,बाहुबली सिंह,रुस्तम सिंह,महावतसिंह

इनके तीन पुत्रो ने बाहुबली ,रुस्तमपुर ,महावतपुर ग्राम बसाए यह तीनों ग्राम बाहुबली(बावली) के भाग है। महिपाल की मृत्यु के बाद भी तुर्क दिल्ली नही जीत पाए थे। इनके छोटे भाई(चचेरे भाई) कंवरपाल देव दिल्ली की गद्दी पर बैठे जिनके पुत्र अनंगपाल ने खुटेल पट्टी के साम्राज्य की स्थापना की थी।[4] मेरठ गजट से भी पता चलता है कि जिला "मेरठमहिपाल राजा के राज का हिस्सा था। राजा महिपाल देव जब 979 ईस्वी में हाँसी क्षेत्र के सामंत थे । तब इन्होंने अपने पिता से आज्ञा प्राप्त करके बुरडक जाटों को 84 ग्रामो की जागीरी प्रदान की थी।

महिपाल सिंह तोमर द्वितीय

राजा महिपाल तोमर द्वितीय ने सन 1105 ईस्वी से 1130 ईस्वी तक दिल्ली पर शासन किया था।राजा महिपाल देव ने महिपालपुर में एक किले और बाँध का भी निर्माण करवाया था। राजा महिपाल देव के विजयपाल, सहरा, तुहगपाल नामक पुत्र थे। महिपालदेव के पुत्र सहरा के वंशज ही सहराव(सहरावत) कहलाते हैं। दिल्ली में 30 गाँव तोमर वंशी जाटों के है। जिनमे से महरौली, महीपालपुर, नांगल, मंगलपुर, दरयापुर, पालम, महरमनगर, कैर, बवाना, बाजितपुर, बकरवारा,मुख्य रूप से सहरावत जाटों के गाँव है।

महिपाल का बांध

महिपाल का बांध: महिपालपुर को जाट राजा महिपाल सिंह तोमर द्वितीय ने बसाया था उसके वंशज आज भी यहाँ निवास करते है उनको वर्तमान में सहराव कहा जाता है महिपालपुर ने राजा ने एक बांध का निर्माण करवाया था अनगढ़े हुए पत्थर से इसका निर्माण किया गया फ़िरोज़ शाह के समय में इस बाँध से सिचाई की व्यवस्था की गयी यहाँ शिकारगाह का भी निर्माण करवाया गया [5]


महिपाल पुर का महल:राजा महिपाल ने यहाँ एक महल का निर्माण करवाया जिसके अवशेष आज भो मोजूद है फिरोजशाह तुगलक ने इसका पुन निर्माण करवाया इसके तीन मेहरावी दरवाजे है.

किशनपुर बराल की बारादरी: इसका निर्माण सम्राट सलकपाल देव ने करवाया यहाँ भी एक न्याय पीठ की स्थापना राजा के दुवारा करवाया गया जिसके अवशेष आज भी देखे जा सकते है.

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बुरड़क गोत्र का इतिहास तथा महीपाल तंवर

दिल्ली पति महीपाल तंवर के अधीन राव राजा की राजधानी सरनाउ को संवत 1032 (975 ई.) में बनाया. बुरड़कों की राजधानी सरनाऊ संवत 1032 से संवत 1315 (975 - 1258 ई.) तक रही.

संवत 1032 (975 ई.) में दिल्ली के राजा महीपाल तंवर से 84 गांव ईजारे पर लिये और हुकुम तासीर प्राप्त की. 6 महिने का दीवानी और फौजदारी अधिकार प्राप्त किया. काठ, कोरडा, घोडी, नगर, निशान एवं जागीरदारी के पूरे अधिकार प्राप्त हुए. गाँव में हालूराम जी के नाम पर हालानी बावड़ी बनाई. जीणमाता के नाम पर 104 पेडी की बावडी बनाई और बाग लगाया. गढ की गोलाई 1515 गज करायी. शिवबद्री केदारनाथ, आशापुरी माता तथा हनुमान के तीन मन्दिर बनाये. पूजा ब्राह्मण रूघराज ने की. मंदिर खर्च के लिए 152 बीघा जमीन डोली छोड़ी. अमावास, ग्यारस और पूनम का पक्का पेटिया बांधा. यह काम पौष बदी 7 संवत 1033 (977 ई.) में किया.

सरणाऊ कोट गढ़ में एक पक्का कुवा चिनाया. दूसरा कुवा सरनाउ गांव के बीच गुवाड़ में चिनाया. ये दोनों कुये फ़ागण बदी फ़ुलरिया दूज संवत 1035 (979 ई.) में कराये.

चौधरी मालूरामजी, धरणीजी जाखड,चौधरी आलणसिंहजी तथा वीरभाणजी हरिद्वार, केदरनाथ, द्वारकाजी, गंगासागर, कुंभ आदि का स्नान कर तीन साल की यात्रा से सरनाउ आये. वापस आकर पंच-कुण्डीय यज्ञ करवाया. 51 मण घी की आहुति कराई. 51 गायें और 700 मण अनाज ब्राह्मणों को दान किया. गांव कारी के पंडित गिरधर गोपाल द्वारा यज्ञ सम्पन्न किया गया. पंडित गिरधर गोपाल की बेटी राधा को धर्मं परणाई और पीपल परणाई. चौधरी हालूराम के समय दिल्ली के रावराजा महिपाल के समय ये काम संवत 1042 (985 ई.) में कराये.

चौधरी मालूरामजी, धरणीजी जाखड,चौधरी आलणसिंहजी तथा वीरभाणजी ने संवत 1042 (985 ई.) में सरनाउ-कोट तथा गढ, बावडी आदि बडवा जगरूप को लिखवाया और दान किया.

राव बुरडकदेव (b. - d.1000 ई.) महमूद ग़ज़नवी के आक्रमणों के विरुद्ध राजा जयपाल की मदद के लिए लाहोर गए. वहां लड़ाई में संवत 1057 (1000 ई.) को वे जुझार हुए. इनकी पत्नी तेजल शेकवाल ददरेवा में तालाब के पाल पर संवत 1058 (1001 ई.) में सती हुई. राव बुरडकदेव से बुरडक गोत्र को प्रसिद्धि मिली।

संवत 1315 (1258 ई.) में यह दिल्ली के बादशाह शमसुद्दीन इल्तुतमिश (1211–1236) के पुत्र नसिरुदीन महमूद (1246–1266) के अधीन हुई. बादशाह ने गानोड़ा गाँव के ढाका मोमराज को 52000 फ़ौज का मनसबदार बनाया. उस समय सरनाऊ कोट राजधानी चौधरी कालूरामजी बुरडक के पुत्र पदमसिंहजी बुरडक तथा जगसिंहजी बुरडक के अधिकार में थी. इस जागीर में 84 गाँव थे.

External links

References

  1. ये दोनों वर्ष बुरड़क गोत्र का इतिहास में दर्ज हैं।
  2. पाण्डव गाथा पृष्ठ 209
  3. पाण्डव गाथा पृष्ठ 209
  4. पाण्डव गाथा पृष्ठ 209
  5. पाण्डव गाथा पृष्ठ 227

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