Rameshvaram

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Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Ramesvaram (रामेश्वरम्) is a town in the Ramanathapuram district of the Indian state of Tamil Nadu.

Location

It is on Pamban Island separated from mainland India by the Pamban channel and is about 40 km from Mannar Island, Sri Lanka. It is in the Gulf of Mannar, at the tip of the Indian peninsula.[1] Pamban Island, also known as Rameswaram Island, is connected to mainland India by the Pamban Bridge. Rameswaram is the terminus of the railway line from Chennai and Madurai.

Variants

History

Together with Varanasi, it is considered to be one of the holiest places in India to Hindus, and part of the Char Dham pilgrimage. It is written in the Ramayana that the Divine King Rama built a bridge with Hanuman's help from here across the sea to Lanka to rescue his wife Sita from her abductor Ravana. The Ramanathaswamy Temple, dedicated to the Vedic god Shiva, is at the centre of the town and is closely associated with Rama. The temple and the town are considered a holy pilgrimage site for Shaivas.[2][3]

Rameswaram is the closest point from which to reach Sri Lanka from India, and geological evidence suggests that the Rama Sethu was a former land connection between India and Sri Lanka.

The history of Rameswaram is centred around the island being a transit point to reach Sri Lanka (Ceylon historically) and the presence of Ramanathaswamy Temple. Tevaram, the 7th–8th century Tamil compositions on Shiva by the three prominent Nayanars (Saivites) namely Appar,[4] Sundarar and Thirugnanasambandar.[5] The king Rajendra Chola I (1012 – 1040 CE) had a control of the town for a short period.[6] The Jaffna kingdom (1215–1624 CE) had close connections with the island and claimed the title Setukavalan meaning custodians of the Rameswaram.[7] Hinduism was their state religion and they made generous contribution to the temple. Setu was used in their coins as well as in inscriptions as marker of the dynasty.[8]

According to Firishta, Malik Kafur, the head general of Alauddin Khalji, the ruler of Delhi Sultanate, reached Rameswaram during his political campaign in spite of stiff resistance from the Pandyan princes in the early 14th century.[9] He erected a mosque by name Alia al-Din Khaldji in honour of victory of Islam.[10] During the early 15th century, the present day Ramanathapuram, Kamuthi and Rameswaram were included in the Pandya dynasty. In 1520 CE, the town came under the rule of Vijayanagara Empire. The Sethupathis, the breakaway from Madurai Nayaks, ruled Ramanathapuram and contributed to the Ramanathaswamy temple.[11] The most notable of them are the contributions of Muthu Kumara Ragunatha and Muthu Ramalinga Sethupathi, who transformed the temple to an architectural ensemble.[12] The region then fell under the rule of different leaders Chanda Sahib (1740 – 1754 CE), Arcot Nawab and Muhammed Yusuf Khan (1725 – 1764 CE) in the middle of the 18th century.[13] In 1795 CE, Rameswaram came under the direct control of the British East India Company and was annexed to the Madras Presidency. After 1947, the town became a part of Independent India.

रामेश्वरम्

विजयेन्द्र कुमार माथुर[14] ने लेख किया है .....रामेश्वरम् (AS, p.792-793): मन्नार की खाड़ी में स्थित द्वीप जहां भगवान् राम का लोक-प्रसिद्ध विशाल मंदिर है। कहा जाता है कि इसी स्थान पर श्रीरामचंद्रजी ने लंका के अभियान के पूर्व शिव की अराधना करके उनकी मूर्ति की स्थापना की थी। वास्तव में यह स्थान उत्तर और दक्षिण भारत की संस्कृतियों का संगम है। पुराणों में रामेश्वरम् का नाम गंधमादन है। मन्नार द्वीप उत्तर से दक्षिण तक लगभग ग्यारह और पूर्व से पश्चिम तक लगभग सात मील चौड़ा है। बस्ती के पूर्व समुद्र तट पर लगभग 900 फुट लंबे और 600 फुट चौड़े स्थान पर रामेश्वरम् का मंदिर बना है। इसके चतुर्दिक् परकोटा है जिसकी ऊंचाई 22 फुट है। इसमें तीन ओर एक-एक और पूर्व की ओर दो गोपुर है। पश्चिम का गोपुर सात-खना है और लगभग सौ फुट ऊंचा है। अन्य गोपर अर्धनिर्मित अवस्था में है और दीवार से अधिक ऊंचे नहीं है। रामेश्वरम् का मुख्य मंदिर 120 फुट ऊंचा है। तीन प्रवेशद्वारों के भीतर शिव के प्रख्यात द्वादश ज्योतिर्लिंगों

[p.793]:में से एक यहां स्थित है। मूर्ति के ऊपर शेषनाग अपने फनों से छाया करते हुए प्रदर्शित हैं। रामेश्वरम् के मंदिर की भव्यता उसके सहस्रों स्तंभों वाले बरामदे के कारण है। यह 4000 फुट लंबा है। लगभग 690 फुट की अव्यवहित दूरी तक इन स्तंभों की लगातार पंक्तियां देखकर जिस भव्य तथा अनोखे दृश्य का आंखों को ज्ञान होता है वह अविस्मरणीय है। भारतीय वास्तु के विद्वान् फ़र्गुसन के मत में रामेश्वरम्-मंदिर की कला में द्रविड़ शैली के सर्वोत्तम सौंदर्य तथा उसके दोषों दोनों ही का समावेश है। उनका कहना है कि तंजौर का मंदिर यद्यपि रामेश्वरम् मंदिर की अपेक्षा विशालता तथा सूक्ष्म तक्षण की दृष्टि से उत्तमता से उसका दशमांश भी नहीं है किंतु संपूर्ण रूप से देखने पर उससे अधिक प्रभावशाली जान पड़ता है।

रामेश्वरम् के निकट लक्ष्मणतीर्थ, रामतीर्थ, रामझरोखा (जहां श्रीराम के चरणचिह्न की पूजा होती है), सुग्रीव आदि उल्लेखनीय स्थान है। रामेश्वरम् से चार मील पर मंगलातीर्थ और इसके निकट बिलुनी तीर्थ हैं। रामेश्वरम् से थोड़ी ही दूर पर जटा तीर्थ नामक कुंड है जहां किंदवती के अनुसार रामचन्द्र जी ने लंका युद्ध के पश्चात् अपने केशों का प्रक्षालन किया था। रामेश्वरम् का शायद रामपर्वत के नाम से 'महाभारत' में उल्लेख है। (दे.रामपर्वत, गंधमादन-2)

गंधमादन पर्वत

विजयेन्द्र कुमार माथुर[15] ने लेख किया है ...2. गंधमादन (AS, p.267) (मद्रास) श्री रामेश्वरम् के संपूर्ण क्षेत्र का नाम गंधमादन है. महर्षि अगस्त्य का आश्रम इसी स्थान पर बताया जाता है. विशिष्ट रूप से, गंधमादन रामझरोका नामक स्थान को कहते हैं. यह रामेश्वर-मंदिर से डेढ़ मील दूर है. मार्ग में सुग्रीव, अंगद तथा जाम्बवान के नाम से प्रसिद्ध सरोवर मिलते हैं. कहते हैं कि गंधमादन में, हनुमान ने लंका जाने के लिए समुद्र की दूरी का अनुमान किया था तथा सुग्रीव आदि के साथ लंका पहुंचने के बारे में मंत्रणा की थी. कहा जाता है कि रामेश्वरम् प्राचीन गंधमादन पर ही स्थित है.

रामपर्वत

राम पर्वत (AS, p.790) का उल्लेख महाभारत, सभापर्व में हुआ है- 'कृत्सनं कोलगिरि चैव सुरभीपत्तनं तथा, द्वीपं ताभ्राह्वयं चैव पर्वतं रामकं तथा।' महाभारत, सभापर्व 31, 68. इस स्थान को पाण्डव सहदेव ने दक्षिण की दिग्विजय यात्रा में विजित किया था। महाभारत के उपरोक्त प्रसंग से यह स्थान रामेश्वरम् की पहाड़ी [p.791]: जान पड़ता है। इसका अभिज्ञान लंका में स्थित बौद्ध तीर्थ 'सुमनकूट' या 'आदम की चोटी' (Adam's Peak) से भी किया जा सकता है। प्राचीन किंवदंती के अनुसार इस पहाड़ी पर जो चरणचिन्ह बने हैं, वे भगवान राम के हैं। वे समुद्र पार करने के पश्चात् लंका में इसी पहाड़ी के पास पहुचे थे और उनके पावन चरण चिन्ह इस पहाड़ी की भूमि पर अंकित हो गये थे। बाद में बौद्धों ने इन्हें महात्मा बुद्ध के और ईसाईयों ने आदम के चरणचिन्ह मान लिया।[16]

रामेश्वरम् परिचय

रामेश्वर / रामेश्वरम / श्रीरामलिंगेश्वर ज्योतिर्लिंग हिंदुओं का एक प्रसिद्ध तीर्थस्थल है। यह हिंदुओं के चार धामों में से एक धाम है। यह तमिलनाडु राज्य के रामनाथपुरम् ज़िले में स्थित है। मन्नार की खाड़ी में स्थित द्वीप जहां भगवान् राम का लोक-प्रसिद्ध विशाल मंदिर है। श्री रामेश्वर जी का मन्दिर एक हज़ार फुट लम्बा, छ: सौ पचास फुट चौड़ा तथा एक सौ पच्चीस फुट ऊँचा है। इस मन्दिर में प्रधान रूप से एक हाथ से भी कुछ अधिक ऊँची शिव जी की लिंग मूर्ति स्थापित है। इसके अतिरिक्त भी मन्दिर में बहुत-सी सुन्दर-सुन्दर शिव प्रतिमाएँ हैं। नन्दी जी की भी एक विशाल और बहुत आकर्षक मूर्ति लगायी गई है। भगवान शंकर और पार्वती की चल-प्रतिमाएँ भी हैं, जिनकी शोभायात्रा वार्षिकोत्सव पर निकाली जाती है। इस अवसर पर सोने और चाँदी के वाहनों पर बैठा कर शिव और पार्वती की सवारी निकलती है। वार्षिकोत्सव पर रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग को चाँदी के त्रिपुण्ड और श्वेत उत्तरीय से अलंकृत किया जाता है अर्थात सजाया जाता है, जिससे लिंग की अद्भुत शोभा होती है। उत्तराखंड के गंगोत्री से गंगाजल लेकर श्री रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग पर चढ़ाने का विशेष महत्त्व बताया गया है। श्री रामेश्वर पहुँचने वाले तीर्थ यात्री के पास यदि गंगाजल उपलब्ध नहीं है, तो वहाँ के पण्डे लोग दक्षिणा लेकर छोटी-छोटी शीशियों में (इत्र की शीशी जैसी) गंगाजल देते हैं।

ज्योतिर्लिंग की स्थापना: सेतुबन्ध-रामेश्वरम तीर्थ व ज्योतिर्लिंग के आविर्भाव के सम्बन्ध में इस प्रकार बताया जाता है–मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने स्वयं अपने हाथों से श्री रामेश्वर ज्योतिर्लिंग की स्थापना की थी। ऐसा बताया जाता है कि श्रीराम ने जब रावण के वध हेतु लंका पर चढ़ाई की थी, तो यहाँ पहुँचने पर विजय श्री की प्राप्ति हेतु उन्होंने समुद्र के किनारे बालुका (रेत) का शिवलिंग बनाकर उसकी पूजा की थी।


आस-पास के तीर्थ:


देवीपत्तन - उप्पूर के पश्चात् देवीपत्तन जाना चाहिए। रामनाथपुर से यह 12 मील दूर है। श्रीराम ने यहाँ नवग्रह स्थापन किया था। सेतुबंध यहीं से प्रारंभ हुआ, अतः यह मूल सेतु है। यहीं देवी ने महिषासुर का वध किया था। यहाँ धर्म ने तप करके शिव-वाहनत्व प्राप्त किया है। उनके द्वारा निर्मित धर्म पुष्करिणी है। महर्षि गालव की यह तपोभूमि है। यहाँ समुद्र के समीप धर्म पुष्करिणी सरोवर है। समुद्र उथला है। उसमें नौ पत्थर के छोटे स्तम्भ हैं। ये नवग्रह के प्रतीक हैं। सरोवर में स्नान करके तब समुद्र में इनकी परिक्रमा की जाती है। यहाँ कुछ दूरी पर महिष मर्दिनी देवी का मंदिर तथा बाज़ार में शिव मंदिर है।

दर्भशयनम - यह स्थान रामनाथपुरम से 6 मील दूर है। यहाँ से समुद्र 3 मील आगे है। मंदिर के पास ही धर्मशाला है। मंदिर में दर्भ पर सोये हुए श्रीराम की मूर्ति है। यह विशाल है। मंदिर की परिक्रमा में कई मूर्तियाँ हैं। समुद्र तट पर हनुमान जी का मंदिर है।

साक्षी विनायक — यह मंदिर पाम्बन मार्ग पर दो मील दूर स्थित है। कहा जाता है कि श्रीराम ने यहाँ जटायें धोयीं थीं।

सीताकुंड — यह कुंड रामेश्वरम से 5 मील दूर स्थित है। यहाँ समुद्र तट पर मीठे जल का कूप है।

एकान्तराम मंदिर — रामेश्वरम से 4 मील दूरी पर यह मंदिर स्थिर है। यहाँ श्रीविग्रह बातचीत की मुद्रा में है।

अम्मन देवी मंदिर — रामेश्वरम से दो मील पर नवनाम की अम्मन देवी का मंदिर है। यहीं के जलाशय से रामेश्वरम के नलों में जल आता है।

कोदण्डरामस्वामी — यह रामेश्वर से 5 मील उत्तर की ओर समुद्र तट पर है। रेत के मैदान में पैदल मार्ग हैं। यहाँ श्रीराम ने विभीषण को तिलक किया था।

विल्लूरणि तीर्थ — तंकच्चिमठम स्टेशन के पूर्व समीप ही समुद्र जल के बीच में मीठे पानी का सोता है। यह एक कुंड है। समुद्र में भाटे के समय यह तीर्थ मिलता है। सीताजी को प्यास लगने पर रघुनाथजी ने धनुष की नोक से पृथ्वी को दबाया तो जल निकल आया।

संदर्भ: भारतकोश-रामेश्वर

External links

References

  1. "Temple Towns of India".
  2. Gibson, Lynne (2002). Hinduism. Oxford: Heinemann Educational Publications. ISBN 0-435-336193.p.42
  3. Ayyar, P. V. Jagadisa (1991). South Indian shrines: illustrated. New Delhi: Asian Educational Services. ISBN 81-206-0151-3.pp.492-95
  4. Thirunavukkarasar 2002, pp. 18–19.
  5. Tirugnanasambandar (2004). Muthalam Thirumurai (PDF). Online: Project Madurai.
  6. "Ramanathapuram district history". Ramanathapuram district administration. 2011. Retrieved 16 September 2012
  7. Gunasingam, Murugar (1999). Sri Lankan Tamil nationalism. Sydney: MV. p. 238. ISBN 0-646-38106-7.,p.63
  8. Gunasingam 1999, p. 63.
  9. Mehta, Jaswant Lal (1986). Advanced Study in the History of Medieval India, Volume 1. New Delhi: Sterling Publishers Private Limited. ISBN 978-81-207-0617-0.
  10. Mehta 1986, p. 157.
  11. Ramanathapuram district history 2011.
  12. Michell, George (1995). Architecture and Art of Southern India: Vijayanagara and the successor states, Volume 1. Cambridge University Press. ISBN 9780521441100.p.116
  13. Harman, William. P (1992). The sacred marriage of a Hindu goddess. Motilal Banarsidass. pp. 30–36. ISBN 978-81-208-0810-2.
  14. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.792-793
  15. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.266-267
  16. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.790