Shekhawati Ke Gandhi Amar Shahid Karni Ram/Wiki Editor Note

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पुस्तक: शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम

लेखक: रामेश्वरसिंह, प्रथम संस्करण: 2 अक्टूबर, 1984

विकि एडिटर का नोट

Shekhawati Ke Gandhi Amar Shahid Karni Ram is a book on the life and deeds of Karni Ram Meel (2 February 1914 - 13 May 1952), who was a brave farmer leader of Jhunjhunu district and leader of the Shekhawati farmers movement. He was a strong follower of Mahatma Gandhi. He was a social worker and an advocate by profession. His contribution to the farming communities in Rajasthan is un-parallel in the History. He was shot dead on 13 May 1952 along with Ramdev Singh Gill by the Jagirdars at village Chanwara when both taking part in farmers movement against jagirdars.

Dr Virendra Singh provided a hard-copy of the book as well as its soft-copy. I have wikified and made the book online available for the general public.

पुस्तक का तीन खंडों में विभाजन

इस पुस्तक को तीन खंडों में विभक्त किया गया है। प्रथम खंड में करणीराम जी के जीवनवृत को समसामयिक राजनीतिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों के परिपेक्ष में चित्रित किया गया है ताकि उनके व्यक्तित्व के विकास एवं उभार को सही रूप में समझा जा सके। दूसरे खंड में करणीराम जी के बारे में सम्मतियाँ, श्रद्धा-पुष्पों और संस्मरणों का समावेश किया है। तीसरे खंड में तत्कालीन सामाजिक एवं राजनीतिक व्यवस्थाओं के बारे में लेख माला है। श्री नरोत्तम लाल जोशी द्वारा लोकवादी 29 मई, 1945 के लिए लिखे गए लेख को उद्धत किया है। इसके पढ़ने मात्र से उदयपुरवाटी की तत्कालीन हालात की जीती जागती तस्वीरें सामने आ जाती है और करणीराम जी के बलिदान की महानता एवं सार्थकथा उभर कर सामने आ जाती है।

पुस्तक समीक्षा

प्रस्तुत पुस्तक में धरती के वीर पुत्र शहीद करणीराम की अमर गौरव गाथा अंकित है. श्री करणी राम जी की चारित्रिक विशेषताओं एवं उनके द्वारा किए गए कार्यों के बारे में इस पुस्तक में विस्तारपूर्वक उल्लेख किया गया है

लेखक ने सफलतापूर्वक जहां अपने नायक करणीराम के बहुविध गुणों, सिद्धांतों, आदर्शों एवं संकल्पों का चित्रण किया है वहां तत्कालीन राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का भी विचारोत्तेजक परिचय कराया है. करणी राम जैसे महान पुरुष के जीवन के बारे में कोई विश्वसनीय प्रकाशन नहीं हुआ था. आज देश की वर्तमान परिस्थितियों में अलगाववादी शक्तियां देश के लिए एक जबरदस्त चुनौती दे रही हैं. ऐसे मौके पर शहीदों का स्मरण एवं उनकी उपलब्धियों की जानकारी समाज एवं राष्ट्र को दी जानी चाहिए ताकि राष्ट्र की अखंडता एवं सुरक्षा को कायम रखा जा सके, अतः वर्तमान परिपेक्ष में इस पुस्तक की उपयोगिता और भी बढ़ जाती हैं.

स्वर्गीय श्री करणीराम ने संपूर्ण जीवन किसानों की सेवा में लगा दिया । यहां तक कि इस संघर्ष यज्ञ में उन्होंने अपने प्राणों की आहुति भी दे डाली। इस पुस्तक में ना सिर्फ श्री करणीराम के बलिदान को उजागर किया गया है बल्कि जागीरदारी शोषण के विरुद्ध प्रारंभ किए गए लंबे संघर्ष की कहानी को भी जनता के सामने रखा गया है।

श्री करणीराम के लिए वकालत किसी प्रकार का लक्ष्य नहीं था एक ऐसा माध्यम था जिसे उन्होंने किसानों के उद्धार के लिए सत्य और अहिंसा की लड़ाई लड़ी। वास्तव में श्री करणीराम को बहुमुखी संघर्ष करना पड़ा था। उनके उद्धार के साथ साथ हरिजन उत्थान, महिला उद्धार और सामाजिक कुप्रथाओं को समाप्त करने के लिए भी उन्होंने संघर्ष किया। सभी प्रकार की सामाजिक कुरीतियों को तोड़ने में उन्होंने पहल की और समाज को अनुकरण करने के लिए ललकारा। हरिजन उत्थान की लड़ाई भी इसी प्रकार प्रारंभ की गई । श्री करणी राम केबल वक्ता नहीं, कर्ता भी थे।

गांधी जी के आदर्शों का अनुसरण

स्वर्गीय श्री करणीराम जी ने अपने कुछ गिने-चुने साथियों को लेकर किसान और हरिजन जागरण का बिगुल बजाया। राजस्थान के गाँधी श्री करणीराम जी सबको बराबर समझते थे। उनके यहाँ गरीब, धनवान, हरिजन, बालक सभी को प्यार मिलता था। छुआछूत से परहेज का सबसे बड़ा उदाहरण है, उनके यहां काम करने वाला रेखा हरिजन। रेखाराम उनके पास सारे काम करता था। वे गांधी जी के परम भक्त और पक के अनुयाई थे। महात्मा जी की शिक्षाओं को उन्होंने अपने जीवन में पूरी तरह उतारा था। खादी पहनते थे, ईर्ष्या देष से दूर रहते थे। देश सेवा को उन्होंने अपना परम लक्ष्य बनाया था। हरिजनों द्वारा के कार्य को क्रियात्मक परीगति देते थे और छुआछूत तथा शराब से घृणा करते थे। इस प्रकार गांधी जी की शिक्षा को अपने जीवन में समाहित कर वे अपने मन, कर्म और वचन से सच्चे गांधीवादी बन गए।

श्री करणीराम जी गांधी की परम्परा के अनुयायी थे। भय और कार्य से जी चुराने की वृति उनमें कहीं दिखाई नहीं देती थी। वे जब तक जीये निष्ठापूर्वक कार्य करते रहे। गांधी जी के आदर्शों को उन्होंने जीवन में उतारने का पूरा प्रयत्न किया। श्री रेखाराम हरिजन को उन्होंने अपने घर में सेवक रखा जो खाना बनाने पानी भरने तथा घर का सब काम करता था। श्री करणी राम जी सादेपन के अलावा करुणामय भी बहुत थे। पंडितों को राहत पहुंचाने के लिए उनकी आत्मा तड़प उठती थी, स्वयं दुख झेल कर भी दूसरे की मदद करते थे और अगले को यह अहसास नहीं होने देते थे कि उसकी मदद की जा रही है। शहर से कचहरी जब जाते थे तो घोड़ा तांगा ही काम में लेते थे। जितने भी तांगे होते थे उनमें सबसे कमजोर घोड़े वाले के तांगे में वे सवार होते थे और कचहरी पहुंचने पर चार आने की बजाय एक रुपया उसको किराया देते थे। उनका कहना था कि सब लोग अच्छे घोड़े के तांगों में बैठना चाहते थे। इन कमजोर घोड़े वाले को कम सवारी मिलती है अतः इनकी मदद करनी चाहिए, क्या फर्क पड़ता है। यदि रास्ते में कुछ समय ज्यादा लग जाता है तो।

श्री करणी राम जी को कई बार झुंझुनू से उदयपुरवाटी कचहरी में मुकदमों की पैरवी के सिलसिले में जाना पड़ता था, यदि मौसम प्रतिकूल नहीं होता तो वे बस की बजाए इतनी लंबी यात्रा ऊंट तांगे में किया करते थे। हालांकि समय अधिक लगता था तथा रुपया कई गुना ज्यादा होता था। वे कहा करते थे रास्ते में लोगों से मिलना जुलना भी होता रहता है और इस बेकारी के समय यदि एक परिवार की भी मदद हो सकती है तो अच्छा ही है। क्या फर्क पड़ता है थोड़ा समय ज्यादा लग जाएगा।

री करणीराम जी ने वकालत के पेशे का भी मान बढ़ाया। अदालतों पर इस बात की छाप थी कि करणीराम जी जो तथ्य रख रहे हैं वे सत्य हैं। उनके लिए ये कभी सोचा ही नहीं गया कि श्री करणीराम जी किसी झूठी बात की भी पैरवी कर सकते है क्या' उन्हें असत्य बात कहने की बजाय मुकदमे की पैरवी छोड़ना ज्यादा पसन्द था,बहुत से लोगों को वे मना कर देते थे कि वे उनके पक्ष की पैरवी नहीं कर सकते क्योंकि उनकी नजर में वह पक्ष सत्य प्रतीत नहीं होता था। वकालत के पेशे को उन्होंने अर्थ लाभ के लिए नहीं अपना कर सेवा भाव से ही अपनाया। अनेकों गरीब लोगों की पैरवी बिना फ़ीस लिए श्री करणीराम जी करते थे।

श्री करणीराम द्वारा किसानों को शोषण के विरुद्ध संगठित करने और उन्हें उन्हें अपने अधिकार दिलाने के प्रयासों का निहित स्वार्थों द्वारा बहुत विरोध किया गया। सरकार के आदेश थे कि किसानों से उनकी उपज का छठा भाग ही लगान के रूप में लिया जाए जबकि भोमियों और जागीरदार आतंक और लाठी के जोर से उपज का आधा हिस्सा लेने पर उतारू थे। परंतु सदियों से शोषित और पीड़ित किसान वर्ग ने अपने मसीहा के साथ अहिंसक विद्रोह का झंडा ऊंचा किया, किंतु जैसा कि ऐसे मसीहाओं का अंत तो होता है.

श्री करणीराम जी का जीवन निर्मल तथा निष्कलंक था। वर्तमान आर्थिक युग की आपाधापी से बिल्कुल दूर थे, अर्थ संग्रह करना उनके संस्कारों में था ही नहीं।

आतंकियों की गोली के शिकार हुए

श्री करणीराम और उनके अन्यतम सहयोगी श्री रामदेव सिंह गीला, चंवरा ग्राम के निकट एक ढाणी मैं आतंकियों की गोली के शिकार हुए। 13 मई, 1952 की सदलबल चंवरा पहुंचे। भौमियां सरदार भी गाँव के अन्दर एक मील के फासले पर मौजूद थे। श्री करणीराम जी, रामदेव जी अपने साथियों और पुलिस के जवानों को छोड़कर अकेले सेडू गुजर की ढाणी में चले गए तो रामेश्वर दरोगा और गोरधन सिंह ने दोनों वीरों को गोली से उड़ा दिया।

सम्मान

  • दाह स्थल पर चबूतरे का निर्माण करवाया गया। दोनों वीरों की संगमरमर की प्रतिमां स्थापित की गई। ये प्रतिमायें आज भी उस प्रांगण में स्थित है और नई पीढ़ी को उनके बलिदान का स्मरण करा रही है।
  • चंवरा शहीदों का निर्वाण स्थल था। वहां शहीद पार्क योजना क्रियान्वित की गई। इस शहीद स्मारक की आधार शिला राजस्थान के तत्कालीन मुख्य मंत्री श्री जय नारायण जी व्यास ने रखी थी जब वे चंबरा शहीद स्थल पर आये तब शहीदों के परिवार के लोगों से भी मिले थे।
  • बलिदान सेडूराम की ढाणी में हुआ था। उसने अपनी ढाणी दूसरी जगह बसा ली। उससे एक एकड़ जमीन शहीद स्मारक समिति ने ले ली। श्री करणीराम जी झुंझुनू जिला बोर्ड के अध्यक्ष थे। उनके शहीद हो जाने के बाद उनकी स्मृति में यहां एक पाठशाला और आयुर्वेर्दिक जिला बोर्ड ने बनवा दिया।
  • श्री करणीराम जी के जन्म स्थान भोजासर के चौक में श्री करणीराम जी की संगमरमर की प्रतिमा का स्थापन किया गया। इस मूर्ति का अनावरण राजस्थान के तत्कालीन मुख्य मन्त्री श्री हरिदेव जोशी ने किया था।
  • श्री जोशी जी ने भोजासर में राजकीय विद्यालय का नाम श्री करणीराम उच्च माध्यमिक विद्यालय करने की स्वीकृति दी।
  • तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री जयनारायण जी व्यास 29 नवम्बर, 1952 को झुंझुनू आए और 30 नवम्बर को उन्होंने चंवरा ग्राम में श्री करणीराम और रामदेव की समाधि स्थल पर श्रद्वापुष्प अर्पित किये।
  • मई 1975 में उनकी मूर्ति का अनावरण हरिदेव जोशी भू. पू. मुख्य मन्त्री, राजस्थान द्वारा किया गया था। उस समय उन्होंने कहा था, कि हमारी आजादी करणीराम जी जैसे शहीदों के बलिदानों पर ही जीवित है।
  • अफसोस है कि श्री करणीराम जी व श्री रामदेव जी की धर्म पत्नियों को राष्ट्रीय सम्मान न सरकार ने दिया न समाज ने।

Laxman Burdak, IFS (R): Wiki Editor


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