Kanger River
Author:Laxman Burdak, IFS (R) |
Kanger River (कांगेर नदी) is among very few perennial rivers of Bastar district in Chhattisgarh. Kanger River gives name to Kanger Valley National Park and herein lies the importance of the river and the park. Kanger River is a lifeline and hills are its recharging reservoir; the whole Kanger Valley National Park is the catchment of Godavari River.
Variants
Origin of name
Kanger/Kanker probably get name after Mahabharata tribe named Kanka (कंक). In the list of The Mahabharata Tribes we find mention of Kanka (कङ्क), in the tribute list Mahabharata (II.47.26)[1] , as wearing horns, a practice among some Iranian tribes of Central Asia. Sandhya Jain[2] has identified it with A Jat tribe living between Beas and Sutlej in Punjab as Kang; who claim descent from solar race of Ayodhya. The tradition of wearing horns, a practice among some Iranian tribes of Central Asia, has probably come down to Bison Horn Madia tribe of Bastar.
Jat Gotras Namesake
- Kang = Kanger/Kanger River. Kanger River is among very few perennial rivers of Bastar, and herein lies the importance of the river and the park. Kanger River is a lifeline and hills are its recharging reservoir; the whole national park is the catchment of Godavari River.
Jat Gotras Namesake
- Gangra is a historical city presently called Çankırı, the capital city of Çankırı Province, in Turkey. Pliny has mentioned it as Gangre. [3]. Its Variants are: Cankiri, Çankırı, Changra, Gagra for the Jews, Gangra (Greek: Γάγγρα), Gangre (Pliny.vi.2), Germanicopolis (Greek: Γερμανικόπολις), Hangara for the Arabs, Kandari, Kanghari, Kângıri or Çankıri for the Turks, Kankiri, Tzungra for the Turks, Kiengareh, Kangreh, Changeri.
History
कंक-कंग जाटों का राज्य
दलीप सिंह अहलावत[4] के अनुसार कंक-कंग वंश के जाटों का राज्य महाभारतकाल में था। शक, तुषारों की तरह कंक देश के लोग महाराजा युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में तीखी लम्बी तलवारें, फरसे तथा सहस्रों रत्न लाये थे। (महाभारत सभापर्व, अध्याय 51, श्लोक 26-29)। बौद्धकाल में इन लोगों ने बौद्ध धर्म अपनाया। ब्राह्मणों ने इस कंक वंश को भी अनार्य घोषित कर दिया था और इनका किरात, हूण, आन्ध्र आदि जातियों की भांति ही बहिष्कार कर दिया गया (भागवत पुराण 2/4/18)। सिकन्दर से अमू दरिया पर जाटों ने युद्ध किया, उनमें दहिया व कंग जाट भी थे।
कुछ समय तक ये लुप्त जैसे रहे किन्तु दक्षिणी प्रांत वर्णन में विष्णु पुराण व ब्रह्माण्ड पुराण के ये पद सामने आए - अर्थात् “कंक वंश स्त्री राष्ट्र भोजक और भूषिक जनपद का भोग करेगा।” इस विषय में “रायल एशियाटिक सोसाईटी के जरनल” सन् 1905, पृष्ठ 293 पर फ्लीट और इसके बाद काशीप्रसाद जायसवाल ने प्रकट किया कि यह वर्णन दक्षिण हैदराबाद से दक्षिण की ओर बहने वाली मूसा नदी के समीपवर्ती प्रदेश का है। एक प्रकार से यह वंश दक्षिणी सम्राट् था। 350 ई० के लगभग इस कंक वंश ने सम्राट् समुद्रगुप्त (धारण गोत्री जाट) की अधीनता मानने से इन्कार कर दिया। नलगोण्डा से मिले शिलालेख से भी प्रान्तीय सामन्तों द्वारा इस वंश के राजा के मुकुट पर चंवर करने का उल्लेख ‘एपिग्राफिका इण्डिका’ 8-35 में किया गया है। किन्तु कंक लोग साम्राज्य स्थापित करने में असफल रहे। इसका कारण गुप्त साम्राज्य की निरन्तर वृद्धि थी।
यह इतिहास जिन दिनों का है वे दिन अभी तक ‘अन्धकार युग’ में माने जाते रहे। किन्तु बैरिस्टर जायसवाल ने ‘अन्धकार युगीन भारत’ नामक ग्रन्थ लिखकर इतिहास के स्वाध्यायी जनों का भारी उपकार किया है। यह वंश प्राचीन काल से है।
पंजाब में इस वंश की बहुत बड़ी स्थिति है। वहां के जाटों में कन्क के साथ कंग शब्द भी प्रचलित है। 1941 ई० की जनसंख्या में ये इस प्रकार पाए गए -
अमृतसर 2258, जालन्धर 1980, स्यालकोट 393, फिरोजपुर 880, लुधियाना 329, अम्बाला 1950, पटियाला 275 । इस वंश की बालूकी या डल्लेवालिया मिसल भी थी जिसकी
जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-299
स्थापना कपूरथला राज्य में डल्ला गांव के सरदार तारासिंह ने की थी। इसके जत्थे ने अहमदशाह अब्दाली को लूटा था। धीरू मिर्जई या झब्बू भी लुधियाने के कंक जाटों का प्रमुख केन्द्र था जहां कि 1763 ई० से लेकर देर तक मुगल शासन पर चोट की जाती रही। (जाटों का उत्कर्ष पृ० 316-317, लेखक योगेन्द्रपाल शास्त्री)।
External links
References
- ↑ शकास तुखाराः कङ्काश च रॊमशाः शृङ्गिणॊ नराः, महागमान थूरगमान गणितान अर्बुथं हयान (II.47.26)
- ↑ Sandhya Jain:Adideo Arya Devata, A Panoramic view of Tribal-Hindu Cultural Interface, Published in 2004 by Rupa & Co, 7/16, Ansari Road, Daryaganj, New Delhi, p.131
- ↑ Pliny.vi.2
- ↑ जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठ.299-300
Back to Rivers