Swami Atmaram Mundwa

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परमपूज्य आत्माराम जी दादूपंथी

Swami Atmaram Mundwa (Bissu), from Gogelao, Nagaur, was a social worker in Nagaur, Rajasthan.[1]

जीवन परिचय

स्वामी आत्माराम जी मूंडवा अथवा आत्माराम जी दादूपंथी का जन्म नागौर के पास गोगेळाव गाँव में बिस्सू गौत्री जाट परिवार में हुआ था । आपकी दादूदयाल जी में आस्था होने के कारण दादूपंथी कहलाये तथा आजीवन ब्रह्मचर्य का पालन किया ।

कर्मभूमि

आप उस समय के बहुत ही अच्छे वैध थे । आपने अपनी कर्मभूमि मारवाड़ मूण्डवा को बनाया, जहाँ दादूदयाल औषधालय की स्थापना की । कहते है कि आप इतने जानकार थे कि आप नाड़ी देखकर यह तक बता देते थे कि आज भोजन में क्या खाया है । एक बार खींवसर ठाकुर के परिवार में कोई बीमार हो गया और सब जगह महँगी सें महँगी दवा लेने के बाद भी ठीक नहीं हुआ और चिकित्सकों ने कह दिया की अब इनको बचाना मुश्किल है तो उन्होने आत्माराम जी सें सम्पर्क किया ।

आत्माराम जी बहुत ही स्वाभिमानी थे और घोड़ी रखते थे । खींवसर गढ में किसी अन्य शख्स का घोड़ी ले जाना सख्त मना था । आत्माराम जी बिमार को देखने घोड़ी पर रवाना हुए और सीधे खिंवसर गढ में प्रवेश कर गये । इतने रौबीले शख्स को देखकर सब हक्के-बक्के रह गये और बगलें झांकने लगे, तब ठाकुर ने अगवानी की और सीधे बीमार के कक्ष में ले गये । वैध आत्माराम जी नें उसको तीन दिन की दवा सें ही ठीक कर दिया ।

आप सच्चे सेवक थे । आपसे कभी कभी बलदेवराम मिर्धा परामर्श लेने आते रहते थे । जहाँ किसान हित की चर्चा होती रहती थी ।

आप खुद को खेती-बाड़ी का बहुत शौक था । आपके पास उस समय 150 बीघा जमीन थी, जो बहुत ही उपजाऊ थी । इसके अलावा आप 15-20 भैंसे, नागौरी नस्ल के बैल, घोडे-घोड़ी शौक सें रखते थे तथा नागौर पशु मेले में होने वाली बैल और घुड़ दौड़ में हिस्सा लेते थे । इन्होंने बाद में अपने भतीजे को गोद लिया वो भी आगे चलकर जाने-माने वैध बने और चिकित्सा सेवा पीढी दर पीढी जारी है ।

वर्तमान में आत्माराम जी के पड़पौत्र लक्ष्मीनारायण बिस्सू मारवाड़ मूण्डवा नगरपालिका के उपाध्यक्ष है । यह सब उन्हीं के सतकर्मों की वजह से है ।

जाट जन सेवक

ठाकुर देशराज[2] ने लिखा है ....स्वामी आत्माराम जी मूंडवा, जो कि अत्यंत सरल और उच्च स्वभाव के साधु हैं और वैद्य भी ऊंचे दर्जे के हैं। आप अपने परिश्रम से अपना गुजारा करते हैं। आपका यश चारों ओर फैला हुआ है। आप अपने पवित्र कमाई में से शिक्षा और स्वास्थ्य पर दान करते रहते हैं।

लेखक

संदर्भ

  1. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.2060207
  2. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.206-207

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