Sedu Ram Kasania
Author:Laxman Burdak, IFS (R), Jaipur |
Sedu Ram Kasania (born:1895) (सूबेदार सेडूराम कासनिया), from village Purana Bas, Neem Ka Thana, Sikar was a leading Freedom fighter who took part in Shekhawati farmers movement in Rajasthan. Ha joined Indian Army on 20.7.1911 and was promoted to the post of Subedar in 1936. He was awarded with many medals in his career of Army which include Order of British India. [1]
जाट जन सेवक
ठाकुर देशराज[2] ने लिखा है ....सूबेदार सेडूराम जी - [पृ.427]: जन्म संवत 1952 (1895 ई.), पिता का नाम: चौधरी अमराराम जी, गोत्र कासनिया, गांव पुराना वास, निजामत नीमकाथाना।
आप चार भाई हैं। तीन आपसे छोटे हैं: हिमा, भूरा, रेखराज उनके नाम हैं। आप के संतान 3 पुत्र और दो पुत्रियां हैं। बड़े पुत्र कुंवर शिवराम सिंह फौज में है। मझले रामजीलाल जी भी फौज में है। छोटे घनश्याम सिंह पढ़ते हैं। छोटी लड़की जीनाबाई पढती है।
आप 20 जुलाई 1911 को फौज में भर्ती हुए। सन 1936 में सूबेदार बने।
सन् 1914 में आप अरब की लड़ाई में गए। 1917 में आप पैलेसटाइन और अफ्रीका में गए। तीन दफा काबुल के विद्रोह को दबाने गए। बर्मा की बगावत में भी गए। 6-7 मेडल आप को प्राप्त हुए। जिनमें ओबीआई भी शामिल है।
सन् 1928 में आप आर्य समाज खयालात के बने। उस समय से आपने बराबर अपने इलाके में काम किया। आपने ब्राह्मणों में पुनर्विवाह का प्रचार किया और एक पुनर्विवाह भी कराया। ब्राह्मण लोग उस समय आपके इलाके में जाटों को सूद्र कहते थे। उनके साथ आपने शास्त्रार्थ किए। अपने गांव में स्कूल खुलवाने का प्रयत्न किया।
आप जाट महासभा के कार्यों में खूब दिलचस्पी लेते हैं। जयपुर जलसे के लिए आपने इलाके से लगभग ₹2000 चंदा कराया।
आप देहात की सेवा के लिए छोटा दवाखाना रखते हैं। मुफ्त दवा देते हैं। आपने नुक्ता बंद कराने के लिए कानून बनवाया।
[पृ.428]: मीनों के प्रभाव को घटाया। इससे आपको उन से मुठभेड़ में भी करनी पड़ी। 3 साल तक आपका लालबाग कम कराने के लिए भूमियों के साथ झगड़ा चला। जिसमें आपका लगभग ₹2000 खर्च हो गया।
आपने सब तरह से जहां तक हो उठाने के प्रयत्न किए हैं। बच्चों के टीका लगवाने से लोग डरते थे आप ने उनहें तैयार किया। आप उत्साही और सच्चे कार्य करता है।
जीवन परिचय
बाहरी कड़ियाँ
संदर्भ
- ↑ Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.427-428
- ↑ Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.427-428
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