Rakshasa

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Author: Dayanand Deswal दयानन्द देसवाल

Rakshasa (राक्षस) were republic people known to Panini and mentioned in Mahabharata. The term was used in ancient Indian literature and mythological books of Hinduism and Buddhism. Rakshasas are also called 'maneaters', the savages, having horrifying faces, living in jungles and uncivilised ones, or simply the devils.

The terms Asura (असुर) and Rakshasa are sometimes used interchangeably.

Some scholars, including Maharishi Dayanand have opined that African blacks are descendants of Rakshasas.

Variants of name

  • Rakshash (राक्षस)
  • Rakshasi (राक्षसी) - A female rakshasa is known as a Rakshasi (राक्षसी).

Mention by Panini

Rakshas (रक्षस्), a warlike tribe, is mentioned by Panini in Ashtadhyayi. [1]

In Ramayana

According to Ramayana, the king of Lanka, Ravana, was the commander of the army of Rakshasas. The story that he had ten heads, is only a myth. He was the mortal enemy of Rama, the hero of the Ramayana.

In Mahabharata

Mahabharata mentions Rakshasa (रक्षस) in several verses: (I.59.7), (I.65),(I.60.7), (1.66),(I.60.53), (1.66),(I.61.1), (1.67),(I.61.87), (1.67), (III.164.30),(III.170.8), (IV.2.11),(VI.68.9),(VIII.4.44),(IX.36.21),(IX.44.7),(IX.44.26),


In the Mahabharata (Book III: Vana Parva), the Sage Markandeya recounts the story of how Ravana kidnapped Rama's wife Sita and whisked her off to his stronghold, Lanka. Rama, aided by King Sugriva and his army, laid siege to Lanka, slew Ravana, and rescued Sita.


Shalya Parva, Mahabharata/Book IX Chapter 36 describes Baladeva's journey along the bank of the Sarasvati river. Rakshasas are mentioned in verse (IX.36.21)....."There dwell Yakshas, and Vidyadharas, and Rakshasas of immeasurable energy and Pisachas of immeasurable might, and Siddhas, numbering thousands. [2]


History

V. S. Agrawala[3] mentions Sanghas known to Panini which includes - Rakshas (रक्षस्), under Parshvadi (पर्शवादि) (V.3.117).


V. S. Agrawala[4] mentions Ayudhajivi Sanghas in the Ganapatha, which includes - Rakshas – By adding the aṇ suffix in a pleonastic sense (svarthe) prescribed by this very sutra (V.3.117) we get the word form Rakshasa. They all appear to have been real people, probably of the north-west group and of the same racial character as the Pishachas. The Rakshasa, Nagas and the Pishachas fight also in the Bharata war on both sides (Pargiter, JRAS, 1908, p. 331). We find an important tribe named Rakshānis settled in Chagai district of north Baluchistan (Imp. Gaz., X, p.117).

राक्षस आदि कौन थे

लेखक - स्वामी ओमानन्द सरस्वती

(विस्तार से यहां पढिये - Haryana Ke Vir Youdheya/तृतीय अध्याय (पृष्ठ 106-108)

यह कहने की आवश्यकता नहीं कि राक्षस लोग प्राचीन भारत की एक जाति विशेष ही थे, जो ब्रह्मादि ऋषियों की सन्तान ही थे । रावणादि राक्षसों का वेद, शास्‍त्रादि आर्य-साहित्य में कुशल होना, यज्ञ यागों का करना रामायण से स्पष्ट सिद्ध होता है । राक्षस लोग भारतीय थे, वे सभ्यता और भौतिक उन्नति में भारतीयों से न्यून न थे । वे अमेरिका आदि देशों में राजनैतिक कारणों से (विष्णु के सताये हुये) बाधित होकर गए थे । उनके द्वारा वैदिक सभ्यता का पाताल देश (अमेरिका) में अच्छा प्रचार हुआ । क्वेटसालकटल वा सालकटंकट के फिर पाताल देश से लौट आने की कथा भी रामायण के उत्तरकाण्ड के अष्टम सर्ग में अत्यन्त विस्तार से लिखी है ।

चिरात्सुमाली व्यचरद्रसातलं, स राक्षसो विष्णुभयार्दितस्तदा ।
पुत्रैश्च पौत्रैश्च समन्वितो बली, ततस्तु लंकामवसद्धनेश्वरः ॥२९॥

भगवान् विष्णु के भय से पीड़ित होकर राक्षस सुमाली सुदीर्घकाल तक अपने पुत्र पौत्रों के साथ रसातल (अमेरिका) में विचरता रहा । इसी मध्य में धनाध्यक्ष कुबेर (वैश्रवण) ने लंका को अपना निवास स्थान बनाया ।

इस प्रकार राक्षस आदि आर्यों की ही सन्तान थे किन्तु ये इन्द्र आदि देवताओं को सताते थे ।

ततस्तु ते राक्षसपुंगवास्‍त्रयो, निशाचरै पुत्रशतैश्च संवृताः ।
सुरान्सहेन्द्रानृषिनागयक्षान्, बबाधिरे तान् बहुवीर्यदर्पिताः ॥४६॥

सुमाली, माल्यवान् और माली आदि तीनों श्रेष्ठ राक्षस अपने बहुत पुत्रों तथा अन्यान्य राक्षसों के साथ रहकर अपने बाहुबल के अभिमान से युक्त होकर इन्द्र और अन्य देवताओं को, ऋषियों, नागों तथा यक्षों को पीड़ा देने लगे । (उत्तरकाण्ड ५।४६)

तब भगवान् शंकर के परामर्श से भगवान् विष्णु ने इन सुमाली आदि राक्षसों का अनेक बार समूल विध्वंस किया तथा इन्हें बाधित कर पाताल देश (अमेरिका) में भगाया । पुनः लंका के वैश्रवण द्वारा बसाये जाने के पश्चात् ये राक्षस अमेरिका से लौटकर लंका में आकर बस गये ।

इस प्रकार संक्षेप से राक्षसों का वर्णन हमने किया, इनकी कथायें एवं वंशावली रामायण तथा महाभारत में विस्तार से वर्णित है । इनका राक्षस नाम जीवों की रक्षा करने के कारण पड़ा । जब प्रजापति ब्रह्मा ने पूछा कि इन जीव जन्तुओं की रक्षा कौन करेगा, तब जिन्होंने रक्षा का भार संभाला वे राक्षस कहलाये । यज्ञ करने वाले याज्ञिक लोग यक्ष कहलाये ।

‘रक्षाम’इति यैरुक्तं राक्षसास्ते भवन्तु वः ।
‘यक्षाम’इति यैरुक्तं यक्षा एव भवन्तु वः ॥१३॥
(उत्तर काण्ड सर्ग ४)

तुम में से जिन्होंने यह कहा है कि हम रक्षा करेंगे वे राक्षस नाम से प्रसिद्ध हों और जिन्होंने यज्ञ करना स्वीकार किया वे यक्ष नाम से विख्यात हों । इस प्रकार ये दोनों नाम ब्रह्मा प्रजापति के ही रखे हुये हैं ।

रक्षा करने वाले राक्षस और यज्ञ करने वाले यक्ष कहलाये । ये सब ब्रह्मा आदि के वंश में ही हुये ।

रावण आदि राक्षसों का वंश

राक्षसराज सुमाली की कन्या ने अपने पिता की आज्ञा से वैश्रवण (कुबेर) को वर लिया । उनकी सन्तान इस प्रकार हुई ।

विश्रवा (पत्‍नी - सुमाली की कन्या कैकसी)
•रावण, •कुम्भकर्ण, •सूर्पणखा, •विभीषण

यह सब जानते हैं कि रावण और कुम्भकर्ण दोनों महाबली राक्षस लोक में उद्वेग (हलचल) उत्पन्न करने वाले थे । विभीषण बाल्यकाल से ही धर्मात्मा थे । वे सदा धर्म में स्थिर रहते थे । स्वाध्याय और नियमित आहार करते हुये इन्द्रियों को अपने वश में रखते थे ।

विभीषणस्तु धर्मात्मा नित्यं धर्मे व्यवस्थितः ।
स्वाध्यायनियताहार उवास विजितेन्द्रियः ॥३९॥
(उत्तर काण्ड ९ सर्ग)

ऐसा प्रतीत होता है कि विश्रवा और वैश्रवण नाम के अनेक ऋषि इस वंश में हुये हैं । उनमें से ही एक विश्रवा की सन्तान रावण आदि राक्षस थे । प्राचीन साहित्य में यह रीति प्रचलित थी कि प्रसिद्ध व्यक्तियों के नाम देकर साधारण व्यक्तियों के नाम छोड़ देते थे । ऐसा ही यहां किया गया है ।

इससे यही सिद्ध होता है कि देव, असुर, किन्नर, राक्षस, वानर आदि सब ऋषियों की सन्तान हैं । जो महर्षि ब्रह्मा के शिष्यों (मानसपुत्रों) की ही सन्तान हैं, उनके बहुत शिष्य थे, उनकी सन्तानों से सभी देवासुरादि की सृष्टि वा परम्परा चालू हुई । यह प्राचीन साहित्य से प्रमाणित होता है । इन्हीं की सन्तान ने अमेरिका आदि देशों को बसाया तथा वहां पर आर्य सभ्यता का प्रचार वा प्रसार किया । कृषि की शिक्षा देकर भौतिक उन्नति के साधनों को जुटाया । खाना, पीना, ओढ़ना, पहनना, भवन निर्माण, पशु-पालन और अनेक प्रकार के कलाकौशल भी सिखलाये ।

External Links

References

  1. V. S. Agrawala: India as Known to Panini, 1953, p.448
  2. यक्षा विथ्याधराश चैव राक्षसाश चामितौजसः, पिशाचाश चामितबला यत्र सिथ्धाः सहस्रशः(IX.36.21)
  3. V. S. Agrawala: India as Known to Panini, 1953, p.500
  4. India as Known to Panini,p.448