Salakpal

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Salakpal (r.976-1002) was Tomar King of Dehi in 976. In Delhi, when Anangpal Tomar lost his kingdoms then Salakpal Tomar, from his family founded 84 Tomar Desh Khap of 84 villages.

Variants of name

Originator of Salkalayan clan

Salkalayan Sub Gotra - Salkalayan branch was originated by Salakpal Tomar. The Samadhi Sthal of Raja Salakpal Tomar is in Baraut on Delhi-Saharanpur Road Adjacent to New Block (Krishi Prasar Vibhag).Deshwale Tomar - Tomar jats also called Deshwale, because They are king of Desh.

In Harsha Inscription

In Harsha Inscription of Chauhans at Sikar verse -19 we find mention of this King as Salavana.

Verse-19.—By whom,—when he had slain Salavana, the leader of the Tomars , proud of the command of armies,— the kings of men in every direction were annihilated in war through his victorious might, and many also, who had opposed his messengers, were detained in a capacious prison of stone :—yet for the liberation of this very king (Sinharaja) a conqueror of the world of the race of Raghu voluntarily interposed.
L-17:*हत्वातोमरनायकं सलवणं सैनाधिपत्योद्धतं
   युद्धेयेन नरेश्वरा: प्रतिदिशं निर्न्नाशिता जिष्णुना । 
   कारांवतेभ्यमनि भूरयश्च विधृतास्चारद्दियो बड़ूटे 
   तनमुक्त्यर्थमुपाश्रितो रघुकुले भू चक्रवर्ती स्वयं ॥ ....१९

History

14. Singharaja (944-964 A.D.?) : Vakapatiraja I was succeeded by his son Singhraj :the first maharajadhiraja. He was the first of the Chahamana dynasty who adopted the title of maharajadhiraja. This also indicates that he had declared himself independent from the Pratihara dynasty. Harsha inscription indicates that Singhraj had defeated Tomara leader Salban and had made many princes and samantas as his prisoner. Pratihara king had come to Singhraj for the release of the said provinces and samantas. Singhraj was a very generous and charitable man. He had donated several villages to the temple of Harshanath.

तोमर वंश

दिल्ली सम्राट अनंगपाल द्वितीय को जो तोमर की उपाधि दी गई थी, बाद में वह विश्व प्रसिद्ध तोमर वंश में परिवर्तित हो गई. सुलक्षण पाल तोमर से सलखलान गोत्रीय जाट, कलश पाल तोमर से कलसलान गोत्रीय गुज्जर, तथा बलराम से बालान गोत्रीय जाटों की उत्पत्ति सिद्ध होती है. [1]

इतिहास

976 ई. में सलअक्शपाल तोमर इंद्रप्रस्थ के सिंहासन पर सत्तारूढ़ थे। उन्हेंने 25 साल, 10 महीने के लिए शासन किया। 1005 ई. में जयपाल ने समचना (आधुनिक रोहतक) को और फिर कुछ समय के बाद में यमुना नदी को पार किया था और इस तोमर क्षेत्र का हिस्सा बन गया मेरठ गजट हमें बताता है कि जिले "मेरठ” महिपाल राजा के राज का हिस्सा था। राजा सलअक्शपाल तोमर जब इस क्षेत्र में आया था उसे के साथ 500 योद्धा थे जिनमें से 405 जाट थे, और बाकी दूसरे समुदायों से थे।

सलअक्शपाल ने चौधरत का समाजशुरू किया था उन्होंने इस क्षेत्र में 14 गांवों के प्रत्येक छह में चौधरत शुरू कर दिया था और इस को चौरासी (84)के कुल और चौरासी की चौधरत ( या 84 के रूप) में जाना गया था। पहले एक गांव पर चौधरी का चयन किया गया था, और फिर 14 गांवों और अंत में प्रत्येक समुदाय के चौधरी (बिरादरी) 84 ग्राम स्तर पर उनके चौधरी को चुना है।


तोमर गोत्र को दिल्ली के राजा सलअक्शपाल तोमर के नाम पर ही सलकलान कहते है इनकी खाप को देश खाप कहते जिसके नाम दो कारण से देश खाप है एक तो यह की सलअक्शपाल राजा के पुत्र देशपाल इस खाप के मुखिया थे । इनके नाम पर ही इस खाप का नाम देश खाप पड़ा है दूसरा यह खाप बहुत अधिक क्षेत्र में है जी को देश नाम से जानते इसलिए ही इनको देशवाले भी कहते है|

देश खाप कभी गुलाम नहीं रही किसी गैर राजा के अधीन नहीं रही | तोमर जाट ज्यादातर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बागपत जिले में निवास करते है बागपत क्षेत्र में तोमर गोत्र के 84 गांवों हैं तोमर खाप इस क्षेत्र में देश खाप के रूप में जाना जाता है श्री सुखबीर सिंह के निधन के बाद उनके बड़े पुत्र श्री सुरेन्द्र सिंह इस देश खाप के चौधरी के रूप में मनोनीत किया गया है|

सलकपाल का जन्म उत्सव

सलकपाल का जन्म उत्सव

दिल्ली के जाट महाराजा कौन्तेय सलकपाल (सलक्षणपाल) देव तोमर (तंवर) का जन्म उत्सव बड़े धूम धाम से ग्राम बामनौली/बामड़ोली में मनाया गया दिल्लीपति राजा अनंगपाल के पितामाह (दादा ) भी थे। बामनौली और बावली गाँव को देशखाप का जिले में केंद्र माना जाता है।

महिपाल का बांध

महिपाल का बांध: महिपालपुर को जाट राजा महिपाल सिंह तोमर ने बसाया था उसके वंशज आज भी यहाँ निवास करते है उनको वर्तमान में सहराव कहा जाता है महिपालपुर ने राजा ने एक बांध का निर्माण करवाया था अनगढ़े हुए पत्थर से इसका निर्माण किया गया फ़िरोज़ शाह के समय में इस बाँध से सिचाई की व्यवस्था की गयी यहाँ शिकारगाह का भी निर्माण करवाया गया .

महिपाल पुर का महल:राजा महिपाल ने यहाँ एक महल का निर्माण करवाया जिसके अवशेष आज भो मोजूद है फिरोजशाह तुगलक ने इसका पुन निर्माण करवाया इसके तीन मेहरावी दरवाजे है.

किशनपुर बराल की बारादरी: इसका निर्माण सम्राट सलकपाल देव ने करवाया यहाँ भी एक न्याय पीठ की स्थापना राजा के दुवारा करवाया गया जिसके अवशेष आज भी देखे जा सकते है.

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जाट सम्राट सलकपाल तोमर

जाट सम्राट सलकपाल तोमर जी (अनंगपाल तोमर के दादा) के 1063वे जन्म दिवस पर उन्हें शत शत नमन। बागपत में राजा सलकपाल की विशाल मूर्ति लगनी चाहिए।

क्षत्रिय जाट सम्राट अनंगपाल तोमर के दादा जी दिल्लीपति जाट सम्राट सलकपाल तोमर (के 1063 वे जन्म उत्सव का आयोजन 5 फरवरी को जनता कॉलेज (जाट कॉलेज) बड़ौत क्षेत्र में माघ पूर्णिमा पर किया जा रहा है.

महाराजा सलकपालसिंह तोमर समन्त देश (दिल्ली) के राजा थे । यह महाराजा अनंगपाल तोमर के पितामह (दादा जी ) थे।

पुस्तक-पाण्डवगाथा

इनका जन्म माघ पूर्णिमा के दिन सन 961 ईस्वी में महिपालपुर के पास हुआ था। इसी दिन इनके पिता गोपालदेव सिंह तोमर का राज्य तिलक समन्त देश के सम्राट के रूप हुआ इसी कारण इनके पिता इनको सुलक्षणपाल बोलते थे।

महाराजा सलकपाल देव सिंह ने समाज में के लोकतान्त्रिक व्यवस्था कायम कि थी इसको चौधराठ का समाज बोला जाता है । इस सामाजिक व्यवस्था में मुखिया का चुनाव लोगो द्वारा आपसी सहमति से होता है।तोमर कुंतल एक ही गोत के क्षेत्रीय नाम है तोमर जाटों को इनके नाम पर सलकलाण भी बोला जाता है । जो आज बाघपत क्षेत्र में निवास करते है।

सम्राट सलकपाल सिंह 18 वर्ष 3 माह 15 दिन कि आयु में 979 ईस्वी में समन्त देश कि गद्दी पर बैठे थे उस समय तक तोमर राज्य को अनग प्रदेश या समन्त प्रदेश के रूप में जाना जाता था । दिल्ली कि स्थापना इनके पोते महाराज अनंगपाल सिंह ने की , उस समय इस जाट राज्य की राजधानी इंद्रप्रस्थ थी ।

सलकपाल सिंह ने सन 979 ईस्वी से 1005 ईस्वी तक 25 वर्ष 10 माह 10 दिन तक शासन किया था अपने शासन काल में बहुत से किले और मंदिरो का निर्माण करवाया जिसको बाद में मुस्लिम शासको ने नष्ट कर दिया था।

मेजर कनिघम , सैय्यद अहमद , खण्डराव जैसे इतिहासकारो ने इनका वर्णन किया है । हरिहर ने अपनी किताब तोमर इतिहास में लिखा है हसन निजामी ने जिस सौरवपाल राजा का वर्णन किया है वो सलकपाल तोमर ही थे राजस्थानी ग्रंथो में इनको रावलु सुलक्षण तंवर नाम से पुकारा है।

सन 1005 ईस्वी में 43 वर्ष 1 माह और 25 दिन कि आयु में राज सिहांसन अपने छोटे भाई जयपाल को सौप के खुद वांनप्रस्थ आश्रम ग्रहण कर समचाना में गढ़ी बना कर रहने लग गए थे । इस गढ़ी को आज भी देखा जा सकता है इस जगह को आज भी तोमर जाटों का खेड़ा बोला जाता है। यमुना और कृष्णा नदी के बीच के भाग में घना वन था यह स्थान डाकूओ का आश्रय स्थल बन चूका था । अपने भाई के आग्रह पर इन्होने यमुना और कृष्णा के बीच के बसे इन भयकर डाकुओ का समूल नाश किया फिर स्थायी रूप से शांति स्थापित करने के उद्देश्य से यहां जाटों की गणतंत्रात्मक चौधराठ शुरू की प्रारभ में 84 गाव बसा चौधराठ का समाज शुरू किया जिसको आज देश खाप के रूप में जाना जाता है । और इनके वंशज तोमरो को सलकलान तोमरो के नाम से जाना जाता है।

समंत देश के तोमर राजा कि मुद्रा काबुल ,लाहोर ,आगरा , किशनपुर बराल (बाघपत ) से प्राप्त हुई है जिन में एक और श्री समन्त देव और इनका नाम सलकपाल अंकित है • हिन्दूग्रंथ देव सहिंता में जाटों की उत्पत्ति भगवान शिव से बताई गयी है जाटों का वर्णन शिव के गण नंदी के रूप में भी किया गया है साथ ही दिल्ली के तोमर राजाओ के सिक्को के एक तरफ नन्दी का चित्रण हैं।•

वाकआत पञ्च हज़ारा (1898 ) में इंद्रप्रस्थ (दिल्ली) के पांडव वंशी तोमर राजाओ को जाट लिखा गया है ।।।।।

पंडित दयानन्द सरस्वती ने दिल्ली के पांडुवंशी राजाओ को जाट ही माना है इसका वर्णन सत्यार्थ प्रकाश में भी किया है।

फारस (ईरान) की प्रसिद्ध तवारीख सैरउलमुखताखरीन में इंद्रप्रस्थ के पाण्डववंशी तोमर राजाओ को जाट लिखा गया है।

किशनपुर बराल गाव में एक विशाल तालाब का पुनः निर्माण चौधराठ कि स्थापना के बाद इनके दुवारा किया गया था । जो कभी कृष्ण और बलराम के युद्ध शिविर का हिस्सा रहा था । रामायण काल में इसको रामताल बोला जाता था इसका नाम आज भी रामताल है किशनपुर बराल में एक बारदारी का निर्माण कर वहाँ पर न्याय पीठ कि स्थापना सलकपाल राजा ने कि थी । बावली गाव कि बनी को गोपीवाला इनके पिता गोपालदेव के नाम पर ही बोला जाता है।

इनका विवाह राजल देवी देशवाल से हुआ इन छोटे भाई जयपाल तोमर का विवाह भी देशवाल गोत की इस राजल देवी की छोटी बहिन से हुआ था। महारानी राजल देवी को बडी माता के रूप में आज भी पूजा जाता है जिसका मंदिर आज भी किशनपुर ग्राम में मौजूद है।

महाराजा सलकपाल के सात पुत्रो का नाम निम्न प्रकार से है- 1. रामपाल तोमर

2. महिपाल तोमर

3. कृष्णपाल तोमर

4. चंद्रपाल तोमर

5. हरिपाल तोमर

6. शाहोनपाल (शाहपाल) तोमर

7 देशपाल सिंह


बड़ौत कि चौधराण पट्टी ,नई बस्ती ,ब्लाक बिल्डिंग के पास सलकपाल का भूमिया हुआ करता था इनकी समाधी बड़ौत में है।

बाघपत की तोमर खाप को देश खाप बोलने के पीछे दो प्रमुख कारण है एक तो यह की सलकपाल राजा के पुत्र देशपाल इस खाप के मुखिया थे । इनके नाम पर ही इस खाप का नाम देश खाप पड़ा है दूसरा यह खाप बहुत अधिक क्षेत्रफल में फैली हुई है। इसलिए इसको देश नाम से भी जाना जाता है। देश खाप कभी गुलाम नहीं रही किसी गैर राजा के अधीन नहीं रही |

तोमर देश खाप के 84 गांवों में सबसे पहले चौधरत (CHAUDHRAT):-

1. बडौत में 14 गांवों की पहली चौधरत चौधरी रामपाल तोमर ने आयोजित की।

2. बावली में 14 गांवों की पहली चौधरत चौधरी राव महिपाल तोमर ने आयोजित की।

3. किसानपुर (किशनपुर) बिराल में 14 गांवों की पहली चौधरत कृष्णपाल तोमर ने आयोजित की।

4. बिजरौल में 14 गांवों की पहली चौधरत चौधरी चंद्रपाल तोमर ने आयोजित की।

5. बामडौली में 14 गांवों की पहली चौधरत चौधरी हरिपाल तोमर ने आयोजित की।

6. हिलवाड़ी में 14 गांवों की पहली चौधरत चौधरी शाहोपाल (शाहपाल) तोमर ने आयोजित की।

एक महान जाट योद्धा गोपालपुर खनडाना बुंदेलखंड चला गया वह वहाँ बसे और सलकरान चौधरत शुरू की व बाद में एक राजपूत महिला से शादी की और अपने श्वसुर (ससुर ) की जागीरी शिवपुरी का जागीरदार बन गया तो उसके वंशज राजपूतो में सम्मलित हो गए इसलिए आज भी वो तोमर अपना गोत्र पूछने पर व्याघप्रस्थ (बाघपत ) ही बता ते है।पुस्तकों में इनको व्याघप्रस्थ तोमर ही लिखा जाता है। जो उनके पूर्वज के निमवास स्थान बाघपत का प्राचीन नाम है बागपत क्षेत्र में तोमर गोत्र के 135 गांवों हैं। यह गाँव काफी बड़े है जो 10 हज़ार तक कि आबादी वाले है। तोमर खाप इस क्षेत्र में देश खाप के रूप में जाना जाता है।

देशखाप की चौधर पट्टी चौधरान मे है।

देश खाप की सात थांबें ये थांबें देशखाप के अधीन काम करती हैं।

थांबा चौधरी

1. बावली

2. किशनपुर बराल

3. बामनौली

4. बिजरौल

5. पट्टी मेहर

6. पट्टी बारू

7. हिलवाड़ी

Source - Facebook Page of Jat king, 06.02.2023

External links

References